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मेरी बीवी अनुश्री भाग -23

अपडेट -23


लंच के पैकेट बट चुके थे,

"यार मुख़र्जी मुझे तो जबरजस्त भूख लगी थी यार " चाटर्जी ने फटाफट लंच का पैकेट खोल दिया.

उसमे हल्का फुल्का पोष्टीक खाना था.

"क्या यार मुखर्जी इसमें तो लड़कियों के खान है,ये देख " चाटर्जी ने पैकेट मे से एक केला निकाल मुखर्जी को दिखाते हुए कहा.

"लड़कियों का खाना " अनुश्री जो भी तक गुमसुम अपने ही विचार मे खोई हुई थी उसे ये शब्द सुन झटका सा लगा.

उसने भी कोतुहल वंस मुँह उठा के देखा तो पाया चाटर्जी के हाथ मे एक बढ़ा सा केला था.

अनुश्री अभी कुछ समझती कि

मुख़र्जी :- ठीक से देख लड़को का भी तो फेवरेट है, ये देख बड़े बड़े सफ़ेद दो रसगुल्ले " मुखर्जी ने अपने पैकट से रसगुल्ले निकाल के दिखाए.

अनुश्री को अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा था..

"अनु तुम्हे केले पसंद है क्या " चाटर्जी ने अनुश्री के पैकेट को भी खोल दिया

"कक्क..क्या...हनन....हाँ   पसंद है, पोष्टीक होता है,ताकत मिलती है "

अनुश्री भी तक नहीं समझी थी वो सिर्फ केले को केले कि ही नजर से देख रही थी.

"और रसगुल्ले " मुखर्जी ने पूछा

"नहीं...नहीं....रसगुल्ले मे शुगर होता है, बीमारियों का कारण है,आप लोग भी मत खाया करो "

"क्या अनु रसगुल्ले तो हमारे फेवरेट है,और तुम्हारे जैसे बड़े बड़े मिल जाये तो कहने ही क्या " चाटर्जी ने भरपूर नजर अनुश्री के भीगे स्तन पे घुमा दि.

अनुश्री ने जैसे ही चाटर्जी कि नजर को भम्पा तो उसे समझते देर ना लगी कि किस रसगुल्ले कि बात हो रही है.

"तो ऐसा करो तुम हमारे केले ले लो,और अपने रागुल्ले हमें दे दो, क्यों भाई चाटर्जी?" दोनों बूढ़े लगातार बीच मे बैठी अनुश्री पे शिकांजा कस रहे थे.

"क्या.....मै....मै....कैसे....?" अनुश्री को अब बोध हो चूका था कि यहाँ क्या बात चल रही है


आखिर जवान शादी शुदा लड़की थी,कब तक ना समझती.

परन्तु जैसे ही वो समझी वैसे ही उसकी घिघी बंध गई.

" हम तुम्हारे रसगुल्लो को अच्छे से निचोड़ निचोड़ के खाएंगे " चाटर्जी ने अपने हाथ मे पकड़ा केले अनुश्री के हाथ मे थमा दिया.


मुखर्जी :- सही कहाँ भाई रसगुल्ले खाने का मजा तभी है जब पहले उसका रस चूसा जाये फिर उसके बाद काट के खाया जाये.

बात रसगुल्लो कि हो रही थी और दोनों कि नजरें अनुश्री के भीगे उभरे हुए स्तन पे टिकी हुई थी.

ना जाने क्यों अनुश्री उनकी बातो के बुरा नहीं मान रही थी,उसे ये डबल मीनिंग बाते भा रही थी.

उसके दिल मे हुक उठ रही थी,चेहरे पे हल्की से मुस्कान तेर गई थी.

उसे अपने स्तन पे झुरझुरी सी महसूस हो रही थी.

"लाओ अनु तुम्हारे रसगुल्ले हमें दे दो" दोनों ने अनुश्री के पैकेट से एक एक रसगुल्ले उठा लिए

और तुरंत ही अपने होंठो से लगा दिया.

चउउउउउउउउउ....सससससस........सुड़प...आआहहहहहहह......

मजा आ गया क्या रस है.

दोनों ने ही जबरजस्त तरीके से उन रसगुल्लो को चूस लिया,एक बार मे ही उसका रस ख़त्म कर दिया.

