मेरी बीवी अनुश्री भाग -52
अपडेट -52
शाम ढल चुकी थी, अंधेरा पसर रहा था.
अनुश्री का दिल दिमाग़ साय साय कर चल रहा था.
होटल मयूर मे सन्नाटा पसरा हुआ था, अनुश्री अपने कमरे मे चहलकदमी करती बड़बड़ा रही थी.
उसे यकीन नहीं हो रहा था जो कुछ भी अभी हुआ, दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, आगे क्या होगा कुछ पता नहीं.
एक सुहाना सा सफर इस कद्र करवट लेगा उसने कभी सोचा ना था, वो खुश थी सारी यादें यहीं छोड़ कर, लेकीन शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था.
लौट के बुद्धू घर को आ गये थे.
"सारी गलती मेरी ही है, मुझे क्या लेना देना था इन सब से? मै क्यों गई मांगीलाल के बुलावे पर " अनुश्री खुद को कोष रही थी.
"मांगीलाल काका ने जो ख़ुशी दि मुझे.....लेकीन...लेकीन वो इंस्पेक्टर तो बोल रहा था.
अनुश्री के सामने स्टेशन का नजारा घूम गया, ट्रैन उसके सामने से जा रही थी.
"हमने किया क्या है बताते क्यों नहीं " मंगेश ने गुस्से मे आ कर पूछा.
"खून हुआ है महाशय, क़त्ल हुआ है, मर्डर हुआ है इसका" इस्पेक्टर andy ने मांगीलाल कि तस्वीर वापस से सभी के सामने घुमा दि.
वहाँ मौजूद सभी के चेहरे फक्क....से सफ़ेद पड़ गये.
"ककककक....क्या...क्या...ये नहीं हो सकता कल रात तो....." अनुश्री ने एकदम से खुद को रोक लिया, ना जाने क्या उगल देना चाहती थी, सबसे ज्यादा उसी के चेहरे पर हवाईया उडी हुई थी.
जो इंस्पेक्टर बोल रहा था उस बात पर यकीन कर पाना उसके लिए असंभव था, मांगीलाल तो सीधा साधा गरीब बूढ़ा आदमी है उसे कोई क्यों मरेगा.
ट्रैन कि आवाज़ मे किसी ने उसकी आवाज़ नहीं सुनी परन्तु इंस्पेक्टर andy घाघ इंसान था कान का पक्का घुसट पुलीसिया.
"आपने कुछ कहाँ मैडम? और आपके चेहरे पे इतना पसीना क्यों? कहीं आपने.....?
"क्या बकते हो तुम, हमारा क्या लेना देना उस बूढ़े से " जवाब मे मंगेश बिफर गया, बिफरता भी क्यों नहीं सीधा इल्जाम अनुश्री पे लग रहा रहा.
"वो तो अब मालूम पड़ ही जायेगा mr मंगेश, जानते हो मांगीलाल को किसने मारा?"
नजरें अनुश्री को ही घूर रही थी.
"हहहह.....हमें क्या पता " अनुश्री के दबे गले से आवाज़ निकली. उसका गला सुख गया था.
या फिर वो कोई भयानक सपना देख रही थी.
"इसने " andy ने दूसरी तस्वीर सभी के सामने लहरा दि जो कि फारुख कि थी.
"कककक....क्या....इसने क्यों? कब? कैसे?" अनुश्री एक ही सांस मे सारे सवाल दाग़ गई.
"आप कुछ ज्यादा ही चौंक जाती है मैडम जी " इंस्पेक्टर andy के चेहरे पे एक कमिनी घाघ स्माइल आ गई.
"ननणणन.....नहीं तो ऐसा कुछ नहीं है " अनुश्री का पूरा बदन पसीने से भीग गया था, उसे अब मामले कि जटिलता समझ आने लगी थी. उसे यकीन हो चला था ये हकीकत है सपना नहीं,उसे खुद पर काबू पाना होगा.
"आप दोनों मियाँ बीबी को उस फारुख के साथ तूफानी रात मे देखा गया था " इंस्पेक्टर ने सीधा सा सवाल किया.
"आप गलत समझ रहे है जनाब वो तो उस रात हम घूमने निकले थे गाड़ी ख़राब हो गई, तो हमें मज़बूरी मे रुकना पड़ा, बाकि और कोई रिश्ता नहीं हमारा उस से " मंगेश ने राहत कि सांस ली.
"आपने इतनी सी बात के लिए हमारी ट्रैन छुड़वा दि " मंगेश अब बिल्कुल शांत था, कोई मामला ही नहीं है, जब कुछ किया नहीं तो डरना कैसा क्यों अनु?" मंगेश ने अनुश्री से समर्थन चाहा
" वो....वो....हाँ...हाँ....सही है हम मज़बूरी मे रुके थे " अनुश्री कि जबान अभी भी लड़खड़ा रही थी, नजरें झुकी हुई थी.
बस यहीं चीज काफ़ी होती है किसी चोर को पकड़ने के लिए, ये इंस्पेक्टर andy तो फिर भी घाघ था, कमीना था, पक्का पुलिसिया था.
