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मेरी बीवी अनुश्री भाग -37

अपडेट -37


सुबह का आगाज़ हो चला था.

बहार सब कुछ शांत था,एकदम शांत,तूफान के बाद का सन्नाटा,पंछी तक खामोश थे लगता था कल रात के तूफान का खौफ अभी भी कायम था.

मांगीलाल के होटल मे इस से भी ज्यादा शांति छाई हुई थी.

मांगीलाल हर सुबह कि तरह आज भी जल्दी उठा,पास ही अर्ध नग्न अनुश्री चेहरे पे तेज़ लिए हुए लेटी थी वही जमीन पे बेसुध,

कमर के निचले हिस्से को साड़ी ने धक लिया था, "धन्यवाद बिटिया रानी " मांगीलाल कि आँखों मे बेमिशाल प्यार था वही प्यार जिसे उसने कल रात अनुश्री पे उडेल दिया था

मांगीलाल ने बड़ी ही हसरत भरी नजर से अपना हाथ उठा दिया,वो देखना चाहता था कि कही कल रात सपना तो नहीं देखा था,.

उसकी मंजिल अनुश्री के वो दो उभार थे जो मददम रौशनी मे किसी अमृत कलश कि तरह चमक रहे थे.

जैसे ही मांगीलाल ने स्तन को छूना चाहा ना जाने कैसे अनुश्री पलट गई,चेहरे पे मुस्कान अभी भी बरकरार थी.


जी भर के अनुश्री के कामुक गोरे बदन को निहारता हुआ मांगीलाल उठ खड़ा हुआ, दो कदम चल के अपनी भागोनी संभाल ली,यही तो काम है उसका,इसी मे तो महारत हासिल है उसे.


फार...फराता चूल्हा दहक उठा,भागोनी चढ़ गई,चाय का पानी भी उबलने लगा...."कहा गया वो,कहा रख दिया." मांगीलाल हाथ मे अदरक लिए बड़बड़ये जा रहा था.

"ओह..मै तो भूल ही गया था " मांगीलाल को जैसे ही याद आया उसके कदम अनुश्री कि तरफ बढ़ चले

अनुश्री बेसुध करवट लिए हुई सोइ थी,साड़ी ने जाँघ का हिस्सा धक लिया था.

"बिटिया रानी तनिक उठो.....बिटिया रानी " मंगीलाल ने अनुश्री को कंधे से पकड़ के हिला दिया

अनुश्री तो जैसे बेसुध सोइ हुई थी,उसकी आवाज़ से बंगाली बंधु जरूर उठ गए लेकिन अनुश्री टस से मस ना हुई

बंगाली बंधु आंख मसलते हुए उठ बैठे, अनुश्री को जमीम पे अर्ध नग्न अवस्था मे लेटा देख उनके लंड ने सुबह कि सलामी दे दि.

"बिटिया रानी उठो....हमको चाय बनानी है " इस बार मांगीलाल ने जरा ज्यादा ही दम लगा दिया


"आए.....हहहहह....हाँ...हनन....क्या हुआ?" अनुश्री एक दम से चौंक उठ बैठी,बैठने से रही सही साड़ी पे पेट और जाँघ के हिस्से पे इक्कठी हो गई.

सुबह सुबह ही एक चांदनी रौशनी कमरे मे बिखर गई, अनुश्री के पहाड़ जैसे स्तन पे सफ़ेद सफ़ेद कुछ जमा हुआ था

" बिटिया रानी....उठो हमको चाय बनानी है "

अनुश्री हड़बड़ा गई जैसे कोई बुरा सपना देखा हो उसकी नजर खुद के जिस्म पे दौड़ गई, उसकी सांस वही अटक के रह गई उसके स्तन खुली हवा मे सांस ले रहे थे.

झट से अनुश्री ने अपनी साड़ी का पल्लू सीने पे डाल लिया.

हक्की बक्की अनुश्री सामने खुद पे झुके हुए मांगीलाल को देखती तो कभी दोनों बंगाली बूढ़ो को.

