मेरी बीवी अनुश्री भाग -38
अपडेट -38
होटल मयूर
तूफ़ान कि रात
"ठाक ठाक ठाक......रेखा जी, रेखा जी " रूम नंबर 103 का दरवाजा खटखटाया जा रहा था.
"चररररर.....करता दरवाजा खुल गया " अन्ना जी आप
"हाँ अअअअअ....हाँ...रेखा जी...." रेखा के सामने आते ही अन्ना कि घिघी बंध गई,वो तो रेखा के एक दीदार के लिए तड़पता था, जबकि सामने रेखा अपने गद्दाराये बदन को जैसे तैसे साड़ी मे समेटे खड़ी थी.
सिंपल सादगी लिए हुए.
"क्या हुआ अन्ना जी " रेखा कि मधुर आवाज़ फिर से अन्ना के कानो मे घुल गई.
"वो....मै...क्या....वो....अअअअअ...अभी लेक से बब्बन का फ़ोन आया था कि तूफान कि वजह से कुछ यात्री टापू ले रह गए है, राजेश मंगेश उन्ही के साथ है,तो आप फ़िक्र ना करे कल सुबह वो लोग आ जायेंगे "
अन्ना ने रेखा को सूचित करना अपना फर्ज़ समझा, और एक ही सांस मे पूरी बात कह गया.
"हे भगवान.....मेरे बच्चे कहाँ फस गए,ये मुआ तूफान इसे अभी आना था " रेखा चिंतित थी
कि शाययययय.....करती ठंडी हवा दरवाजे पे खड़ी रेखा से जा टकराई.
उसकी सारी का पल्लू सरसराता रूम के अंदर भागा.
पल्लू का हटना ही था कि एक कामुक नजारा अन्ना कि आँखों के सामने चमक उठा.
रेखा कि बेशकीमती सुंदरता तंग ब्लाउज से बहार झाँकने लगी.
अन्ना तो पहले से ही रेखा कि खूबसूरती का कायल था,ये नजारा देख उसकी दिल कि धड़कन जवाब देने लगी.
जैसे ही रेखा को अपनी अर्धनागनता का अहसास हुआ.
दोनों हाथ तेज़ी से अपने पल्लू को समेटने भागे, बस यही रेखा वो गलती कर गई जो नहीं करना था, पल्लू उठाने के चक्कर मे वो थोड़ी सी झुकी,सम्पूर्ण स्तन जैसे बहार को लुढ़क के आ गया हो.
एक भारी सा अहसास ब्लाउज से निकलने को हुआ,उधर स्तन जैसे जैसे बहार आते गए अन्ना कि आंखे अपने कटोरे से बहार को निकल पड़ी.
ऐसा अद्भुत सौन्दर्य,ऐसा नजारा उसके सहन के बहार था.
आखिर रेखा कि मेहनत रंग लाइ,बेकबू पल्लू वापस उसके अनमोल चमक को ढक चूक था.
"वो..वो...रेखा जी " अन्ना को जैसे होश आया हो, सामने पर्दा गिर जाने से उसकी जडवत अवस्था ख़त्म ही गई लेकिन उसकी जबान अभी भी लड़खड़ा रही थी.
रेखा के भी रोंगटे खड़े हो चले,मौसम कि मार ही कुछ ऐसी थी ऊपर से अन्ना जैसा मजबूत मर्द सामने खड़ा था.
अन्ना कि हालत देख रेखा कि हसीं छूट गई.
"वो...वो...मै......" अन्ना शर्मिंदा हो चला
"कक्क..कोई बात नहीं अंन्ना जी " रेखा ने सहज़ ही कहा.
कि तभी."ताड़क.....तड़...तड़ाक.....चिरररर.....करती जोरदार बिजली कड़की,एक धमकेदार उजाला हुआ और चारो तरफ अंधेरा छा गया.
बिजली कि गर्जना के साथ ही "आआआहहहहहब्ब......आउच....हे भगवान " रेखा भी चीख पड़ी.
आनन फानन ही सामने खड़े अन्ना से जा लिपटी,ऐसी लिपटी जैसे किसी पेड़ से बेल.
