मेरी बीवी अनुश्री भाग -45
अपडेट -45
फारुख साइड मे लेटा हांफ रहा था, लगता था जैसे जिंदगी कि आखिरी सांसे ले रहा हूँ ऐसा स्सखालन उसने कभी महसूस नहीं किया था.
ना जाने क्या बात थी अनुश्री मे, ना जाने उसने ये निचोड़ देने वाली काम कला कहाँ से सीख ली थी.
अनुश्री भी बदस्तूर हंफे जा रही थी अभी जो कुछ भी हुस उस पर यकीन करना मुमकिन नहीं था, वो फारुख के लंड को चाट रही थी खा जाना चाहती थी वो भी खुद कि मर्जी से.
इसका सबूत उसके होंठो पर लगा फारुख का गाढ़ा वीर्य था.
अनुश्री कि गर्दन फारुख कि तरफ पलट गई, उसे फारुख के जिन्दा होने का सबूत दिख गया,उसका थूक और वीर्य से चमचामाता लंड जी अभी भी बाहर के तूफान कि तरह अपनी जगह पर कायम था .हालांकि थोड़ा मुरझा गया था फिर भी अपनी बहादुरी मे अकड़ा था.
अनुश्री का दिल दिमाग अभी भी शांत नहीं था, उसकी नाभि के नीचे एक ज्वालामुखो पनप रहा था,वो फटना चाहता था.
कहाँ कल तक अनुश्री मात्र लंड देख कर झड़ जाया करती थी परन्तु आज वो एक निपुण योद्धा को हरा खुद मैदान मे टिकी हुई थी.
ना जाने किस आवेश मे उसका नंगा जिस्म जो जमीन पे पड़ा हुआ था उसमे हरकत सी होने लगी, उसका जिस्म ख़ुद से सरकता हुआ फारुख के नजदीक जाने लगा.
उसकी मंजिल फारुख के काले थूक और वीर्य से सने टट्टे थे जो उस माध्यम रौशनी मे किसी हिरे कि तरह चमक रहे थे.
अनुश्री अपनी मंजिल कि तरफ चल दि, ना जाने कहाँ से उसने ये हिम्मत दिखा दि थी जबकि उसका पति वही उसके सामने अपनी नाक बजा रहा था.
खह्ह्ह्हररर....खररररम...कि आवाज़ उसकी हिम्मत बन चुकी थी.
अनुश्री के हाथ खुद से बढ़ गये वो उन टट्टे रूपी हिरे को पकड़ लेना चाहती थी और कामयाब भी हुई.
उसके हाथ फारुख के लंड पे कसते चले गये, उसका मन नहीं भरा था अभी.
ये हवस है ही ऐसी चीज कहाँ मन भरता है.
"इस्स्स.....आअह्ह्ह....." एक गर्म अहसास से फारुख चित्कार उठा, सर ऊपर उठा देखा तो पाया अनुश्री वापस से उसके लंड पे कब्ज़ा जमा चुकी थी.
फारुख सिर्फ मुस्कुरा के वही निढाल हो गया.
जबकि अनुश्री रुकी नहीं उसका सर आगे बढ़ चला, पल भर मे ही उसकी जबान ने उस बेशकीमती टट्टो को चाट लिया.
"आअह्ह्हह्ह्ह्ह....."
"उफ्फफ्फ्फ़......."
दोनों के मुँह से एक साथ सिसकारी निकल गई, क्या अहसास था ये.
एक कुलीन घर कि संस्कारी बहु, ऐसा काम कर सकती थी ये एक सभ्य समाज सोच भी नहीं सकता, लेकीन यहाँ समाज कि पड़ी किसे है.
भाड़ मे जाये ये पुरुषवादी समाज और उसकी सोच.
अनुश्री का वीर्य से भीगा मुँह खुलता चला गया, और फारुख के बाल भरे टट्टो को अपने मुँह मे समाता चला गया..
हालांकि ये काम बहुत मुश्किल था फिर भी अनुश्री ना जाने किस सम्मोहन मे थी,
कभी उन बड़े बॉल्स को चूसती तो कभी चाट लेती.
एक अजीब सा खुद के ही थूक का स्वाद उसकी जबान पे फिर से घुलने लगा.
