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मेरी बीवी अनुश्री भाग -6

भाग -6


ट्रैन पूरी तरह रुक गई थी, अनुश्री ने अपना हैंड पर्स सँभालते हुए भीड़ को चीरने कि कोशिश करने लगी.

परन्तु हुआ इसके विपरीत बाहर से आते धक्को ने उसे एक इंच भी आगे नहीं बढ़ने दिया


"अरे भई हमें भी अंदर आने तो ट्रैन छूट जाएगी " "हट मादरचोदो पीछे हट " बाहर से आती आवाज़ और धक्के अनुश्री का मनोबल तोड़ रहे थे.

छोटा स्टेशन था ट्रैन 1मिनट ही रूकती थी.

कूऊऊऊऊ.....ट्रैन ने चलने का संकेत भी दे दिया.

अनुश्री ने एक आखिरी कोशिश कि उतरने के लेकिन न्यूटन के नियम के मुताबिक उसकी धक्के के साथ वापस जहाँ थी वही आ गई.

2 लोग उतरे 12 चढ़ गए,अब तो बिलकुल ठसा ठस डब्बा भर गया था.

अनुश्री काफ़ी परेशान हो चली थी उसके बाल बिखर गए थे


अब्दुल :- मैडम उतरना मुश्किल है,कोई बड़ा स्टेशन पे ही सवारी खाली होंगी.

अनुश्री का ध्यान अपने आगे नहीं था कहा मिश्रा धक्के मुक्की के वजह से अपना मुँह साड़ी के ऊपर से ही अनुश्री के स्तन मे घुसाए हुआ था,वहा इतनी गहमा गहमी हो गई थी हाथ को हाथ ना सूझे.

तभी किरररर....किररर......अनुश्री का मोबाइल बजने लगा.

अनुश्री ने अपना पर्स उठाना चाहा लेकिन भीड़ मे वो भी नहींहो पा रहा था उसका पर्स पेट के आगे रखा था को कि मिश्रा कि तोंद से दबा हुआ था.

जैसे ही अनुश्री कि नजर आगे को हुई उसके होश ही उड़ गए उसके स्तन पुरे के पुरे मिश्रा के मुँह पे दबे हुए थे.

"ठीक से खड़े हो ना "अनुश्री ने सकपाकते हुए मिश्रा को झड़का और खुद थोड़ा पीछे होने कि कोशिश कि

पीछे होते ही उसकी गांड के बीच फिर वाली गोल लम्बी सी चीज आ लगी.

उसकी हालत पल प्रतिपल ख़राब ही होती जा रही थी जिसे अब्दुल और मिश्रा भलीभांति समझ रहे थे


मिश्रा जो अभी तक स्तनों कि खुसबू अपने नथूनो मे भर चूका था बोला "अब कहा जाऊ मैडम दिवार से ही तो लगा हुआ हूँ आप पीछे होइए थोड़ा,मेरी हाईट वैसे ही छोटी है आप तो दबा के मार ही देती मुझे" लम्बी सांस लेते हुए बोला जैसे पता नहीं कब से दबा पड़ा हो.

अनुश्री को मिश्रा कि ये बात सुन थोड़ी हसीं आ गई क्यूंकि उसकी कड़कठी थी ही ऐसे छोटा सा तोंद निकाले खड़ा था.तोंद इस कदर बाहर को निकली थी कि कभी ट्रैन झटका लेती तो अनुश्री कि नाभि को छू आती.

अभी अनुश्री असंजस मे ही थी कि किरररर.....किरररर..... फिर से मोबाइल बजने लगा.

इस बार जैसे तैसे अनुश्री अपना मोबाइल निकलने मे कामयाब हो गई.

"हाँ हेलो मंगेश " तभी ट्रैन को एक झटका लगा,अनुश्री आगे को गिरने को ही हुई लेकिन इस बार खुद को मिश्रा के ऊपर धहने से बचाने के लिए अपने दूसरे हाथ को ऊपर उठा मिश्रा के ऊपर दिवार पे टिका दिया क्यूंकि अनुश्री दूसरे हाथ से मोबइल पकड़े हुई थी,

उसको ध्यान ही नहीं रहा कि उसने स्लीवलेस ब्लाउज पहना है.