"हुम्म्मफ़्फ़्फ़...हमफ....हमफ्फ...रेखा कि सांसे उखाड़ रही थी, आंखे बंद किये वो अन्ना से चिपकी रही
अन्ना तो मानो जैसे कही खो गया था,उसको सांस ही नहीं आ रही थी,उसका जिस्म पहली बार किसी स्त्री के सम्पर्क मे था, वो भी कामुक गद्दाराई औरत का भरा हुआ जिस्म.
"मममम......मुझे बिजली से डर लगता है " रेखा आंख बंद किये ही बड़बड़ा रही थी, उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी आंख खोलने कि..
अन्ना के सीने मे दो गद्देदार तीर घुसे हुए थे वो तो घायल था कामवासना मे घायल,स्त्री के मदहोश महक से घायल.
नतीजा तुरंत ही सामने आया,अन्ना कि लुंगी मे एक उभार पनप गया,जो कुछ टटोल रहा था,
ये उभार कुछ ज्यादा ही बढ़ा होता चला गया,और रेखा कि जांघो के बीच दस्तक देने लगा.
"ओह..आउचम..ये...ये....." रेखा तुरंत पीछे हो हट गई,उसकी आंखे खुल गई.
चारो तरफ अंधेरा था उसकी निगाहेँ नीचे को गई लेकिन अँधेरे मे सिर्फ हलका सा उठाव ही दिखा,रेखा शादीशुदा थी समझते देर ना लगी कि वो क्या है.
"वो...वो.....वो...माफ़ करना रेखा जी....मैंन पहली बार किसी स्त्री को छुवा, ना जाने ये....ये कैसे हो गया " अन्ना ने घबराते हुए दिल कि बात कह दि वो शर्मिंदा था
"कककक.....कोई बात नहीं समझ सकती हूँ " रेखा सिर्फ मुस्कुरा दि, उसका पल्लू अन्ना के जिस्म मे कही फस गया था परन्तु इस बार उसने अपना पल्लू उठाने कि बिल्कुल भी कोशिश नहीं कि.
"अन्ना जी मुझे अँधेरे से डर लगता है,यदि आपको दिक्कत ना ही तो थोड़ी देर रुक जाते " रेखा ने बहुत ही मासूमियत से कहाँ
अब कोई गधा ही होगा जो ऐसे मासूम आग्रह वो भी एक कामुक औरत के मुँह से सुन के नामंजूर कर दे.
"जी....जी.....ठीक...ठीक है " मौसम अपना रंग दिखा रहा था,ठंडी हवा प्यासे लोगो कि प्यास और भड़का रही थी.
मौसम ठंडा था लेकिन अन्ना और रेखा का जिस्म गरम थे बहुत गरम
अन्ना ने धड़कते दिल के साथ कमरे मे कदम रख दिया, चररररर.....करता दरवाजा अपनी चौखट से जा लगा.
तूफान साय साय करता उसके दरवाजे को धक्का देता लेकिन उसकी कोशिश बेकार थी,रात भर दरवाजा नहीं खुला.
सुबह का सूरज निकल आया था,चारो तरफ शांति थी, कल रात का तूफान कई जिंदगीयों से हो के गुजरा था.
होटल मयूर
एक कार दरवाजे पे आ के रुकी
"साब जी....साब जी....कहाँ रह गए थे आप लोग? ठीक तो है ना आप सब?" बहादुर भागता हुआ कार के पास पंहुचा, उसके चेहरे पे चिंता कि साफ लकीरें थी
"अरे बहादुर फ़िक्र कि बात नहीं है सब ठीक है,बस कल तूफान मे उधर ही रुक गए थे " मंगेश कार से उतर गया
पीछे पीछे राजेश और अनुश्री भी उतर गए.
"माँ चिंता कर रही होंगी भैया " राजेश तेज़ कदमो से अपने कमरे कि और बढ़ चला.
"चिंता कि बात नहीं है सर रेखा जी को मैंने कल रात ही सूचित कर दिया था" पीछे से आई अन्ना कि आवाज़ ने सभी के ध्यान खिंचा.