"आआहहहह.....अनु मैडम "
फारुख के बदन मे जैसे आत्मा लौट आई ही उसके हाथ आगे बढ़ कर अनुश्री के बालो मे जा धसे, जैसे उसे शाबासी दे रहे हो.
अनुश्री लगातार अपनी हथेली से उसके लंड को हिलाये जा रही थी, टट्टे किसी गुलाब जामुन कि तरह उसके मुँह मे घुल जा रहे थे.
तूफान के देवता भी ये दृश्य देख शायद होश खो बैठे थे, बाहर से आती हवाओं से खिड़की दरवाजे भड़भड़ा रहे थे.
लेकीन फ़िक्र किसे थी, किसी को भी तो नहीं.
अनुश्री लगातार कभी फारुख के लंड को चुभलाती कभी उसके लंड को भर कर थूक उगल देती.
उसकी मेहनत जल्द ही रंग लाइ फारुख का लंड पुनः.अपनी औकात मे आ चूका था.
फारुख जैसे जमीन पे ही नहीं था, उसकी कमर बार बार अनुश्री के प्रहार से ऊपर को उठ जाती, अनुश्री भी उस सम्मान को स्वीकार करते हुए पूरा मुँह खोल उस भयानक लंड को निगल ले रही थी परन्तु इस उपक्रम मे अनुश्री बेकाबू होती जा रही थी उसे भी कुछ चाहिए था,उसे भी यहीं सुकून चाहिए था.
अनुश्री का बदन सरकने लगा, सरकता गया...अपनी एक टांग को उठाते हुए वो पलट गई उसकी कमर फारुख के मुँह कि तरफ चल दि, थोड़ी ही देर मे उसकी मदमस्त कामुक गांड फारुख के चेहरे के सामने लहरा रही थी. जैसे वो अपनी गांड को फारुख के मुँह पर टिका देना चाहती हो.
ना जाने कैसे अनुश्री ने ये काबिलियत सीख ली थीआज अनुश्री ने साबित कर दिखाया था कि कामकला कोई सिखाता नहीं है, वो बस हो जाता है प्रेम के आवेग मे, हवास के आवेश मे बस हो जाता है. उसके हाथ फारुख के लंड को रगड़ रहे थे और कमर उसके मुँह पर दबती जा रही थी.
फारुख तो इस दृश्य को देख के जैसे फना हो गया, उसके सामने जन्नत का दरवाजा खुल बंद हो रहा था,जैसे खुदा भी कहना चाह रहा हो यहीं वक़्त है फारुख, यहीं जन्नत है घुस जा फिर ऐसा मुक्कदर नहीं मिलता.
अनुश्री भी लंड चूसने मे व्यस्त थी, उसने जिस उम्मीद से अपनी गांड को फारुख के सामने रखा था वो उम्मीद पुरी नहीं हो रही थी..इसी उम्मीद मे अनुश्री ने अपनी गांड को हल्का सा झटका दिया फालस्वरूप जन्नत का गुदा छिद्र रूपी दरवाजा खुल के बंद हो गया,
फारुख इस झटके से जैसे होश मे आया हो, " यहीं अंतिम अवसर है फारुख, घुस जा इस दरवाजे मे " फारुख कि आत्मा भी चित्कार उठी.
फिर क्या था फारुख कि गर्म जबान उस कामुक छिद्र पे ला लगी
"आआहहहहहह......उफ्फ्फफ्फ्फ़.......फ़फ़फ़म..फारुख " अनुश्री के हलक से लंड बाहर आ गया, उसकी गर्दन ऊपर को उठती चली गई.
यहीं तो चाहिए था, यहीं तो खुवाहिस थू, रेगिस्तान मे बारिश कि पहली बून्द गिर चुकी थी.
अनुश्री इस सुख को और ज्यादा चाहती थी उसने अपनी गुदा छिद्र को भींच के फिर खोल दिया.
पीछे फारुख इस एक मादक नज़ारे को देख घन घना गया, उसकी जबान फिर से उस कामुक लकीर मे जा घुसी, परंतु इस बार सिर्फ घुसी ही नहीं ऊपर से नीचे,नीचे से ऊपर चलने भी लगी.
