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मेरी बीवी अनुश्री भाग -13

अपडेट -13


रात का सन्नाटा पसरा हुआ था,

अचानक अनुश्री कि नींद खुल गई,उसका गला सुख गया था उसे पानी कि आवश्यकता थी.

कमरे मे जीरो बल्ब कि मददम रौशनी फैली हुई थी.

अनुश्री ने पाया कि उसका गला इस कदर सूखा है कि थूक तक नहीं निगल पा रही है,सूखता भी क्यों ना सारा पानी तो चुत के रास्ते बह गया था.

उसे बहुत बैचेनी सी फील जो रही थी पास ही स्टूल पे रखा फ़ोन उठा के देखा तो पाया कि अभी 2 ही बज रहे है,कमरे मे मे मंगेश के खर्रटो कि आवाज़ गूंज रही थी,अनुश्री ने बैड पे लेटें लेटें ही पानी कि बोतल को उठा लिया लेकिन जैसे ही मुँह को लगाने को हुई तो पाया कि पानी ही नहीं है.

"ये क्या अब क्या करू रिसेप्शन पे फ़ोन करू? लेकिन इतनी रात को कोई मेरे कमरे मे आएगा सही नहीं है " अनुश्री ने खुद कि बात को ही नकार दिया.

"बाहर जा के भर लाती हूँ खुद ही, वाटर कूलर देखा था मैंने ऊपर आते वक़्त "

अनुश्री बिस्तर से खड़ी हो गई हाथ मे खाली बोत्तल लिए,जैसे ही खड़ी हुई उसकी जांघो से तरल पदार्थ रिस के घुटनो तक आ गया,एक ठण्ड कि लहर ने बदन को भीगा दिया उसे याद आया कि रात को मंगेश के साथ सम्भोग किया था परन्तु वो इस सम्भोग से बिलकुल भी आनंदमयी नहीं थी वो खुद अपनी कांख चाट रही थी,ना जाने क्यों उसे ये सब याद आते ही वापस से बैचेनी और सुरसुराहट सी होने लगी,जाँघ बिलकुल भीगी हुई थी अंदर पैंटी ना पहने होने कि वजह से जाँघे आपस मे चिपक रही थी,अनुश्री इसी कसमकास मे कमरे के बाहर आ गई

उसने इतने धीरे से दरवाज़ा खोला जैसे चोरी करने जा रही हो,दिल कि धड़कन ने फिर रफ़्तार पकड़ ली थी

उसने आस पास देखा कही कोई नहीं ना ना कोई आहट ना कोई आदमी, सीढ़ी से एक मंजिल नीचे उतर गई सामने ही वाटर कूलर था उसके दिल को राहत का अनुभव हुआ,लगभग दौड़ती हुई वाटर कूलर कि टोटी को पकड़ चालू कर दिया "टप....टटटटप...दो बून्द ही टपक पाई.

"ये क्या हुआ इसमें तो पानी ही नहीं है " अनुश्री ने नजर इधर उधर दौडाई तो पाया कि सामने कि तरफ किचेन दिखाई दिया.

"वहा पानी जरूर मिल जायेगा " सोच के कदम आगे बड़ा दिया, परन्तु तुरंत ही ठहर गई "वहा कोई हुआ तो?"

"रात मे कौन होगा,होगा भी तो सो रहा होगा " अनुश्री किसी चोर कि तरह दबे पाँव किचन कि तरफ चल दी,उसके दिल मे रोमांच ने फिर से दस्तक दे दी उसे ये सब अब एडवांचेर लगने लगा इतनी रात को पानी भरने जाना.

अनुश्री किचन के सामने पहुंची,दरवाजे को हाथ लगाया तो जो कि थोड़ा सा खुला था चररररर.....कि आवाज़ करते हुए एक पल्ला खुल गया.

अनुश्री ने वापस से एक नजर इधर उधर डाली कोई नहीं था,एक चूहा तक नहीं,

जल्दी से अंदर प्रवेश कर गई."उफ्फ्फ्फ़......माथे पे एक पसीने कि लकीर बन गई थी इस अदने से काम मे ही.

