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मेरी बीवी अनुश्री भाग -14

भाग-14


सुबह का सूरज निकल गया था, बाहर चिडियो कि चहचाहने कि आवाज़ ने मंगेश कि नींद खोल दी.

मंगेश अंगड़ाई लेता हुआ उठ बैठा,अनुश्री कि तरफ देखा तो वो मुस्कान लिए सो रही थी बिल्कुल बेफिक्र,मंगेश को कल रात का वाक्य याद आ गया जब वो थका होने के बावजूद वासना मे अपनी प्यारी बीवी के साथ डुबकी लगा रहा था


"उठो जान...सुबह हो गई कितना सोओगी?" मंगेश ने अनुश्री को झकझोड़ के उठाया और खुद बाथरूम कि और चला गया.

अनुश्री किसी हिरणी कि तरह अपनी बड़ी आंखे खोल दी और दोनों हाथ ऊपर के एक लम्बी सी अंगड़ाई ली,

उसे अपना बदन काफ़ी हल्का लग रहा था,शरीर मे एक ताज़गी सी दौड़ रही थी.

अनुश्री पलग से उठ खिड़की के पास गई एयर पर्दा हटा दिया "वाओ......क्या नजारा है सामने ही समुद्र कि लहरे जमीन से टकरा रही थी,एक ताजी हवा के झोंके ने अनुश्री के तन बदन को भिगो दिया.

ऐसा आनंद उसjने कभी भी महसूस नहीं किया था, उसे अपना बदन किसी फूल कि तरह लग रहा था बिल्कुल हल्का.

"अरे उठ गई तुम....क्या देख रही हो बाहर " मंगेश ने बाथरूम से बाहर आते हुए कहा.

अनुश्री जो कि काफ़ी ख़ुश दिख रही थी मंगेश के गले जा लगी "कितनी अच्छी जगह है ना मंगेश?"

"हाँ जान जगह तो अच्छी है, अच्छा चलो जल्दी से तैयार हो लो पहले मंदिर ही दर्शन कर आते है, मै राजेश को फ़ोन कर देता हूँ वो और माँ जी भी साथ ही चल चलेंगे "

अनुश्री :- ओके मंगेश अभी आई

अनुश्री बाथरूम मे चली गई लेकिन जैसे ही खुद को सामने शीशे मे देखा तो हैरान रह गई उसका चेहरा चमक रहा था, माथे को कोई सिकन नहीं थी.

उसने अपनी साड़ी को उतार दिया, खुद के कामुक बदन को देख बुरी तरह से शर्मा गई, बड़े बड़े स्तन किस कदर छोटी सी स्लिवलेस ब्लाउज मे कैद थे,नीचे सपाट पेट जिसमे अंदर कि ओर धसी हुई नाभि चार चाँद लगा रही थी.ब्लाउज के ऊपर के दो बटन खोल चुकी थी.

नाभि से नीचे बंधा पेटीकोट,हल्का सा भी नीचे हो जाता तो सुरमाई दरार दिख जाती.

अनुश्री ने पेटीकोट का नाड़ा पकड़ लिया लेकिन जैसे ही उसे खोलने लगी उसके शीशे मे दृश्य बदलने लगा,सामने मिश्रा अपने पाजामे का नाड़ा पकड़े खड़ा था.

"नहीं....नहीं......वापस नहीं....".चेहरे कि मुस्कान गायब होने लगी,सांसे वापस से भारी होने लगी.

उसके सामने मिश्रा धीरे धीरे खुद के पाजामे का नाड़ा खिंच रहा था..... अनुश्री के हाथ भी अपने पेटीकोट के नाड़े पे बुरी तरह जम गए थे,धीरे धीरे नाड़ा बाहर को ओर खींच रहा था

"सररररर.........करता मिश्रा का पजामा पैरो मे इक्क्ठा हो गया सामने वही भयानक काला मगर सुन्दर सुडोल लूंगा एकदम खड़ा था

"नाहीईईईई......अनुश्री ने अपनी आंखे बंद कर ली"


ये नहीं ही सकता अनुश्री ने वापस धीरे से आंखे खोली बाथरूम मे कोई नहीं था सामने शीशे मे सिर्फ वही थी कमर से नीचे एकदम नंगी,उसका पेटीकोट पैरो मे जमा हो गया था.

अनुश्री ने इस बार खुद से ही नजर फेर ली, "क्या हो गया है मुझे,मै पतीव्रता हूँ,मुझे पहले ही भाग जाना चाहिए था"

"सररररररर.....करता हुआ ऊपर फववारे से पानी उसके अर्धनग्न बदन को भीगाने लगा " अनुश्री ने शावर चालू कर दिया था


पानी कि गर्माहट मे उसके बदन के साथ साथ उसका दिमाग़ भी धुलने लगा.