"बिटिया रानी वो....वो...वो....अदरक कूटने का दस्ता " मांगीलाल का इतना बोलना ही था कि अनुश्री को कल रात का वाक्य याद आ गया उसकी नींद पूरी तरह उड़ गई

दहाशत,शर्म लाज मे जैसे ही उसने उठने कि कोशिश कि.."आआआहहहह.....उफ्फ्फ...आउचम" असानिया दर्द से उसकी गांड वापस जमीन पे जा लगी

उसे अपनी जांघो के बीच कुछ चुभता सा महसूस हो रहा था.

"हे...भगवान....इस...इस....इसका मतलब वो अभी भी मेरे अंदर ही है" अनुश्री सकपका गई


उसका हाथ झट से बिना किसी परवाह के अपनी साड़ी के नीचे से होता हुआ जांघो के बीच जा लगा "आअह्ह्ह....उउउईईमा..." अनुश्री कि सिसकारी निकल गई लेमे दर्द ज्यादा था


अनुश्री के हाथ वो छोटा सा हिस्सा लग ही गया जिसकी उसे होने कि आशंका थी...अनुश्री ने उसे बहार खींचना चाह लेकिन "उफ्फ्फ्फ़.....काका....आउच " दर्द से दोहरी हो गई

वहाँ मौजूद सभी मर्द इस कामुक दर्द भरी कसमकास को बेचैनी से देख रहे थे.

कि तभी...."आआहहहह.....पुकककक....कि आवाज़ के साथ अनुश्री का हाथ साड़ी से बहार आ गया

दर्द से अनुश्री का जिस्म दोहरा हो चला, उसे ऐसा लगा जैसे चुत के अंदर का हिस्सा भी बहार को निकल आया हो


"आआहहहह.....काका...ये लो " अनुश्री ने किसी बेशर्म औरत कि तरह मांगीलाल कि आँखों मे देखते हुए अदरक कूटने का वो दस्ता उसके हाथो मे थमा दिया.

मांगीलाल ने उसके दस्ते का ऊपरी हिस्सा पकड़ अनुश्री कि आँखों के सामने लहरा दिया, जैसे सभी को दिखाना चाह रहा हो वो दस्ता किसी चिपचिपे पदार्थ से सना हुआ था, एक लिसलसे शहद कि तरह एक लम्बी सी लाइन बन गई थी जो सीधा अनुश्री कि चुत और उस दस्ते को आपस मे जोड़ रही थी.


शहद जैसा मटमेला पदार्थ अनुश्री कि जांघो के आस पास चुपड़ गया था.

अनुश्री ने लज्जा के मारे आंखे बंद कर ली.

"वो क्या है ना चाय मे अदरक डालनी थी " मांगीलाल ने अपने दाँत निपोर दिये.

अनुश्री कि हालत तो कल रात का सोच सोच के ही ख़राब हुए जा रही थी,कैसे वो इस कदर मदहोश हो गई थी.

"ऐसे अफ़सोस नहीं करते अनु बेटा,यही तो जीवन है सुख लेने का नहीं देने का नाम है देखो वो बूढा मांगीलाल कितना ख़ुश है सिर्फ तुम्हारी वजह से,सिर्फ तुम्हारी एक झलक से उसका जीवन सफल हो गया " चाटर्जी अनुश्री कि व्यथा समझ रहा था


"ये वक़्त ग्लानि करने का नहीं है अनु बेटा अपनी जवानी जीने का वक़्त है,तुम.खुद देखो तुम.किसी के जीवन मे कितने रंग भर सकती हो " मुखर्जी ने भी उसका हौसला बढ़ा दिया

अनुश्री कुछ कुछ हल्का महसूस करने लगी,उसकी आत्मगीलानी चकनाचूर होने लगी.

सर उठा के मांगीलाल को देखा "वाकई काका कितने ख़ुश है,कल रात इन्होने वो जीवन जिया जिसकी इन्हे उम्मीद नहीं थी " अनुश्री खुद से बात कर रही थी

"हम जरा फ्रेश हो के आते है तुम कपडे ठीक कर लो कोई ना कोई आता ही होगा हमें ढूंढता हुआ " दोनों बंगाली बूढ़े बहार को निकल गए

अनुश्री एक टक उन्हें देखती ही रह गई "क्या जादू था इनकी बातो मे,सही तो बोल रहे है मैंने आज तक डर के,शरमा के क्या पाया,मंगेश को मेरी कद्र ही नहीं,लेकिन एक बूढा किस तरह से प्यार जता रहा था मुझसे अपना हक़ जमा रहा था मेरे जिस्म.पे "

अनुश्री के चेहरे पे एक मुस्कान तैर आई.