"अच्छा जी इतनी सी बात है, कोई नी फिर तो आप जा सकते है " इंस्पेक्टर अनुश्री के जिस्म को टटोल रहा था, उसके हर हाव भाव को ताड़ रहा था.
सभी ने राहत कि सांस ली "अब क्या फायदा ट्रैन तो चली गई "
मंगेश थोड़ा भुंभूनाया.
"अरे साहेब गुस्सा क्यों होते है, सबूत तो मेरे पास और भी है जो कि मै दो दिन मे जांच कर लूंगा " सबूत कि बात पर जोर दें कर इंस्पेक्टर andy ने अनुश्री के ब्लाउज से झाँकती कामुक दरार को घूर लिया जैसे वही कोई सबूत छुपा हो.
"ऐसा कीजिये mr.मंगेश आप मेरे साथ थाने चलिए कुछ फोर्मल्टी है, आप सज्जन आदमी है लेकीन क्या करू क़ानून अंधा होता है, उसकी कुछ ड्यूटी होती है मुझे भुनानी पड़ेगी, एक दो जगह साइन चाहिए मुझे, बस दो दिन लगेंगे फिर आप अपने देश मै अपने काम पर.
ना जाने क्यों वो इंस्पेक्टर एक दम से इतना सज्जन हो गया, अभी तक जहाँ उसके मुँह से शोले बरस रहे रहे, वही अब फूल बरसा रहा था इज़्ज़त से बात कर रहा था.
"ठीक है मै भी अपने अच्छे नागरिक होने का कर्तव्य पूरा करता हूँ " मंगेश इंस्पेक्टर andy के साथ थाने चला गया.
इधर अनुश्री, रेखा और राजेश टैक्सी पकड़ होटल कि ओर चल दिये.
रास्ते भर तीनो मे मांगीलाल के मर्डर के बारे मे ही बात होती रही. किसी के लिए भी इस बात को हज़म करना मुमकिन नहीं था.
सभी बातों का ज़वाब अनुश्री सिर्फ हाँ हूँ मे देती रही, ना जाने क्या चल रहा था उसके दिमाःग मे, दिल बैठा जा रहा था, मन दुखी था, मांगीलाल से ना जाने क्या हमदर्दी का रिश्ता था उसका,
लेकीन इन सब से भी ज्यादा चौकाने वाली बात ये थी कि इसमें फारुख का नाम शामिल था, लेकीन मांगीलाल और फारुख का आपस मे क्या रिश्ता है?
वो कागज़ कहाँ गये जो उसने मांगीलाल को दिये थे कि फारुख को दें देना, कहीं वो अभी भी तो वही नहीं है?
वो इन सब से बचने के लिए जीतना तेज़ भागती थी, उतना ही खींची चली आती थी, जैसे कोई दलदल हो जीतना निकलती उतना फस जाती.
बार बार अनुश्री के जहन मे उन कागज़ का ख्याल आ जाता, कहीं वो उस कमीने इंस्पेक्टर के हाथ तो नहीं लग गया? नहीं....नहीं...लगता तो पक्का धौंस जमाता अपनी "
अनुश्री ने खुद कि बात को नकार दिया.
"क्या मुझे वहाँ जा कर देखना चाहिए " अनुश्री ने खुद से ही सवाल किया.
"नहीं.....नहीं....मै खुद को और मंगेश को इस मुसीबत मे नहीं डालना चाहती, मंगेश थोड़ी देर मे आ जायेगा, फिर देखते है "
"ललल....लेकीन वो इंस्पेक्टर बोल रहा था और भी सबूत है उसके पास, तो क्या वो कागज़ उसके हाथ लग गया है, मुझे देखना होगा "
ठाक...ठाक....ठाक......
अचानक दरवाजे पर दस्तक ने अनुश्री का ध्यान भंग कर दिया.
"कक्क....कौन है?"
"भाभी मै....राजेश"
चरररर.....करता एक पल मे ही दरवाजा खुल गया
सामने राजेश ही था "भैया आये नहीं क्या 8बज गये है?"
"ननन....नहीं अभी तो नहीं आये "
"मै जा कर देखता हूँ, उनका फ़ोन भी नहीं लग रहा " राजेश वहाँ से निकल गया.
दरवाजा वापस से बंद हो गया
"पक्का वो इंस्पेक्टर कुछ छुपा रहा है, मुझे देखना होगा वहाँ जा कर कि कागज़ कहाँ है?"
अनुश्री निश्चय कर चुकी थी.
इसी उधेड़बुन मे 1 घंटा और बीत गया था.
अनुश्री ने दरवाजा खोल बाहर झाँका, और दिन के मुक़ाबले आज घोर सन्नाटा था, बिल्कुल मरघट जैसा, होता भी क्यों नहीं धीरे धीरे क़त्ल कि बात सभी को मालूम पड़ ही गई थी, गिनती के ही गेस्ट बचे थे होटल मे शायद.
अनुश्री ने आज फिर से एक कदम दहलीज के पार रख दिया, दिल कांप रहा था कहीं लेने के देने ना पड़ जाये.