जब वो बाथरूम से बाहर निकली तो एक दम फ्रेश थी चमक रही थी,उसने फैसला कर लिया था.

वो सिर्फ मंगेश कि है "रात गई बात गई "

 मंगेश रूम मे नहीं था शायद राजेश के पास गया हो अनुश्री तैयार होने लगी सफऱ के पहले दिन के लिए


रूम नंबर 103

यहाँ राजवंती सुबह सुबह ही तैयार हो गई थी हलके कलर कि साड़ी और स्लिवलेस ब्लाउज पहने खुद को शीशे मे निहार रही थी.

"इतनी भी बूढ़ी नहीं हुई हूँ मै " बोल के खुद ही हॅस पड़ी

"क्या माँ किस से बात कर रही हो " राजेश ने कमरे मे दाखिल होते हुआ कहा.

राजवंती आवाज़ कि दिशा मे पलट गई राजेश तो अपनी माँ को देखता ही रह गया एक गोरी काया बिना किसी लाली लिपस्टिक के उसके सामने खड़ी थी "वाओ माँ आप कितनी सुन्दर दिख रही है" आज पहली बार राजेश ने अपनी माँ कि सुंदरता को जाना था


"धत...पागल कही का कहाँ सुंदर हूँ,बूढ़ी हो गई हूँ घोड़े जैसा बच्चा है मेरा " राजवंती ने झेपते हुए कहा परन्तु कही ना कही वो खुद कि तारीफ सुन अंदर ही अंदर गद गद हो गई थी


"अरे भई कौन बूढ़ा हो गया है " मंगेश कमरे के दरवाजे पे खड़ा हुआ ही बोला

राजवंती :- अरे बेटा आओ अंदर देखो ये तुम्हारा दोस्त मुझे सुन्दर बोल रहा है राजवंती ने बड़ी ही अदा के साथ ये बात कही

उसे ये माहौल ये खुशनुमा सुबह अपने रंग ने रंग रही थी


"हाँ तो गलत कहाँ कह रहा है,आप वाकई इस साड़ी मे सुन्दर लग रही है,और कौन कहता के कि आप बूढ़ी हो गई है" मंगेश कमरे मे आ चूका था.

राजवंती लगातर अपनी सुंदरता कि तारीफ सुनी जा रही थी उसे यकीन हो चला था कि वो वाकई आज भी सुंदर है उसके दिल ने इस नयी जगह पे जवानी कि अंगड़ाई ली थी.

"चलो भाई राजेश जल्दी दर्शन कर आते है "

हाँ भैया बस मै 2मिनट मे तैयार हो के आया " राजेश बाथरूम कि और चल दिया.

"अनुश्री बेटी कहाँ है?" राजवंती ने अपने बालो को सावरते हुए पूछा.

"बस तैयार ही हो रही है आइये " राजवंती और मंगेश दोनों 102 रूम कि तरफ आ गए.

"ठक ठक ठक....अरे और कितना टाइम लगेगा जल्दी आओ " मंगेश ले दरवाजे को पीटते हुए बोला


"आई बाबा....2मिनट " अनुश्री अंदर से ही चिल्लाई जो कि अपने लाल होंठो पे लाल सुर्ख लिपस्टिक लगा रही थी.

उसने नारंगी कलर का कुर्ता, ब्लैक लेगी पहन ली थी जो कि उसके बदन को बिल्कुल ही कसी हुई थी स्तन तो ऐसे उभार लिए हुए थे कि कोई देख भर लेता तो शहीद हो जाता,ऊपर से बाहर को निकले हुए बड़े नितम्भ अपनी जवानी का भरपूर सबूत पेश कर रहे थे.

2मिनट बाद जैसे ही दरवाजा खुला मंगेश और राजवंती दोनों ही अनुश्री कि खूबसूरती से प्रभावित हो गए.

"क्या बात है बेटी बहुत सुन्दर लग रही हो,मंगेश बेटा बहुत खुशकिस्मत है " राजवंती ने अपनी आँखों का काजल अनुश्री कि गर्दन पे लगाते हुए बोला.

अनुश्री :- क्या माँ जी,  आप भी कोई काम नहीं लग रही हो,क्यों मंगेश?

"हाँ हन...दोनों ही अच्छी लग रही हो " मंगेश तो झेम्प ही गया था दो खूबसूरत औरतों का साथ पा के.

खुद के पति का ये हाल था तो ना जाने बाकियो का क्या होना था.