अनुश्री तो सन्न ही रह गई, चूसने का तरीका और आवाज़ सुन के,

उसका बदन तो पहले ही उसे लगातर धोखा दे रहा था,

दोनों बुड्ढे रसगुल्ले चूस रहे थे परन्तु अनुश्री को ऐसा लग रहा था जैसे उसके स्तन को चूसा जा रहा है.

ना जाने किस भावावेस मे अनुश्री ने अपने दोनों कंधो को सिकोड आपने स्तन को आपस मे भींच लिया,निप्पल tshirt पे उभर आये.


एक मीठी सी खुजली वो अपने स्तन के निप्पल मे महसूस कर रही थी.

"तुम भी खाओ ना हमारे केले " चाटर्जी ने अनुश्री का हाथ थाम लिया

"न...न....नहीं अभी भूख नहीं है " अनुश्री के माथे पे पसीने कि लकीर बह निकली

"आअह्ह्ह.....चाटर्जी क्या रसदार रसगुल्ले थे मजा आ गया " मुखर्जी ने पूरा रसगुल्ला मुँह मे भरते हुए कहा.

"क्या यार तुझे इसमें मजा आया देख अनु के पास तो इस से भी ज़्यदा रस से भरा रसगुल्ला है " चाटर्जी ने इस बार साफ साफ अनुश्री के स्तन कि ओर इशारा कर दिया.

अनुश्री पानी पानी हो रही थी,दो अनजान बूढ़े उसके स्तन के बारे मे बिना उसकी परमिशन के बात कर रहे थे.

 अनुश्री के बदन में एक अजीब सी कुलबुलाहट मचने लगी.

इस संवाद मे एक गर्मी थी जो सीधा अनुश्री के बदन से टकरा रही थी.

"क्या यार चाटर्जी अनु कहाँ हमें अपना रसगुल्ला चूसने देगी?" मुखर्जी ने दुखी मुँह बना लिया.

अनुश्री ने हैरानी से मुखर्जी कि ओर देखा उसका लटका चेहरा देख एक अजीब से गुदगुदी महसूस हुई.

कैसे दो बूढ़े किसी बच्चे कि तरह बात कर रहे थे.

"अरे क्यों नहीं चूसने देगी,आखिर जवान है अब जवानी के मजे नहीं लेगी तो कब लेगी " क्यों अनुश्री

"ननन.....हाँ " ना जाने कैसे अनुश्री के मुँह से ना निकलते निकलते हाँ मे तब्दील हो गया.

"जवानी का मजा " उसका दिमाग़ सिर्फ इस एक लाइन से बंद हो गया था.

"ये हुई ना बात......तुम्हार पति चूसता है तुम्हरे रसगुल्ले?" चाटर्जी ने वाकई इस बार बम फोड़ दिया था.

"कककक....क्या अंकल?" अनुश्री के चेहरे मे कसमाकस साफ देखि जा सकती थी.

मन कहता था भाग जा यहाँ से वक़्त है अभी, बदन कहता क्या करेगी भाग के तेरे पति को कोई मतलब नहीं यहाँ करने क्या आई है तू.

"हाँ मै क्या करने आई हू....मै तो हनीमून मनाने आई थी " अनुश्री ने खुद को ही मुहतोड़ जवाब दिया

"तुम्हारे दूध क्या तुम्हारा पति तुम्हारे दूध चूसता है " इस बार मुखर्जी ने सीधा मिसाइल ही दाग़ दि.

"अअअअअ....हहहह....हनन.....नहीं " इस बार अनुश्री कि हाँ, ना मे तब्दील हो गई उसका तन और मन आपस मे लड़ रहे थे और जीत हर बार तन कि हो रही थी.

ना जाने क्यों उन बूढ़ो कि बात का जवाब दिये जा रही थी,उसका बदन गरम आंच छोड़ने लगा था,सांसे भारी हो चली इसका सबूत उसके स्तन का उठ उठ के गिरना था.

"लो बताओ मुखर्जी इतनी सुन्दर,कामदेवी स्वरूप लड़की के दूध ही किसी ने नहीं चूसे,ये तो सरासर लानत है इसकी जवानी पे " चाटर्जी ने अपने कंधे अनुश्री के कंधे से चिपका दिये.

"हाँ भाई चाटर्जी मेरी ऐसी बीवी होती तो इसके दूध चूस चूस के डबल कर देता " मुखर्जी ने भी अपने कंघे अनुश्री से चिपका दिये.

