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मेरी बीवी अनुश्री भाग -48



अपडेट-48




कुछ ही समय मे अनुश्री और रेखा रेस्टोरेंट के सामने खड़े थे,

अनुश्री ने मोबाइल निकाल नंबर डायल कर दिया " हेलो मंगेश हाँ हम पहुंच गये है, आप लोग कहाँ है? "




"भीड़ बहुत है जान लाइन मे ही लगे है, तुम लोग बैठो अंदर हम आते ही है "




"माँ जी वो लोग तो अभी स्टेशन ही है आओ हम अंदर बैठते है"

दोनों आगे बड़े ही थे कि अनुश्री कि नजर सामने लिखें होर्डिंग पर पड़ी

"भोजोहोरी मन्ना बंगाली रेस्टोरेंट "

एक पल को उसके कदम ठिठक गये, "ये..ये....तो बंगाली रेस्टोरेंट है माँ जी "




"तो क्या हुआ सुना है बंगाली खाना अच्छा होता है, मैंने तो कभी नहीं खाया आज चख लेते है "

ना जाने क्यों अनुश्री का दिल किसी अनहोनी कि आशंका के चलते बैठा जा रहा था.

बंगाली शब्द उसके जीवन को पलट देने वाले शब्द थे,

उसके सामने उन बंगाली बूढ़ो का चेहरा घूमने लगा, सादगी लिया हुआ चेहरा लेकीन हरकत किसी वहसी कि तरह, अनुश्री के जिस्म ने एक झुरझुरी सी ले ली.




"चलो बेटा रुक क्यों गई, बंगाली मिठाइयाँ बहुत अच्छी होती है जब तक उनका ही टेस्ट लेते है " रेखा अनुश्री का हाथ पकड़े रेस्टोरेंट के अंदर समाती चली गई, अनुश्री किसी बेजान गुड़िया कि तरह खींचती चली गई.




अंदर काफ़ी भीड़ थी, लगभग सभी टेबल भरी हुई थी.

"माँ जी यहाँ तो जगह ही नहीं है ना जाने क्या पसंद आता है लोगो को बंगाली खाना " अनुश्री के मन मे एक कड़वाहट आ गई.

रेखा भी असमंजस मे थी.




" मैडम मै आपकी कुछ मदद कर सकता हूँ " पीछे खड़े एक शख्स ने कहाँ.




दोनों पलटी सामने एक खूबसूरत नौजवान कोट पैंट पहने खड़ा था.

"हम लोग लंच के लिए आये थे, लेकीन यहाँ जगह ही नहीं है" रेखा अति उत्साहित थी.




"कैसे जगह नहीं है?, आप आइये मेरे साथ कितने मेंबर है आप?" शख्स आगे चल पड़ा पीछे पीछे अनुश्री रेखा




'जी हम चार लोग है, दो आदमी अभी आने वाले है उन्हें यहीं भेज देना "




कर्मचारी उन्हें सभी टेबल के बीच से होता हुआ सबसे लास्ट मे जा पंहुचा.

बीच से गुजरती अनुश्री कि खूबसूरती को वहाँ मौजूद हर शख्स निहार रहा था, मर्द खुदा के करिश्मे को सराह रहे थे, वही स्त्रियां खुद से तुलना करने से नहीं चूक रही थी.

साड़ी मे कसी अनुश्री कि कामुक गांड आज ज्यादा ही लचक रही थी, उसके चलने के साथ साथ दोनों गांड के हिस्से एक दूसरे से टकरा के झगड़ पड़ते.




वैसे भी स्त्रियों का स्वाभाव होता ही है खुद से ज्यादा सुन्दर औरत को देख कर घूरति जरूर है शायद कोई कमी निकल आये.

लेकीन यहाँ कोई कमी नहीं थी.



अनुश्री अपने जिस्म पर पड़ती निगाहों को महसूस कर पा रही थी.






आप लोग यहाँ बैठ जाइये मैडम यहाँ कोई डिस्टरबेन्स भी नहीं है.