आज से पहले अनुश्री जब भी चोरो कि तरह ये दहलीज लांघी थी तब उसके जिस्म मे हवस सवार थी, दिमाग़ मे काम का खुमार था, लेकीन आज परिस्थिति बिल्कुल अलग थी एकदम अलग.
आज वो खुद को और अपने पति को बचाने के लिए वो दहलीज लाँघ रही थी.
"नहीं....नहीं....मुझे यहीं रुकना चाहिए मंगेश का इंतज़ार करना चाहिए " अनुश्री ने कदम वापस खिंच लिए.
"लेकीन पता नहीं राजेश भी तो नहीं आया अभी तक, मुझे जाना ही चाहिए " ना जाने अनुश्री मे ये हिम्मत कहाँ से आ गई थी
उसके कदम उस दहलीज रुपी लक्ष्मण रेखा को आखिर लाँघ ही गये.
शायद अब ये उसका स्वभाव ही बन गया था जिस चीज को दिमाग़ मना करता वो उसे जरुर करती.
इधर उधर देखा कोई नहीं था, सामने किचन कि लाइट भी बंद थी, रेखा के रूम का दरवाजा भी बंद था.
आसमान मे बादल छाये हुए थे, तारों कि रौशनी भी नहीं थी आज.
अनुश्री ने एक गहरी सांस ली, उसका मोबाइल हथेली मे कसता चला गया.
कदम बढ़ गये मंजिल कि ओर, कब नीचे उतर आई और कब उस झोपडीनुमा कैफ़े के सामने खड़ी थी उसे खुद नहीं पता बस वो जल्दी से जल्दी पुष्टि कर लेना चाहती थी.
दिल धाड़ धाड़ कर रहा था "अभी भी वक़्त है पलट जा "
कल भी वो इसी जगह खड़ी थी,कल भी वक़्त था, लेकीन वो कल भी नहीं पलटी थी और आज भी नहीं पलटी.
उसके हाथ मे थमे मोबाइल कि टॉर्च जल उठी, कैफ़े का अंधेरा एक धीमी रौशनी से नहा उठा.
चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था, रह रह के कल रात का दृश्य उसकी निगाहों के सामने नाच जाता कहाँ कल रात ये कैफ़े उसकी जवानी से नहा रहा था,
मांगीलाल उसकी जवानी कि बारिश मे भीग रहा था.
लेकीन वक़्त ने ऐसी करवट बदली कि आज वो मांगीलाल इस दुनिया से ही रुख़सत हो गया,
ये ख्याल आते ही अनुश्री का दिल भर आया "हे भगवान ये कैसी माया है "
अनुश्री के मुँह से एक दर्द, दुख कि आह निकल गई फिर भी ये वक़्त शोक मनाने का नहीं था, उसे वो कागज़ ढूंढना था.
उसके कदम ऊपर बने केबिन कि ओर बढ़ गये.
हाथ मे थमे टॉर्च कि रौशनी उस छोटे से केबिन के कोनो मे पड़ने लगी.
"कहाँ गये...यहीं होने चाहिए " ना जाने अनुश्री मे ऐसी हिम्मत कहाँ से आ गई थी.
कहते है ना मरता क्या ना करता, मुसीबत मे फसा इंसान हिम्मत दिखा ही देता है.
अनुश्री लगातार इधर उधर कागज़ ढूंढ़ रही थी.
"इसे ढूंढ़ रही हो ना?" एक कड़कदार रोबदार आवाज़ से वो छोटा सा केबिन गूंज उठा.
अनुश्री को काटो तो एक बून्द खून ना निकले, उसके हाथ से मोबाइल छूट के जमीन चाटने लगा, वो खुद किसी पत्थर कि मूर्ति मे तब्दील हो चली,
धाड़ धाड़ धाड़.....कि आवाज़ साफ सुनी जा सकती थी, सन्नाटा पसर गया.
"चोर चोरी के बाद उसी जगह पर आता जरूर है, मै आपका ही इंतज़ार कर रहा था "
एक टॉर्च जल उठा, उसकी रौशनी पुरे केबिन मे फ़ैल गई.
बूत बनी अनुश्री के कसबल ढीले पड़ गये, आंखे कटोरे से बाहर निकलने को आतुर थी.
"तततत......तुम......अअअ...आप?" अनुश्री दलदल से निकलने कि कोशिश मे थी लेकीन हाय री किस्मत वो और गहराई तक जा धसी.
"हाँ जी मैडम मै इंस्पेक्टर andy, जिसके बारे मे कहावत मशहूर है जिस अपराधी के पीछे पड़ गया वो फांसी पर खुद झूल जाता है, आप लोगो को क्या लगा ऐसे ही बच के निकल जाओगे.
"मममम.....मै....वो...मै....वो..."
"मैंने पहले ही कहाँ था मेरे पास और भी सबूत है, इसे ही ढूंढ़ रही थी ना आप?"
इंस्पेक्टर ने एक सफ़ेद सी चीज निकाल के ठीक अनुश्री के सामने लहरा दि.
उस चीज पे नजर पड़ते ही अनुश्री का समुचा अस्तित्व ही काँप गया. पूरा जिस्म पसीने से सरोबर हो गया,
जैसे जिस्म से आत्मा ही निकल गई हो,
उसे इस बात का तो बिल्कुल भी ध्यान नहीं था, कल रात वो अपनी जिंदगी के हसीन पल जी कर निकल गई थी.