"थैंक यू अन्ना जी अपने काफ़ी मदद कि " मंगेश और राजेश ने साथ ही धन्यवाद किया.
तीनो ही कमरे कि और बढ़ चले. आगे राजेश भागा जा राहा था पीछे अनुश्री धीरेकदमो से चल रही थी.
"अरे अनु क्या हुआ पैर मे चोट लगी है क्या? ऐसे लचक के क्यों चल रही हो " पीछे आते मंगेश कि नजर अनुश्री कि चल पे पड़ी जो कि सामान्य से अलग जान पड़ रही थी.
"वो...वो....उफ्फ्फ...कक्क...कुछ नहीं कल रेत मे पैर धसने से थोड़ी लचक आ गई है " अनुश्री साफ साफ झूठ बोल गई.
सर झुकाये चलती चली गई "उफ्फ्फ....ये जलन क्यों हो रही है " अनुश्री जैसे ही कदम आगे बढ़ाती उसके जांघो के बीच का हिस्सा आपस मे रगड़ खा जाता.
एक हल्की सी दर्द कि लहर से उसका बदन हिल जाता.
इस दर्द मे कही ना कही कुछ सुकून भी था..
इस दर्द से उसकी गांड कुछ ज्यादा लचक रही थी.
पहली बार अनुश्री कि चुत मे कुछ मोटा मुसल घुसा था,भले वो अदरक कूटने का दस्ता ही क्यों ना हो, बरसो से चिपकी चुत कि दीवारे हिल गई थी मांगीलाल के हमले से.
दर्द के बावजूद अनुश्री के चेहरे पे मुस्कान थी.
दोनों ही कमरे मे दाखिल हो गए थे.
रूम नंबर 103
राजेश भी लगभग भागता हुआ कमरे मे दाखिल हुआ,उसके गेट पे हाथ रखते ही चर्चारता दरवाजा खुल गया.
"माँ...माँ......राजेश रेखा को पुकारता अंदर दाखिल हो चला,जैसे ही अंदर आया एक कैसेली उत्तेजित अजीब गंध से उसकी नाक भर गई..
"ये...ये....गंध कैसी है उसके दिन भी ऐसी ही आ रही थी.
सामने बिस्तर पे रेखा सीधी पीठ के बल चीत साड़ी मे लिपटी लेटी थी. स्तन सिर्फ पतली सी साड़ी से धके थे, जाँघे पूरी खुली हुई अपनी चमक बिखेर रही थी.
"माँ...माँ...माँ....मै आ गया" राजेश कि आवाज़ जैसे ही रेखा के कानो मे पड़ी वो सकपका के उठ बैठी.
उठने से रहा सहा पर्दा भी स्तन से सरक गया,कमरे मे अँधेरे कि वजह से राजेश का धयान उधर गया ही नहीं,रेखा तो जैसे सुध बुध ही नहीं थी.
"राजेश....बेटा राजेश कहाँ रह गया था " तुरंत बिस्तर से उठ राजेश को गले लगा लिया.
रेखा के दिल मे सिर्फ ममता थी,अपने बच्चे के लिए भर भर के प्यार था.
"ठीक हूँ मै माँ " राजेश ने भी अपनी माँ को आगोश मे भर लिया परन्तु आज कुछ नया था.
कुछ तो था...जो अलग था.
राजेश को अपनी छाती पे कुछ गद्देदार सा अहसास हो रहा था जैसे उसकी माँ और उसके बीच कोई कपड़ा ही ना हो.
रेखा भी जोश ममता मे गले तो जा लगी परन्तु उसे भी इसी बात का अहसास हुआ,जैसे हवा सीधा उसके नंगे बदन को छू रही है.
इस बात का अहसास होते ही उसके सामने कल रात का वाक्य घूम गया,कल पूरी रात वो अन्ना के साथ इसी बिस्तर पे थी.
रेखा के ऊपर जैसे बिजली गिरी गई हो,उसकी चोरी पकड़ी गई हो,क्या जवाब देगी अपने बेटे को.
वो अर्धनग्न क्यों है?
माँ बेटे दोनों के चेहरे शर्म से लाल हो चले,
"वो...वो...बेटा मै अकेली...." रेखा समझ चुकी थी कि सच बता देने मे ही समझदारी है.