सामने टेबल कि ओर इशारा कर उसने बताया, सामने एक हॉफ राउंड सोफा था उसके सामने दो कुर्सियां.




"क्या बात है अनु बेटा सभी तुझे ही देख रहे थे"

"क्या माँ जी आप भी" अनुश्री शर्मा गई




"बस तेरी जैसी ही खूबसूरत लड़की राजेश के लिए भी मिल जाये तो गंगा नहा लु "




अनुश्री मुस्कुरा उठी.

लेकीन उसके दिमाग़ मे अभी भी कुछ चल रहा था, वो अन्ना और रेखा का वार्तालाप का अंदाज़ नहीं भूल पा रहई थी.

"माँ जी अभी तो आप हूँ खुद शादी लायक है " अनुश्री ने भी रेखा को छेड़ दिया.

"हट...पागल मेरा जवान बेटा है अभी " रेखा ने बात हवा मे उड़ा दि.




"लेकीन आप भी तो औरत है आपकी कोई इच्छा नहीं होती?" अनुश्री मौके का खूब फायदा उठा रही थी, उसे कुछ तो जानना था.




"इस उम्र मे कहाँ पागल, भजन करने के दिन है अब तो "




"क्या माँ जी आपको कोई देख ले तो झट से शादी को राज़ी ही जाये, और आप भजन मे लगी है "

"बहुत बदमाश हो गई है तु "




"अच्छा माँ जी अन्ना कैसा लगता है आपको " अनुश्री ने धड़कते दिल के साथ वो सवाल पूछ ही लिया.




ये सवाल सुनना था कि फ़क्क्क...से रेखा का चेहरा सफ़ेद पड़ गया उसके चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी.

जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो, अब खेल खत्म.




"वो...वो....अअअ....आन्ना.....वो.." रेखा हकला गई.

"हाहाहाहा.....क्या माँ जी आप भी इतना डर गई मै तो मज़ाक कर रही थी "

रेखा के प्राण जैसे वापस लौटे हो.




"हट पागल....ऐसे कौन बोलता है, अच्छे इंसान है वो " रेखा के चेहरे पे एक मुस्कान तैर गई,

अनुश्री सभी हाव भाव को भलीभांति देख समझ रही थी,




"हे भगवान जो मै सोच रही हूँ वो सच हुआ तो..... नहीं...नहीं...ऐसा नहीं होगा. मुझे कुछ करना होगा करना होगा, अनुश्री बड़बड़ा रही थी.




"क्या करना होगा बेटा " शायद रेखा के कान मे कुछ शब्द पड़ गये थे.




"कककक.....कुछ नहीं वो..वो...मंगेश को फोन करना होगा ना जाने कहाँ है "




"आ जायेंगे बेटा चल पहले कुछ आर्डर कर देते है "




रेस्टोरेंट के बाहर " हाँ बे बस यहीं यहीं रोक दे, हिचहह.... ये पकड़ पिसा "

मेला कुचला सा वो शख्स ऑटो से उतर गया, दारू कि बोत्तल पाजामे मे घुसेड़ ली.

और जा पंहुचा रेस्टोरेंट के गेट पर...

"अबे ओ कहाँ जा रहा है अंदर....." पास खडे दरबान मे उसे धर दबोचा




"अंदर जा रहा और कहाँ, तुम अपने कस्टमर से ऐसे बात करते हो...हिचहह....."




दारू का भभका दरबान कि नाक पे जा लगा " साले सुबह सुबह ही पी के चला आया क्या बेवड़े, चल भाग यहाँ से "




"तमीज़ से बात कर बे इस रेस्टोरेंट के मालिक का पुराना दोस्त हूँ मै, जा के बोल फारुख शाह आया है" फारुख ने अपना सीना तान लिया.




"चल हट साला पीने के बाद सब राजा ही समझते है खुद को " धड़ड़ड़.....दरबान ने धक्का दे खदेड दिया.




