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मेरी बीवी अनुश्री भाग -44

अपडेट -44

फारुख दरवाजा बंद करके पलटा ही था कि उसकी सांसे थमने को हुई, उसने जो नजारा थोड़ी देर पहले बाहर देखा था वो कुछ भी नहीं था अंदर अनुश्री बिस्तर पे बैठी हांफ रही थी ना जाने किस शून्य मे खोई हुई थी,पानी कि बुँदे उसके बाल और गालो से होती हुई उस महीन लेकीन गद्देदार दरार मे कहीं जा के गायब हो जा रही थी,अनुश्री के स्तन ना जाने किस आवेश मे उठ उठ के गिर रहे थे जैसे तो मिलो कि मेराथन दौड़ आई हो,
सफ़ेद रौशनी मे बुँदे किसी मोती कि तरह उसके कामुक जिस्म का श्रृंगार कर रही हो, सुडोल गोरे पेट पे बुँदे हलचल कर रही थी,मंगेश कि तरफ मुँह किये अनुश्री ना जाने क्या देख रही थी परन्तु फारुख जिस नज़ारे का लुत्फ़ ले रहा था वो जन्नत मे भी नहीं मिलता.
सालो बाद उसके जिस्म ने, उसकी भावनाओं ने हरकत कि थी.
साइड से अनुश्री कि चादर भीग के इकट्ठा हो गई,साइड से मोटे स्तन अपनी खूबसूरती बिखेर रहे थे..फारुख के पैर उसी दिशा मे चल पड़े जैसे वो उस खूबसूरती को छू के देखना चाह रहा हो.

धीरे धीरे फारुख कि परछाई ने अनुश्री के जिस्म को ढक लिया.
रौशनी बंद होते ही जैसे अनुश्री को झटका सा लगा,सर उठाया तो सामने ही फारुख किसी राक्षस कि तरह बलिष्ट काला पानी से भीगा जिस्म लिए खड़ा था,/div>

"फ्फ्फ्फफ्फ्फ़....फ़फ़फ़कककक....फारुख "
इस से आगे ना बोल सकी अनुश्री, वो उस मर्दाने जिस्म को ही देखती रह गई जो पीछे से आती tubelight कि सफ़ेद रौशनी मे चमक रहा था, क्या गठिला बदन था फारुख का, सीने पे बेसुमार बाल उसकी मर्दानगी को परिभाषित कर रहे थे.
"आआआ......अआप....ठीक तो है ना मैडम अच्छे से मूता ना " फारुख के सीधे बोल अनुश्री के कान मे जा धसे.
इस से ज्यादा फारुख कुछ ना बोल सका, मन्त्रमुग्ध बैठी अनुश्री अपने भीगे यौवन का नजारा पेश कर रही थी उसे इस बात कि खबर भी नहीं थी कि फारुख जन्नत के दरवाजे को देख रहा है.
फारुख के कथन से अनुश्री को कुछ देर पहले हुआ वाक्या याद आ गया, बिजली के डर से वो आधे मे ही उठ के भाग खड़ी हुई थी, कुछ....पेशाब कि बूंदो ने उसकी जांघो और चादर को भी गिला कर दिया था.

"हहहब्ब......हाँ....हाँ.....ननणणन......ना...नहीं....." अनुश्री हाँ ही बोलना चाहती थी लेकीन पेशाब अभी भी उसकी योनि मे एकत्रित था.
"तो......वापस जाना है?"

"नननन.....नहीं...नहीं ठीक है अब " अनुश्री वापस जाने के नाम से ही घबरा गई.

"बिजली से डर लगता है आपको "

"वो....वो....हाँ डर तो लगता है "

"मै कपड़े बदल लेता हूँ" फारुख मूडा ही था कि कपड़े बदलने के नाम पे उसे अपने जिस्म पे चिपकी चादर का ख्याल आया.
उसने जैसे ही नीचे देखा सन्न रह गई उसके स्तन लगभग साफ उजागर थे.

"हे.....भगवान क्या मुसीबत है" अनुश्री ने सकपाकते हुए चादर को ठीक करना चाहा.