"कोई बात नहीं माँ....आप कमरे मे अकेली थी तो कपड़ो का ध्यान नहीं रह पाता " राजेश ऐसा बोल के अलग होना चाहा.
रेखा का दिमाग़ तो अभी भी साय साय कर रहा था,किस कदर साफ साफ बच निकली थी,वो अपने हाथो अपनी ही क़ब्र खोदने चली थी.
रेखा को डर था कि वो पीछे हटी और उसके खूबसूरत नग्न बूब्स अपने सगे बेटे के ही सामने आ जायेंगे.
ये सोचते ही उसका दिल फिर से ढाड़ ढाड़ कर बज उठा
"कोई बात नहीं माँ होता है" बोलता हुआ राजेश अलग हो के तुरंत पलट गया और बाथरूम मे जा घुसा.
रेखा हक्की बक्की वही आवक सी मुँह बाये खड़ी रह गई "कितना संस्कारी है मेरा बेटा " रेखा मुस्कुरा दि और अपना ब्लाउज टटोलने लगी.
उसके चेहरे एक खुशी से जगमगा रहा था.
अंदर बाथरूम मे "माँ वाकई जवान है अभी अन्ना ठीक ही कहता है, माँ तो अभी भी शादी लायक है और कहाँ वो मेरी शादीशुदा के पीछे पड़ी रहती है हेहेहेहे...." राजेश मुस्कुरा दिया
कितना भोला था राजेश समझ के भी ना समझा कि औरत क्या चीज होती है,
वो कैसेली गंध प्यार कि गंध है.
रूम नंबर 102
"सॉरी जान मैंने तुम्हारा साथ छोड़ दिया था " मंगेश अंदर आते ही अनुश्री को अपने आगोश मे भर लिया
"कोई बात नहीं मंगेश हो जाता है कभी कभी " अनुश्री ने सहज़ ही जवाब दिया आजन्हसके लहजे मे कोई डर फ़िक्र नहीं थी,ना ही कोई शिकायत.
एक ही रात मे काफ़ी बदल गई थी अनुश्री,या यूँ कहिए समय ने उसे आत्मनिर्भर बना दिया,आत्मविश्वस बढ़ा दिया.
"मै फ्रेश हो के आती हूँ " मंगेश से अलग ही अनुश्री बाथरूम कि ओर चल दि पीछे चररर करता दरवाजा बंद हो गया.
सामने ही शीशे मे अनुश्री का अक्स दमक रहा था,पहले से कही ज्यादा जवान और कामुक जिस्म.
अनुश्री झट से साड़ी ऊपर किये वही बाथरूम के फर्श पे बैठ गई, "पप्पीस्स्स्स.......पिस्स्स.....आअह्ह्हब...आउच....एक तीखी जलन के साथ अनुश्री का पेशाब फर्श भीगाने लगा, जैसे कोई जलता लावा उसकी चुत से बहार निकला हो.
"आअह्ह्हम......अब सुकून मिला,अनुश्री कि नजर नीचे को गई फर्श पे कुछ दाने दाने से भी पेशाब के साथ बहार गिर पड़े थे.
"ये....ये....क्या अनुश्री ने कोतुहाल मे वो कुछ टुकड़े अपनी ऊँगली से उठा के मसले,एक भीनी भीनी सी अदरक के महक उसकी नाक मे घुल गई.
अनुश्री वो अदरक कि महक सूंघ के अंदर तन सिहर गई,उसकी योनि कि दीवारे आपस मे सिकुड़ के रह गई,एक दम से शीशे मे वही दृश्य दौड़ पडा "तुम कितनी सुन्दर हो बिटिया रानी "
"अनु बेटा देखो तुम्हारे जिस्म ने एक नपुंसक आदमी को भी मर्द बना दिया "
"आअह्ह्हब.......नहीं...." अनुश्री धम से वही फर्श पे जा बैठी कल रात का दर्द उसकी जांघो के बीच जीवित हो चला..
अदरक कि वजह से उसकी चुत जल रही थी, पेशाब के साथ साथ जलन भी कम.होती चली गई..जैसे जैसे जलन कम हुई अनुश्री का चेहरा मुस्कान से भर उठा.