मिश्रा तो ये दृश्य देख हक्का बक्का रह गया भीड़भारी गर्मी मे भी उसका बदन ठंडा पड़ने लगा.

बिलकुल साफ गोरी पसीने से भीगी कांख उसके सर के ऊपर थी जिससे निकलती मदक पसीने और परफ्यूम कि गंध सीधा मिश्रा के नाम मे जा रही थी.

मिश्रा कि नियत जो हो लेकिन था तो आदमी जी उसके लंड ने पाजामे के अंदर ही पहली अंगड़ाई ले ली.

"हाँ मंगेश भीड़ बहुत है उतर नहीं पाई "

दूसरी तरफ मोबाइल पे " क्या यार तुम कितनी ढीली लड़की हो सिर्फ ट्रैन से उतर के ही तो आना था वो भी नहीं हुआ तुमसे अब अगका स्टेशन 3घंटे मे आएगा रहो अब वही "

मंगेश ने फ़ोन काट दिया.

अनुश्री का चेहरा मयूष हो गया एक तो यहाँ मर्दो कि भीड़ मे अकेली फांसी हुई है ऊपर से मंगेश उस पे ही चिल्ला रहा है.

उसकी आंखे नम हो गई.

वो अभी भी हाथ टिकाये ही खड़ी थी.

मिश्रा :- मैडम आप डरिये मत यहाँ कोई कुछ नहीं करेगा,अगले स्टेशन पे उतर जाना शायद स्पीकर से आती मंगेश कि आवाज़ मिश्रा ने भी सुनी थी.

अनुश्री को ये दिलाशा अच्छा लग 3घंटे कि ही तो बात है काट लुंगी.

मिश्रा कि बातो ने उसे फिर से सकरात्मक कर दिया परन्तु ये पसीना "उफ्फ्फ.....गर्मी "

अनुश्री के मुँह से ना चाहते हुए भी निकल गया.

वो अपना हाथ नीचे करने ही वाली थी कि ट्रैन ने फिर झटका खाया,बचने के लिए अनुश्री ने अपना हाथ वापस वही जमा दिया.

अनुश्री ने अपना मोबीके पर्स मे डालने के लिए नजरें नीचे कि तो पाया कि मिश्रा कि नजर उसकी कांख पे ही है जिसे वो एक तक हसरत भरी नजर से देखे जा रहा था.

अनुश्री शर्म से पानी पानी हो गई "भला कोई आदमी उसकी कांख को ऐसे घूर के क्यों देख रहा है"

पीछे अब्दुल "अबे मिश्रा तू कहा दब गया दिख ही नहीं रहा ला तम्बाकू बना थोड़ा.

मिश्रा:-  यहीं हूँ यार दबा नहीं हूँ मेरा मज़ाक मत उड़ाया कर छोटा हूँ तो क्या हुआ कारनामें बड़े है मेरे.

अब्दुल :- बढ़ा आया कारनामो वाला तम्बाकू बना के दे जल्दी कितनी गर्मी है


अनुश्री को बीड़ी जर्दा खाने पिने वालो से सख्त नफरत थी परन्तु यहां इन दोनों कि मजाकिया और मिश्रा कि टांग खिचाई कि बातो से गुदगुदी हो रही थी,अब उसे शर्म नहीं आ रही थी

मिश्रा रह रह के कांख को देख लेता उसकी हरकत अनुश्री नोटिस कर रही थी.

मिश्रा :- प्यास भी लगी है कुछ रस ही मिल जाता तो मजा आता ये बात उसने अनुश्री कि गोरी साफ सुथरी कांख को देखते हुए कहा.

अब्दुल :- साले यहाँ बदन का पानी निकल के चड्डी मे घुस गया है और तुझे रस कि पड़ी है.

जैसे ही अनुश्री के कान मे ये शब्द पड़े उसका ध्यान वापस से अपनी पसीने से भीगी पैंटी कि तरफ गया बस फिर क्या था जैसे ही ध्यान गया खुजली का अहसास होने लगा.

"उफ़...ये गर्मी और पसीना " मन मे ही बोलती अनुश्री ने गांड के छेद पे जोर दे के सिकुड़ने कर वापस छोड़ दिया, हर इंसान ऐसे ही करता है.

हालांकि ऐसा करने से अनुश्री को हलकी राहत का अहसास हुआ.