"रहने दीजिये मैडम आप ऐसे ही सुन्दर लगती है "
फारुख अपनी अलमारी कि और चल दिया

"मै....मै.....ऐसे खूबसूरत लगती हूँ, अनुश्री मुस्कुरा दी, स्त्री किसी भी स्थति मे हो उसे तारीफ अच्छी ही लगती है.
अनुश्री का दिल ख़ुश हो गया था.
लेकीन समस्या वही थी इस गीली चादर का क्या करना है.
तभी अनुश्री कि नजर सामने गई.....फारुख ने एक मैली सी लुंगी डाल ली थी, पजामा ज़मीन चाट रहा था.
"फ्फ्फ्फफ्फ्फ़.......फारुख मै क्या पहनू?" अनुश्री के सवाल वाजिब था.
परन्तु गीले कपड़े और ठण्ड से पेशाब का प्रेशर भी अब असहनीय होता जा रहा था.

" बोला तो सही ऐसे ही अच्छी लगती ही आप" फारुख लुंगी पहना अर्ध नग्न सोफे पे जा धसा, जहाँ उसकी बोत्तल उसका इंतज़ार कर रही थी. फारुख ने टेबल के नीचे से एक कांच कि गिलास निकाल ली शायद वो अब इत्मीनान से पीना चाहता था.

एक नजर बोत्तल पे देखता एक नजर अनुश्री के जिस्म को  जैसे समझ नहीं आ रहा था किस का नशा ज्यादा असर करेगा.
अनुश्री उसकि हरकत देख रही थी
 "कैसा आदमी है इसे कोई फ़िक्र ही नहीं है ऊपर से ये मंगेश घोड़े बेच के सो गया है " अनुश्री दुविधा मे थी फारुख कुछ सुनना नहीं चाहता था, वो बोले भी तो कैसे, मंगेश सुनने कि हालत मे नहीं था.

"अनु बेटा ये जवान जिस्म किस काम का इसका इस्तेमाल सीखो, ये जिस्म आदमियों से क्या नहीं करा देता " अचानक ही उसके दिमाग़ मे कुछ आवाज़ सी कोंधने लगी.
चाटर्जी मुखर्जी का सिखाया ज्ञान उसके जहन मे दौड़ गया

 "हाँ अनु ये पहला मौका नहीं है है जब तुम ऐसी ही किसी स्थति मे फसी हो "
पेशाब के प्रेशर से अनुश्री कि जाँघे आपस मे चिपक सी गई, अब ये सहन के बाहर हो रहा था.
"फारुख.....फारुखम....मुझे पेशाब करना है " ना जाने क्या हुआ अनुश्री बिना संकोच के साफ और ऊँची आवाज़ मे बोल गई, उसे कोई परवाह नहीं हो रही थी कि उसका जिस्म दिख रहा है.
गिलास मे दारू डालता फारुख अचानक से रुक गया, उसे इस बात का इल्म भी नहीं था, उसे लगा था अनुश्री शर्मा रही है.

"देखो मत फारुख कुछ करो....बहुत जोर से आ रहा है यहीं ना निकल जाये "
ना जाने क्यों....यहीं ना निकल जाये शब्द सुन के फारुख के चेहरे पे एक तीखी मुस्कान आ गई.

"लेकीन....आपको तो बिजली से डर लगता है, बाहर अभी भी बारिश है और भीग जाओगी " फारुख ने अपनी मज़बूरी बता दी जैसे वो अपनी जान दारू को छोड़ने को तैयार ही नहीं था.

फारुख के इस तरह के व्यवहार से अनुश्री का चेहरा लाल हो गया,
"इस शराब के लिए तुम मेरे साथ नहीं चल रहे हो ना, अभी बताती हूँ " अनुश्री को ना जाने क्या हुआ वो बड़बड़ती हुई बिस्तर से उठ खड़ी हुई.

अनुश्री के चेहरे पे तेज़ दिख रहा था, एक आत्मविश्वास था, उसने आगे बढ़ के फारुख के सामने रखा आधा दारू से भरा गिलास उठा लिया, और वापस बिस्तर के पास आ खड़ी हुई.
फारुख के समझ से परे थे अनुश्री क्या कर रही है " मेरी दारू वापस दो मै कहता हूँ "

लेकीन अनुश्री ने सुना ही नहीं...वो वही बिस्तर के पास जमीन पे उकड़ू बैठती चली गई, सामने फारुख कि आंखे फटी जा रही थी जो कुछ सामने होने जा रहा था.