"थू....थू..... साले देख लूंगा तुझे " फारुख कपड़े झड़ता हुआ रेस्टोरेंट के पीछे कि तरफ चल पड़ा.

मैडम जी से मिलना जरुरी है.




अंदर रेस्टोरेंट मे

"उडी बाबा चाटर्जी कितनी भीड़ है "

"हां बोंधु मुख़र्जी "




"आइये सर आइये आपकि टेबल वहाँ पीछे है " उस कर्मचारी ने पीछे कि ओर इशारा कर दिया जहाँ अनुश्री रेखा बैठी थी.

इसे लगा ये उनके साथ ही है.




दोनों बंगाली उधर ही चल पड़े " उडी बाबा चाटर्जी तूने कब टेबल बुक कराई?"

"होम नहीं कराया "

"तो फिर?"

कोतुहल लिए दोनों बंगाली जैसे जैसे टेबल के नजदीक पहुंचते गये, दोनों के होश उड़ते गये, आंखे खुशी के मारे अपने कटोरे से बाहर निकलने को हुई.




अनुश्री मेनू कार्ड मे सर झुकाये देख रही थी. उसका कामुक जिस्म अपनी छटा बिखेर रहा था, गोरी पीठ पर सिर्फ एक ब्लाउज कि पट्टी ही थी जो लाज हया को धके हुई थी.




"उडी बाबा औनुश्री "

ये आवाज़ सुननी ही थी कि अनुश्री का कलेजा धक से बैठ गया, मेनू कार्ड हाथ से छूटता चला गया, जिस बात कि आशंका थी वही हुआ.




उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी सर उठाने कि,

"औनुश्री बेटा तुम यहाँ?" अब तक दोनों बंगाली किसी भूत कि तरह टेबल के पास खड़े थे.

मरती क्या ना करती

अनुश्री ने धीरे से सर उठाया "अअअ....अअअ...अआप यह?" उसके होंठ कांप रहे थे, उसने दुआ मांगी कि ये जमीन फटे और उसमे समा जाये.




सामने रेखा भोचक्की सी देखे जा रही थी..

"नमोस्कार मैडम होम लोग मुख़र्जी चाटर्जी, औनुश्री होमको जानता है "

"वववो...वो....वो... माँ जी ये वही अंकल है जिन्होने उस रात टापू पर मेरी help कि थी "

अनुश्री एक सांस मे बोल गई जैसे अब कोई सांस ही नहीं आनी है, उसकी छाती फूल के पिचक जा रही थी दम भरने लगा था.




"ओह....तो आप है धन्यवाद आप लोगो का रेखा ने भी हाथ जोड़ उनको धन्यवाद दिया.




"आइये आइये बैठिये आप " रेखा ने उन्हें न्योता दे दिया.

"उफ्फ्फ....माँ जी क्या किया आपने " अनुश्री का दिल चित्कार उठा.

लेकीन कैसे कहती कि मत बैठो यहाँ, उसकी तो घिघी बँधी हुई थी.




पलक झपकते ही दोनों ने सोफे पर कब्ज़ा जमा लिया.

अनुश्री एक बार फिर से अपने काम गुरुओ के बीच सोफे पर बैठी थी.

अनुश्री खुद को फिर से पिंजरे मे फसा महसूस कर रही थी.

अनुश्री के पीछे दिवार थी भाग के भी कहाँ जाती?




आनुश्री बेटा लगता है तुम्हे बंगाली पसंद आने लगा है, चाटर्जी ने वार्तालाप आगे बढ़ा दिया

"हाँ सुना है बंगाली मिठाइयाँ बहुत टेस्टी होती है " जवाब रेखा ने दिया अनुश्री अभी भी सकते मे थी, एक दम से माहौल बदल गया था.

"सही सुना है आपने आज होम लोग आपको खिलायेगा, आखिर हमारा फर्ज़ बनता है " मुखर्जी ने दाँत निपोर कर अनुश्री के हाथ से मेनू कार्ड ले लिया.