"मैंने पूछा इसे ही ढूंढ़ रही थी ना आप? आपकी ही है ना ये सफ़ेद कच्छी?"
अनुश्री सन्नाटे मे खड़ी थी, साय साय करती हवा उसके जिस्म से हो कर गुजर जाती.
"ये सफ़ेद कच्छी मांगीलाल के हाथो मे दबी मिली थी मुझे, आप इसे ही ढूंढने आई थी, मै स्टेशन पर ही आपकी हालत देख के समझ गया था, कातिल कत्ल कर के डरता है, इसी डर मे गलती भी करता है आप भी कर गई, आपको पता था आपकी ये कच्छी यहीं छूट गई थी, इसलिए इसे ही लेने आई थी "
इंस्पेक्टर andy बोले जा रहा था, उसके चेहरे पे विजेता कि मुस्कान थी जैसे कोई केस सॉल्व कर दिया हो.
"अअअअअ.....हहह....नहीं....नहीं...."
"सुना नहीं मैंने हाँ या ना?" इंस्पेक्टर ने कडक़दार आवाज़ मे पूछा.
"अअअ...नहीं...नहीं....मेरी नहीं है " अनुश्री का गला सुख गया था, होंठ कांप रहे थे मरी सी आवाज़ मे उसकी हाँ ना मै तब्दील हो गई, वो और ज्यादा नहीं धसना चाहती थी इस दलदल मे.
" बहुत sexy है....सससससन्नन्नफ्फफ्फ्फ़........इंस्पेक्टर ने अनुश्री कि पैंटी को अपनी नाक के पास ला कर जोर से सांस खिंच ली.
उउउउफ्फ्फ......क्या खुसबू है वाह...
"इस्स्स.....अनुश्री के मुँह से एक दबी सी सिसक निकली, जैसे इंस्पेक्टर ने उसकी कच्छी नहीं उसकी चुत को सुंघा हो.
इंस्पेक्टर के कदम आगे को बढ़ गये
अनुश्री एक इंच भी नहीं हिल पा रही थी, चेहरा पसीने से भीगा सफ़ेद पड़ा हुआ था.
"ममम....ममममम....मैंने कुछ नहीं किया?" अनुश्री आखिर बोल पड़ी,
उसे ये तो मालूम पड़ चूका था वो कागज़ इंस्पेक्टर के हाथ नहीं लगा है,
"तो फिर ये मादक sexy गीली कच्छी मांगीलाल के हाथो मे कैसे पहुंची?"
इंस्पेक्टर andy बिल्कुल नजदीक पहुंच गया था इतना कि एक इंच भी आगे सरकता तो अनुश्री के स्तन से जा लगता.
"मममम.....मुझे नहीं पता " अनुश्री कि आंखे नीचे को झुक गई, सांसे फूल गई, स्तन फूल कर ब्लाउज स बाहर आने कि कोशिश करते फिर वापस अंदर समा जाते.
"कोई बात नहीं ये sexy कच्छी किसकी है ये तो मै पता ही लगा लूंगा, खुसबू से तो लगता है किसी जवान कामुक, प्यासी औरत कि है..ससससन्ननणीयफ्फगफ.....andy ने एक जोरदार सांस फिर खिंच ली.
इस बार अनुश्री कि निगाहेँ ना जाने क्यों ऊपर को उठ गई, किसी हैवान कि तरह उसकी पैंटी एक अनजान शख्स कि नाक मे लगी हुई थी.
इस दृश्य ने अनुश्री के जिस्म को हिला दिया, ऐसा लगा जैसे कोई उसकी जांघो के बीच बैठा चुत सूंघ रहा हो.
"ये बटन को तो जानती होंगी ना आप "
इंस्पेक्टर andy ने जेब से एक नीला बटन निकाल हथेली पर रख आगे परोस दिया.
एक के बाद एक झटके अनुश्री को सम्भले का वक़्त नहीं दें रहे थे, वो अपनी भावनाओं को संभाल तक नहीं पा रही थी.
उसके माथे पर फिर से पसीने कि लकीर तैर गई.
कुछ ना बोली बस कभी उस बटन को देखती तो कभी इंस्पेक्टर andy के चेहरे पे विजयी मुस्कान को.
"नननन......नहीं...मै नहीं जानती " अनुश्री ने फिर से हिम्मत बटोर कर ना मे सर हिलाते हुए बोला.
"अच्छा जी मुझे लगा आपका होगा " andy कि निगाहेँ अनुश्री के ब्लाउज कि तरफ झुक गई, जहाँ उठते गिरते पसीने से भीगे स्तन अठखेलिया कर रहे थे.
"यहाँ तो पुरे लगे हुए है "
जैसे ही अनुश्री को इंस्पेक्टर कि बात और निगाह समझ आई उसका ध्यान अपने ब्लाउज पर गया जहाँ ना जाने कब से कोई पर्दा नहीं था,
उसका अभी तक घबराहट मे ध्यान ही नहीं गया था, ना जाने कब से वो इंस्पेक्टर इस कामुक दृश्य का लुत्फ़ उठा रहा था.