अनुश्री पेशाब करने कि मुद्रा मै बैठ गई.....चादर जाँघ तक चढ़ गई, एक चिकनी गोरी खूबसूरत जाँघे फारुख के सामने थी.
अनुश्री का हाथ हरकत मे आया जिसमे दारू से भरा गिलास था.

वो गिलास अनुश्री के दोनों पैर के मध्य कहीं गायब हो गया फारुख ये नजारा नहीं देख पाया सामने चादर पड़ी हुई थी बस कुछ हिस्सा अंदुरनी जांघो का नजर आ जाता था

फारुख कि सांसे रुक गई थी शायद उसे अंदाजा हो चला था क्या होने वाला है..

कि तभी......साहारररररररर......सीसीसीसीसीसीस.........तीतीती.....ससससससस......एक तेज़ सिटी कि आवाज़ कमरे मे गूंज उठी.
अनुश्री के बदन ने एक झुरझुरी सी ली, उसके रोंगटे खड़े हो गए, लप....लप....
लप....ससससस.....गुलुप....हुलप......करता दारू का गिलास अनुश्री के पेशाब से भरने लगा.tumblr-mdxfvv0l6-N1rsl04yo1-250


जैसे जैसे पेशाब निकलता गया, वैसे वैसे अनुश्री के चेहरे पे सुकून लौटने लगा, लाल चेहरा वापस से गोरा हो चमकने लगा.

फारुख तो जैसे वही जड़ हो गया, लगता था जैसे उसकी आत्मा उसका साथ छोड़ गई है

अनुश्री के चेहरे पे एक सुख था, टप....टप.....टप...करती आखरी कुछ बून्द और टपकी.

अनुश्री वापस खड़ी हो चली....
धड़ड़ड़ड़ड़........से एक गिलास टेबल पे पड़ा, जिसमे दारू के साथ अनुश्री का पेशाब मिला हुआ था.

"लो पियो अब दारू.....आया बड़ा ऐटिटूड दिखाने " अनुश्री बोल के वापस बिस्तर पे जाने के लिए पलट गई.

उसके चेहरे पे किसी विजेता कि तरह मुस्कान थी, उसने आज वो कर दिखाया था जो कभी कोई स्त्री सपने मे भी नहीं सोच सकती.
मज़बूरी और गुस्सा क्या नहीं करवा देता.

"अच्छा सबक सिखाया, अब अकाल आएगी उसे" अनुश्री अभी सोच ही रही थी कि...
गट...गट.....गट.....गुलुप.....गुलुप......आआहहहहह.....मजा आ गया.
ये आवाज़ सुनते है अनुश्री के पैरो के नीचे कि जमीन ही खिसक गई.
वो हैरानी से पलटी ही थी कि जो सोचा था वही हुआ.....

पेशाब और दारू से भरा गिलास फारुख के होंठो पे लगा हुआ था, टतट......टप.....करती एक अंतिम बून्द फारुख के होंठो से होती हुई अंदर समा गई.

"आअह्ह्हभ...म..वाह मैडम क्या पेग बनाया है आपने नशा दुगना कर दिया "

अनुश्री तो जैसे पूरी सफ़ेद ही पड़ गई थी, इस समय उसे कोई काटता तो एक बून्द खून भी नहीं निकलता, कोई ऐसे कैसे कर सकता है.
मात्र इस दृश्य ने उसके वजूद को हिला दिया, उसकी जीत हार मे तब्दील हो गई परन्तु ना जाने क्यों अनुश्री का हल्का बदन फिर से भारी होने लगा.

अनुश्री का मन घृणा और हैरानी से भर उठा, उसने आज से पहले इस तरह के दृश्य कि कल्पना भी नहीं को थी.

"कितना गरम पेशाब था मैडम आपका....आअह्ह्हह्ह्ह्.....नशा दुगुना हो गया " अभी अनुश्री सकते मे ही थी कि फारुख के दो टुक बोल ने अनुश्री के बदन मे आग लगा दी.
शरीर पे पड़ी पानी कि बून्द जैसे भाँप बन के उड़ गई थी.

"छ.....छ.....छिईईह्ह्ह्हहीई......ऐसे कैसे कर सकते हो तुम " अनुश्री सूखे गले से थूक गटकते हुए बोली.

