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मेरी बीवी अनुश्री भाग -25

अपडेट -25


अनुश्री का मन हल्का हो चला था.

उसे अब अपराधी महसूस नहीं हो रहा था,वैसे भी कहते है ना चोर तभी चोर है जब वो पकड़ा जाये.

मन तो हल्का हो चला परन्तु तन मे अभी भी रह रह के झुरझुरी उतपन्न हो रही थी.

अनुश्री टॉयलेट से वापस लौटी ही कि.."पीईई....पूऊऊ....बस ने चलने का सिंग्नल दे दिया.

सभी यात्री बस कि और लौट पड़े, सूरज पूरी तरह डूब चूका था,रात का अंधेरा घहराने लगा था

"टप....टप....करती बारिश कि बुँदे फिर से बरसने लगी थी.

हे भगवान ये आज क्या मौसम बना है,सारा मूड ख़राब कर दिया,कही घूम भी नहीं पाए हम लोग " मंगेश ने अनुश्री का हाथ पकड़ बस कि ओर दौड़ लगा दि.

पीछे राजेश भी कुछ चिप्स वगैरह के पैकेट ले के चढ़ गया था.

बस मे घुसते से ही चिंता कि लकीरो ने वापस से अनुश्री को घेर लिया था

"क्या हुआ जान क्या सोच रही हो? जाओ अपनी जगह पे मंगेश ने अनुश्री को आगे कि तरफ कर खुद सीट पे बैठ गया

अनुश्री अभी भी हक्की बक्की खड़ी थी.

"2घंटे कि है बात है जान फिर तो होटल मे मै और तुम " मंगेश ने मुस्कुराते हुए आंख मार दि

लेकिन अनुश्री के चेहरे पे कोई भाव नहीं आये कहाँ वो अपने पति का गर्म आलिंगन चाहती थी,मंगेश था कि कुछ समझता ही नहीं

अनुश्री सर झुकाये पीछे सीट पे चल दि.

सीट पे पहले से ही दोनों बूढ़े अपनी अपनी जगह पे बैठे थे अनुश्री के लिए बीच कि सीट छोड़ के.

अनुश्री चुपचाप बीच कि सीट पे जा बैठी जैसे कुछ हुआ ही नहीं था,

या फिर उसका दिल इस कदर दुखी था कि उसे कोई मतलब ही नहीं रह गया था इस बात से


बस एक झटके के साथ पूरी कि तरफ चल पड़ी.

2 घंटे का नॉनस्टॉप सफर था, बस मे शांति छा गई थी,यात्री थके होने से अपनी अपनी जगह ऊंघ रहे थे.

परन्तु यहाँ पीछे अनुश्री के दिल मे खलबली मची हुई थी "क्या वाकई मंगेश मुझ से प्यार नहीं करता? उसे मेरा स्पर्श,मेरे साथ रहना अच्छा नहीं लगता?"

"लगता तो क्यों मुझे अकेला छोड़ता, मेरे मन कि बात सुनता" अनुश्री ने अपने सवाल का जवाब खुद ही दे दिया था

और इंसान यही भूल करता है जब वो सवाल का जवाब खुद से ही दे दे अनुश्री भी यही गलती कर रही थी.

"क्या हुआ बेटी हमसे नाराज हो क्या " अनुश्री चाटर्जी कि आवाज़ से चौंक गई

उसे होश आया कि वो वापस से उन दो बूढ़ो के बीच ही आ बैठी है.

"बोलो ना अनु बेटा " चाटर्जी ने वापस से अपना हाथ अनुश्री कि जाँघ पे रख दिया.

"नननन..।नहीं....." अनुश्री को उसका हाथ हटाना चाहिए था,उसे मना करना चाहिए था

लेकिन ना जाने क्यों किस प्रभाव मे सिर्फ नहीं बोल के रह गई.

अनुश्री का जवाब पाते ही दोनों बूढ़ो के हौसले बढ़ गए.

अनुश्री अपने पति से खफा थी,नाराज थी लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि वो दूसरे मर्द के पास चली जाये, इतनी सी बात ये बूढ़े उसे नहीं सोचने दे रहे थे.

अनुश्री को गर्माहट चाहिए थी जो इन दो बूढ़ो मे भरी पड़ी थी,अनुश्री कि जाँघ पे हाथ पड़ते ही एक गरम अहसास ने उसके बदन को आपने आगोश मे लिया.

थोड़ी देर पहले किये गए वादे इरादे सब रेत का महल ही साबित हुए.


कि तभी बस कि लाइट बंद हो गई,बस भुवनेश्वर से बहार hiway पर दौड़ रही थी,

बस मे सिर्फ एक मधुर संगीत गूंज रहा था जो थके हुए यात्रियों को नींद कि तरफ झुका दे रहा था.

परन्तु ये संगीत अनुश्री कि मन मस्तिष्क मे हलचल पैदा कर रहा था.