अनुश्री ने जल्दी से अपने पल्लू को आगे कर अपने खूबसूरत जवान अंग को छुपा लिया.
"कोई बात नहीं ये बटन किसका है ये भी पता लगा ही लूंगा " इंस्पेक्टर जैसे पर्दा गिरने से मायुस हो गया हो.
"ललललल......लेकीन मेरा इन सब से क्या लेना देना?" आखिर अनुश्री ने हिम्मत दिखा सीधी बात पूछ ही ली.
"हाहाहाहा.....क्या लेना देना, सबसे बड़ा लेना देना तो ये है आप इतनी रात को यहाँ क्या करने आई हो? टॉर्च जला के क्या ढूंढ रही थी? और जिस बोत्तल से मांगीलाल के सर पर वार किया गया था उस पर फारुख के उंगलियों के निशान है, ऐसी ही शराब कि बोत्तल हमें रेस्टोरेंट भोजोहोरी के बाहर मिली थी जहाँ आप लोग लंच करने गये थे, ये बटन और वो फारुख कि शराब कि बोत्तल साथ ही गिरी पड़ी थी.
अनुश्री सन्न..सी रह गई, सब कुछ उसी के खिलाफ था, अभी अभी जो हिम्मत उसने दिखाई थी वो किसी फ़ुस्सी गुब्बारे कि तरह पीचकती चली गई.
"तत.तत...तो .फारुख को पड़को ना, हमारे पीछे क्यों पड़े हो " अनुश्री फसते गले से जैसे तैसे बोल गई,
"वही तो नहीं मिल रहा ना....अब वो कहाँ है ये तो उसके साथी ही बता सकते है ना?"
"कौन साथी?"
"तुम लोग, तुम मियाँ बीवी, या सिर्फ तुम?"
"ये आप कैसे कह सकते है हम उसके साथी है?"
"आप दोनों उसके साथ उसके घर रुके थे, फिर रेस्टोरेंट मे भी दरबान ने उसे दरवाजे से भगाया था, हो सकता है आपसे मिलने आया हो, फिर आपका यहाँ मौजूद होना, आपकी ये कच्छी का यहाँ मिलना "
इंस्पेक्टर andy ने वापस से वो सफ़ेद पैंटी उसके चेहरे के सामने लहरा दि.
"ककककक.....क्या बकवास है ये, कहाँ ना ये मेरी नहीं है " अनुश्री तमतमा उठी.
जबकि andy जो भी बोला सब सच ही था.
"अच्छा आपकी नहीं है ये,सससन्नन्नफ्फ.....ऐसी मादक खुसबू तो किसी जवान चुत कि हो सकती है " इस बार इंस्पेक्टर andy सीधा बेहयायी पे उतर आया था, उसके मुँह से जवान चुत शब्द सुन कर अनुश्री का रोम रोम खड़ा हो गया.
उसकी कड़क आवाज़ मे चुत शब्द बोला जाना अपने आप मे एक मर्दानगी लिए हुए था.
"कककक....क्या?"
"जो आपने सुना ऐसी कामुक मादक गंध एक जवान प्यासी चुत कि होती है, इसका गिलापन बताता है कि जिसकी कच्छी है उसकी चुत हमेशा रिसती रहती है. इंस्पेक्टर andy के कदम आगे को बढ़ रहे थे.
ना जाने अचानक से उसे क्या हो गया था, चेहरे पे रुखापन,जबान कड़क हो गई थी.
अनुश्री के कदम पीछे को हटने लगे "ये....ये....क्या बोल रहे है आप?"
अनुश्री केबिन कि दिवार से जा चिपकी.
इंस्पेक्टर andy बिल्कुल नजदीक पहुंच गया था, उसका सर आगे को झुक गया बिल्कुल नजदीक, अनुश्री के कान के पास.
अनुश्री सांस रोके खड़ी थी, विरोध करना चाहती थी लेकीन ना जाने क्यों कुछ बोल ना सकी बस सांसे और दिल चल रहे थे, जिसकी आवाज़ साफ साफ दोनों को सुनाई दें रही थी.
Andy कि गरम सांसे अनुश्री के कान और गर्दन से टकरा रही थी, हाथ पीछे दिवार पर जा टिके थे.
"अपनी कच्छी निकालो, अभी मालूम पड़ जायेगा ये सफ़ेद कच्छी तुम्हारी है ना नहीं " andy कान मे फुसफुसाया.
ये अंदाज़ ऐसा मर्दाना था कि अनुश्री का जिस्म सुलगने लगा, रोंगटे खड़े हो गये.
"कककक.....क्या....क्या...?
"अपनी कच्छी उतार कर दो अभी फैसला कर लेता हूँ " एक रोबदार कड़क आवाज़ से अनुश्री का कलेजा कांप गया.
"नननन...ननन....नहीं...."एक मरी से रूआसी आवाज़ मे अनुश्री के गले से आवाज़ निकली और गर्दन ना मे हिल गई.