"अपने ही तो कहाँ था लो पियो अब दारू " फारुख ने किसी मासूम बच्चे कि तरह कहाँ

"और मैडम जी आपके जैसे हुस्न कि मालकिन का पेशाब किसी अमृत से कम होता है क्या हिचह्ह्हह्म.....हिचम...."

अनुश्री के जहन मे एक आवाज़ सी कोंध गई "अनु बेटा सम्भोग मे सब जायज है, कुछ गन्दा नहीं होता, जीतना गन्दापन उतना मजा, तुम्हे अपनी जवानी का मजा लेना चाहिए किसलिए आई हो यहाँ?" चाटर्जी मुखर्जी के उपदेश उसे ऐसी ही किसी परिस्थिति से निकाल लेते थे.
आज भी यहीं हुआ अनुश्री का बदन जलने लगा था.

"क्या सोच रही हो मैडम.....हिचम.." फारुख बोलता हुआ अनुश्री के पास आ खड़ा हुआ.
"देखो आपके गरम पेशाब ने मेरे लंड का क्या हाल किया है "
फारुख अब सीधे मैदान मे उतर आया था आंखे लाल हो चली, हाथ लुंगी के अगले भाग को टटोलने लगा.o4

सामने बैठी अनुश्री कभी ऊपर फारुख के चेहरे को देखती तो कभी नीचे फारुख के हाथ को

फारुख का हाथ किसी बड़ी लम्बी चीज पे था, अनुश्री अब इतनी तो समझदार हो ही गई थी कि जानती थी ये क्या है?

"ये.....ये....ये...क्या बोल रहे हो फ़फ़फ़फ़......फ़फ़फ़कककक....फारुख " गड़ब...अनुश्री ने थूक निगला वो आने वाले वक़्त कि प्रतीक्षा ही कर रही थी क्यूंकि वो इस विशालकाय लंड कि एक झलक देख चुकी थी.

"जो अपने सुना मैडम....सरररररर.......करती लुंगी नीचे जमीन पे जा गिरी अनुश्री का मुँह और आंख फटी कि फटी ही रह गई tumblr-mly2sl2-MU51rgl1pao1-500 shocked-keerthysuresh


फारुख उसे एक के बाद एक झटके दिये ही जा रहा था.
अनुश्री के मुँह के ठीक सामने काला फन फैलाया नाग सामान लंड था जो देखने से ही काफ़ी मोटा जान पड़ता था.

नीचे तो आलू के सामान बालो से भरे टट्टे लटक रहे थे.
वाकई आज अनुश्री के सामने कोई राक्षस ही खड़ा था.

"ये....ये....ये.....इतना....गड़ब.....इतना बड़ा " अनुश्री बोलने कि स्थति मे नहीं थी मुँह अभी भी खुला ही हुआ था.

ना जाने फारुख पे क्या फितूर सवार था, या फिर वाकई पेशाब मिश्रित दारू ने अपना कमाल दिखाया फारुख ने अपनी कमर को आगे कि तरफ झटका दें दिया....गड़ब....गुप.....करता हुआ फारुख के लंड का टोपा अनुश्री के मुँह मे जा धसा.

अनुश्री के होंठ लंड पे कसते चले गए,आंखे फैलती गई.
वो तो अभी इस तरह के भयानक लुंड को देख के ही सदमे मे थी कि फारुख ने लंड ठेल दिया.

ये सब एक दम अचानक से हुआ......आआआहहहहह....
.उउउउउउ.....गुपुप......गुलुप....उम्मम्मम....अनुश्री के हाथ फारुख कि जाँघ पे चलने लगे उसने अपना सर पीछे को खींचना चाहा ही था कि फारुख के मजबूत हाथ अनुश्री के सर के पीछे जा लगे.Sasha-Grey-1


"साली.....बहुत शौक है ना पेशाब पिलाने का ले अब......भक्क्क...से एक झटका और लगा,फारुख का आधा मोटा लंड अनुश्री के मुँह मे समा गया.

अनुश्री कि तो जैसे जान ही निकल गई, उसकी आँखों से पानी रिसने लगा, उसकी नजर कभी फारुख के पीछे सोते मंगेश मे जाती तो कभी फारुख के हैवानियत भरे चेहरे पे.