"आआहहहहह......नहीं....उफ्फ्फ...." अनुश्री कि आंखे ऊपर को चढ़ गई, हथेली फारुख ले लंड पर कसती चली गई.
इस कसाव का जवाब फारुख ने ने अपने होंठो को अनुश्री कइ गुदा छिद्र पे रख के दिया.
फारुख ने अपने होंठो को गोल कर गुदा छिद्र पर रख खिंच लिया.
"सससससररर......सुडप " इस खिचाव से अनुश्री कि आत्मा ही खींचने कों हुई.
अनुश्री ने भी अपने सर को वापस नीचे झुका लिया और फारुख के लंड को एक ही बार मे अपने गले तक उतार दिया..
एक युद्ध फिर से शुरू हो गया था, दोनों योद्धा रणभूमि मे भीड़ चुके थे.
फारुख अपनी जीभ से गुदा छिद्र को कुरेदता तो कभी दांतो से काट लेता,इधर अनुश्री उसके लंड को चूसती तो कभी गले तक उतार पूरा थूक से भर देती.
लेकीन अभी भी कुछ कमी थी, कुछ तो था जो कम था अनुश्री कि नाभि कुलबुला रही थी
अनुश्री अपनी कमर को आगे करना चाहती परन्तु ना जाने फारुख को क्या मजा आ रहा था वो उसे पकड़ के वापस अपने मुँह पे जमा लेता.
"आआहहहह.....फ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... फारुख..."
अनुश्री कुछ कहना चाहती थी.
"हहहम....हाँ...हाँ..." फारुख वैसे ही चाटते हुए बोला.
"वो...वो...वहाँ नहीं " अनुश्री मात्र इस शब्द से होलाहल हो चली वो आज पहली बार अपनी इच्छा बता रही थी किसी अनजान मर्द को.
कि तभी..."अअअअअअह्ह्ह्हभ........उफ्फफ्फ्फ़.....फारुख " शायद फारुख अनुश्री कि इच्छा को समझ गया था, उसकी जबान नीचे रेंगति हुई पानी छोड़ती उस दरार पर आ लगी जिसकी कामना अनुश्री ने कि थी.
फारुख कि जीभ अनुश्री कि चुत पर फिसल रही थी.
अनुश्री जन्नत मे थी उसे यहीं तो चाहिए था उसके भी होंठ वापस से फारुख के लंड पर जम गये.
"ससससससह्ह्ह्हह्म....आआहहहह.....फारुख...."
"उफ्फ्फ......अनु....इससससस..."
"खररर.....कहरररर.....खर्राटा "
दोनों कि कामुक सिसकारियों मे मंगेश के खर्राटे मिले हुए थे जिसकी दोनों मे से किसी को कोई फ़िक्र नहीं थी.
यहाँ कामयुद्ध जारी था,जो दोनों कि जीत पे ही रुकना था,कोई एक भी हारता तो युद्ध फिर से शुरू होने कि सम्भावना थी.
"गुलुप....गुलुप...फच फच....वेक वेक...कि आवाज़ के साथ अनुश्रिन के मुँह मे फारुख का लंड अपनी औकात मे था वही फारुख थूक से सने दो छेदो से भिड़ा हुआ था.
अचानक ही "अअअअअह्ह्हह्ह्ह्हह्म्म्मम्म......फारुख नहीं " अनुश्री चीख उठी.
पीछे गर्दन घुमा फारुख से कुछ कहना चाहती थी.
लेकीन तब तक फारुख थूक से भीगे छेदो मे अपनी दो उंगलियां घुसेड़ चूका था.
एक उंगकी गांड मे तो दूसरी ऊँगली चुत मे.
अनुश्री के तो होश ही फकता हो गये थे इस हमले से.
आज वो जन्नत के भी पार जा चुकी थी.
अनुश्री अभी कुछ समझती ही कि फारुख कि दोनों उंगलिया हरकत करने लगी.
एक मादक कामुक अहसास ने अनुश्री के जिस्म को झकझोड दिया,उसका जिस्म पसीने से नहा उठा.
ऐसा सुकून ऐसा अहसास ऐसा तजुर्बा उसे पहले कभी नहीं हुआ था.
ये कम ही था कि फारुख कि जबान भी औकात पर उतर आई.
