मेरी बीवी अनुश्री भाग -33
अपडेट -33
"भैया लोग पहले हमका उतरने दो भाई,हमरा दुकान मे कोई नहीं है साला सामान लाने के चक्कर ले लेट हो गइनी " वो अधेड़ उम्र का आदमी बोट से भीड़ को चिरता हुआ निकल भागा जा रहा था.
"आइयेगा भैया हमरे होटल पे चाय पीने, मांगीलाल का होटल " वो आदमी मंगेश को बोलता हुआ जा रहा था.
"जरूर आऊंगा "मंगेश ने अपने हमसफर को विदा किया.
"अनु...अनु....आओ उतरे " मंगेश ने पीछे बैठी अनुश्री को आवाज़ दि
अनुश्री अभी भी शून्य मे डूबी सांसे भर रही थी उसका तन और मन दोनों भारी हो चले थे.
"अनु क्या हुआ.....देखा तुमने डॉल्फिनस को?" मंगेश चलता हुआ अनुश्री के नजदीक आ गया
"अअअअअ...हनन...हाँ....देखा मैंने " अनुश्री होश मे आई सामने मंगेश था पूरी बोट खाली पड़ी थी
" आओ चलते है चाय नाश्ता कर के वॉयस निकलते है मौसम ख़राब होने वाला है " मंगेश और अनुश्री भी उतर गए.
अनुश्री के जगह ने हज़ारो विचार चल रहे थे "क्या हो जता है मुझे? क्यों खुद पे यकीन नहीं रहता?
लेकिन मै जवान हू अब नहीं तो कब?" अनुश्री अपने ही विचारों मे बहक रही थी उसे यौन सुख कि दरकार महसूस होने लगी.
"क्या हुआ अनु तुम्हे पसंद नहीं आ ये जगह?" मंगेश ने हाथ पकडे पूछा
"कितनी ठंडक है मंगेश कि छुवन मे " आ....हाँ आई ना पसंद
अनुश्री ने अपने विचारों को त्यागना ही बेहतर समझा "मंगेश मुझे टॉयलट आई है " अनुश्री को अपने जिस्म को हल्का करने का सबसे अच्छा तरीका यही सुझा.
उसकी जांघो के बीच जैसे कुछ अटका हुआ था,कुछ गरम सा लावा, वो उसे चैन से नहीं रहने दे रहा था.
"अभी?....बोट ज्यादा देर नहीं रुकेगी अनु देखो मौसम घिर आया है"
"नहीं मंगेश अभी जाना है " अनुश्री को कैसे भी हल्का होना था
"ठीक है जल्दी आना मै बोट मे ही मिलूंगा, चढ़ जाना जल्दी से " मंगेश ने उसे हिदायत दि
अनुश्री झट से एक कोने कि ओर बढ़ चली, आस पास काफ़ी लोग थे
अनुश्री को कुछ समझ आया कि तभी उसे एक पगडंडी दिखी जो दूर झाड़ियों के पीछे जा रही थी "ये ठीक रहेगा "
अनुश्री झट से उस पगडंडी पे चल पड़ी.
आसमान मे काले बादल छाने लगे थे,तेज़ हवा चल रही थी परन्तु इस भी ज्यादा तेज़ अनुश्री कि धड़कन चल रही थी जसे जल्द से जल्द आपने जिस्म को हल्का करना था.
पल भर मे ही अनुश्री टापू के दूसरी तरफ पहुंच गई जहाँ कोई आदमी नहीं था, अनुश्री झट से अपनी साड़ी उठा बैठ गई......
अनुश्री ने जोर लगाया लेकिन एक बून्द पेशाब भी नहीं निकला "उफ्फ्फफ्फ्फ़.....ये क्या हो रहा है?"
अनुश्री ने झुक के देखा दोनों टांगो के बीच उसकी चुत किसी पाँव रोटी कि तरह फूली हुई थी,
उसे मिश्रा के साथ बिताई रात याद आ गई उस दिन भी कुछ ऐसा ही नजारा उसकी आँखों के सामने था वो खुद अपने बदन से आकर्षित होने लगी थी.
ना चाहते हुए भी उसका हाथ अपनी लकीर नुमा चुत ले जा टिका.....आआआहहहहह.....उफ्फ्फफ्फ्फ़......कितनी गर्म है "
अनुश्री अपने ही जिस्म के सम्मोहन से घिरती जा रही थी
उधर हवा का दबाव तेज़ होता चला जा रहा था.