अनुश्री ने अंदर पाया कि सब सामान इधर उधर बिखरा हुआ है, खाने कि अलग अलग खसबू से भरा हुआ था किचन, अंदर गर्मी का अहसास था जो कि राहत का सबब था

अनुश्री को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी उसे पाbस ही एक मटका दिख गया जो कि सब्जी काटने कि टेबल पे ही रखा था,

प्यासे कांवे को कुआ दिख गया था,

अनुश्री ने धीरे से ढक्कन उठा के पानी का जग भर अपने गले को तर कर लिया "गट..गट...गटॉक....आअह्ह्ह...उफ्फ्फ..." हालात ही ख़राब हो गई थी.

पानी इस कदर जल्दी जल्दी पिया कि होंठो के किनारो से छलक के गले से होता हुआ सीधा ब्लाउज कि दरार मे समाने लगा.

अनुश्री तृप्त हो गई थी उसने जग वापस नीचे रख दोनों हाथ टेबल पे रख हल्का सा झुक गई कि तभी उसकी नजर टेबल के नीचे गिरी किसी काली चीज पे पड़ी "हे..हे....भगवान ये.ये.....यहाँ.....कैसे, नहीं नहीं ये वो नहीं हो सकती....वो तो...वो...तो....अनुश्री बुरीबतरह कांप गई थी उस चीज को देख उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वही है जो कि यह नहीं होनी चाहिए थी.

अनुश्री ने जल्दी से झुक के उस चीज को उठा लिया और माध्यम रौशनी मे उस चीज को अपनी आँखों के सामने घूमा घुमा के देखने लगी,जैसे जैसे देखती उसका हलक वापस से सूखता चला जा रहा था,आंखे हैरानी से चौड़ी हुई जा रही थी,

"ये...ये...तो मेरी ही ब्लैक पैंटी है जो ट्रैन मे मैंने मिश्रा के कहने पे उतारी थी " थूक गटकते हुए बड़ी मुश्किल से कह पाई ये शब्द.

अनुश्री का दिमाग़ भन्ना गया था कि उसकी पैंटी यहाँ कैसे,उसने ध्यान से अपने पैंटी का निचला हिस्सा देखा जहाँ कुछ सफ़ेद सफ़ेद सा गाड़ा सा कुछ लगा था,कोतुहल वंश अनुश्री ने पैंटी के उस हिस्से को नाक के पास ला के सूंघ लिया "सससससनीफ्फफ्फ्फ़.......एक कैसेली सी गंध ने तन बदन मे सरसराहट पैदा कर दी.

"ये कैसी अजीब सी गंध है? क्या है ये?" अनुश्री को राहा नही गया उसने अपनी दो ऊँगली से इस पदार्थ को छू के देखा

"छी कैसा चिप चिपा सा हा ये,क्या है ये?" अनुश्री ने अपनी दोनों ऊँगली के बीच उस चीज को ले के मसल दिया और जैसे ही दोनों ऊँगली को अलग किया तो एक पतली सी तार जैसी आकृति बन गई, अनुश्री बार बार ऊँगली चिपकाती फिर अलग करती.

"ये तो कोई फेविकोल जैसा कुछ है लेकिन इसकी गंध वैसी नहीं है " ना जाने क्या क्या विचार एक पल को उसके दिमाग़ मे कोंध रहे थे.

कि तभी चररररररर.......करता हुआ रसोई का गेट खुलता चला गया "क्या यार ये मैडम ने तो मेरी जान ही ले ली है जब से इसकी चड्डी सुंघी ये लंड बैठने का नाम ही नाही ले रहा है,एक बार हिला लिया फिर भी साला खड़ा है " मिश्रा बड़बड़ता हुआ किचेन मे अंदर प्रवेश कर गया था.

अलासाया हुआ मिश्रा पाजामे के ऊपर से ही अपने लंड को मसल रहा था जैसे ही अंदर घुसा उसकी नजर सामने अपनी पैंटी पकडे अनुश्री पे चली गई.

मिश्रा कि तो घिघी ही बंघ गई, उसके लंड ने जबरजस्त हुंकार भारी सामने के दृश्य को देखते हुए.