दोनों उंगलियां दोनों छेदो को भोग रही थी, जीभ दोनों छेदो को सहला रही थी..
"आआहहहह.....फारुख ....उफ्फ्फ....फारुख" अनुश्री लंड को हाथ मे पकड़े सिर्फ आहे भरी जा रही थी,.
इस सुख के आगे कुछ भी नहीं है कुछ भी नहीं.
कमरे फच फच....चप चप....कि आवाज़ से गूंज रहा था.
अनुश्री के हाथ फारुख के थूक से सने लंड को जैसे उखाड़ फेंक देना चाहते हो, उसके हाथ लगातर ऊपर नीचे चल रहे थे,कमर को उठा उठा के पटक दे रही थी.
जवालामुखी फटने पे था.
फारुख उस जवालमुखी मे मर जाना चाहता था उसकी उंगलियां उस जवालमुखी को भड़का रही थी.
"आआहहहह......इससससससस...." फारुख कि दोनों उंगलियां अंदर आपस मे मिल गई,उसके हाथ मे गुदा छिद्र और योनि के बीच कि परत आ लगी जिसे उसने बेरहमी से पकड़ रगड़ दिया.
"आआआहहहहह.....फारुखम..फच....फच....फच......करती अनुश्री ने गर्म लावा उगल दिया, उस लावे से फारुख का मुँह भीगता चला गया.
गर्म लावे कि बरसात होनी ही थी कि फारुख ने भी अनुश्री के सर को पकड़ अपने लंड पर झुका दिया,
फच फच फचम....करती एक गरमगरम वीर्य कि धार अनुश्री के चेहरे से जा टकराई...,पहली वीर्य कि मार पड़नी ही थी कि अनुश्री ने अपना मुँह खोल दिया जैसे वो समझ गई थी कि इस अमृत को वैस्ट नहीं किया जाता.
दोनों योद्धा एक साथ शाहिद हो गये थे.
हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़......हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... अनुश्री धीरे से फारुख के बदन से नीचे सरक गई.
दोनों कि सांसे चढ़ी हुई थी,दोनों के जिस्म पसीने से सरोबर चमक रहे थे.
सब कुछ शांत हो चूका था, दोनों ही लोग जन्नत कि सेर कर चुके थे.
टिक टिक...टिककक....कि आवाज़ से कमरा गूंज रहा था, शायद बाहर तूफान शांत हो गया था. इतना शांत कि घड़ी कि टिक टिक भी बम के फटने का अहसास करा रही थी.
अनुश्री ने अधखुली आँखों से देखा सुबह के 4बज गए थे, ना जाने कितने समय तक ये योद्धा युद्ध लड़ते रहे.
"थ....थे..थेंक यू मैडम " अचानक फारुख कि आवाज़ से जैसे अनुश्री होश मे आई.
"ककककक.....क्यों?" अनुश्री ने पास पड़ी चादर को अपने जिस्म पे खिंच किया जैसे अब वो एक पल भी अपने नंगे जिस्म को नहीं देखना चाहती हो.
"आज आपने मुझे अपनी जिंदगी लौटा दि थैंक यू सुबुक सुबुक....." फारुख कि आँखों मे आँसू थे दिल मे अनुश्री का अहसान था.
अनुश्री हैरान थी जानवर किस्म का इंसान आँसू बहा रहा है.
"मै बहुत साल बाद इंसानों जैसा फील कर रहा हूँ अनु, मै भूल ही गया थे जीवन मे दारू के अलावा भी कोई सुख है, मै अपने साथ हुए धोखे को कभी सहन नहीं कर पाया, एक यहीं शराब मेरा सहारा बन गई थी "
अनुश्री उठ के बैठ गई थी, उसका बदन चादर से ढँक चूका था, मन मे कोई ग्लानि नहीं थी फारुख के प्रति हमदर्दी जरूर थी, कैसे एक इंसान इनता बेबस हो सकता है "
"क्या हुआ फारुख? " अनुश्री ने पास पड़ी लुंगी नंगे फारुख के जिस्म पर डाल दि.
हाय रे स्त्री जिस लंड को देख वो कामवासना मे भर गई थी, स्सखालित होने के बाद उसे एक पल के लिए भी नहीं देखना चाहती थी या फिर डर था वापस से ना बहक जाने का.