"हमने तो तुम्हरा रसगुल्ला चूस लिया अनु,तुम केला नहीं खाओगी?" मुखर्जी ने ज्यादा देर ना करते हुए मुद्दे कि बात कह ही दि

अनुश्री सकपका के रह गई "ना.....नननन....हाँ "

"क्या हाँ और ना " चाटर्जी ने अनुश्री कि जाँघ पे मजबूती से हाथ दबा दिया.

"आउच.....एक तेज़ दर्द कि लहर जाँघ से सीधा चुत के दरवाजे तक दस्तक दे आई.

"दिन मे अच्छा लगा था ना रसगुल्ले चूसवा है " मुखर्जी अनुश्री से जा चिपका

अन्देरी बस मे किसी का ध्यान उस तरफ नहीं था,दोनों बूढ़े बेफिक्र अपने मन कि कर रहे थे,उन्हें विश्वास हो चला था कि थोड़ी मेहनत से कुँवा खोदा जा सकता है.

रह रह के बहार से आती रौशनी अनुश्री के सुन्दर बदन को चमका देती,सिलेंवलेस्स top आउट टाइट जीन्स मे बैठी अनुश्री किसी काममूर्ति कि तरह बस कि शोभा बड़ा रही थी और ये दो बंगाली बूढ़े किसी उपासक कि तरह भोग लगाने कि फिराक मे थे.

लेकिन अनुश्री के संस्कार उसे आगे बढ़ने नहीं दे रहे थे.

"हमारा केला देखोगी अनु " चाटर्जी ने धोती के ऊपर से ही लंड को मसल दिया

अँधेरे कि वजह से साफ तो नहीं दिख रहा था परन्तु हाथो कि हलचल ने अनुश्री को साफ अहसास दिला दिया था कि चाटर्जी क्या कर रहा है.

उसके मन मे ये ख्याल आते ही दिल धक से बैठ गया,थोड़ी देर पहले ही उसकी आँखों के सामने अब्दुल के लंड का उभार था जिसे वो छूने भी जा रही थी.

कामवासना मे भरी अनुश्री कि कमजोरी बनती जा रही थी मर्दो का लंड.

"ना....नहीं  मुझे कुछ नहीं देखना " ना जाने कहाँ से अनुश्री ने हिम्मत बटोर ली और पहली बार इस यात्रा मे उसने मना किया.

दोनों बूढ़े अनुश्री के जवाब से दंग रह गए जहाँ उन्हें अपना काम आसन लग रहा था,अनुश्री कि एक ना ने उनके इरादों पे पानी फेर दिया.

अनुश्री शायद इसलिए भी मना कर पाई क्यूंकि उसने लंड देखा ही नहीं था


"अरे अनु मना नहीं करते, आखिर जवान हो,सुन्दर हो अब केला नहीं खाओगी तो कब खाओगी " चाटर्जी ने बुरी तरह से अपने लंड को धोती के ऊपर से ही रगड़ दिया

"और वैसे भी हमारे केले जैसे केले तुमने देखे भी नहीं होंगे खाने कि बात तो दूर " मुखर्जी ने अनुश्री के कंधे मे हाथ ऊपर से नीचे कि तरह चला दिया

दोनों ही अनुश्री को फिर से गरम करने कि कोशिश कर रहे थे

"ऐसे कैसे है इनके, सभी के तो एक जैसे होते है,...लेकिन...लेकिन अब्दुल मिश्रा के तो एक जैसे नहीं थे " अनुश्री होने ही विचार मे घूम थी

जैसे ही लंड का ख्याल आया अब्दुल और मिश्रा के लंड उसकी आँखों के सामने झूल गए

"आअह्ह्हब......" ना चाहते हुए भी उसके बदन और मुँह से गर्मी निकल गई.

"लो अनु तुम खुद देख लो झूठ थोड़ी ना बोल रहे है " चाटर्जी ने इस बार गजब का साहस दिखाते हुए अनुश्री के हाथ को पकड़ अपनी जांघो के बीच लंड के उभार पर रख दिया


"इसससस....।नहीं..." अनुश्री ने तुरंत हाथ पीछे खिंच लिया उसका दिल धाड़ धाड़ करने लगा.

सांसे उखाड़ने लगी थी.

उसकी हथेली एक लम्बी सी चीज जा टकराई थी एक दम कड़क.

"क्या हुआ अनु डर गई छूने से ही,चल ये मेरा केला देख ले " मुखर्जी ने दूसरा हाथ पकड़ के अपनी जांघो के बीच दबा दिया

"नननन....नहीं....छोड़ो " अनुश्री अपने हाथ को पीछे खींचने लगी

परन्तु मुखर्जी ने अनुश्री के हाथ ही ओर कस के अपने लंड के उभार पे दबा दिया.

अनुश्री अपनी हथेली पे साफ साफ उस बड़े मोटे लंड के आकर को महसूस कर रही थी.

ये उसके जीवन मे पहली बार ऐसा मौका था कि उसकी किसी पराये मर्द के लंड को छुआ था,

अभी तक वो अब्दुल और मिश्रा के लंड को देखती ही आई थी,आज वो इस कद्र कामविभोर हो चुकी थी कि बस मे अब्दुल के लंड को महसूस करने के लिए पकडेने जा रही थी.

