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मेरी बीवी अनुश्री भाग -4

भाग -4


D3 डब्बे मे

हाहाहाहा......आप कहाँ जा रहे है भाईसाहब?

यहाँ मंगेश को बैठने के लिए जगह भी मिल गई थी और एक व्यक्ति "राजेश" भी.

जो कि अपनी माता जी को जग्गन्नाथ मंदिर के दर्शन कराने ले जा रहा था.

बातो ही बातो मे मालूम पडा कि राजेश भी गुजरात से ही है और छोटी मोटी कपडे कि दुकान चलाता है.

और मंगेश कपड़ो का ही होलसेल व्यपारी है


इस वजह से ही दोनों एक दूसरे कि तरफ आकर्षित हुए.

राजेश :- कुछ नहीं भैया माँ को इच्छा थी तो मंदिर दर्शन करा लाओ तो अब समय मिला तो चल पडा

राजेश ने सामने बैठी अपनी माँ कि और इशारा करते हुए बताया

मंगेश ने भी औपचारिक अभिवादन किया. "नमस्ते आंटी जी "

मंगेश कि माँ रेखा पिछले 15 सालो से विधवा औरत का जीवन बिता रही है.

अपना ध्यान पूजा पाठ मे ही लगाती है. दिखने मे कतई खूबसूरत है भरा हुआ मगर तराशा हुआ बदन मात्र 45 साल कि भरपूर जवान औरत है.

हमेशा बदन ढका ही रहता है, परन्तु बदन था ही ऐसा कि ना चाहते हुए भी साड़ी से बाहर ही झाँकता रहता था,

कभी गदराया पेट दिख जाता तो कभी बड़े और मोटे स्तनों के बीच कि कामुक दरार.

अब इस ढके बदन मे कितना कीमती अनमोल अनछुआ खजाना छुपा है कोई नहीं जानता..

राजेश 10 साल का था तब उसके पति दुनिया से रुख़सत हो लिए परन्तु अपने पीछे कपडे कि दुकान छोड़ गए.जिसे अब राजेश संभालता है.

राजवंती ने भी मुस्कुरा के अभिवादन का जवाब दिया.

राजेश :- भाभीजी कही दिख नहीं रही?

मंगेश :- अरे यार वो भीड़ बहुत थी फिर टिकट का लफड़ा हो गया तो जल्दबाजी मे D1 मे चढ़ गई

अभी फ़ोन कर के हाल चाल जान लेता हुआ.

"हेलो अनुश्री..." ये वही वक़्त था जब अनुश्री मिश्रा और अब्दुल के बीच फसी हुई थी और उसका मोबाइल बजा था.

मंगेश :- अरे बाप रे बहुत गुस्से मे है

राजेश :- हाहाहाहा..... भीड़ और गर्मी है ही इतनी.

वैसे अगले स्टेशन आने मे अभी 2 घंटे है.

मंगेश यहाँ आराम से था दोस्त भी बना लिया था.



परन्तु D1 मे अनुश्री कि हालात ख़राब थी एक तो गर्मी ऊपर से अभी जो अब्दुल का हाथ उसकी पसीने से लथपथ कांख मे फस गया था उस से वो काफ़ी शर्मिंदा हो चली थी.

अब्दुल अपना हाथ खींचने मे कामयाब हो गया था परन्तु उसका हाथ बुरी तरह अनुश्री कि कांख से रगड़ गया था फलस्वरूप उसकी हथेली के आस पास एक मादक महक ने जगह ले ली थी

अब्दुल के लिए ये सब किसी सपने जैसा था उसने तो कभी इतने पास से अमीर घरेलु गोरी औरत को देखा तक नहीं था,आज किस्मत कि मेहरबानी देखिये कि थोड़ी देर पहले अनुश्री जैसे मादक खूबसूरत औरत का पसीना लगवा चूका था

शनिफ्फफ्फ्फ़.... शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....जोर से सांस खींचने कि आवाज़ अनुश्री के कानो मे पड़ी,हैरानी से उसने पीछे देखने कि कोशिश कि परन्तु अत्यधिक भीड़ मे फसे होने से पलट ना सकी.गर्दन झुकाये आंखे तिरछी कर कनखिओ से देखने कि कोशिश कि तो शर्म और हैरानी से पानी पानी हो गई,काटो तो खून नहीं उसका गला सूखने लगा,

पीछे अब्दुल अपने हाथ को सूंघ रहा था, सूंघ क्या रहा था नाक मे ही घुसेड़ लिया था अपने हाथ को.