राजेश भी तब तक आ पहुंचा था,चारो साथ ही नीचे उतरे.

"अजी तुम फॅमिली कही जाता क्या " अन्ना ने टोका जो कि रिसेप्शन के बाहर ही खड़ा था.

मंगेश :- अन्ना वो मंदिर दर्शन को जा रहे है.

पहले अन्ना ने सभी को देखा लेकिन जैसे ही उसकी नजर राजवंती पे पड़ी वो वही ठहर गया,उसका दिल धक से एक ही जगह जम गया आज तक लाखो लोग उसके होटल मे आये थे उसने कभी इस तरह किसी को नहीं देखा परन्तु राजवंती....इसमें कोई बात थी,अन्ना एक टक उसे ही देखे जा रहा था उसके सूखे जीवन मे बारिश कि पहली बून्द पड़ती महसूस हो रही थी


राजेश :- अन्ना आप कुछ बोल रहे थे

"मै....मै.....हनन....मै बोल रहा था कि होटल कि गाड़ी से जाइये हमारा ड्राइवर तुमको दर्शन करा लाता " अन्ना खुद को सँभालते हुए बोला

राजेश और मंगेश एक दूसरे को देख रहे थे, इतने कम किराये मे कार कि सर्विस भी है?.

अन्ना उन दोनों कि मनोदशा समझ गया था "अजी फ़िक्र नहीं करने का ये सर्विस होटल कि तरफ से मुफ्त होने का " अन्ना साफ झूठ बोल गया था,अन्ना free मे एक पानी कि बोत्तल भी नहीं देता था.

"अब्दुल..अय्यो अब्दुल " अन्ना ने जोर से अब्दुल को आवाज़ लगाई परन्तु उसकी नजरें अभी भी राजवंती पे ही टिकी हुई थी जो कि उसके पुरे बदन को टटोल चुकी थी.

राजवंती भी अन्ना कि नजर अपने बदन पे पा के झेम्प गई,शर्म से सर नीचे झुका लिया

परन्तु अब्दुल नाम सुनते ही अनुश्री सकते मे आ गई उसे पता था कि अब्दुल कौन है " क्या जरुरत है कार कि हम ऑटो से चल लेंगे ना " अनुश्री ने मंगेश के कान मे धीरे से कहा.

अब मांगेस तो ठहरा पक्का गुजराती "अरे कुछ पैसे बच ही रहे है तो अच्छा है ना,ऑटो के धक्के खाने से अच्छा है कार मे चले "

अब क्या कहती अनुश्री,कैसे समझाती "ठीक है " दिल पे पत्थर रख अनुश्री ने हामी भर दी.


"जी मालिक....बुलाया आपने " अब्दुल पहुंच चूका था उसकी नजरें तो अनुश्री पे ही जम गई थी

लगता था आज क़यामत के दिन है अब्दुल से कोई उसका सर भी मांगता तब भी उसके बदले वो अनुश्री को जी भर के देखने कि ही इच्छा मांगता.

"ये फॅमिली होना इनको जगनाथ टेम्पले दर्शन करा के आने का " अन्ना ने ऑर्डर दे मारा और अपनी बत्तीसी राजवंती कि तरफ चमका दी जैसे उसकी खिदमत मे किया हो ये सब.

" अभी लो मालिक..." अब्दुल कि तो मन मुराद पूरी हो गई मानो.

"आइये साहेब आइये मैडम...कार बाहर ही खड़ी है "  सब आगे को चल पड़े सबसे पीछे अनुश्री भारी कदमो से चल रही थी उसका एक मन कह रहा था कि सफर यही ख़तम कर दे

"लगता है मैडम ब्लैक आपका फेवरेट कलर है "अब्दुल ने पीछे से उसकी बड़ी सी गांड को ब्लैक लेगी मे घूरते हुए कहा जो कि अनुश्री के कदम ताल से थिरक रही थी.

अनुश्री कुछ नहीं बोली बस हल्का सा मुस्कुरा दी ना जाने क्यों उसे अब्दुल कि बात अच्छी लगी थी,वाकई उसका फेवरेट कलर ब्लैक ही था.

सभी कार के पास पहुंच चुके थे आगे मंगेश बैठ गया पीछे राजेश,राजवंती और अनुश्री बैठ गए.

"चले मैडम..." अब्दुल ने कार के मीरर को एडजस्ट करते हुए पूछा जिसमे अनुश्री का सुन्दर चेहरा दिख रहा था.

"चलो भाई अब देर कैसी " जवाब मंगेश ने दिया.