परन्तु मंगेश के रहते वो इस पाप से बच गई थी,लेकिन वासना को कौन टाल सकता है.

अनुश्री के बदन मे चिंगारीया सी उठने लगी,उसका दिन पसीजने लगा,दिल tshirt फाड़ के बहार आने को आतुर हो गया.

दोनों बूढ़े अनुभवी थे अनुश्री कि हालत देख उन्हें उसकी ना मे हाँ ही नजर आई.

"मेरा भी पकड़ ना अनु " चाटर्जी ने वापस से अनुश्री के हाथ को पकड़ अपने लंड के उभार पे रख दिया.

"आअह्ह्ह.....नहीं.....हनन...नहीं....अंकल छोडो " अनुश्री कसमसाने लगी थी चाहती तो झटका मार के हाथ छुड़ा लेती या फिर शायद वाकई उन बूढ़ो कि पकड़ मजबूत थी.

"ये....ये.....गलत है....इससससस.....नहीं.." अनुश्री लगातार अपनी हथेली को छुड़ाने कि कोशिश कर रही थी इसी कोशिश मे दोनों के उभार उसकी मुट्ठी मे आ के फिसल जाते

जैसे कोई मछली हो जो हाथ से बार बार फिसल जाती है.

"कुछ गलत नहीं है अनु,रूम जैसी जवान खूबसूरत बदन वाली स्त्री को ये ही शोभा देता है, जवानी को अभी नहीं जियोगी तो कब जियोगी " चाटर्जी ने वापस से अपना कामज्ञान शुरू कर दिया था.ये वही काम ज्ञान था जिसे सुन अनुश्री बार बार बहक जा रही थी.

"वो देख तेरा पति तो आगे बैठा है,उसे जवानी कि फ़िक्र ही नहीं है," मुखर्जी अनुश्री के मन से खेल रहा था.

अनुश्री अपने हाथ मे दो अलग अलग प्रकार के मोटे उभार महसूस कर रही थी.

"ये....मै क्या कर रही हू? ठीक तो कह रहे है अंकल मंगेश मुझसे प्यार करता तो क्या अकेला छोड़ता " अनुश्री खुद के विचार मे फिर से दफ़न होती जा रही थी.

उसका प्रतिरोध कम होता जा रहा था लगभग ना के बराबर.

अब ये क्यों कम हुआ कहना मुश्किल था ये उसकी कामवासना थी या मंगेश के व्यवहार.

"कककक....कोई देख लेगा " लाख प्रतिरोध सोच विचार के बाद अनुश्री के मुँह से बस इतना ही निकल पाया.

दोनों बूढ़ो के चेहरे पे कामुक मुस्कान तैर गई, मतलब अनुश्री को सिर्फ अपनी चोरी पकडे जाने का डर था.

"कोई नहीं देखेगा,अंधेरा है बस मे तू तो बस केला खा हमारा " चाटर्जी ने अनुश्री कि हथेली से अपना हाथ हटा लिया था.

"वैसे भी रिश्क मे जवानी लुटाने का मजा अलग है " मुखर्जी ने भी उसका हाथ छोड़ दिया.

अनुश्री को वाकई मे इस छीटा कसी मे आनंद आ रहा था, उसके हाथ बस के झटको के साथ खुद बा खुद दोनों के उभरो को सहला रहे थे.

इस चोरी मे इतना मजा है उसे पता नहीं था.

"मजा आ रहा है ना अनु " चाटर्जी के हाथ नर अनुश्री के दाये स्तन को एक बार फिर से दबोच लिया


"आआहहहह.....इसससस.....नननन....नहीं " अनुश्री कि सिसकारी हाँ कि थू लेकिन जबान से ना निकला.

उसने चाटर्जी के हाथ को थमने कि कोई कोशिश भी नहीं कि.

"क्या ना अनु....देख तू कैसे हमारे लोड़ो को पकड़ के बैठी है " मुखर्जी ने भू मौके को भुनाते हुए बाये स्तन पे कब्ज़ा जमा लिया

जैसे ही अनुश्री के कान मे ये शब्द बड़े उसका ध्यान होने हाथ पे गया,उसके हाथ पे कोई वजन नहीं था उसे पता ही नहीं पड़ा वो कब खुद से ही उनके उभरो को सहला रही थी.

इस बात का आभास होते ही अनुश्री ने अपने हाथ को वापस खींचना चाहा हू था कि...."आअह्ह्हब्भी...

अंकल..इसससससस......धीरे " दोनों बूढ़ो ने कस के उसके स्तन को दबा दिया

परिणाम अनुश्री कि मुट्ठी उनके उभरो पे कसती चली गई.

अनुश्री का सर पीछे सीट के सिरहाने पे जा गिरा..स्तन से होती दर्द और वासना कि लकीर ने सीधा हमला उसकी जांघो के बीच बोल दिया.