अनुश्री ने आस पास नजर दौडाई उसका ब्लाउज वही जमीन पे पडा था,उसके यकीन के परे था कि ये ब्लाउज खुद उसने अपने हाथो से निकल के फेंका था.

कुछ ही पलो मे अनुश्री किसी कामवती कि तरह फिर से पुरे कपड़ो मे दमक रही थी,चेहरा पहले से ज्यादा खिला हुआ था


"ठाक...ठाक...धाड़ धाड़.....करता मांगीलाल अदरक कूटने मे व्यस्त था, अनुश्री का ध्यान जैसे ही उसके दिशा मे गया उसकी नजरें मांगीलाल से मिल गई,.

जो अदरक तो कूट रहा था लेकिन उसकी नजरें सामने अनुश्री पे ही टिकी हुई थी.

अनुश्री हाथ पीछे किये अपने खूबसूरत घने बालो को बांध रही थी..उसकी चिकनी कामुक कांख उजाले मे चमक बिखेर रही थी.

जैसे मांगीलाल को बुला रही हो,आज अनुश्री के व्यवहार मे कोई शर्म लज्जा नहीं दिख रही थी.


"उउउउमममममम.....काका.." अनुश्री के मुँह से हल्की सी आह निकल गई अदरक कूटता दस्ता ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी चुत को कूट रहा हो

.

कल रात का दर्द मजा अनुश्री के जिस्म को फिर से भीगा गया.

"धन्यवाद बिटिया रानी...कल तुम्हारी वजह से अपना नीरस जीवन खुशी से जी पाया " मांगीलाल कि आवाज़ मे कर्तग्यता थी एक अहसान था


"काका....." अनुश्री सिर्फ इतना ही बोल पाई उसकी जबान लड़खड़ा गई,गला भर्रा गया

" मेरे ऊपर नपुंसकता का दाग़ था जो तुमने धूल दिया,अब मै शांति से मर सकता हूँ " मांगीलाल का गला भर्रा उठा,आंखे डबदबा आई.

"कैसी बात करते हो काका " अनुश्री का दिल भी भर आया आज उसे अपने यौवन का असली महत्व मालूम चला था.

"कामसुख किसी के लिए क्या मायने रखता है,और एक मै हूँ जो हमेशा दूर भागती रही " ऐसा मत बोलिये काका अभी तो बहुत जीना है आपको


"और कल रात के लिए सॉरी बिटिया रानी,मेरा वीर्य निकलने के बाद मै गुस्से मे आ गया था लेकिन तुम्हारी तड़प देख के रहा नहीं गया इसकिये ये दस्ता ही घुसेड़ दिया था,माफ़ करना मुझे " मांगीलाल ने हाथ जोड़ लिए

क्या निश्छल प्यार था, हवस के विपरीत दिल पिघल के मांगीलाल कि हथेली पे था.

"ऐसा मत बोलो काका,कल आपने मुझे अपने जीवन का असली मतलब बताया " अनुश्री ने दौड़ के मांगीलाल के हाथ पकड़ लिए

अनुश्री कि आँखों मे भी आँसू थे



"कल मुझे भी आपसे वो सुख मिला,जिसके लिए मै तरसती तो थी लेकिन भागती थी,आपसे मिल के जाना जिसके जीवन मे ये सुख नहीं है वो कितना लाचार है बेबस है, और मुझे मिल रहा है तो मै भाग खड़ी होती थी "

आज अनुश्री ना जाने क्यों अपनी दिल कि बात खुल के कह पाई, शायद मांगीलाल कि आँखों मे सच्चा प्यार था,सम्भोग सुख को प्राप्त करने कि लालसा थी. असीम सुख था.

अनुश्री ना जाने क्यों मांगीलाल के गले जा लगी, दोनों के दिल मे शांति थी


बहार सूरज कि किरण निकल गई थी,जिसका सीधा प्रकाश अनुश्री के मनमोहक बदन को भिगो रहा था.