रास्ते भर अनुश्री के दिमाग़ मे तरह तरह के सवाल कोंध रहे रहे जिसका जवाब भी वो खुद ही देती "तारीफ ही तो कर रहा था "

फिर कभी सामने मिरर मे अब्दुल और अनुश्री कि नजर मिल जाती,अनुश्री लाख चाहती थी कि वो वहा ना देखे परन्तु ना जाने क्यों नजरें वहा चली ही जाती.

अनुश्री के मन मे तूफान जारी था वही राजवंती के दिल मे भी तूफ़ान उठने लगा था अन्ना कि नजरें उसे अभी भी चुभ रही थी, "क्या अन्ना ने सिर्फ मेरी वजह से कार दी या वाकई मे होटल के सर्विस है ये " राजवंती दुविधा मे थी लेकिन अन्ना कि नजरें तो ऐसी नहीं थी "क्या मै वाकई मे अभी भी जवान हूँ, शायद हूँ तभी तो मेरा बेटा तक तारीफ कर रहा था"

राजवंती को जवाब मिल गया था वो जवान है 100% जवान है.


"लो जी साहेब आ गया मंदिर " अब्दुल ने गाड़ी रोकते हुए कहा

अनुश्री और राजवंती जैसे किसी सपने से जागे हो "इतनी जल्दी " दोनों के मुँह से एक साथ निकल गया

मंगेश :- 10km का सफर था आंटी जी

दोनों को ऐसे लगा जैसे पल भर मे सफऱ ख़त्म हो गया हो.

पांचो मंदिर के नजदीक पहुंच गए लम्बी लाइन लगी हुई थी.

राजवंती :- अरे बाप रे ये तो बहुत लम्बी लाइन है पूरा दिन दर्शन मे ही निकल जायेगा.

"क्यों चिंता करते हो आंटी जी ये अब्दुल किस चिड़िया का नाम है आइये मेरे साथ " अब्दुल ने राजवंती को कहाँ परन्तु नजर अनुश्री पे ही थी जैसे कोई अहसान जता रहा हो.

अब्दुल एक पुलिस वाले के पास गया जो कि लाइन को मैनेज करने कि ड्यूटी पे था और पल भर मे ही वापस आ गया.

अब्दुल ना जाने किस जुगाड़ से उन्हें एक छोटी लाइन मे ले आया " जल्दी घुसीए साहेब भीड़ है किसी को कुछ पता नहीं चलेगा " अब्दुल ने जल्दबाजी दिखाते हुए ऐसा इंतेज़ाम कर दिया कि राजवंती लाइन मे सबसे आगे,पीछे राजेश फिर मंगेश उसके पीछे अनुश्री और उसके भी पीछे अब्दुल.

अनुश्री अब्दुल को अपने पीछे पा के बुरी तरह चौंक गई "तत्तत...तुम भी दर्शन करोगे? लेकिन तुम तो...."

अब्दुल ने अनुश्री को आगे बोलने भी नहीं दिया "यही ना कि मै मुसलमान हूँ भगवान तो सबका है आप जागनाथ बोलती हो मै अल्लाह बोलता हूँ बाकि कोई अंतर नहीं है " अब्दुल ने साफ और स्पष्ट नजरिया रख दिया था.

अनुश्री अब्दुल कि बात सुन गदगद हो गई, अनुश्री ने कभी भी जाती धर्म को के के भेदभाव नहीं किया था आज अब्दुल के कथन उसके दिल को छू गए थे "भगवान तो सबका है "

"ये आदमी ऐसा विचार रखता है मै कितना गलत सोच बैठी थी "

अनुश्री हलका सा पीछे मुड़ मुस्कुरा दी जैसे अब्दुल का सुक्रिया अदा किया हो.


लाइन आगे बढ़ चली,आगे चलते चलते लाइन और ज्यादा कंजेस्ट होती जा रही थी लोग बाग़ आपस मे चिपके जा रहे थे,

अब्दुल भी जा लगा अनुश्री के पीछे "आआउउउच.....ये क्या कर रहे हो " अनुश्री ने अब्दुल को कहा

अब्दुल :- मैडम वही धक्का भीड़, वैसे आपको ब्लैक इतना क्यों पसंद है?

अब्दुल ने वार्तालाप शुरू करने के उद्देश्य से कहा.

अनुश्री :- क्यों नहीं हो सकता क्या? अनुश्री अब अब्दुल से झिझक नहीं रही थी वो अब्दुल के विचार से प्रभावित थी.

अब्दुल :- हो सकता है ना मै तो इसलिए पूछा क्यूंकि आप कच्छी भी काली पहनती है और पजामी भी काली.