उसकी जाँघे आपस मे भींच गई, उसका हलक हाथ मे महसूस होते उभार से हू सुख गया था.

उसके मन मे उन उभारो को देखने कि प्रबल इच्छा जाग्रत हो गई,

लेकिन खुद कैसे कह दे कि मुझे तुम्हारे लंड देखने है, संस्कार....मर्यादा ने उसे जकड़ा हुआ था.

हालांकि उसका बदन इन ढाकोसलो,फालतू के संस्कारो को नहीं मानता था, इसका सबूत उसकी मुट्ठी मे कैद वो बड़े लंड के उभार थे जिन्हे अनुश्री दबा दबा के परख रही थी.

उभार दोनों बूढ़े उसके स्तन को दबाते तो जवाब मे नीचे अनुश्री उन दोनों के लंड को दबा देती.

एक जंग शुरू हो गई थी, ऐसी जंग जिसमे कोई हार जीत नहीं होती,होता है तो सिर्फ सुकून मजा संतुष्टी.

लेकिन यहाँ अनुश्री दो अनुभवी योद्धाओ के सामने अकेली थी,उनके पास अनुभव था तो अनुश्री के पास जवानी का जोश.

जंग लगातार चल रही थी,तीनो के मुँह से रह रह के सिसकारिया निकल पड़ रही थी.

बूढ़ो के लंड इतने टाइट ही गए थे कि दर्द देने लगे थे, दोनों ही अनुश्री के सामने हथियार डालने कि कगार पे आ चुके थे.

अनुश्री का भी यही हाल था उसकी चुत ने इतना पानी बहाया था कि रणभूमि पूरी तरह से गीली हो गई थी, जबकि अभी तो कोई रणभूमि मे उतरा भी नहीं था


"आअह्ह्हब्ब......अंकल जोर से " पहली बार अनुश्री ने आपने बदन कि बात जबान पे लाइ थी. वो अपना सर इधर उधर पटके जा रही थी,उसके हथेली का दबाव दोनों बूढ़ो के लंड पे बढ़ता ही जा रहा था.

अब उन दोनों बूढ़ो को भी अपनी गलती का अहसास हो चला था,उन्होंने सोती हुई कामवसाना से भरी स्त्री को जगा दिया था.

"आआहहहहह......अनु आराम से ऐसे टी तुम उखाड़ ही दोगी हमारे लंड फिर चुसोगी क्या?" चाटर्जी ने मौके कि नजाकत को समझते हुए अनुश्री के हाथो को थम लिया.

अनुश्री इस कद्र उनके लंडो को दबोच बैठी थी कि थोड़ी सी भी देर करता चाटर्जी तो शायद अनुश्री उन दोनों के लंड को धोती के ऊपर से ही उखाड़ देती.

"आआआहहहह.....हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ग्ग....उमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....उफ्फ्फ्फ़..." अनुश्री के कान मे "कैसे चुसोगी "शब्द पड़ते ही वो एकदम से थम गई.

उसको होने कानो पे विश्वास नहीं हुआ जो उसने अभी सुना.

उसकी सांसे किसी तूफान कि तरह चल रही थी,उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई ज्वालामुखी फटते फटते रह गया हो.

उसके बदन पसीने से लथपथ हो चला,नजर उठा उसने दोनों बूढ़ो को बारी बारी देखा वो दोनों भी हांफ रहे थे, दोनों कि आँखों मे सुकून था जैसे अभी अभी जान बचा के लौटे हो.

लेकिन अनुश्री कि आँखों मे सिर्फ और सिर्फ कामुकता थी, एक अजीब सी कसमकास थी, उसे किसी चीज कि चाह थी लेकिन कैसे कहे कि क्या चाहिए?

"चुसोगी ना हमारा लंड अनु." चाटर्जी के कथन मे आग्रह के साथ हक़ था जैसे उसे अच्छे से पता हो को अनुश्री मना नहीं कर पायेगी.

"मममम.....मै...नननन...नहीं " अनुश्री बुरी तरह घबरा गई थी उसने सोचा ही नहीं था कि बात इतनी आगे पहुंच जाएगी वो तो सिर्फ अपने बदन कि कामुकता का आनंद ले रही थी.

ऊपर से उसने सीधा शब्द लंड चूसना सुना था "हे भगवान ये क्या कह रहे है ये लोग "

अनुश्री के इंकार ने एक पल को दोनों बूढ़ो के होसलो को पस्त कर दिया,उन्ह्र ऐसे जवाब कि कतई उम्मीद नहीं थी

"क्यों क्या हुआ अच्छा नहीं लगा? ये जवान जिस्म किस काम का फिर " मुखर्जी लगातार अनुश्री को उकसा देता उसके जवान जिस्म को कुरेदने लगता.

अनुश्री जैसे कही खो गई थी उसे याद आया कि शादी के कुछ वक़्त बाद एक या दो बार उसने मंगेश के लंड को चूसा था वो भी मंगेश के बहुत जिद्द करने पे,उसे ये काम सबसे घिनोना लगता था.