अनुश्री किसी हिरणी कि तरह तो बूढ़े लेकिन भूखे शेरो के बीच दबी जा रही थी.

"इससससस.......अंकल " अनुश्री के मुँह से मात्र यही शब्द निकल पाए उसके ठन्डे बदन पे दोनों और से गरम बदन का अहसास मिल रहा था


असीम सुख था इस स्पर्श मे,यही तो चाहिए था अनुश्री को.

कि तभी बस को एक झटका लगा "आउच....अनुश्री उछल के सीट पे वापस आ जमीं, इस झटके से अनुश्री के हाथ खुल गए जो अभी तक उसने अभी तक अपने स्तनो को भींच के रखा था उनकी रौनक वापस से दिखने लगी.

एक हाथ मे अभी भी केला थामे बैठी थी अनुश्री उसके ध्यान इस ओर था ही नहीं.

"आआहहहहह...... क्या दूध है रे तेरे " इस उछाल ने दोनों बूढ़ो कि आह निकाल दि थी


अनुश्री भी अब भूलने लगी थी कि वो कहाँ है क्या कर रही है,उसकी कामवासना को चिंगारी लग गई थी.

"वैसे मुखर्जी मैंने तो ऐसे दूध कभी नहीं देखे,देख तो कितने टाइट कसे हुए है?" चाटर्जी ने ऊँगली से अनुश्री के स्तन कि ओर इशारा कर मुखर्जी को दिखाया.

अनुश्री सर झुकाये सब देख रही थी,उसके निप्पल ना जाने क्यों कड़क होंकर tshirt पे अपनी उपस्थिती दर्ज करा रहे थे.

वो जीतना खुद को रोकती उतना ही वासना के जाल मे फसता पाती..

"हाँ यार चाटर्जी सही कहाँ तूने " मुखर्जी ने इस बार गजब कि हिम्मत दिखाते हुए अपनी ऊँगली को अनुश्री के उभरे निप्पल पर हल्का सा रख दिया " देख ये तो बहार निकलने के लिए मचल रहे है.

"आआआहहहहह.......नहीं....इसससस....." अनुश्री ने झटके से सर उठा लिया,उसके मुँह से कामुक सिसकारी फुट पड़ी

मुख़र्जी और अनुश्री कि नजर आपस मे मिल गई

जहाँ अनुश्री कि आँखों मे हया शर्म थी लेकिन विरोध कतई नहीं था वही मुख़र्जी कि आँखों मे सिर्फ हवस थी

अब दोनों बूढ़े खेल मे पूरी तरह उतर चुके थे,खिलौना थी अनुश्री

अनुश्री ने सिर्फ नजर भर के देखा,लेकिन कुछ कह ना सकी बेचारी....वासना कि मारी स्त्री भला कर भी क्या सकती है.

"हाँ यार मुख़र्जी सही कहाँ तूने,देख ये वाला भी निकल रहा है " चाटर्जी ने भी अपनी एक ऊँगली को अनुश्री के दूसरे स्तन के निप्पल पे रख दिया.

"आअह्ह्ह.....नहीं....ना...उम्म्म..." अनुश्री इस बार चाटर्जी को देखती रह गई.

उसके हाथ अभी भी केले को ही पकडे हुए थे,उसने जरा भी बचने कि जहमत नहीं उठाई.

"इसससस......"अनुश्री इस कदर गर्म हो गई थी कि उसकी गर्मी से ही उसके कपड़ो मे सुखपन आने लगा था,परन्तु जांघो के बीच का हिस्सा पहले से ज्यादा गिला होने लगा, मात्र एक स्पर्श से ही उसकी चुत ने पहली पानी कि बून्द टपका दि थी जिसका अहसास अनुश्री को खुजली के रूप मे हुआ,उसे अपनी जांघो को और कस के आपस मे भींच लिया.

दोनों बूढ़े अनुभवी थे वो समझ गए थे कि मछली जाल मे फस ही गई है,बस इसे जाने नहीं देना है.

दोनों ने एक साथ ही दोनों निप्पलो को भीतर कि तरफ दबा दिया,जैसे कोई बटन बंद करना चाहते हो.

जैसे ही ऊँगली हटाई पुककक....के साथ निप्पल वापस तन गए.

ये वासना थी इसे बंद करने का कोई बटन नहीं होता.

"आआहहहह.....इसससस....." अनुश्री सिर्फ करहा रही थी अब उसे भी ये सुख चाहिए था.