उसके सामने उसके सपनो कि अप्सरा अपनी खुद कि कच्छी हाथ मे लिए खड़ी रही, वही कच्छी जिसमे मिश्रा ने थोड़ी देर पहले ही अपना वीर्य निकाला था.

"मैडम...अआप.....अआप....यहाँ? मिश्रा तो जैसे सपना देख रहा था.

अनुश्री जो कि दरवाजा खुलने कि आवाज़ से बुरी तरह चौंक गई थी, सामने नजर पड़ते ही" त्तत्तत्तत्त....तुम यहाँ?"

अनुश्री ने मानो आज दुनिया का आठवा अजूबा देख लिया हो जिस पैंटी को देख वो जिस शख्स के बारे मे सोच रहज थी वही शख्स रात के 2 बजे उसके सामने खड़ा था.

अनुश्री किसी बूत कि तरह वही जम गई उसके बदन मे कोई हरकत नहीं हो रही थी उसके प्राण सुख गए थे

उसकी काली चड्डी वैसे ही उसके आँखों के सामने झूल रही थी,परन्तु इस बार उसकी नजरें दरवाजे से अंदर आते मिश्रा पे टिकी हुई थी.

उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये घटना उसके साथ घट रही है ये बिलकुल सपने जैसा था.

"ततततत..तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" अनुश्री के हलक ने आखिर जवाब दे ही दिया.

मिश्रा जो कि अभी अभी अनुश्री कि कच्छी मे अपना बहुमूल्य वीर्य गिरा के हटा ही था उसे खुद को यकीन नहीं जो रहा था कि कामदेव उस पर इस कदर मेहरबान है उसके सामने उसके सपनो कि अप्सरा थी.

"मैडम जी ये तो मेरी ही रसोई है आप यहाँ क्या कर रही है?"

अनुश्री को मामला समझते देर ना लगी उसे समझ आ गया यहां कि जब अब्दुल यहाँ काम करता है तो मिश्रा भी यही का कर्मचारी था.

"मममम.....मुझे प्यास लगी थी " अनुश्री ने टुटा फूटा जवाब दिया वो अभी भी अपनी पैंटी होने हाथो से पकड़ी हुई थी.

"तो प्यास बुझी मैडम या बाकि है अभी " मिश्रा अनुश्री के नजदीक आ चूका था उसकी नजर अनुश्री कि काली कच्छी पे ही टिकी हुई थी.

अनुश्री ने मिश्रा कि नजरो का पीछा किया तो पाया कि उसने अभी भी अपनी पैंटी को अपने चेहरे के सामने लटका रखा है.

"आपका गिफ्ट वापस लेने आई है क्या मैडम जी " मिश्रा ने पूछा

"ककककक.....कैसा गिफ्ट " अनुश्री ने तुरंत ही जवाब दिया उसकी सांसे अटक रही थी


मिश्रा :- " अरे यही जो अपने अपने हाथो मे पकड़ रखी है अपनी काली कच्छी,पसीने और मेरे वीर्य से भारी कच्छी "

जैसे ही अनुश्री के कान मे ये शब्द पड़े कि उसने अपनी पैंटी जमीन पे फेंक दी "छी..छी..म.मलतब ये सफ़ेद सफ़ेद तुम्हारा" इस से आगे बोलती कि झेप गई उसके बोल उसके हलक मे ही अटक गए.l


"हाँ मैडम मेरा ही है क्या करे जब से आपके अमृत को चखा है राहा ही नहीं जा रहा,ऊपर से अपने अपनी कच्छी मुझे गिफ्ट कर दी थी " मिश्रा बिना शर्म के बोल गया


"मममम....मममम....मैंने कब गिफ्ट कि वो तो तुमने ही बोला था उतारने को " ना जाने क्यों अनुश्री मिश्रा कि बातो का जवाब दे रही थी.

मिश्रा :- तो क्या मै बोलता साड़ी उतार दो तो उतार देती

मिश्रा के इस प्रश्न ने अनुश्री कि अंतरात्मा को झाँकझोड़ दिया "क्या मै उतार देती?"