फववारा एक बार फिर अनुश्री के कामुक गर्म जिस्म को ठंडा करने कि नाकाम कोशिश करने लगा.
अभी अनुश्री नहा धो के बहार आई ही थी कि
ट्रिन ट्रिन ट्रिन......अनुश्री का मोबाइल बज उठा.
"हेलो.....हाँ आंटी " सामने से रेखा का फ़ोन था.
"बेटा आज कुछ काम ना हो तो थोड़ा मार्किट हो आये,तुम्हारा भी मन लग जायेगा राजेश ने बताया कल रात तुम ले क्या बीती " रेखा ने दिलाशा ही देना चाहा और सबसे अच्छा तरीका शॉपिंग ही होता है ये बात भाला एक औरत से अच्छा कौन समझ सकता है.
"ठीक है आंटी लंच के बाद मिलते है" अनुश्री ने फ़ोन रख दिया
"मंगेश चलो ना आज मार्किट चलते है रेखा आंटी को भी कुछ सामान लेना है " अनुश्री चाहकते हुए बोली.
मंगेश तो ओंधे मुँह बिस्तर पे पडा हुआ था "क्या अनु कल इतना कुछ होने के बावजूद तुम थकी नहीं क्या? किस मिट्टी कि बनी हो?"
"आप ना अलसी हो गए है, आओ तो यहाँ मस्त थे मै थकी ना वहाँ टापू पे " धत....अनुश्री ने ये बात बोलते ही तुरंत दांतो तले अपनी जीभ को दबा लिया.
"क्या ऐसा कौनसा पहाड़ खिड़की दिया वहाँ टापू पे तुमने?" मंगेश वैसे ही आलसए हुए बोला जैसे उसे कोई मतलब ही नहीं था.
"वो...वो...कुछ नहीं बस चिंता मे थी" अनुश्री संभल गई.
"अब रेखा आंटी जा ही रही है तो चली जाओ ना वैसे भी औरतों कि खरीदारी मे हमारा क्या काम "
मंगेश ने पल्ला झाड दिया
"हुँह....तुम नहीं सुधरोगे " अनुश्री मुस्कुरा दि और कांच के सामने जा खड़ी हुई
अपने सौंदर्य को ओर भी ज्यादा निखारने के लिए.
"अच्छा सुनो जान " मंगेश बिस्तर मे धसा हुआ ही बोला
"हम्म्म्म...बोलो " अनुश्री कान कि बलिया पहन रही थी
"वो मै सच मे ठाक गया हूँ कल रात कि गहमा गहमी से तो आते वक़्त बाजार से एक आधा wishky कि बोत्तल भी लेते आना.
मंगेश कि बात सुन अनुश्री तुरंत पलट गई "क्या.....मै...कैसे?
"अरे मै कौनसा रोज़ पिता हूँ वो तो सच मे बदन मे दर्द है थोड़ा आराम मिल जायेगा,और ये टूरिस्ट प्लेस है कोई माइंड नहीं करेगा जा के ले भी आओगी तो " मंगेश ने दलील दि.
"ठीक है ठीक है....तुम क्या समझते हो इतना भी नहीं कर सकती मै?, ले आउंगी "
"ये हुई ना बात तुम सबसे अच्छी पत्नी हो दुनिया कि " मंगेश ने दाँत निपोर दिये.
"अब ज्यादा मस्का मत लगाओ " अनुश्री भी मुस्कुरा दि.
शाम 4 बजे
अनुश्री साड़ी पहन तैयार थी मार्किट जाने के लिए.
"अरे आज क्या किसी को मरना है क्या " मंगेश ने छेड़ते हुए कहाँ
"क्या मंगेश हमेशा तो यही पहनती हूँ "
अनुश्री स्लीव लेस्स ब्लाउज,साड़ी मे किसी हुस्न परी से कम नहीं लग रही थी.