ये तो अनुश्री ही जाने.
स्त्री को तो भगवान भी ना समझ सके.
"मैंने आपको बताया था ना मैडम होटल मयूर और बाकि कुछ होटल मेरी ही मिल्कीयत थी "
"हाँ बताया था"
"जानती है आप रुखसाना कहाँ है?"
"नननन नहीं.....नहीं तो " फारुख कि बातों मे कुछ राज थे जैसे
उसने आश्चर्य से फारुख कि तरफ देखा.
"अल्लाह को प्यारी हो गई बेचारी "
"कक्क्मीम्म्म.....क्या....क्या कह रहे ही तुम?" अनुश्री बुरी तरह चौंक गई.
"हाँ अनु मैडम, रुखसाना ने मेरे साथ धोखा किया लेकीन उसके साथ ही धोखा हो गया "/p>
"कककक....क्या...? अनुश्री चौंके जा रही थी,फारुख एक के बाद एक झटके दिये जा रहा रहा था.
" हाँ जिस शख्स के साथ वो मिली थी वो और कोई नहीं होटल मयूर का मालिक अन्ना ही है"
"कककक...क्या....अअअअअ....अन्ना?, नहीं तुम झूठ बोल रहे हो "
अनुश्री को अपने कानो मे विश्वास ही नहीं हो रहा थे जो भी वो सुन रही थी.
"यहीं सच है मैडम अन्ना ने ही रुखसाना से ये काम करवाया था, वो दोनों हमेशा से मिले हुए थे, उनका काम ही ठगी का था, रुखसाना मुझसे दौलत छीन के भागी और वो सारी जायदाद अन्ना ने अपने नाम करा उसे अल्लाह के पास भेज दिया, सुबुक सुबुक...."
फारुख का दिल भर आया.
अनुश्री का दिल धाड़ धाड़ कर चल रहा था, कान मे साय साय कि आवाज़ गूंज रही थी वो जो सुन रही थी उसपे यक़ीन करना मुश्किल था बहुत मुश्किल.
"लललल....लेकीन अन्ना तो ऐसे नहीं दिखते उन्होने तो शादी तक नहीं कि "
"उसे शादी कि क्या जरुरत अनु मैडम, और भोला चेहरा और उसकी बाते सिर्फ दिखावा है, वो और उसके आदमी होटल मे आई जवान खूबसूरत औरतों को अपने जाल मे फसाते है, उनकी free फैसिलिटी के नाम पे मदद करते है,, फिर जब लड़की फंस जाती है तो सब कुछ लूट कर मेरा जैसा हाल कर देते है.
अनुश्री तो सकते मे थी, उसका खून सफ़ेद पड़ गया, जो सुन रही थी उसपर यकीन करना मुश्किल था. "कककक....कककक....कौन आदमी?" अनुश्री को अनजानी सी आशंका सताने लगी
"अन्ना के विश्वास पात्र आदमी मिश्रा और अब्दुल "
धक.....से अनुश्री का दिल बैठता चला गया, जैसे उसके दिल ने काम करना ही बंद कर दिया हो.
"कककक.....कौन....मिश्रा अब्दुल " अनुश्री जानती थी ये कौन है फिर भी एक बार कन्फर्म कर लेना चाहती थी.
0000.01% चांस हो कि शायद वो ये ना हो.
"वही अब्दुल मिश्रा जो होटल मयूर मे ही काम करते है "
भड़ाक....से एक बम फुट गया अनुश्री के कान के पास.
अनुश्री वही के वही जड़ हो गई, उसे एक एक बात किसी फ़िल्म कि तरह ध्यान आने लगी कैसे अन्ना उन पर ज्यादा ही मेहरबान थे, अब्दुल मिश्रा हर जगह कैसे पहुंच जाते थे मदद के नाम पर.
अब्दुल मिश्रा का उस बे वो बेशुमार प्यार लूटना, उनकी तारीफ करना, उनकी फ़िक्र करना वो सब एक साजिश है मुझे फ़साने कि साजिश मेरी इज़्ज़त के साथ साथ मंगेश को भिखारी बना देने कि साजिश.