मिश्रा :- आपकी गांड मे तो खुजली मची थी इसलिए आपने उतारी थी अपनी कच्छी.मिश्रा के कथन ने एक दम से अनुश्री को धरातल पे ला दिया.

सही तो कह रहा था मिश्रा साड़ी उतारने को बोलता तो क्या वो उतार देती

"नननननन...नहीं " अनुश्री के मुहं से निकल ही गया.


मिश्रा :- क्या नहीं देखो आपकी कच्छी ने मेरा क्या हाल किया है मेरा पूरा रस सोख लिया है आपकी पैंटी ने देखो आपके हाथ मे भी लगा है,मिश्रा ने अपने लंड को पाजामे के ऊपर से ही सहला दिया


मिश्रा कि बात से एक दम से उसका ध्यान अपनी उंगलियों पे गया जहाँ अभी भी मिश्रा के वीर्य का तार बना हुआ था "ये...ये....क्या...नहीं. नहीं..." बोलती अनुश्री के हाथ से उसकी पैंटी छूट गई उसने झट से अपना हाथ अपनी साड़ी मे पोछ दिया.

मिश्रा :- क्या करती हो मैडम इतनी कीमती चीज को इसे जमीन पे फेंकते है क्या मिश्रा ने तुरंत अनुश्री कि पैंटी को उठा  अपने हाथ मे ले लिया.

अनुश्री अपनी पैंटी कि कद्र देख हैरान रह गई कोई इन्सान उसे अपनी जिंदगी का बहमूल्य गिफ्ट कह रहा था,उसे उस पैंटी का जरा सा अपमान भी बर्दाश्त नहीं था.

"तो प्यास बुझी मैडम आपकी " मिश्रा ने ब्लैक पैंटी को अपने पाजामे के उभार पे रागढ़ते हुए कहाँ.

अनुश्री के लिए ये दृश्य किसी अजूबे से कम नहीं था कोइ आदमी उस कि पैंटी से इस कदर कैसे खेल सकता है.

"वो....वो.....हाँ " अनुश्री ने बोल ही दिया

"मै आपके गले कि बात नहीं कर रहा आपके जांघो के बीच कि बात कर रहा हूँ खुजली मिटी?" मिश्रा लगातार गोलिया दागे जा रहा था जो को धाय धाय करती अनुश्री के बदन को भेद रही थी.

"शट अप....तमीज़ नहीं है बात करने कि " अनुश्री ने खुद को संभालना चाह

"गुस्सा क्यों करती ही मैडम, आपकी पैंटी इतनी अच्छी खुसबू देती है कि मेरी तो नींद ही हराम हो गई है " मिश्रा ने वापस से अनुश्री कि पैंटी को अपनी नाक के पास ला के वापस सांस खिंच ली.

सांस मिश्रा खिंच रहा था लेकिन अनुश्री को ऐसा लग रहा था जैसे उसकी जांघो के बीच से खुश्बू ले रहा हो.

"उम्मम्मम....मत करो ना "ना चाहते हुए भी अनुश्री ने अपनी जाँघे आपस मे भींच ली जैसे वो मिश्रा को रोकना चाहती हो.

मिश्रा कि हरकत उसे अपनी जांघो के बीच महसूस हुई, मंगेश से सम्भोग के वक़्त भी उसके ख्यालो मे मिश्रा ही था जो उसकी कांख चाट रहा था सूंघ रहा था.

ऊपर से उसके सामने ही मिश्रा उसकी पैंटी को अपनी नाक पे रगड़ रहा था, अनुश्री का खून जमने के कगार पे आ गया था उसे ये सब बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल लग रहा था.

अनुश्री को ये सब नजारा देख अपनी जांघो के बीच गीलेपन का अहसास फिर से होने लगा, वो ये सब नहीं चाहती थी लेकिन थोड़ी देर पहले हुआ नाकाम सम्भोग और विचारों मे मिश्रा का कारनामे ने उसके बदन को मजबूर कर दिया था.

"क्या मजा आता है तुम्हे ये सब करने मे?" अनुश्री ने कोतुहाल वंश सवाल दाग़ ही दिया वो पता नहीं क्यों इन सब मे इन्वॉल्व होना चाह रही थी.