लेकिन दोनों निक्कमे बूढ़े सिर्फ निप्पल दबा के रह गए,अब वो खुद कैसे कहे कि कुछ करो,रुको मत.

तीनो लोग इस कदर सीट के पीछे थे कि कोई आगे से पलट के देखता तो सिर्फ सर ही दिखटे नीचे क्या हो रहा है किसी को कोई अंदाजा ही नहीं लगता.

" अनु तेरे जैसे दूध आज तक नहीं देखे हमने " शायद चाटर्जी अनुश्री कि मन कि बात समझ गया था

उसने एक बार फिर हिम्मत दिखाते हुए अपनी पूरी हथेली को अनुश्री के राइट स्तन पे जमा दिया.

"आआहहहह......अंकल.."

"इसससस.....अनु"

दोनों के ही मुँह से अनचाही सिसकारी निकल पड़ी,

चाटर्जी तो जैसे धन्य हो गया उसका हाथ इस कदर अनुश्री के स्तन पे जम गया जैसे वो उसका जायजा ले रहा हो.

अनुश्री कि स्तन इस कदर फूल गए थे कि चाटर्जी के हाथ मे नहीं समा रहे थे.

"आह्हबब्ब.....मुखर्जी इसके दूध तो इतने बड़े और कड़क है कि हाथ मे ही नहीं आ रहे " चाटर्जी ने आपन हथेली दबा दि

"तू भी छु के देख "

अनुश्री ने आगे कि सीट को एक हाथ से कस के पकड़ लिया, जाँघे आपस मे बुरी तरह भींच ली


इधर मुख़र्जी ने भी न्योता तुरंत स्वीकार करते हुए अपनी हथेली को अनुश्री के लेफ्ट स्तन पे कस दिया.

"आआआईई......माँ......नहीं....." अनुश्री कि हालात ख़राब हो चली

उस से ये दो तरफ़ा हुमा बर्दाश्त नहीं हो रहा था.

"हाँ यार चाटर्जी तू तो सच बोलता है,ऐसे कड़क दूध तो देखे ही नहीं.

इन्हे चूसने मे कितना मजा आएगा "

जैसे ही अनुश्री ने मुखर्जी के शब्द सुने उसका पेशाब ही निकलने को हो गया "आअह्ह्ह....कक्क...क्या?"

"इतने कडक है तो चूसने मे कितना मजा आएगा " इस बार चाटर्जी ने मुखर्जी का संवाद पूरा कर दिया


अनुश्री सन्न रह गई,उसे उम्मीद नहीं थी इन सब उसे लगा सिर्फ इतना ही होगा,चूसने कि कल्पना मात्र से ही उसके रोंगटे खड़े हो गए.

दोनों हाथ उसके स्तन को मसलाने लगे थे tshirt के ऊपर से ही.

अनुश्री को कोई होश नहीं था अब, जहाँ स्तन चूसने के नाम पे उसमे थोड़ी विरोध कि चिंगारी उठी थी वो तुरंत धवस्त हो गई.

"आअह्ह्हह्म......अंकल नहीं " अनुश्री के जबान पे सिर्फ नहीं था परंटी उसका बदन कुछ और कह रहा था.

अनुश्री ने काम उत्तेजना मे अपनी पीठ को पीछे सीट पे टिका दिया, जाँघे और बुरी तरह आपस मे भींच गई जैसे वो किसी चीज को रोकना चाहती हो.

दोनों बूढ़ो के हाथ लगातार अनुश्री के स्तन को पसिज रहे थे,मसल रहे थे,नोच रहे थे.

"वाह अनु....आअह्ह्ह.....ऐसे दूध कैसे बना लिए रे तूने "

अभी अनु के मुँह से कुछ जवाब निकलता ही कि.

मुखर्जी ने ऊपर गले से अंदर हाथ डाल दिया, वो हाथ ब्रा के अंदर होता हुआ सीधा निप्पल पे जा लगा.

"इसससस......नहीं...आअह्ह्ह.....अनुश्री ने अपना सर पीछे को पटक दिया,ये उसके सब्र का इम्तेहान था,ऐसा सुख ऐसी उत्तेजना उसने कभी महसूस हू नहीं कि थी


"आआह्हबब्ब....अनुश्री कि आंखे बंद होने लगी कि तभी,नीचे से पेट कि तरफ से एक हाथ उसकी tshirt मे घुसता चला गया.