"बोंधु इधर...." और हाथ से एक वेटर को इशारा किया.

इधर चाटर्जी रेखा से बातचीत मे बिजी था, वैसे भी रेखा थी ही बातूनी.

बोंधु एक एक पलट langcha, rosogulla, chomchom, kalo jam ले आ.




.




मुखर्जी ने एक ही सांस मे आर्डर दे मारा.




"अरे भाईसाहब आप कितना माँगा रहे है, कौन खायेगा?"

"मैडम आप बेवजह फ़िक्र कोरती है, खा कर तो देखो मुँह से स्वाद नहीं जायेगा " चाटर्जी ने बड़े ही आग्रह से बोला.

जिसे कोई भी मना नहीं कर सका.

"अनुश्री तुम्हे देख के बहुत हैरानी हुई, हमको लगा अब तक तुम चली गई होंगी "




"वो...वो...वो.....मंगेश टिकट लेने गये है, मिल गया तो चले जायेंगे आज "




ये सुनना था कि दोनों बंगलियों का मुँह उतर गया.

फिर भी अपनी झेप छुपाते हुए " कैसा रहा हनीमून "

दोनों बूढ़े आज भी किसी कि परवाह नहीं कर रहे थे, जबकि साथ मे रेखा बैठी थी.

उसे ये बूढ़े पसंद आये थे,

"अअअ....अअअ....अच्छा "

"क्या खाक अच्छा...बेचारे ये लोग जब से यहाँ आये है कुछ ना कुछ हो ही जा रहा है"

रेखा तुनक कर बोली.

"पहले वहाँ टापू पर फस गई थी फिर कल रात जैसे तैसे कार मे रात बितानी पड़ी "

रेखा बातूनी सारी बात बता देने पर आतुर थी.




अनुश्री ने आंखे बड़ी कर रेखा को घुरा जैसे बोलना चाहती हो चुप हो जा मेरी माँ.




लेकीन वो टापू कि बात ध्यान आते ही ना जाने कैसे अनुश्री का जिस्म झंझना गया, रोगटे खड़े हो गये.




तभी वेटर आर्डर ले आया...

सर आपका आर्डर उसने सभी पैलेट्स टेबल पर सजा दिये.

लजीज मिठाइयो से प्लेट्स सजी हुई थी,

"रेखा जी ये देखिये हमारे बंगाल कि शान rosogulla " चाटर्जी ने एक रसोगुल्ला उठा रेखा कि प्लेट मे रख दिया.

"खा के देखिये मजा आ जयेगा " रेखा काफ़ी उत्साहित थी.

झट से उठा मुँह मे डाल लिया लेकीन रोसोगुल्ला इतना बढ़ा था कि मुँह मे नहीं आ पाया उसकी चासनी रेखा के होंठो से टपक पड़ी.

"ऐसे नहीं रेखा जी काट के खाते है, चूस के खाते है क्यों अनुश्री बेटा " मुखर्जी ने बड़ी चतुराई से बात अनुश्री कि तरफ मोड़ दि.

"अअअ....अअअ...हनन..हाँ.. " अनुश्री एक टक पैलेट्स मे रखे व्यंजन को देखे जा रही थी अचानक मुख़र्जी के सवाल से हड़बड़ा गई.




"जैसे हमने खाया था बस मे " क्यों चाटर्जी

"बिल्कुल बंधु पहले रोसोगुल्ले को चूसना चाहिए, ताकि उसका रस मुँह मे चला जाये, फिर काट के धीरे धीरे कहना चाहिए " चाटर्जी बोल रेखा से रहा था लेकीन नजरें अनुश्री पे जमीं हुई थी.

अनुश्री तो मानो सफ़ेद ही पड़ गई थी, चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, बस कि घटना उसकी नजरों के सामने दौडने लगी.

वो जानती थी यहाँ किस रसगुल्ले कि बात हो रही है.