मिश्रा :- अब क्या बताये मैडम आपकी चुत कि खुसबू कितनी उत्तेजक है.

मिश्रा ने इस बार सीधा उसके कमुक अंग के नाम लिया था

अनुश्री ने पहली बार इस कदर गन्दी तारीफ सुनी थी,यहाँ उसकी चुत से रिसते रस कि बात हो रही थी.

सुनसान रात मे एक होटल के किचन मे सिर्फ अनुश्री और मिश्रा थे और मुद्दा ये था कि अनुश्री कि पैंटी मे टपका हुआ उसकी चुत का रस,जिसे मिश्रा लगातार अपनी नाक और जबान से रगड़ रहा था.

"आअह्ह्हब्ब......मैडम अब क्या बताऊ मै आपको कि क्या खुसबू है,एक बार मुठ भी मार चूका हूँ फिर भी ये बैठने का नाम नहीं ले रहा " मिश्रा ने इस बार साफ साफ अपने पाजामे के ऊपर बने उभार को सहला दिया था उसका पजामा साफ साफ उसके लंड के उभार को दिखा रहा था,आकार ऐसा था जैसे कोई खीरा छुपा रखा हो.

अनुश्री मन्त्रमुघ सी उसकी हरकत को देख रही थी उसकी नजर जैसे ही मिश्रा के पाजामे पे गई उसकी सांसे ऊपर कि ऊपर ही रह गई "हे भगवान ये क्या है इतना मोटा? क्या ये वही है? नहीं नहीं.....ऐसा तो नहीं होता?"

अनुश्री के दिमाग़ ने साफ नकार दिया जो भी उसने देखा,उसके अनुसार मर्द के लंड इतना मोटा नहीं होता.

हैरानी से फटी आँखों को मिश्रा अच्छे से पढ़ रहा था." क्या हुआ मैडम आज तक इतना मोटा नहीं देखा क्या?"

मिश्रा ने जैसे उसके मन कि बात कह दी हो


अनुश्री का हलक बिलकुल सुख गया था "ककककक...क्या नहीं....नहीं देखा "

अनुश्री ना जाने किस आवेश मे जवाब दे गई. उसकी नजर अभी भी मिश्रा के हाथ पे ही जमीं हुई थी वही हाथ जो लागतर अपने लंड को रगड़ रहा था.

अनुश्री अपने ही उन्माद मे खोई हुई थी उसके लिए ये दृश्य भयानक था परन्तु कही ना कही उसके दिल मे तूफ़ान भी मचा हुआ था वो अकेली अनजान जगह पे किसी अनजान मर्द के साथ उसकी रसोई मे अपनी जाँघ को आपस मे भींचे खड़ी थी और उसके सामने एक मोटा भद्दा सा आदमी अपने लंड को सहला रहा था.

ये सब दृश्य बर्दाश्त के बाहर था अनजानी सी कसमकस ने अनुश्री के बदन को घेर लिया उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे एक पल को लगता सब कुछ भुला के भाग जाये यहाँ से दूसरे पल लागत कि सामने वाले आदमी के हाथ मे क्या है? जिसे वो सहला रहा है उसके लिए ये अजूबा ही था.

"ऐसे क्या देख रही हो मैडम पहले कभी देखा नहीं क्या आप तो शादी सुदा है?" मिश्रा ने उसके अहम् पे चोट कर दी.

अनुश्री जो देख रही थी वो उसके पति के पास भी था जिस से थोड़ी देर पहले ही वो सम्भोग का आनंद ले के आई थी,लेकिन आनन्द? कैसा आनंद उसे तो नहीं आया था.

मिश्रा :- मैडम कहाँ खो गई आप, आओ सोचती बहुत है, शायद आपके पति के पास ऐसा नहीं है.

मिश्रा रात कि खुमारी मे बहुत बड़ी बात कह गया था उस से भी बड़ी हरकत उसने कर दी थी मिश्रा ने एकदम से अपने पाजामे का नाड़ा खिंच दिया, सरसरता हुआ उसका पजामा उसके पैरो मे जमा हो गया.