"देख लो अभी शराफत से जाँच कर रह हूँ, बाद मे फॉरेनसिक टीम आएगी वो मांगेगी बहुत time जायेगा, और मुझे किसी केस पर time बर्बाद करना कतई मंजूर नहीं है "
"वो.....वो......नहीं...नहीं है " अनुश्री को ध्यान आया कि आज शाम इस गहमागहमी मे जब होटल पहुंच के टॉयलट गई थी तो पसीने कि वजह से उसने पैंटी उतार दि थी.
"क्या नहीं है?" Andy हैरान था.
"वो.....वो....नहीं पहनी " अनुश्री को इतनी सी बात बोलने मे वजूद हिल गया, वो आज किसी अनजान शख्स को बता रही थी कि उसने पैंटी नहीं पहनी है,
"मतलब अंदर से तुम्हारी चुत नंगी है " इंस्पेक्टर andy के हर शब्द अनुश्री के जिस्म को छलनी कर रहे थे.
उसकी जाँघे आपस मे भींच गई, बाहर से आती ठंडी हवा बदन मे एक रूहानी सी सरसराहट भर के निकल जा रही थी.
अनुश्री का जिस्म एक गर्मी सी छोड़ रहा था इन कामुक शब्दों को सुन कर, शायद इस बात का अहसास इंस्पेक्टर andy को भी हो चला था.
"फिर तो मुझे दूसरा तरीका आजमाना होगा सससन्ननीफ्फ......andy ने पसीने से भीगी अनुश्री कि गंध को नाक मे भर वापस से उसी के चेहरे पे छोड़ दिया.
एक गर्म मर्दानगी से भरी सांस अनुश्री के जहन मे भरती चली गई.
"इस्स्स्स.......नहीं " अनुश्री का वजूद फिर से उसे धोखा दें रहा था, ऐसी स्थति मे भी अनुश्री के जिस्म मे काम कि लहर दौड पड़ी थी.
"सससससन्नणीयफ़्फ़्फ़......कुछ कुछ वही गंध है " इंस्पेक्टर andy पसीने से भीगी अनुश्री के जिस्म कि खुसबू लेता फिर उस सफ़ेद पैंटी को सूंघता जैसे कोई कुत्ता हो गंध सूंघ कर कातिल पकड़ रहा था.
अनुश्री इस दृश्य को देख जार जार कांप जाती, जाँघे भींचती तो कभी खोलती, पसीने कि बुँदे साड़ी के अंदर उसकी चुत कि महीन लकीर पर चल कर एक गुदगुदी पैदा कर दें रही थी.
अभी अनुश्री कुछ सोचती ही कि इंस्पेक्टर andy के घुटने मुड़ते चले गये, उसका मुँह ठीक अनुश्री कि नाभि के सामने था, एक सुन्दर गहरी कामुक नाभि.
ससससन्नणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.......आअह्ह्ह......लगभग वही गंध है.
अनुश्री को रोकना चाहिए था, इंस्पेक्टर रुपी खोजी कुत्ता अपनी मंजिल पर था, सुराग बस थोड़ी ही दुरी पर था, सबूत मैच हो ही जाता.
फिर भी ना जाने क्यों अनुश्री जड़ हो गई, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, बस गहरी गहरी सांसे भरी जा रही थी,
हालांकि andy ने अभी तक उसे छुवा भी नहीं था, बस उसकी गर्म सांसे नाभि पर अपनी दस्तक दें रही थी.
इन साँसो मे जो गर्माहट थी वो नाभि के रास्ते नीचे उतर जा रही थी, ये गर्मी पसीने का रूप ले कर उस दरार मे रेंग रही थी जहाँ सबूत था, क़त्ल का सुराग था.
कुछ ही पलो मे इंस्पेक्टर नाभि के नीचे जांघो के बीच तिकोने हिस्से के सामने दस्तक दें रहा था, उसकी गर्म सांसे उस हिस्से को हवा दें रही थी, साड़ी का नाजुक पतला कपड़ा काम वासना मे लिप्त गर्म सांस को रोक पाने मे असमर्थ था.
"आआहहहह.....इसससससस......नहीं..." पहली बार अनुश्री के मुँह से खुल के एक आह निकल पड़ी, गर्दन हवा मे ना के इशारे मे हिली, आंखे बंद हो गई, हाथ उठ कर andy के सर पर लगने ही वाले थे कि मर्यादा ने उसे रोक दिया.
परन्तु उसके जिस्म का ना हिलना कुछ और बता रहा था, उसके जिस्म का पसीना मौन स्वस्कृति दें रहा था.
इंस्पेक्टर andy खेला खाया इंसान था उसे समझते देर ना लगी कि यहीं वो समय है
Andy के हाथो ने साड़ी के निचले हिस्से को थाम लिया और एक ही पल मे सरसरारती साड़ी कमर तक जा चढ़ी.
दोनों कि सांसे जहाँ थी वही रुक गई, अनुश्री ये दृश्य देख ना सकी उसकी आंखे बंद हो गई वो सिर्फ गर्म साँसो को अपनी नंगी कामुक चुत पर महसूस कर रही थी, गर्महाट से उसकी जाँघे आपस मे भींच गई थी.