"आअह्ह्ह....क्या महक है " अब्दुल के मुँह से निकल ही गया.

ये शब्द सीधा अनुश्री के कान से टकरा गए. उसके लिए ये हिकारात का विषय था कोई आदमी ऐसा कैसे कर सकता है "छी...कितना गन्दा है ये "

हालांकि उसका दिमाग़ इस हरकत को गन्दापन बोल रहा था परन्तु अब्दुल कि ये हरकत से अनुश्री को अपने बदन मे एक अजीब हलचल का अहसास हुआ,ये कैसे हलचल थी कह नहीं सकते क्यूंकि ऐसा उसने कभी जीवन मे देखा नहीं था "क्या मेरा पसीना खुसबूदार है?" नहीं नहीं.....ऐसा नहीं है मंगेश ने तो कभी ऐसा नहीं कहाँ "

अनुश्री अपने मन मे उठते सवालों का जवाब भी खुद ही दे रही थी.

अब्दुल ने उसकी घबराहट को और बड़ा दिया था. परन्तु खुद के पसीने कि तारीफ उसे पसंद भी आई थी.

क्यूंकि उसे ऐसा कुछ देखने सुनने को नहीं मिला था ये कुछ रोमांचक था.

अभी अनुश्री अपनी ही उलझन मे थी कि....

तभी चररर....चररर....ट्रैन को झटका लगा

मिश्रा :- लगता है किसी ने चैन खिंच दी.

अब्दुल :- लोग बहुत हरामी हो गए है अपने बाप कि ट्रैन समझते है उफ्फ्फ....ये पसीना

बोलते हुए अब्दुल अपने माथे पे हाथ रख पसीना पोछ के हाथ को नीचे झटका दे दिया,पसीने से भीगा हाथ सीधा अनुश्री कि नंगी पीठ से जा टकराया.

"आउच...क्या बदतमीज़ी है ये " अनुश्री लगभग चिढ़ती हुई बोली परन्तु उसे अब्दुल के पसीने कि ठंडक साफ अपनी कमर पे महसूस हुई.

अब वो कपडे भी तो ऐसे ही पहन के आई थी ना,उसे क्या पता था कि जनरल डब्बे मे चढ़ना पढ़ेगा.

पीछे से लगभग नंगी ही थी अनुश्री मात्र एक डोरी से उसका ब्लाउज पीठ पे बंधा हुआ था.

उसे इस बात का अहसास तो हो चूका था कि अब्दुल उसकी गोरी पीठ को घूर रहा है परन्तु अब कर ही क्या सकती थी.

ट्रैन जंगल बिहड़ मे पूरी तरह रुक चुकी थी, ट्रैन मे हलचल होने लगी थी "क्या हुआ भाई क्या हुआ ट्रैन क्यों रुक गई?" भीड़ मे आवाज़ आने लगी सबके मन मे कोतुहाल था.

भीड़ मे फसे जीने से हवा भी नहीं लग रही थी.अनुश्री के माथे और पीठ पे पसीने कि बुँदे उभर आई थी.

मिश्रा :- अरे यार कितनी गर्मी है,बोलते हुए अपनी शर्ट के दो चार बटन खोल दिए.

मिश्रा अनुश्री कि तरफ ही देख रहा था ना चाहते हुए भी अनुश्री कि नजर मिश्रा पे चली गई.

मिश्रा के छाती के घने बाल पसीने से चमक रहे थे.

पसीने और गर्मी कि वजह से मिश्रा के बदन कि गन्दी महक निकल के अनुश्री के नाथूनो मे समाने लगी...

एक शुद्ध मर्दाना महक थी मिश्रा कि.

अनुश्री का दिमाग़ चढ़ गया इस महक से "छी कितनी गन्दी महक है,कैसा जाहिल आदमी है ये सामने एक औरत खड़ी है और इसे तमीज़ भी नहीं है शर्ट के बटन कह दिए" मन मे बड़बड़ती अनुश्री ने मुँह फेर लिया उसकी नजरों मे हिकारात थी


मिश्रा समझ गया था कि अनुश्री को पसंद नहीं आया "क्या करे मैडम जी गर्मी बहुत है ना,अब आपको तो ac मे रहने कि आदत है लेकिन हमारा क्या है गर्मी लगती है तो कपडे खोल लेते है " ऐसा बोला मिश्रा ने अपने बेहूदा मुँह खोल के अपनी गन्दी बत्तीसी दिखा के मुस्कुरा दिया.