चाटर्जी ने भी मौके का फायदा उठाते हुए नीचे से top मे हाथ डाल अपनी तरफ के स्तन पे कब्ज़ा जमा लिया था.

अनुश्री कि बंद होती आंख अचानक इस हमले से चौड़ी हो गई " आउच.....धीरे आअह्ह्ह...."

कहाँ अभी अनुश्री नहीं नहीं कर रही थी.....अब उसकी ना....धीरे मे तब्दील हो चुकी थी.

दोनों बूढ़ो के हाथ मे खजाना लग गया था, अनुश्री के नंगे स्तन ले दोनों के हाथ किसी सांप कि तरह लौट रहे थे.

अनुश्री कि हालात इस कदर ख़राब हो चली थी कि अब तो उसका पति भी सामने आ जाता तो वो टस से मस ना होती,

अनुश्री को अपने नंगे स्तन पे एक गरम सुखद अहसास हो रहा था,इसी अहसास कि तो प्यासी थी वो,यही प्यास मिटाने तो वो अपने पति संग निकली थी हनीमून पे.

"आआहहहहह.....ईईस्स्स्स.....धीरे "अनुश्री का सर पीछे सीट पे झुकता चला जा रहा था, आंखे पूरी तरह बंद हो चुकी थी

बस के धक्के उसके तन को हिलाये जा रहे थे

उसके बदन मे ज्वालामुखी सा उत्पन्न हो रहा था जिसे वो जाँघ दबाये रोके हुए थी.

मुखर्जी ऊपर से तो चाटर्जी नीचे से खजाने का लुत्फ़ उठा रहे थे,बरसो बाद उनके हाथ ये सुख लगा था.

दोनों कभी अनुरिंक स्तन को पकड़ भींचते,तो कभी उसके निप्पल को दो ऊँगली के बीच पकड़ के गोल गोल घुमा देते,

जैसे ही वो दोनों अनुश्री के निप्पल को पकड़ के घुमाते अनुश्री कि सिसकारी तेज़ हो जाती, जैसे कोई रेडियो का बटन पकड़ के घुमा देता है आवाज़ बढ़ाने को.

अनुश्री भी उसी रेडियो कि तरह बज रही थी.

परन्तु यहाँ फर्क था गानों कि जगह गरम हवस भरी,वासना मे डूबी सिसकारिया निकल रही थी.

अनुश्री पूरी तरह से वासना मे चूर हो चली थी,हाथ मे पकडे केले पे उसकी हथेली का दबाव बढ़ता ही चला जा रहा था.

उसकी सांसे भारी और भारी होती जा रही थी, गला बिल्कुल सुख चूका था इतना कि अब सिसकारी भी गले मे फस के रह जा रही थी.

मात्र गू...गुममम....उम्मम्मम...कि ही आवाज़ आ पा रही थी.

कि तभी अनुश्री कि हलक मे जान वापस लौटी....आआआहहहहहह......आउच.....ये क्या? उसे अपने निप्पल पे एक अहसास हुआ गिला परन्तु गरम एक दुम गरम ल.

अनुश्री जैसे नींद से जागी पीछे से सर उठा के देखा तो चाटर्जी उसका top गले तक ऊपर कर चूका था.

चाटर्जी का सर अनुश्री के स्तन मे घुसा हुआ था.

"आआहहहहह....अनु वाकई तेरे दूध का तो स्वाद ही लाजवाब,दुनिया के सारे रसगुल्ले बेस्वाद है इस एक के सामने" चाटर्जी मे अपना मुँह खोल एक बार मे ही अनुश्री के निप्पल को मुँह मे भर लिया

"आउच....नहीं....आआहहहह...इसससस......." अनुश्री को इस हमले कि कतई उम्मीद नहीं थी

उसने चाटर्जी के सर ले हाथ रख पीछे हटाना चाहा.

परन्तु अब सब प्रयास व्यर्थ थे.

चाटर्जी अपने मुँह मे अनुश्री के निप्पल को भर चुभलाने लगा था.

अभी ये कम ही था कि अनुश्री कि तो जान ही निकल गई आंखे ऊपर को चढ़ गई.

मुख़र्जी ने भी दूसरे स्तन पे हमला कर दिया था.

उसने भी दूसरे स्तन के नींप्पल को मुँह मे भर एक दम से खिंच लिए था.