अनुश्री अपने निर्णय पे कायम थी,वो अब इस से आगे बढ़ना अपने संस्कार के खिलाफ समझने लगी,एक पढ़े लिखें घर कि अमीर बहु कैसे कह दे कि उसे लंड चूसना है, "नहीं कभी नहीं "

अनुश्री कि गर्दन अपने आप ही ना मे हिल गई


दोनों बूढ़ो को अपनी आग बुझते दिख रही थी,ना जाने कैसे अनुश्री ने खुद को संभाल लिया था.

"अच्छा चलो देख तो एक बार " अनुश्री अभी ना ही करती कि चाटर्जी ने अपनी धोती के आगे का हिस्सा एक दम से खोल दिया.

अनुश्री कि आंखे चौड़ी होती चली गई,उसकी सांस अटक गई वो थूक को गटक लेना चाहती थी परन्तु गला इस कद्र सुख गया था कि ये संभव नहीं था.

"ये.....ये....क्या है?"अनुश्री सिर्फ इतना ही बोल पाई उसकी आँखों के सामने एक लम्बा सा काला लंड बिल्कुल सीधा खड़ा था

आज जुन्दगी मे ये तीसरा लंड था जो वो देख रही थी, चाटर्जी के लंड पे नजर पड़ते है उसका दिल फिर से धाड़ धाड़ कर चलने लगा, उसे जिंदगी मे एक के बाद एक झटके लग रहे थे.

उसका बदन यही तो चाहता था तभी तो वो काम विभोर हो अब्दुल के लंड को देखने चली थी परन्तु उसे तो बिन मांगे ही सबकुछ मिल रहा था.

"मेरा भी देख ले अनु,तेरी तो इतने मे ही आंखे चौड़ी हो गई " मुखर्जी ने भी अपनी धोती को ओरे हटा दिया


"इईई.....ससससस......अनुश्री कि तो घिघी ही बंध गई,हालांकि अंधरे कि वजह से साफ साफ कुछ दिझ नहीं रहा था लेकिन जैसे ही बहार से रौशनी पड़ती वैसे ही एक मोती सी बेहद मोटी सी आकृति चमक उठती.

अनुश्री विचार शून्य किसी पागल कि तरह गर्दन घुमाये कभी चाटर्जी के लंड को देखती तो कभी मुखर्जी के लंड को

इस चीज का परिणाम भी मिला,

अनुश्री दोनों लंड मे अंतर खोजने मे सफल हो गई थी जहाँ चाटर्जी का लंड काला,खूब लम्बा था वही मुखर्जी का लंड हद से ज्यादा मोटा था.

अनुश्री का पूरा का पूरा बदन मचल उठा उसके हाथ कांप उठे,बदन कहता पकड़ ले यही मौका है,मन कहता नहीं नहीं....पाप है.

"तो फिर ये जवानी किस काम कि,पकड़ के देख अनु " एक दम से चाटर्जी कि आवाज़ ने अनुश्री के बदन का साथ दे दिया.

ना जाने कैसे वो अनुश्री कि कसमकास को समझ गया था.

"अअअअअ.....हाँ....हनन....नहीं...ंन्न..." अनुश्री क्या चाहती थी उसे खुद समझ नहीं आ रहा था.

कि तभी दोनों बूढ़ो ने अनुश्री कि हथेली को पकड़ अपने अपने लंड पे रख दिया


"आआहहहहहहह......अनु.

"इसससससस......उउउफ्फ्फ्फ़....अंकल "

तीनो के मुख से एक साथ काम भरी सिसकारी निकल गई.

अनुश्री को तो ऐसे लगा जैसे किसी गर्म लोहे कि रोड उसके हाथ मे थमा दि हो.


वही हाल दोनों बूढ़ो का भी था अनुश्री के पसीने से भीगे ठन्डे हाथ उनके लंड पे ऐसे पड़े जैसे किसी ने गर्म तवे पर पानी कि छिंटे मार दिये हो..

अनुश्री चाह कर भी उस गर्म अहसास को रोक ना पाई,उसकी जांघो के बीच कैद चुत ने एक बार फिर गर्म पानी फेंक दिया,

उसे साफ एक गर्म और चिपचिपी चीज का अहसास हुआ,ये अहसास ही तो अनोखा था यही तो चाहिए था उसे,लेकिन मिल कहाँ रहा था दो बूढ़ो से.

"हे भगवान इस उम्र मे भी इन लोगो के पास ऐसे लंड है " अनुश्री ना चाहते हुए भी अपने पति के लंड को याद करने लगी.

उसकी नजर बारी बारी दोनों के लंड पे घूम जा रही थी.

अभी ये कम ही था कि दोनों बूढ़ो ने उसकी हथेली को जकड लिया और धीरे से नीचे सरका दिया.

दोनों के लंड ने अपने सबसे खूबसूरत चीज का प्रदर्शन कर दिया,लंड कि चमड़ी नीचे होते ही गुलाबी सुपडे चमक उठे.