एक प्लीज को अनुश्री के सामने मंगेश किसी भिखारी कि तरह दर दर कि ठोंकर खाता सामने आ गया.
"नहीं....नहीं....नहीं.....ऐसा नहीं ही सकता " अनुश्री चिल्ला उठी.
"कककक.....क्या हुआ मैडम " अनुश्री को सकते मे आ कर फारुख ने पूछा..
सामने से कोई जवाब नहीं " अनुश्री तो उनके जाल मे ही बैठी थी फसने कि बात तो दूर
"मैडम.... अनु मैडम "
फारुख ने अनुश्री को झाँकझोड़ दिया.
वो...वो....वो......वही अब्दुल मिश्रा?" जैसे अभी भी कन्फर्म करना चाहती हो.
"हाँ मैडम ये तीनो मिल कर पहले घरेलु औरतों को अपनी कामवासना मे फसाते है, लड़की इस कद्र फस चुकी होती है कि अच्छे बुरे का ख्याल नहीं रहता, अपने पति से गद्दारी करने लगती है, फिर जब अन्ना का मन भर जाता है तो मौत दे देता है "
फारुख जो बोल रहा थे वो शत प्रतिशत ठीक था, अनुश्री को अब तक के अपने सफर कि सभी बाते फारुख के बताये रहस्य मे फिट होती महसूस हुई.
"तो क्या वो अपने पति को धोखा दे रही थी, गद्दारी कर रही थी, उसकी कामवासना का अंजाम ये सब होने वाला था." अनुश्री कभी आँखे उठा कर फारुख को देखती तो कभी सोफे पर सोते हुए मंगेश को.
मंगेश कैसे इत्मीनान से सोया हुआ है उसे तो कुछ पता ही नहीं है, और मै कल रात अब्दुल के साथ थी, अब्दुल मेरे जिस्म को भोग रहा था, अचानक से उसे मंगेश के चेहरे मे फारुख दिखने लगा "तो क्या मंगेश कि हालत भी फारुख जैसी हो जाती, उसने इतनी मेहनत से जमीन जायदाद बनाई सब मेरी वजह से उस अन्ना कि हो जाती, सुबुक सुबुक..... अनुश्री खुद को कोष रही थी उसका दिल आत्मगीलानी से पसिज रहा था.
आज उसे खुद कि खूबसूरती पे ही गुस्सा आ रहा था.
अनुश्री का दिल भर आया, उसकी आंखे रो पड़ी दिल पसिज गया.
सामने बैठा फारुख उस कयामत को देखता रहा, जैसे कोई सैलाब आ जायेगा " कक्क.....क्या हुआ मैडम...?".
"फ्फ्फ्फफ्फ्फ़.......फारुखम....फारुख....अनुश्री ना जाने किस आवेगा ने फारुख के सीने से जा धसी
"थैंक यू फारुख थैंक यू, तुमने मेरी जिंदगी बचा ली मेरा हसता खेलता परिवार तबाह होने वाला था, मेरी जिंदगी लूटने वाली थी थैंक यूँ फारुख "
फारुख तो काठ का उल्लू बना बैठा रहा उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि ये अचानक से क्या हुआ.
"कककक....क्या हुआ मैडम?, क्या आपके साथ भी?"
फारुख के प्रश्न से जैसे अनुश्री होश मे आई.
"हहहहहम...हाँ....नननन....नही....नहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ" अनुश्री कि हाँ ना मे तब्दील हो चली.
वो उनके जाल से बाल बाल बच निकली थी.
"क्या हाँ....ना....मैडम खुल के बताइये" फारुख ने अनुश्री कि नग्न पीठ पर हाथ फेर दिया.
ना जाने क्या जादू था इस स्पर्श मे, एक अपनापन था, एक दोस्ती का अहसास था.
ना जाने किस वेग मे अनुश्री अब तक कि पुरी घटना को बताती चली गई, अनुश्री को फारुख मे हमदर्द नजर आ रहा था, आता भी क्यों ना जिस समुद्र मे फारुख डूब चूका था अनुश्री उसी के मुहने खड़ी थी.
और समुद्र मे खोये हुए दो अनजान लोग एक दूसरे के दोस्त ही होते है.
अनुश्री कि कहानी सुनते सुनते फारुख के कान और लंड दोनों खड़े होते चले गये.