"यात्रीगण जल्दी चलिए,तूफान आने को है " बोट का चालक सबको एकत्रित करने मे लगा था
सभी लोग बोट कि तरफ बढ़ चले..
"भैया भाभी कहाँ है?" राजेश ने पूछा
"वो बोट पे आ गई होंगी अनाउंसमेंट सुन के,तुम जल्दी चलो "तेज़ हवाओं से के साथ मंगेश भी बोट मे जा चढ़ा.
इधर अनुश्री इन सब से दूर अपनी ही दुनिया मे मस्त अपनी काम लकीर को कुरेद रही थी,
उसे जो सुख मिल रहा था वो किसी जन्नत से कम नहीं था,उसके जिस्म मे जो तूफान मचा रहा वो बाहर के तूफान से कही ज्यादा भयानक प्रतीत हो रहा था "आआआहहहह......आउच...." अनुश्री के हाथ लगातार अपनी चुत को सहला रहे थे,निकोट रहे थे....रह रह के वो अपनी चुत के फुले हुए हिस्से को दबा भी देती
तूफान जोर पकड़ रहा था "आआहहहहह.....उउउउफ्फफ्फ्फ़.....आअह्ह्हब... साआर्रर्रर्रर्फ...
..पिस्स्स्सस्स्स्स........करती पेशाब कि तेज़ धार उस काम रूपी लकीर से फुट पड़ी आखिर अनुश्री कि मेहनत रंग लाइ
"आआहहब......उफ्फ्फ...." अनुश्री कि चुत से गर्म पेशाब कि धार निकले जा रही थी,उसकी जिस्म का तूफान पेशाब कि हर बून्द के साथ शांत होता जा रहा था तो वही बाहर का तूफान पल प्रति पल बढ़ता जा रहा था.
चुत से एक एक बून्द बाहर निकल चुकी थी "उफ्फफ्फ्फ़.....अब जा के कुछ ठीक लगा "
जैसे ही अनुश्री के जिस्म कि गर्मी शांत हुई उसे तेज़ हवाओं के थापेड़ो ने घेर लिए "हे...भगवान...ये...
.ये.....क्या?" अनुश्री झट से खड़ी हुई और लगभग दौड़ पड़ी किनारे कि ओर.
अभी ये कम ही था कि तेज़ पानी कि बौछार ने उसे घेर लिया.
साय साय....करती हवा चल रही थी साथ ही पानी कि बुँदे,तेज़ बूंदो के वार अनुश्री के ठन्डे जिस्म पे होने लगे.
अनुश्री कि साड़ी पूरी तरह भीग के उसके जिस्म से जा चिपकी.
अनुश्री कि हालत बिगड़ने लगी थी उसके मन कि आशंका सच होती दिख रही थी "कही कही......नहीं मंगेश मेरा इंतज़ार कर रहा होगा "
अनुश्री ने ताकत बटोर के किनारे कि तरफ दौड़ लगा दि
वो हांफ रही थी उसकी ताकत हवा पानी से लड़ते हुए खर्च ही गई,जैसे जैसे वो किनारे पहुंच रही थी वैसे वैसे उसकी उम्मीद और हिम्मत दोनों जवाब देते जा रहे थे.
"हम्म्म्मफ्फफ्फ्फ़......हम्म्म्मफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.....ये नहीं ही सकता नहीं....नहीं..
." अनुश्री किनारे पे पहुंच चुकी थी, वहाँ कोई बोट नहीं थी ना ही मंगेश पूरा टापू वीरान था.
अनुश्री कि आंखे भर आई " मंगेश तुम कैसे जा सकते हो?"
नहीं.....नहीं.....नहीं.....मंगेश
अनुश्री कि हालत पागलो जैसी थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे आंखे आँसुओ से धुंधली हो चली...
तूफान जोरो पे था, ठन्डे पानी से भीगी अनुश्री निर्जन टापू पे अकेले खड़ी थी.
"हे भगवान....." अनुश्री नीचे गिरने को ही थी कि सामने उम्मीद कि किरण नजर आई.
एक झोपडी नुमा होटल, वही एक होटल आस पास खुला था.
अनुश्री अपनी सारी ताकत बटोर के उस होटल कि ओर दौड़ चली...जैसे जैसे पास जाती गई उसके सामने होटल का नाम आता गया.
"मांगीलाल का होटल "
अब क्या होगा अनुश्री का....?
बने रहिये कथा जारी है....
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