बस यही थी कमजोरी अनुश्री कि वो एक तक उसी चीज को देखती रह गई चिकने गुलाबी मुलायम.

ऊपर से एक कैसेली उत्तेजक कामुक गंध अनुश्री के नाथूनो से आ टकराई

"ससससन्नन्नफ्फफ्फ्फ़.......आआहहहहह......" अनुश्री ने जोरदार सांस खिंच ली वो गंध उसके रोम रोम जा समाई.


एक अजीब गंध थी जिसने अनुश्री के रहे सहे हौसले को भी तोड़ दिया

अनुश्री कि सोचने समझने कि शक्ति जवाब दे गई.

"पास से सूंघ ना " चाटर्जी ने अनुश्री के सर के पीछे हाथ रख उसे अपने लंड पे झुकना चाहा.

विचार शून्य अनुश्री टस से मस भी नहीं हुई,अपितु उसे तो कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था कोई देखता तो लगता कि उसके शरीर मे जा  नहीं है एक दुम जड़ सिर्फ दोनों के लंड को बारी बारी देखे जा रही थी,उसे ये भी होश नहीं था कि वो दोनों के लंड को अपने ही हाथो से दबोचे बैठी है.


"पास से सूंघना अनुश्री बेटा, ऐसा मौका जिंदगी मे बार बार नहीं आता " चाटर्जी ने इस बार बेटा बोल के बड़े ही प्यार से अनुश्री के सर के पीछे हाथ रख उसे आगे को धकेल दिया

अनुश्री तो वैसे ही काम मे भरी बेबस थी ऊपर से चाटर्जी के शब्द उसके हौसले कि धज्जिया उड़ा रहे थे.

"सही कहाँ बेटा उसने ये पल जवानी मे बार  बार नहीं आते,जम के चूस,फिर पता नहीं हम मिले या नहीं " मुखर्जी ने इस बार इमोशनली अनुश्री को वासना के कुएँ मे धक्का दे दिया.

अनुश्री को ये प्यार भरे शब्द चुभ गए,उसे याद नहीं था कि किसी ने इतने प्यार से बोला हो,चाटर्जी के शब्दों मे याचिका थी जैसे अनुश्री के जवान जिस्म कि भीख मांग रहा हो.

"फिर ऐसा वक़्त नहीं आएगा " अनुश्री का मस्तिष्क हार मान चूका था..

अब वहाँ सिर्फ हवस और जवानी कि वासना का कब्ज़ा था

अब एक स्त्री इस प्यार को कैसे नजर अंदाज़ करती उसका सर झुकता चला गया,रुका तो ठीक चाटर्जी के लंड के गुलाबी हिस्से के ऊपर.

चाटर्जी ने आज अनुश्री का तन और मन दोनों जीत लिया था.

"ससससननणणनणीयफ्फ्फ्फग्ग......इसससससस......" अनुश्री ने एक गहरी सांस भर ली

इतने पास से आज वो पहली बार लंड देख रही थी,देख क्या रही थू सांस खिंच खींच के सूंघ रही थी,एक कैसेली सी गंध ने उसके रोम रोम को खड़ा कर दिया था.

अनुश्री के झुकने से उसकी गांड मुखर्जी कि तरफ हो गई थी,और इस रोमांच ने उसकी मुट्ठी कि पकड़ मुख़र्जी के लंड पे कस गई थी.

मुख़र्जी ये कामुक नजारा देख खुद को रोक नहीं पाया,उसके हाथ स्वतः ही अनुश्री कि  जीन्स मे कसी बड़ी चौड़ी गांड पे चले गए

"आआआहहहहहहहह........मुख़र्जी के गर्म हाथ का अहसास अपनी गांड पे पाते ही अनुश्री कि आंखे ऊपर चढ़ गई मुँह खुल गया..

चाटर्जी को इस से अच्छा मौका फिर कहाँ मिलना था.

चाटर्जी ने अपनी कमर को हल्का सा ऊपर कि तरफ उछाल दिया,पुककककक.....से लंड का गुलाबी हिस्सा अनुश्री के खुले मुँह मे समा गया.

अनुश्री को कुछ समझ आता कि चाटर्जी ने अनुश्री के सर को पकड़ के अपने लंड ले दबा दिया.

"आअह्ह्हब्ब......चाटर्जी कि आंख पीछे को पलट गई, अनुश्री के गीले और गर्म मुँह ने उसे वासना से भर दिया

"गुगुगुगुगुग.....करती अनुश्री छटपटाने लगी उसके लिए ये पहला मौका था,चाटर्जी का लंड लम्बा था जो सीधा उसके जीभ के तलवे पे जा लगा,उसे खासी आने को ही थी कि चाटर्जी ने एक हल्का सा झटका और मार दिया.

अनुश्री कि सांस और खासी दोनों हलक मे ही अटक गई.

अनुश्री के हाथ मे थमा मुखर्जी के लंड पे उसकी पकड़ मजबूत होती चली गई.

इस हमले से मुखर्जी कि भी हल्की सी चीख निकल है प्रतिउत्तर मे मुख़र्जी ने जीन्स के ऊपर से ही अनुश्री कि गांड को कस के भींच दिया.