आज एक नयी अनुश्री का उदय हुआ था,वो शर्मीली संस्कारी अनुश्री कल रात कही तूफान मे खो गई थी


"ओह्ह्ह...बिटिया रानी..चाय बन गई है पहले चाय पी लो तुम्हारा पति तुम्हे ढूंढ़ते हुए आता ही होगा "

मांगीलाल और अनुश्री दोनों अलग हुए.

कुछ ही पल मे अनुश्री के हाथ मे चाय का प्याला था.

"वाह काका आपकी चाय तो बहुत स्वादिष्ट है " अनुश्री ने पहली चुस्की लेते हुए कहा

"होंगी भी क्यों नहीं,तुम्हारी चुत से निकला शहद जो है " मांगीलाल बिल्कुल सहज़ बोला

"क्या काका आप भी....अनुश्री शरमा गई,चेहरे पे एक शरारती मुस्कान थी

कितनी बदल गई थी अनुश्री एक ही रात मे.

"मांगीलाल ओ....मांगीलाल..." तभी बहार से एक आवाज़ आई

"ये तो बब्बन कि आवाज़ है, लगता है तुम्हारा पति आ गया बेटा " मांगीलाल और अनुश्री बहार कि और दौड़ पड़े

बहार बब्बन नाव वाला खड़ा था उसके पीछे मंगेश और राजेश

"अनु....अनु....मेरी जान ठीक तो हो ना तुम " जैसे ही मंगेश कि नजर अनुश्री पे पड़ी, दोनों ही भागते हुए एक दूसरे से जा भिड़े

"मंगेश....सुबुक....सुबुक......." अनुश्री रोये जा रही थी

"तुम ठीक तो हो ना अनु " मंगेश ने अनुश्री को अपने से अलग करते हुए कहा.

"सुबुक....सुबुक.....ठीक हूँ मंगेश तुम मेरा ध्यान नहीं रखते " अनुश्री बहुत खफा थी


"सॉरी जान सब कुछ इस तूफान के चक्कर मे हुआ " मंगेश जैसे अपनी जिम्मेदारी से बच रहा हो

"सब तूफान कि वजह से ही तो हुआ है मंगेश ना ये तूफान आता ना मुझे वो असली सुख मिलता "

"कुछ कहा जान " मंगेश ने पूछा

"ननणणन....नहीं तो...अनुश्री सिर्फ मुस्कुरा दि.


"चले अनु?"

"बाबू मोशाय....ओ....बाबू मोशाय....होम भी चोलेगा " दूर से आती आवाज़ से सभी उसके दिशा मे पलटे.

दूर से बंगाली बंधु धोती सँभालते भागे चले आ रहे थे.

"अरे भाई जिस जिस को चलना है जल्दी चलो वैसे ही बहुत टाइम ख़राब हो गया है मेरा " बब्बन नाक मुँह सिकोड़ते हुए आगे नाव कि तरफ बढ़ चल


बंगाली बंधु भागते हुए बोट पे जा बैठे,जैसे तो ये मौका हाथ से गया तो फिर वापस ना जा पाएंगे.

"चलो अनु आज रात कि ट्रैन से हम.लोग भी घर चले जाते है " मंगेश ने वादे के अनुसार कहा.

"नहीं मंगेश अभी रुकते है ना कुछ दिन,अच्छी जगह है " चलते चलते अनुश्री ने पीछे मुड़ के देखा मांगीलाल हाथ हिलाये जा रहा था,उसकी आँखों मै आँसू थे,शुद्ध प्यार के आँसू.

अनुश्री सिर्फ मुस्कुरा दि, उसकी आँखों मे एक चमक थी नये जीवन मे कदम रखने कि चमक.

अनुश्री बोट पे सवार हो गई,उसने जीवन का बहुमूल्य सबक सीखा था,अपने जिस्म कि ताकत को पहचाना था.


अनुश्री अब रुक गई है,अपनी जवानी मे फस गई है.

तो क्या वो लुत्फ़ उठा पायेगी.

बने रहिये..... कथा जारी है😍

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