नाभि से 2इंच नीचे बँधी साड़ी उसकी पतली कमर को और भी खूबसूरत बना रही थी,माथे पे बिंदी,माथे पे सिंदूर,गले मे लटकता मंगलसूत्र उसके शादीशुदा होने कि साफ चुगली कर रहा था वरना तो किसी को यकीन भी ना होता कि अनुश्री शादीशुदा लड़की है.
"अरे वाह अनुश्री बेटा तुम तो बिल्कुल अप्सरा लग रही हो " अनुश्री के बहार आते ही रेखा भी अपने रूम से बहार आई और सीधा ही अनुश्री पे नजर पड़ी.
"आप भी कोई कम नहीं हो आंटी " वाकई रेखा भी सिंपल साड़ी मे कहर ढा रही थी.
उसका बदन था ही ऐसा कि चाह कर भी छुपा पाना मुश्किल था.
स्तन इतने भरी थे कि कोई भी ब्लाउज उसके भार को संभल नहीं सकता था नतीजा ब्लाउज नीचे को सरक जाता और एक महीन सी गहरी कामुक दरार हमेशा दिखती ही रहती.
"राजेश भैया नहीं चल रहे " अनुश्री ने पर्स सँभालते हुए पूछा.
"नहीं बेटा वो ठाक गया है,और वैसे भी मैंने बहादुर को बोल दिया है वो यहाँ के मार्किट जनता है तो शॉपिंग जल्दी हो जाएगी "
रेखा और अनुश्री सीढ़ी से नीचे उतर के होटल गेट पे पहुचे इतने से ही सफर मे ना जाने कितने लोगो ने मन ही मन उनके हुस्न कि तारीफ कि होंगी.
बहादुर दरवाजे पे ही खड़ा था " चले मैम सोब ?"
ऑटो....ऑटो....
एक ऑटो पास ही आ रुका
अनुश्री रेखा पीछे जा बैठी और बहादुर आगे ड्राइवर के साथ.
ऑटो चल पडा मार्किट कि ओर....
उधर पीछे रसोई घर मे "पिक....पिक....पिक......हेलो
अरे भाई कौन बोल रहा है?"
मिश्रा ने खीझते हुए कहाँ
"मिश्रा बोल रहे हो ना कामगंज वाले " उधर से आवाज़ आई.
"हाँ वही आप...आप.....?" मिश्रा जैसे आवाज़ पहचान गया था.
"हाँ बिटवा हम ही बोल रहे है " एक भरराती सी आवाज़ आई.
"मांगीलाल काका आप इतने दिनों बाद? कहाँ से बोल रहे है" मिश्रा खुशी से चहक रहा था.
"हाँ बिटवा तोहार मांगीलाल काका ही बोल रहे है, सुना था तुम पूरी मे हो तो याद कर लिया " मांगीलाल कि आवाज़ मे खुशी थी अपनेपन कि खुशी.
"क्या काका पूरी मे हो के भी मिलते नहीं हो,आज ही आ जाओ होटल मयूर आज रात मिलते है " टक से फ़ोन कट गया.
"क्या बात है मिश्रा बहुत ख़ुश दिख रहा है?" अब्दुल ने रसोई मे घुसते हुए कहाँ
"हाँ यार बात ही ऐसी है हमारे गांव के मांगीलाल काका है ना जो गांव से भाग गए थे"
"वो वही ना नपुंसक " अब्दुल ने भी याद करते हुए कहा.
"हाँ रे वही....वो पूरी मे ही है आज मिलने आ रहे है"
"ये तो अच्छी बात है काका से मिले जमाना हो गया "अब्दुल भी ख़ुश हुआ आखिर अपने गांव के आदमी से लगाव होना लाजमी है वो भी परदेश मे.
"सुन ऐसा कर जा दो बोत्तल शराब ले आ रात को बैठते है आज " मिश्रा ने अपनी अंटी से पैसे निकाल के दिये.
अब्दुल होटल के बहार निकल मार्किट कि ओर बढ़ चला.
क्या होगा मर्केट मे?
अनुश्री जा रही है शराब कि बोत्तल लेने और अब्दुल कि मंजिल भी वही है और मेरा मानना है शराब हमेशा गड़बड़ करती है..
तो क्या यहाँ भी गड़बड़ होंगी?
बने रहिये कथा जारी है....
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