आपकि काली कच्छी ने तो बेचारे मिश्रा का जीवन ही हराम कर दिया है.

अब्दुल के मुँह से काली कच्छी कि बात सुनते ही उसका दिल धक से मुँह को आ गया. उसे कल रात कि घटना याद आ गई जब वो अपनी पैंटी को देख रही थी उसपे कुछ लगा था सफ़ेद सफ़ेद सा,जो कि मिश्रा के कहे अनुसार उसका वीर्य था.

वो पल याद आते ही उसके जहन मे चीटिया सी रेंगने लगी,गला सूखने लगा वो भूल गई कि मंदिर कि लाइन मे खड़ी है

अब्दुल :- क्या हुआ मैडम कहाँ खो गई अब्दुल ने पीछे से अपनी कमर को उसके नितम्भ पे सटा दिया एक दम कस के


"आआउउचच्चाह्म..."अनुश्री जैसे वास्तविकता मे आ गई,"ये...ये....क्या कर रहे हो "

"आप बहुत खूबसूरत है मैडम जी " अब्दुल ने ऐसा बोलते हुए एक हल्का सा धक्का अनुश्री के नितम्भ मे मार दिया.

एक सख्त सी मोटी गुदगुदी चीज का अहसास अनुश्री को अपनी गांड पे साफ महसूस हुआ.

"आअह्ह्ह....पीछे हटो " अनुश्री के मुँह से हलकी सी सिसकरी फुट गई परन्तु उसने आगे होने कि कोशिश नहीं कि

"भीड़ बहुत है मैडम जी " बोलते हुए अब्दुल ने अपनी कमर को और आगे को दबा दिया.

अनुश्री को अपनी टाइट लेगी मे कसे हुए नित्मभो मे वो बेलनाकार चीज साफ महसूस होने लगी,अनजानी सी कसमकास ने उसे फिर से घेर लिया बदन ना चाहते हुए भी गरम होने लग उत्तेजना वंश अनुश्री ने आंखे बंद कर अपने हाथ आगे मंगेश के कंधे पे रख दिए जिस वजह से उसके नितम्भ और पीछे को हो गए.

"मैडम मुझे भी कोई गिफ्ट दे दीजिये ना अपनी काली कच्छी तो आपने मिश्रा को दे दी मेरा क्या?" बोलते हुए मिश्रा ने एक हलके से धक्के से अपने लिंग को अनुश्री के निताम्बो के बीच दबा दिया.

हालंकि कपडे होने कि वज़ह से कुछ हो नहीं सकता था लेकिन उस बेलनाकार बड़ी सी चीज का अहसास साफ महसूस हो सकता था.

बार बार अनुश्री कि पैंटी का जिक्र हो रहा था बार बार अनुश्री के सामने कल रात कि घटना दौड़ जाती, अनुश्री आंख बंद किये मगेश के कंधे पे हाथ रखे खुद कि साँसो को दुरुस्त करने कि नाकाम कोशिश कर रही थी.

"बोलिये ना मैडम दोगी ना गिफ्ट " अब्दुल ने एक घिस्सा और मार दिया.

"आआहहहहह......हान दे दूंगी " अनुश्री इस बार वासना भरी आवाज़ मे ज़्यदा तेज बोल गई.

"क्या दे दोगी जान " मंगेश ने पीछे मुड़ के अनुश्री से पूछा.

"मममम....कुछ नहीं " अनुश्री ने आस पास देखा लाइन खत्म हो गई थी सामने जगन्नाथ जी कि मूर्ति थी,

उसे पता ही नहीं चला उसने कब ये भीड़ भरा सफऱ पूरा कर लिया था.

पल भर मे ही उसका नशा वासना काफूर हो गए,"हे भगवान ये क्या हो रहा है मेरे साथ " अनुश्री ने एक बार पीछे मुड़ के देखा अब्दुल पीछे ही परन्तु दूर खड़ा था.

"मांग लीजिये मैडम जो मांगना है यहाँ से खाली हाथ कोई नहीं जाता " अब्दुल बोल के मुस्कुरा दिया


अनुश्री भी मुस्कुरा दी अब्दुल उसकी समझ से परे था

अनुश्री ने भगवान जगन्नाथ के सामने हाथ जोड़ दिए,अपनी मन कि मुराद मांग ली,अपनी कोख मे बच्चा मांग लिया.

"भगवान मेरी कोख भर दीजिये "


तो क्या भगवान जगन्नाथ अनुश्री कि सुन लेंगे?

अनुश्री यहाँ से खाली हाथ मतलब खाली कोख नहीं जाएगी.

बने रहिये कथा जारी है....

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