अनुश्री इस मुस्कुराहट और खुद को बार बार अमीर काहे जाने से शर्मिंदा हो गई, उसको ऐसा लग रहा था जैसे उसे बार बार अमीर औरत कह के कोसा जा रहा हो.

जबकि वो ऐसी लड़कियों मे से नहीं थी, वो पढ़ी लिखी थी खुद कि अमीरी दिखाती नहीं थी.

इस झेप और शर्मिंदगी मे सर के पीछे से एक पसीने कि बून्द चल पड़ी जो कि उसकी पीठ के बीच कि गहराई मे होते हुए नीचे कि और जाने लगी.

नीचे बढ़ती पसीने कि बून्द किसी नदी कि तरह बहती अब्दुल के पसीने से जा मिली.

दोनों के पसीने के मिलन से एक मर्दाना और जनाना मादक महक उत्पन्न होने लगी जो अनुश्री के नाथूनो ने साफ महसूस कि.ये महक गन्दी थी परन्तु कुछ नशा सा था इस महक मे जो धीरे धीरे अनुश्री के चेहरे पे दिख रहा था.

पसीने कि बून्द पानी कि धार कि तरह कमर से होती हुई दोनों निताम्बो के ऊपर बँधी साड़ी मे समाने लगी.

अब्दुल यही एक ये दृश्य देख पाया था परन्तु पर्दे के पीछे और कुछ हुआ था.

रीढ़ कि हड्डी रूपी नदी मे चलती पसीने के बून्द साड़ी के अंदर अनुश्री कि बड़ी गांड के दरार मे समा रही थी.

जैसे कोई नदी किसी खड़ी मे गिर रही हो.

दो पसीने छोड़ते मर्दो के बीच फांसी अनुश्री पसीने से नहा गई थी.

पसीने कि बून्द रिसते हुए सीधा गुदा छिद्र तक जा रही थी, लगातार ऐसा होने से अनुश्री के गांड कि दरार मे गिलापन और खुजली उत्तपन होने लगी.

खुजली और गीलेपन को मैनेज करने के लिए अनुश्री कभी अपनी एक टांग को हल्का सा उठाती तो कभी दूसरी को ऐसा करने से उसके गांड के दोनों हिस्से आपस मे रगड़ खाते तो कुछ आराम मिलता.

साड़ी के अंदर छोटी सी पैंटी पूरी तरह पसीने से गीली हो गांड पे चिपक गई थी,जिस वजह से अनुश्री को काफ़ी असहज़ महसूस हो रहा था.

परन्तु ये प्रयास नाकाफी था, अनुश्री का मन तो कर रहा था कि हाथ डाल के अपनी पैंटी निकाल फेंके, परन्तु मर्दो के बीच ऐसा संभव नहीं था वो सिर्फ मचल के रह जा रही थी. गुदाछिद्र पे पसीने कि बुँदे लगातार खुजली पैदा कर रही थी.

पीछे खड़ा अब्दुल उसकी ये मचलन को भलीभांति परख पा रहा था,उसे अनुश्री कि मचलती गांड का अहसास हो रहा था. अनुश्री अपने भारी कुल्हो को सुकून देने कि कोशिश मे इधर उधर हिला रही थी कभी गांड को जोर लगा के भींचती जिस वजह से गुदा छिद्र सिकुड़ता और खुलता तो कुछ राहत का अहसास होता.

"क्या हुआ मैडम गर्मी लग रही है " पीछे से अब्दुल कि भारी आवाज से अनुश्री चौक गई.

"ह....हाँ...हाँ....वो गर्मी बहुत है " वो ऐसे हकलाते हुए चौकी जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो.

अनुश्री शर्म और मर्दाना पसीने कि गंध को लगातार झेल रही थी उसका बदन गरम हो रहा था अब इसका कारण गर्मी ही थी या कुछ और कह नहीं सकते.


बने रहिये....अनुश्री का सफर जारी है...

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