अनुश्री एक दम से सकते मे आ गई,जैसे किसी ने उसके दिल को भींच लिया हो,उसकी जबान को लकवा मार गया था.

एक दम से उसे अपनी नाभि के नीचे जोरदार दबाव महसूस होने लगा,

आंखे फटी कि फटी रह गई " नहीं नहीं....ये नहीं हो सकता इतना  मोटा "

अनुश्री आश्चर्य के मारे मुँह खोले हांफ रही थी उसके सामने मिश्रा का काला मोटा लंड एक दम से सामने आ गया था. बालो से भरा सुन्दर कामुक सुडोल लंड था मिश्रा का एकदम कड़क.

"कैसा लगा मैडम छू के देखो ना " मिश्रा ने अपने मोटे लंड कि चमड़ी को पीछे खिंचते हुए कहा, ऐसा करने से उसके लंड के आगे का गुलाबी भाग निकल के अनुश्री कि आँखों के सामने लहरा गया.

"ममममम......मै......मैम...नहीं....." अनुश्री आंख फाडे बड़बड़ाए जा रही थी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.

सांसे टंग गई थी,गला सुख गया था "आआहहब्ब........कि सिसकारी के साथ उसने अपनी जांघो को बुरी तरह आपस मे भींच लिया "

आंखे बंद हो गई, मुँह खुल गया, आअह्ह्ह.......उममममममम.......इस्स्स्स.... मुँह खोले आहे भरने लगी.

जिस गर्मी मे वो जल रही थी वो गर्मी उसे अपनी जांघो के बीच से निकलती हूँ साड़ी मे रिस्ती हुई महसूस होने लगी.

उसके बदन का सारा पानी झारझारा के उसकी चुत के रास्ते बहने लगा आज अनुश्री बिना सम्भोग के ही दूसरी बार झड़ गई थी,

मात्र मिश्रा के लंड को देख के ही,उसके शरीर मे जान नहीं बची थी,उसके पैर जवाब दे गए थे वो धाराशाई हो जाती परन्तु ना जाने कहाँ से हिम्मत जूटा ली " नाहीईई........करती हुई वो वहा से भाग खड़ी हुई,

उसकी पैंटी,पानी कि बोत्तल वही किचेन मे ही राह गई थी.

अनुश्री भागती हुई सीधा अपने कमरे मे ही आ के रुकी.

"आआहहहह....हुम्म्मफ्फ्फ्फफ्फ्फ़त......हुम्म्मफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... ये ये क्या हुआ है मुझे " अनुश्री सीधा अपने कमरे का दरवाजा खोल बिस्तर पे धाराशाई हो गई थी


ना जाने वो ऊपर कैसे आ गई उसे पता ही नहीं,एक पल मे सारा दृश्य किसी सपने कि तरह बदल गया. पूरा बदन पसीने से नहा गया था.

उसकी चुत से अभी भी धक धक कि आवाज़ आ रही थी सांसे धाड़ धाड़ कर चल रही थी.

आंखे भारी हो चली थी.....उसे आत्मसंतुष्ठी के अहसास ने घेर लिया था.

धीरे धीरे आंखे बंद होती चली गई.


नीचे किचन मे मिश्रा "ये क्या हुआ बे...डर गई लगता है मैडम जी " मिश्रा को अपने खड़े लंड पे गर्व हुआ,होता भी क्यों नहीं एक संस्कारी पढ़ी लिखी मॉर्डन लड़की मातरबूसके लंड को देख बुरी तरह झाड़ गई थी,उसने एक बार बड़े प्यार से अपने लंड को सहला दिया जैसे शाबासी दे रहा हो.

मिश्रा के होंठो पे शैतानी मुस्कान थी "खेर कोई नहीं वो भी यही है मै भी यही हूँ"

मिश्रा ने अनुश्री कि काली कच्छी को उठा लिया और अपने मोटे लंड पे घिसने लगा.


अनुश्री कि हे यात्रा बड़ी मुश्किल होने वाली थी.

बने रहिये....कथा जारी है....

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