अनुश्री पे दो तरफ़ा हमला हो रहे था.उसे चाटर्जी के लंड कि गंध बर्दाश्त नहीं हो रही थी,ऊपर से खासी ना आने से उसके हलक मे जमा थूक होंठो से होता हुआ नीचे कि तरफ चुने लगा जो कि चाटर्जी के लंड पे रास्ता बना उसके टट्टो को भिगो रहा था.

अनुश्री को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि चाटर्जी ने हलके हलके अपनी कमर को ऊपर कि ओर धकेलना शुरू कर दिया.

"गुग्गु...गुगुगुग़म....करती अनुश्री चाटर्जी कि जाँघ पे अपनी हथेली को जमाये जा रही थी.

"बस बेटी....प्यार से तभी मजा आएगा " चाटर्जी तो आनंद के सागर मे गोते खा रहा था.

अनुश्री को भी ये अनुभव अब रास आने लगा था, वो खुद से ही अपनी गर्दन को चाटर्जी के लंड पे ऊपर नीचे करने लगी थी.

कितनी जल्दी बदल जाती है ना स्त्री, अनुश्री अभी लंड चूसने के नाम से ही कांप गई थी और कहाँ अब खुद ही गर्दन चला रही थी.

चाटर्जी ने अनुश्री के सर से हाथ हटा लिया था, वही मुखर्जी ने अनुश्री कि हथेली पे हाथ रख अपने लंड सहला रहा था,

 जैसे बता रहा हो कैसे करना है.

अनुश्री बहुत जल्दी सिख रही थी, उसके हाथ मुखर्जी के लंड पे खुद ही ऊपर नीचे हो रहे थे.

अनुश्री पे अब कोई दबाव नहीं था वो खुद से कर रही थी जो करना था.

एक तरफ उसके होंठ चाटर्जी के लंड को कसे जा रहे थे वही दूसरी ओर उसके हाथ मुखर्जी के लंड को जकड ऊपर नीचे कर रहे थे.

वासना सब सीखा देती है,वासना से बड़ा कोई गुरु नहीं होता इस बात का जीता जगता उदाहरण थी अनुश्री.

"अरे अब बस भी कर खा जाएगी क्या चाटर्जी के लंड को " मुखर्जी ने अनुश्री के बाल पकड़ के उसका सर ऊपर उठा दिया.

अनुश्री के चेहरे पे ऐसे भाव थे जैसे उसकी फेवरेट चीज छीन ली हो,आंखे सुर्ख लाल थी " मेरा भी चूस ले जरा " मुखर्जी ने अनुश्री का सर अपने लंड पे झुका दिया.

अगले भी पल अनुश्री ने वो कर दिखाया जो किसी भी संस्कारी शादीशुदा स्त्री के किये असंभव था..

अनुश्री ने खुद ही झट से अपने सर को नीचे झुका मुँह खोल मुख़र्जी के लंड को मुँह मे भर लिया.

"अअअअअअह्ह्ह्हबब्ब.... दोनों के मुँह से एक गर्म सिसकारी फुट पड़ी.

अनुश्री किस कद्र अपनी शर्म हया त्याग चुकी थी,

मुखर्जी का लंड सामान्य से ज्यादा ही मोटा था, अनुश्री ठीक से घुसा भी नही पा रही थी.

"ठीक से चूस अनु बेटा ऐसा मौका और ऐसा लंड फिर कभी नहीं मिलेगा " मुखर्जी के कहे एक एक शब्द अनुश्री कि चुत पे प्रहार कर रहे थे.

बात तो सही ही थी बूढ़ो कि "फिर कहाँ ऐसा मौका मिलेगा "

पच पच पच......करती अनुश्री मुखर्जी के लंड को चूसे जा रही थी.

इधर चाटर्जी कि तरफ अनुश्री कि गांड आ गई तहज जिसपे लगातार चाटर्जी अपने हाथ घुमा रहा था.

अनुश्री खुद के थूक से सने चाटर्जी के लंड को हाथ मे झाकडे ऊपर नीचे कर रही थी, उसे अपनी जांघो के बीच ज्वालामुखी उत्पन्न होता महसूस हो रहा था,उसका बदन जल रहा था,जाँघे आपस मे घिस रही थी,चुत ने इतना पानी छिड़ दिया था कि उसका गिलापन गांड के पीछे चाटर्जी साफ अपने हाथो मे महसूस कर रहा था.

ये युद्ध अपने चरम पे था कभी भी कोई भी योद्धा हार स्वीकार कर सकता था.

"आआआआहहहहहब्ब.......अनु.....जोर से " मुख़र्जी के हलक से एक गुरराती आवाज़ निकल.पड़ी उसके हाथ अनुश्री के सर को अपने लंड पे दबाने लगे.

मुखर्जी जीतना अनुश्री के सर को अपने लंड पे दबाता उतना ही अनुश्री कि हथेली चाटर्जी के लंड को जकड़ लेती.