नीचे इंस्पेक्टर andy का भी बुरा हाल था दोनों हाथो से साड़ी उठाये एकटक उस मादक खूबसूरत दृश्य को देखे जा रहा था.
आज तक ना जाने कितनी औरतों को उसने मर्जी से, झूठा फसा कर, लालच दें कर भोगा था.
लेकीन यहाँ कुछ अलग था, ऐसी चुत, ऐसी कामुक स्त्री अंग उसने अब तक नहीं देखा था.
जड़ हो गया था, सांस फस गई थी,
चुत के नाम पे एक लकीर थी बस, बाल का कोई नामोनिशान नहीं, सफ़ेद गुलाबीपन लिए हुए जवानी से भरपूर चुत.
"Www.....wow अनुश्री जितनी बाहर से सुन्दर हो,उस से कहीं ज्यादा अंदर से खूबसूरत हो तुम.
ना जाने उस खड़ूस के मुँह से तारीफ कैसे निकल गई.
"ईईस्स्स........ससससस.....अनुश्री तारीफ सुन गदगद हो गई, आंखे बंद ही थी, वो किसी चीज का इंतज़ार कर रही थी, परन्तु वो अभी तक हुआ नहीं.
उसने धीरे से आंख खोल देखा, नीचे घुटनो के बल झुका खड़ूस काइया इंस्पेक्टर andy आंखे फाडे उसकी योनि को देखे जा रहा था.
Andy ने भी नजरें उठा ऊपर देखना चाहा, जैसे तुलना करना चाहता हो ज्यादा सुन्दर कौन है
अनुश्री का सौम्य सुंदर चेहरा या फिर कामुक रस छोड़ती लकीर रुपी चुत.
दोनों कि नजरें जा मिली, ना जाने इस मिलन मे क्या समझौता हुआ.
इंस्पेक्टर andy कि जबान सिगरेट से काले हुए होंठो से बाहर को आ गई, उसकी मंजिल सामने थी
एक पल को अनुश्री का दिल जैसे थम गया हो, सांसे रुक गई हो.
"अअअअअअअह्ह्हह्ह्ह्हह्हब.......उउउफ्फफ्फ्फ़.......एक गरम गीली जबान अनुश्री कि कामुक दरार से छू गई.
अनुश्री का सर पीछे दिवार से जा टकराया, होंठ आपस मे भींच गये, आंखे बंद हो गई, मुठिया कसती चली गई,
जैसे तो ना जाने कब से वो इसी सुख के लिए तड़प रही हो.
"सससड्ड्डप्प्प.......सससससड्ड्डप्प्पप......करती andy कि जबान उस कामुक लकीर मे दौड़ने लगी कभी ऊपर से नीचे तो कभी नीचे से ऊपर.
"आअह्ह्हह्म.....उउफ्फ्फ......"
अनुश्री बस सिसकियाँ भर रही थी.
इंस्पेक्टर andy के हाथ तो जैसे खजाना लग गया था, इंद्र कि अप्सरा आज उसे मिल गई थी.
उसकी जबान लगातार उस लकीर को कुरेद रही थी, यहीं तो वो सबूत छुपा था, उसे ही तो खोद निकालना था.
अनुश्री अति आनंद मे अपनी जांघो को आपस मे भींचे हुई थी.
नीचे andy अनुश्री कि चुत को चाटता तो कभी अपने होंठ चुत के होंठो से मिला देता जैसे चुम्बन कर रहा हो.
अनुश्री इस अहसास से घंघना गई, आज तक इस तरह उसकी चुत से कोई नहीं खेला था.
Andy इस कद्र kiss कर रहा हो जैसे सच मे अनुश्री के मुख होंठ हो.
चुत रुपी होंठो को अपने होंठो मे भींच कर रस पान करता.
इस मर्दन से अनुश्री के पैर जवाब देने लगे, उसके घुटने मुड़ने लगे फलस्वरूप चुत का हिस्सा खुलने लगा,
चुत का खुलना था कि एक मोटी लस लसी सी चासनी जैसी चीज andy के होंठो से जा लगी.
इस चासनी का होंठो से लगना था कि उसके चेहरे पे एक विजयी मुस्कान तैर गई, उसने अनुश्री कि चुत का स्वाद चख लिया था, लेकीन वो ऐसे मौके को छोड़ना भी नहीं चाहता था.
सुड़प करता उस चासनी को एक ही झटके मे उसने अपने गले के नीचे उतार लिया जैसे अमृत हो, उसकी जबान अनुश्री कि खुली लकीर मे तैरने लगी.
"आअह्ह्हह्म......andy.....उफ्फफ्फ्फ़...." पहली बार उसके मुँह से इंस्पेक्टर का नाम निकला.
ये शब्द इंस्पेक्टर के लिए शक्तिवर्धक साबित हुए.
जीभ चुत मे ऊपर नीचे होने लगी, कभी चुत मे अंदर दाखिल होने कि कोशिश करंती तो कभी चुत के दाने से खेलती.
पक्का खिलाडी था इंस्पेक्टर.
"आअह्ह्ह.....जोर से andy.." अनुश्री के हाथ खुद ही उठ कर andy के सर पर जा लगे, उसे अपनी चुत कि ओर धकेलने लगे, कमर खुद से आगे पीछे चलने लगी.