इतने मे मुखर्जी ने एक रोसोगुल्ला उठा के मुँह मे भर के चूस लिया ससससस.....सुड़प.... आअह्ह्ह क्या रस है, मजा आ गया.

मुखर्जी ने रसगुल्ला चूसा था लेकीन अनुश्री को ऐसा लगा जैसे मुखर्जी के मुँह मे उसके स्तन है "ईईस्स्स....एक सिसकारी अनुश्री के मुँह से छूट गई

"लेकीन अनुश्री के ज्यादा मीठे थे " चाटर्जी ने मुखर्जी कि बात काट दि.




अनुश्री के होश उड़ गये उसने आंख बड़ी कर घूर लिया."क्या बोल रहे है ये लोग, उसे लगा था रेखा सामने बैठी है ऐसा कुछ नहीं होगा, लेकीन फिर भी बंगाली बूढ़े अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे थे.




रेखा कुछ समझती ही कि "ये लो अनुश्री बेटा तुम भी चखो " चाटर्जी ने रोसोगुल्ला कि प्लेट अनुश्री कि तरफ सरका दि.

दोनों बंधु कुछ कहने सोचने समझने का मौका ही नहीं दे रहे थे.

"क्या करता है चाटर्जी अनुश्री को ये langcha दे" मुखर्जी ने langcha कि प्लेट अनुश्री कि ओर सरका दि.




Langcha गुलाब जामुन जैसे ही डिश होती है लेकीन वो आकर मे मोटी और लम्बी होती है.

"आप भी लो रेखा जी "




रेखा के लिए ये सिर्फ एक मिठाई थी लेकीन अनुश्री जानती थी यहाँ क्या बात हो रही है.

सामने रस से भरा मोटा लम्बा langcha रखा हुआ था, अनुश्री हतभरम देखे जा रही थी, अब तक उसकी सांस चढ़ आई थी.

"खाओ बेटा, अच्छा लगेगा तुम्हारा फेवरेट बन जायेगा " मुखर्जी ने टेबल के नीचे धीरे से अनुश्री कि जाँघ के ऊपर हाथ रख दबा दिया




"इस्स्स....अंकल" एक दबी आवाज़ सी निकली अनुश्री कि नजरें उठ साइड मे बैठे मुखर्जी से टकरा गई.




"इसे भी इत्मीनान से चूस कर खाते है, पहले मुँह मे लो चुसो फिर काटो, बंगाल के langcha सबसे बड़े और मोटे होते है,पूरा मुँह भर जाता है " चाटर्जी भी इस वार्तालाप मे शामिल हो गया था.

उसने भी टेबल के नीचे अनुश्री कि दूसरी जाँघ पर हाथ जमा दिया.

"उफ्फ्फ.....अनुश्री का सर प्लेट पर झुकता चला गया, रोमांच के मारे जिस्म कांप गया..

भरे पुरे भीड़ से भरे रेस्टोरेंट मे ये छुवन उसे एक अलग दुनिया मे ले जा रही थी. भीड़ वाली जगहों पे कामुक अंगों कि छुवन अलग ही आनंद का अहसास कराती है, इसमें डर होता है, तड़प होती है, ज्यादा पाने कि चाह होती है.

ना जाने क्यों वो कुछ बोल नहीं रही थी बस कभी आँखों से गुस्सा दिखाती तो कभी रेखा कि तरफ देख के मुस्कुरा देती.

अनुश्री के जहन मे एक एक शब्द किसी तीर कि तरह चोट कर रहे थे, शरीर का तापमान बढ़ने लगा था.

वो फिर से वासना रुपी खाई के किनारे जा खड़ी हुई थी.

"आप भी खाइये ना रेखा जी " चाटर्जी ने आग्रह किया.

रेखा बिन बोले ही खाने मे व्यस्त थीं, उसकी कानो मे बात पड़ थी लेकीन सामान्य थी,जब किसी कि फितरत का पता ना हो तो सब सामन्य ही लगता है.