"कोई बात नहीं मैडम हो जाता है ऐसा, कल ही आप यहाँ से चले जाइये" फारुख ने जैसे आदेश सुनाया हो. ना जाने कैसे वो ये बात बोल गया जबकि वो खुद अनुश्री के हुस्न के जादू मे कैद था.
"मै नहीं चाहता फिर कोई फारुख बने " अनुश्री और फारुख कि आंखे आपस मे मिल गई थी दोनों मे आँसू से सच्चाई के आँसू.
अनुश्री फारुख से अलग हो चली "नहीं फारुख अब वापस नहीं जाना, अब ये सब खत्म कर के जाना है " अनुश्री उठ खड़ी हुई, आँसू सुख गये थे, मन मे एक आत्मविश्वास ने जगह के ली थी.
अनुश्री के दिल और दिमाग़ मे फारुख के शब्दों ने गहरी चोट पहुंचाई थी "फिर कोई फारुख ना बने "
उसका पति मंगेश इस हालत मे पहुंचने ही वाला था, वो खुद पहुँचती उसे.
"नहीं फारुख, एक नारी काममवसान मे गिर सकती है तो वासना से ही उठ भी सकती है"
फारुख तो जमीन पर बैठ उस स्त्री के रूप को देखे जा रहा था, जो अभी तक वासना मे घिरी बेबस नजर आ रही थी वो अभी किसी चंडी के अवतार सी दिख रही थी.
जो स्त्री लूट जाने को तैयार थी, वो लूटने पे आमादा थी.
हाय रे नारी
"हाँ फारुख अब देखना एक स्त्री क्या कर सकती है, स्त्री वासना मे सब कुछ हार सकती है तो दुनिया जीत भी सकती है अपने हुस्न से, बड़े बड़े देवता इस हुस्न के आगे पानी मांगते है, इन लोगो कि औकात क्या है"
एक आम स्त्री का दिल जब टूटता है, उसे सच्चाई का अहसास होता है तब उस से खातरनाक जीव और कोई नहीं होता, खास के पतीव्रता, सुन्दर स्त्री.
फारुख भी उठ खड़ा हुआ, उसने भी आज जीवन का मूल्य सीखा था जो वो आज तक नहीं कर पाया उसे अनुश्री करने कि बात कर रही थी.
वो मर्द हो कर शराब का सहारा लिए खुद कि किस्मत को कोसता रहा,जबकि एक कोमल सी स्त्री उन ठगों को सबक सिखाने का संकल्प लिए खड़ी थी.
"मै अभी तक बेबस था मैडम, लेकीन अब नहीं अब नहीं " फारुख ने अनुश्री के कंधे पर हाथ रख दिया..
"मैडम नहीं अनु बोला करो अच्छा लगता है "
अनुश्री मुस्कुरा दि और चल पड़ी किचन कि और जहाँ कल रात अपने गीले कपड़े छोड़ कर आई थी.
फारुख उस मदमस्त हिरणी को देखता रह गया जो कुलाचे भरती उसकी आँखों के सामने से ओझल होती चली गई.
बाहर सूरज कि किरणे निकल आई थी,आसमान साफ था बिल्कुल साफ अनुश्री के दिल कि तरह साफ.
क्या है ये खेल....?
अब्दुल मिश्रा और अन्ना तो अपराध के दलदल मे गिजबिजाते कीड़े निकले.
क्या करेगी अनुश्री अब?
कितनी बदल गई थी अनुश्री,कहाँ कभी एक घरेलु डरपोk शर्मीली स्त्री थी, और कहाँ अब चाटर्जी और मुखर्जी के आशीर्वाद से हुस्न,और वासना का इस्तेमाल करना सीख चुकी थी.
हाय रे अनुश्री.
क्रमशः.....
Waah yrr yaha to har character ki koi na koi kahani chhupi hui hai...abdul aur mishra ke saath Anna bhi aisa ho sakta h ye ummid nahi thi.
ReplyDeleteGood luck for new blog.
यहाँ सभी विलन है, 👍 अब मंगेश भी फारुख जैसा बनेगा या फिर फारुख वापस से सब कुछ पा जायेगा.वक़्त ही बताएगा
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