पच पच पच.....गुगुगुगु....गुगु.....आआहहहह....आअह्ह्ह......उफ्फ्फ्फ़.....कि हल्की हल्की सिसकारिया बहार से आते शोर मे घूम हो जा रही थी.

अनुश्री को अपनी नाभि के नीचे एक आग सी महसूस हुई,ऐसे लगता था जैसे उसके नाभि का निचला हिस्सा फट जायेगा, भयानक गर्मी ने उसे जकड़ लिया,

एक लावा सा बहता महसूस हो रहा था,ऐसे उत्तेजना ऐसा उन्माद आज तक कभी नहीं हुआ उसे.

"आआहहहह......अनु जोर से और अंदर " मुखर्जी ने होने हाथो का पूरा वजन अनुश्री के सर पे डाल दिया.

मुखर्जी के टट्टे अनुश्री के होंठो से जा टकराये, वो खुद हैरान थी कि इतना मोटा लम्बा लंड गया कहाँ?

कि तभी....पच...पच..पाचक....करती एक कैसेली लेकिन गरम स्वाद से अनुश्री का हलक भरने लगा.

"आअह्ह्हह्ह्ह्हब्ब......अनु मै गया " मुखर्जी के हाथ ढीले पढ़ने लगे उसका सर पीछे सीट पे जा टिका.

अनुश्री अभी इस सदमे से उभरी ही नहीं थी कि पच...पच....पाचक  ...कि आवाज़ के साथ उसको अपनी हथेली पे किसी खोलती हुई गर्म चूज़ी का अहसास हुआ..इस गर्माहट से उसका रोम रोम नाच उठा

तभी बस झटके खाने लगी....बहस कि स्पीड कम हो रही थी.

बस मे हलचल होने लगी.

मुखर्जी अपना पूरा वीर्य अनुश्री के हलक मे उतार चूका था.

"उफ्फ्फ्फ़.....खो...खूउउउफ्फ्फ.....करती अनुश्री ने सर ऊपर उठा लिया उसके होंठ अभी भी किसी सफ़ेद चीज से सने हुए थे.

वो इस सफ़ेद चीज को थूक देना चाहती थी कि तभी "ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा " ना जाने किस कारण वस अनुश्री ने अपने होंठ से बहार गिरते वीर्य को वापस अपने मुँह मे खिंच लिया

ये कैसे कर लिया अनुश्री ने एक पराये मर्द का वीर्य गटक गई थी,वो अनुश्री जो मंगेश के लंड को चूमना भी घिन्न का काम समझती थी.



आआआहहहहह.......अनुश्री बेटा थैंक यू

बस रुक गई थी, अनुश्री को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ,अभी उसका ज्वालामुखी फूटने ही वाल था कि सब कुछ शांत हो चला.

उसके गले और हाथ मे गर्म वीर्य का अहसास था चुत और जाँघ बुरी तरह से चिपचिपा रही थी


"नहीं....नननन.....नहीं....इतनी जल्दी भुवनेश्वर आ गया?" अनुश्री को यकीन ही नहीं हो रहा था कि 2 घंटे बीत चुके है.

दोनों बूढ़ो ने अपनी अपनी धोती ठीक कर ली थी.

"तुम जैसी जवान लड़की को ऐसे ही मजे लेने चाहिए " चाटर्जी बोलता हुआ अपना बैग उठाये सीट से उठ खड़ा हुआ.

अनुश्री तो अभी भी हक्की बक्की देखती ही रह गई,ये सब उसकी समझ से परे था.

इस काम युद्ध मे अनुश्री कि साफ जीत हुई थी,लेकिन वो जीत के भी हार गई थी.


उसका बदन अभी भी कामवासना मे जल रहा था, आंखे सुर्ख लाल थी.

कहाँ वो कभी अब्दुल और मिश्रा के लंड को देख लेने मात्र से झाड गई थी परन्तु आज दो दो लंड चूस लेने के बाद भी उसकी वासना कायम थी उसकी चुत आज झड़ी नहीं थी.

अनुश्री धीरे धीरे अनुभवी होती जा रही थी

वो किसी विक्षिप्त कि तरह इधर उधर देख रही थी...

"अनु....अनु....जान क्या हुआ उतरना नहीं है आ गया हमारा होटल " मंगेश कि आवाज़ अनुश्री के कानो मे पड़ी.

"हा...हम....हन्नन्न....." अनुश्री ने अँधेरे मे ही अपना वीर्य से भरा हाथ आगे कि सीट पे रख रगड़ दिया.

सामने होटल था, मंगेश और अनुश्री बस से उतर गए थे मौसम शांत था बारिश बंद हो चुकी थी....लेकिन अनुश्री शांत नहीं थी उसके जाँघ के बीच आग लगी थी....


भीषण आग....

तो क्या करेगी अनुश्री अब?

सारे संस्कार,सारी मान मर्यादा धाराशाई हो गई थी.

काम कि आग है जल्दी नहीं बुझती.

बने रहिये.....कथा जारी है....

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