वही अनुश्री का गला सुख गया था, कभी langcha को देखती तो शब्द गूंज उठते " मोटा लम्बा langcha सिर्फ बंगालियो का ही होता है "

उसे langcha कि शक्ल मे बंगाली बंधुओ के मर्दाना कड़क लंड नजर आ रहे थे..हाय रे हवस कि मारी अनुश्री.




टेबल के नीचे दोनों जांघो पर खुर्दरे पन का अहसास हो रहा था, दोनों के हाथ साड़ी के ऊपर से ही जांघो कि जड़ तक जाते फिर लौट आते.




जैसे खिस के चिंगारी निकली जा रही हो, और ये प्रयास व्यर्थ भी नहीं गया, ये रगड़ सीधा अनुश्री कि जांघो के बीच हमला कर रही थी.

"चुसो अनुश्री " मुखर्जी नर धीरे से बोला.

दोनों कि नजरें आपस मे मिल गई.

अनुश्री ने कापते हाथो से एक langcha को उठा लिया. मुँह के पास ला कर उसके आगे के हिस्से को जीभ से चाट लिया.




अनुश्री कि कामुक जीभ सुन्दर होठो से बाहर आई, फिर वापस समा गई.

ये दृश्य बंगाली बंधुओ के लंड खड़े करने के लिए काफ़ी था.

इसस्स....अनु बेटा कैसा लगा?

'"अअअ....अच्छा...." बस इतना ही बोल पाई

अच्छे से मुँह मे ले के रस चुसो तभी तो मजा आएगा, अब तक तो सीख जाना चाहिए था "

दो बंगाली टीचर्स जैसे अनुश्री कि परीक्षा ले रहे थे, जो पाठ सिखाया था वो अच्छे से सीखा या नहीं.

अनुश्री मदहोशी मे डूबी किसी आज्ञाकारी स्टूडेंट कि तरह फिर से मुँह खोल उस लम्बे मोटे langche को लाल होंठो के अंदर धकेल लिया.

"ससससस....सुडप.....सुडप....." मुँह मे हलका सा दबा कर चूस लिया, langcha से निकलता मीठा रस अनुश्री के हलक मे समाता चला गया.

बंगाली बूढ़ो ने अपनी जाँघे भींच ली जैसे अनुश्री के होंठो के बीच उनका लंड हो.

इस आवाज़ से रेखा का ध्यान भी उधर गया, अनुश्री कि आंखे भी रेखा कि तरफ उठ गई, उसे तुरंत ही अहसास हो चला वो कहाँ है किसके साथ है.

तुरंत ही उसने langcha बाहर निकाल दिया.

"शाबास अनु बेटा ऐसे ही चूस के खाते है " चाटर्जी ने माहौल वापस से सामान्य कर दिया.

"मेरे बस का तो नहीं ये सब " मै ये चम चम ही खा लेती हूँ.

"चोमचोम ये भी अच्छी मिठाई है" मुखर्जी ने चोमचोम कि प्लेट आगे सरका दि.

"ये देखो अनुश्री काला जोम " चाटर्जी ने एक प्लेट से मिठाई उठा अनुश्री के सामने लहरा दि.

ये भी गुलाब जामुन कि ही अलग किस्म थी लेकीन लम्बी मोटी काली चासनी मे डूबी.

अनुश्री के सामने सामान्य मिठाइयाँ ही थी लेकीन उसके दिमाग़ मे कुछ और ही चल रहा था.

"जानती हो इसका स्वाद अलग होता है " चाटर्जी ने एक पीस अनुश्री कि प्लेट मे रख दिया.

"काला मोटा है ना बंधु स्वाद तो अलग होगा ही, langcha से ज्यादा मजा देता है " मुखर्जी ने भी समर्थन कर दिया साथ ही टेबल के नीचे उसके हाथो ने अनुश्री कि साड़ी को पकड़ हल्का सा ऊपर सरका दिया.