फारुख के चेहरे पे एक मुस्कान थी....जीत कि मुस्कान....एक कैसेली सी लेकीन मादक गंध अनुश्री के मुँह मे घुलती हुई उसके नाथूनो तक पहुंचने लगी.

कुछ कुछ पेशाब का स्वाद भी था, और एक खट्टा गन्दा सा स्वाद भी मिला हुआ था, ना जाने फारुख कभी अपने लंड को धोता भी था या नहीं,ये ख्याल आते ही अनुश्री का मन उबकाई से भर गया,जीभ बाहर को आ गई,  मुँह और चौड़ा हो चला गया, गले से होता हुआ थूक और लार जीभ के रास्ते बाहर को टपक पड़ी.....उवेक....वाक.....उवेक....लेकीन फारुख को इन सब से कोई लेना देना नहीं था उसपे अलग ही फितूर सवार था.

अभी तक अनुश्री ने जो भी लंड चूसे थे वो उसकी तड़प और मज़बूरी से ही चूसे थे लेकीन ये पहली बार जबरजस्ती थी..
फारुख अनुश्री का सर पकड़े दनादन अपनी कमर हिलाये जा रहा था, अनुश्री के पेशाब का अलग ही नशा हो चला था.zzzz-05-jap


वेक वेक वेक.....फच फच फच फच....कि आवाज़ से कमरा गूंजने लगा, मंगेश के खर्राटो कि आवाज़ इस कामुक आवाज़ मे दफ़न हो चली थी.

अनुश्री किसी बेबेस लाचार मछली कि तरह तड़प रही थी,आँखों के किनारो से निकलते आँसू, होंठ से टपकी लार मे जा मिल रहे थे, ये रसीला चिपचिपा कामुक रस अनुश्री के गले से होता हुआ उसके स्तन को सराबोर कर रहा था.

"फ़फ़द्द...फ़फ़फ़.....वेक....उवक....वेक....अनुश्री कुछ कहना चाहती थी, उसके नाख़ून फारुख कि जांघो पे धसते चले जा रहे थे.
लेकीन काम और हवस फारुख पे इस कदर सवार थी कि उसे ये दर्द महसूस ही नहीं हो रहा था.

फारुख के हाथ अनुश्री के बालो पे कसे हुए थे,और लंड जड़ तक जा के वापस आ जा रहा था, ठप...ठप....चट...चट कि आवाज़ के साथ फारुख के बाल से भरे टट्टे अनुश्री के कामुक लबों को छू आते और पल भर मे ही दूर हो जाते.

बाहर रह रह के बिजली कड़क उठती थी, लेकीन उस बिजली मे वो तपिश नहीं थी जो इस वक़्त अनुश्री के बदन मे दौड रही थी, फारुख के मुसल लंड के लगातार झटके अनुश्री के बदन को गरमा दे रहे थे,

स्त्री भी कमाल होती है, जिस चीज से भागती है थोड़ी ही देर मे उसे पाना चाहती है. फारुख के हाथ अब ना के बराबर ही जोर दे रहे थे, बल्कि यूँ कहिए अनुश्री ही अपने होंठो को फारुख के लंड पे रगड़ रही थी.20210810-145854

ना जाने कैसे और कब उसके होंठ खुद ही उस भयानक गंदे लंड पे दौड़ने लगे,एक झटके मे गुलुप से निगल जाती फिर निकाल देती.
फारुख आंख बंद किये सर उठाये किसी भेड़िये कि तरह हुंकार भर रहा था, एक पुरुष को और क्या चाहिए.
अनुश्री के मुँह से निकली लार नदी का रूप ले चुकी थी,जहाँ कोई बांध नहीं ना कोई रूकावट...

वेक..वेक...वेककक....गुगुग़म....करता थूक और लार मुँह के कोनो से निकलती अनुश्री के दो पहाड़ रूपी स्तन के बीच मौजूद दरिया मे समा जाती.

फारुख का लंड पूरी तरह चिकना मदमस्त हो चूका था,आज बरसो बाद रेगिस्तान मे जम के बारिश हुई थी, बरसो से लंड पे जमीं मेल गल गल के थूक मे मिलती जमीन चाटे जा रही थी,फारुख का लंड निखर के दमक रहा था.