अनुश्री के लिए ये दौतरफ़ा असहनीय होता जा रहा था.

"आअह्ह्हभ......आउच...नहीं...हाययययय.....उम्मम्मम..." अनुश्री मात्र सिसकारी भर के रह गई,जीतना हो सकता था उतना उसने अपनी जांघो को आपस मे भींच लिया था.

ये सब उसकी उम्मीद से दुगना था,

ऐसा सुकून ऐसा मजा,ऐसा अहसास के लिए लड़किया मरती है,अनुश्री को फोकट मे मिल रह था.


अनुश्री कि आंखे चढ़ गई थी, सर पीछे सीट पे गिर गया था, आंखे बार बार बंद हो के खुल जा रही थी.

उसके हाथ खुद ही अनजान शक्ति से उठ के दोनों के सर को अपने स्तन पे दबाने लगे.

ऐसी तो नहीं थी अनुश्री, अब स्त्री को तो खुद भगवान भी ना समझ सका हमारी क्या बिसात.

"वाकई तेरा पति तेरी दूध नहीं चूसता देख तेरे निप्पल कैसे छोटे से है " मुखर्जी ने अपने दांतो तले अनुश्री के निप्पल को दबा दिया.

"आउच.....नहीं......धीरे....हान्नन्न...हाँ नहीं चूसता " आज अनुश्री ने वासना से प्रेरित हो सच स्वीकार कर लिया था.

नहीं चूसता उसका पति उसके स्तन.

दांतो तले निप्पल दबने से उसकी सांस ही उखाड़ गई,उसकी जाँघे एक झटके से खुल गई,जांघो के बीच का पूरा हिसा गिला था एकदम गिला,जैसे किसी ने पानी फेंका हो.

अनुश्री मीठे दर्द से से बिलबिला ही रही  थी कि "सुड़प....सुड़प.....करता चाटर्जी उसके निप्पल को अपनी जीभ से नीचे से ऊपर कि तरफ चाटने लगा.

जैसे मुखर्जी के दिये दर्द मे मरहम लगा रहा हो.

एक साथ दो अहसास अनुश्री महसूस कर रही थी,बदन के एक हिस्से मे मीठा दर्द उठ रहा था तो दूसरे हिस्से मे उस दर्द को कम किया जा रहा था.

"अअअअअअअह्ह्ह्हह्हब......जोर से.....चुसो....आह्हबब्ब....

अनुश्री के मुँह से एक और सत्य निकल गया था,कामवासना मे भरी अनुश्री इस अहसास को बर्दाश्त ना कर सकी.


बस झटके खाने लगी थी...... साथ ही अनुश्री का बदन भी झटके मारने लगा था.

आंखे बंद होने लगी.

आखिर कब तक झेलती वो इस वासना को,इस ज्वालामुखी को.

"अअअअअअह्ह्ह्हबब्ब.....उममममममम.....अब....बस.....अब.....नहीं.....आउच....इससससस...."

उसकी टांगे एक दम से चौड़ी हो के बिल्कुल बंद हो गई.

उसकी जंघो के बीच सैलाब आ गया था....

बदन ढीला पड़ते जा रहा था,आंखे चिर निंद्रा मे सामाती जा रही थी.



"करररररर........लेडीज़ एंड जेंट्स....भुवनेश्वर का नंदन कानन जू आ चूका है "

माइक पे गाइड कि आवाज़ गूंजने लगी थी.

बस धीरे धीरे झटके खाती रुकने लगी थी, साथ ही अनुश्री कि सांसे भी रुक गई लगती थी.

अनुश्री कि चुत ने उसका साथ छोड़ दिया था, पानी बहार फेंक दिया था.

बस मे हलचल होने लगी थी,

"वाह रसगुल्ला चूस के मजा आ गया अनु बेटा " चाटर्जी ने अनु कि तरफ देखते हुए कहा.

अनुश्री आंखे बंद किये हुए अपने चरम सुख का आनन्द ले रही थी,बोली कुछ नहीं ना आंखे खोली बस मुस्कुरा दि,क्यों मुस्कुरा दि पता नहीं....

सब यात्री बस से उतरने लगे...

तो क्या अनुश्री वासना मे इस कदर डूब चुकी है कि उसे सब स्वीकार है?

या अभी भी कुछ संस्कार बाकि है?

मिलते है जू देखने के बाद.

बने रहिये कथा जारी है.....

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