इस सरसरहत को अनुश्री सहन नहीं कर पाई "उफ्फ्फ.....आअह्ह्ह....." एक सिसकारी निकल गई उसने हाथ नीचे ले जा कर मुखर्जी के हाथ पर रख दिया.

और गर्दन ना मे हिल गई.

"क्या हुआ बेटा " रेखा ने आह सुन सामने देखा.

"कक्क....कक्क...कुछ नही वो मच्छर "

"अब क्या करे कोने कि ही टेबल खाली थी " रेखा वापस से चाटर्जी से बातो मे उलझ गई.

"इसे भी चूस के खाते है अनु बेटा लो एक बार टेस्ट करो " मुखर्जी ने बात दोहरा दि और अपनी हरकत भी, अनुश्री कि साड़ी घुटने तक आ गई थी.

अनुश्री के माथे पर पसीने कि महीन लकीर दौड गई, उस छुवन ने एक कर्रेंट पैदा किया जो सीधा उसकी चुत मे समा गया.

उसके हाथो ने एक काले जोम कि थाम लिया.

पल भर मे ही काला जोम अनुश्री के मादक लाल होंठो के बीच था,

ससससस....सुड़प कर खिंचते ही मुँह रस से भर गया, इतना रस था कि लाल होंठ चासनी से नहा गये. नहा क्या गया बल्कि होंठो से चुने लगा.




ये कामुक बातचीत और बूढ़ो कि हरकतो ने अनुश्री के दोनों होंठ गीले कर दिये.

ऊपर के होंठ सबके सामने थे, परन्तु नीचे के होंठो का गिलापन सिर्फ अनुश्री ही महसूस कर सकती थी.

उसकी जाँघ आपस मे भींचती गई, गुदा छिद्र सिकुड़ के अंदर को जा धसा..जैसे वो कुछ निकलने से रोकना चाहती हो.

इस बार अनुश्री ने दांतो से उसके आगे के हिस्से को काट भी लिया, जैसे वो बताना चाहती हो कि कितना सीखा गई है.

उसकी नजरें दोनों बूढ़ो से जा मिली, इन निगाहों मे प्रश्न था कि मै पास हुई या फैल.

दोनों बूढ़े अनुश्री कि इस हरकत पर मन्त्र मुग्ध थे, दोनों के हाथो का दबाव अनुश्री कि जांघो पर बढ़ता चला गया, ये उनकी हामी थी कि पुरे 100 मे से 100 नंबर से पास हुई है अनुश्री.

अनुश्री कि आँखों मे काम वासना के लाल डोरे तेर रहे थे, जाँघे आपस मे भींचती जा रही थी, जैसे वो उन बूढ़ो के हाथो को रोक लेगी, लेकीन बंगलियों कि मंजिल सिर्फ एक ही थी.

अनुश्री कि जांघो के बीच दबी कामुक रस छोड़ती चुत.

उनके हाथ आगे बढ़ चले, साड़ी धीरे धीरे कमर मे इक्कठी होने लगी.

टेबल के नीचे तूफान मचा हुआ था,लेकीन ऊपर सब सामान्य था, अनुश्री मिठाइयाँ खाती रेखा को देख मुस्कुरा देती.

जिस्म कि गर्मी बर्दाश्त के बाहर थी अब.

रेस्टोरेंट के पीछे.....

"हाँ ये जगह ठीक है, यहाँ से अंदर घुस जाता हूँ" फारुख के सामने फायर एस्कप कि सीढिया थी, उसने हाथ मे थमी बोत्तल और कागज़ के कुछ बंडल को अपने पाजामे मे खोन्स लिया और चढ़ पड़ा सीढ़ियों पर.."हमफ....हमफ....अनु से मिलना जरुरी है आज "




बने रहिये कथा जारी है....ये मिठाइयाँ क्या गुल खिलाएगी देखते है.....और फारुख को ऐसी क्या मौत पड़ी है अनुश्री से मिलने कि.













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