अनुश्री इस कला मे इस कद्र निपुण हो चुकी थी कि लंड को मुँह से निकाल जड़ टक चाट लेती फिर वापस थूक से सने मुँह मे पनाह दे देती.
फारुख खुद इस काम कला से अपरिचित था. एक कच्ची खिलाडी मंझे हुए योद्धा को इस रणभूमि मे मात देने कि कगार पे ले आई थी.15930299

फच फच फच फच......आअह्ह्ह......साली....मै गया...
कमरे मे मचा तूफान आखिर रंग लाने लगा, फच फच....फाचक.....आआहहहह......उफ्फरर.....फारुख चित्कार उठा, उसके हाथ अनुश्री के सर को आगे कि तरफ भींच लिए.

अनुश्री को अभी कुछ समझ ही आता कि झटके से उसके होंठ  फारुख के लंड कि जड़ पे जा लगे.
और एक गर्म लावे कि फच  फच करती धार अनुश्री के गरम चिपचिपे मुँह को भरने लगी.

अनुश्री कि नाक मे थूक से भीगे झांट के बाल समा गये थे,मुँह मे गले तक लंड फसा पड़ा था..
अनुश्री कि आंखे बाहर को आ चली,,उसके नाख़ून फारुख कि जांघो मे पेवास्त हो चले, उसका दम घुटने ही वाला था कि फारुख किसी सूखे पेड़ कि तरह भरभरा के जमीन पे गिर पड़ा, अनुश्री के मुँह से होती हुई वीर्य कि चिपचिपी धार फारुख के लंड को जोड़े हुई थी.

यहीं हालत अनुश्री कि भी थी, अनुश्री भी वही जमीन मे धाराशाई हो गई, आंखे पथरा गई थी,सीना उठ उठ के नीचे गिर रहा था, मध्यम रौशनी मे थूक और वीर्य से सने स्तन अपनी शान दिखा रहे थे.
एक वीर्य कि पतली सी रेखा अनुश्री के मुँह से चलती हुई फारुख के लंड से मिली हुई थी जो कि सबूत थे कि कैसा भयानक जुड़ाव था ये.

दोनों के शरीर अचेत पड़े हुए थे बस साँसो कि आवाज़ गूंज रही थी....अनुश्री के मुँह से गाड़ा सफ़ेद वीर्य रह रह के जमीन पे गिर रहा था.
अब इस तूफानी रात मे सिर्फ तेज़ सांसे थे और मंगेश के खर्राटे.....
फारुख के चेहरे पे असीम सुख का भाव था आंखे ना जाने किस मदहोशी मे बंद थी चेहरे पे एक विजयी मुस्कान थी,

वही अनुश्री का चेहरा जल रहा था,आंखे और मुँह लाल हो गये, बदन किसी भट्टी कि तरह तप रहा था.
वासना कि आग अनुश्री को जला रही थी,
उसे यकीन नहीं आ रहा था कि फारुख कि इस हरकत पे गुस्सा करे या इस आनंद को जिए.
ना जाने कितना वीर्य अनुश्री के हलक मे उतर चूका था,
बेबस लेटी बेजान अनुश्री कि आँखों के सामने फारुख का लंड था जो अभी भी बदस्तूर खड़ा था, कानो मे मंगेश के खर्राटे गूंज रहे थे..शयद ये खर्राटे ही अनुश्री को हिम्मत दें रहे थे.

"ऐसे मौके बार बार नहीं आते अनु बेटा, जवानी का मजा लेना चाहिए " उसके कानो मे फिर से बंगाली बंधुओ कि आवाज़ गूंजने लगी.
ना जाने ऐसा क्या प्रभाव था उन बुड्ढ़ो का या फिर ये अनुश्री कि अंतरात्मा ही थी.
हवस कि आग मे जलती अनुश्री का शरीर इस माहौल मे और भी गर्म हुआ जा रहा था,ये गर्माहट वो साफ साफ अपनी जांघो के बीच महसूस कर सकती थी.
अनुश्री कि ये कामवासना आज उसे गहरी खाई मे फेंक देगी जहाँ से निकलना लगभग नामुमकिन है.

क्रमशः.....
अगला अपडेट शाम तक
बने रहिये कथा जारी है...

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