आलम ये था कि अनुश्री खुद आगे पीछे हो कर अपनी चुत चटवा रही थी.
इंस्पेक्टर andy को समझते देर ना लगी ज्वालामुखी फटने वाला है.
अनुश्री कि एक टांग को उठा अपने कंधे पर रख लिया,
फिर क्या था पुरी चुत इंस्पेक्टर andy के होंठो के कब्जे मे थी जिसे लपड़ लपड़ कर चूसे जा रहा था, चाट रहा था, काट रहा था.
"आउच.....आअह्ह्ह......इसससस.....उफ्फ्फ...." अनुश्री सब भूल गई थी वो कहाँ है, क्या कर रही है.
बस इस कामुक पल को जी लेना चाहती थी, अनुश्री के हाथो ने andy के बालो को जकड़ लिया.
जैसे उखड़ ही देगी, नीचे andy पुरी सिद्दत से उसकी चुत कि सेवा कर रहा था.
पच पच पच....कि आवाज़ से केबिन गूंज रहा था, andy के मुँह से थूक और चुत रस कि मिली जुली चासनी उसके होंठो से बहती गले के रास्ते उसकी वर्दी को भिगो रही थी.
"आअह्ह्हह्म......उफ्फफ्फ्फ़.......andy......"
इंस्पेक्टर andy एक हाथ मे सफ़ेद पैंटी पकड़े, दूसरे हाथ से अनुश्री कि साड़ी कमर तक उठाये कामरस कि झील मे पच पच पच गोते लगा रहा था.
"आआहहहह.......andy.....आअह्ह्ह.....फच फच फचककककम्म....
एक सफ़ेद लिसलिसी गाड़े पानी कि बौछार निकल इंस्पेक्टर andy के चेहरे से जा टकराई.
अनुश्री कांप रही थी, पसीने से बदन सराबोर था.
"आअह्ह्ह......उफ्फफ्फ्फ़.....फच फच.....अनुश्री झड़ रही थी लेकीन मजाल कि andy एक इंच भी सरका हो अपनी जगह से, उसके होंठ उसकी चुत को पुरी तरह से अपने मे भींचे हुए थे.
फच फच करती काम रस कि धारे उसके मुँह मे समाती चली गई.
एक बून्द भी वेस्ट नहीं गई, थोड़ी ही देर मे जब वो अलग हुआ तो उसका पूरा मुँह चुतरस से चिपचिपा रहा था, होंठ देख के ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी शहद कि हांडी मे मुँह मार के आया हो.
अनुश्री घुटनो के बल आ चुकी थी, हाथ आगे को जमीन पर टिके हुए थे, सांसे धोकनी कि तरह चल रही थी, पल्लू हट चूका था,बड़े बड़े स्तन बाहर निकल इंस्पेक्टर रुपी कामदेव का शुक्रिया अदा कर रहे थे.
सामने जमीन पर लुढ़का इंस्पेक्टर andy उस काम कि मूरत को देख रहा था, सांसे दुरुस्त कर रहा था, हाथ मे थमी सफ़ेद पैंटी को उसने अपने नाक के नजदीक ले जा कर एक सांस खिंच ली...ससससससन्नन्ननीफ्फफ्फ्फ़.......आआआआहहहह....
हमफ....हमफ़्फ़्फ़....मैने कहाँ था ना ये तुम्हारी ही कच्छी है अनुश्री, तुम्हारी चुत और इस कच्छी कि काम गंध एक ही है.
हाहाहाहाहा......हमफम..हमफम...एक जोरदार अट्ठाहॅस गूंज उठा,
इस हसीं मे अनुश्री कि हार थी, andy कि जीत थी.
अनुश्री ने खुद से अपनी हार लिखी थी.
इंस्पेक्टर खड़ा हो, अपना मोबाइल उठा केबिन के बाहर चल पड़ा....जैसे जैसे बाहर जाता गया केबिन मे एक गहरा अंधकार छाता चला गया.
बस पीछे रह गई थी आवाज़ अनुश्री कि हाफने कि आवाज़ "हमफ़....हमफ़्फ़्फ़....हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.....कुत्ता कहीं काससससस. "
अनुश्री बुरी तरह फसती जा रही है?
क्या हुआ था मांगीलाल के साथ?
बने रहिये कथा जारी
Bhai jabardast story likhi h aapne ...bht hi erotiq hai padhkar sach me maza aa jata hai ...agle update ka besabri se intezar rahega..
ReplyDeleteThanx bro.... Agla update bhi jald hi milega 👍
DeleteWow, बहुत ही बेहतरीन। आपके लेखन का जवाब नहीं Andy Bhai..... waiting for next
ReplyDeleteशुक्रिया दोस्त 👍
DeleteBhai kya ab update nahi aayaga kya bahut itjar kar raha hu
ReplyDeletePllzz gave updates I'm egarly waiting for the next errotic update
ReplyDeleteBhai de de next part. Tune Anushree ki gand mar di bc
ReplyDeletePl update kro.. Main aapko apni wife ki original pic share krunga back and front
ReplyDelete