अनुश्री के हाथ जो मिश्रा के सर के ऊपर पीछे दिवार पे रखा हुआ था वहा से पसीना रिसना शुरू हो गया जो कि कांख तक जा रहा था.

एक अजीब गुदगुदी का अनुभव हो रहा था अनुश्री को अमूमन इतना पसीना कभी उसे आया ही नहीं था.

इधर मिश्रा अपनी जेब से जर्दा निकल हथेली पे रख चूका था.

"अरे भेनचोद ये चुना कहा रख दिया मैंने "मिश्रा अपने मे ही बड़बड़ाते हुए जेब टटोलेने लगा कि तभी उसकी हथेली पे टप टप टप....करती पानी कि कुछ बून्द गिर पड़ी.

जिसे मिश्रा और अनुश्री ने बखूभी देखा.

वो बून्द अनुश्री के कांख मे जमा हुए पसीने कि बून्द थी जो सीधा मिश्रा कि हथेली पे ही गिर पड़ी.

अनुश्री ये नजरा देख शर्म से पानी पानी हो गई उसे काटो तो खून नहीं इस से शर्मनाक उसके लिए क्या हो सकता था कि किसी अनजान व्यक्ति के हाथ मे उसका पसीना टपक रहा है.

मिश्रा :- चलो चुना ना सही कुछ और ही सही बोल के अनुश्री कि तरफ देख गंदे दाँत निपोर दिए.

फट फट फट.....करता जर्दा रगड़ के पिट दिया,वही जरदा जिसने चुने कि जगह अनुश्री का पसीना मिला हुआ था.

ऐसी परिस्थिति मे अनुश्री को शर्म के साथ एक अलग ही रोमांच उत्पन्न हो रहा था..

"ले भई अब्दुल जर्दा " ऐसा बोल मिश्रा ने अपना हाथ अनुश्री के नंगी कमर के बगल से निकाल दिया.

अब्दुल ने थोड़ा जर्दा ले के मुँह मे दाल लिया "अरे मिश्रा आज तो जर्दे का स्वाद ही कुछ अलग है मजा आ गया अलग ही नशा दे रहा है"

अब्दुल कि ये बात सुन अनुश्री कांप ही गई "छी कोई पसीने से सनी चीज खा रहा है और उसे मजा भी आ रहा है "

अनुश्री सोच तो सही ही रही थू परन्तु ना चाहते हुए भी उसके बदन मे गुदगुदी सी ही रही थी क्यूंकि उसका पसीना पहली बार किसी मर्द ने चखा था ऊपर से उसके टेस्ट कि तारीफ भी कर रहा था" ये भावनाये अनुश्री के बदन को बार बार झटका दे रही थी.


मिश्रा :- मुझे कोई खास चुना मिल गया है भई अब्दुल क्यों मैडम?

अनुश्री जब से चुपचाप खड़ी थी इसका फायदा उठा के सीधा सवाल दाग़ दिया था अब्दुल ने.

अनुश्री :- वो....वो....मै..मैम...माफ़ करना मैंने जानबूझ के नहीं किया वो गर्मी ही इतनी है.

मिश्रा :- मैडम हम कब कब रहे है कि जानबूझ के हुआ वैसे भी जो होता है अच्छे के लिए ही होता है क्यों अब्दुल.

अब्दुल :- जो अभी तक जरदे का स्वाद लेने मे मग्न था हाँ भाई हाँ.

मिश्रा :- वैसे आपकी कांख कितनी सुन्दर है मन करता है कि.....

अनुश्री को कुछ बोलता ना पा के मिश्रा कि हिम्मत बढ़ती ही जा रही थी उसने अनुश्री कि कांख कि तारीफ कर दी थी.

मिश्रा :- आज पहली बार इतनी सुंदर और हसीन कांख देख रहा हूँ.

अनुश्री को तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या बोले क्या करे वो तो ऐसी बाते सुन किसी बूत कि तरह जम गई थी,उसने अपने हाथ नीचे करने को ही चाहे थे कि...

मिश्रा :- रहने दो ना मैडम कही मेरे ऊपर गिर गई तो मै सांस रुकने से मर जाऊंगा.

इस बार अनुश्री ने ना जाने क्यों मिश्रा कि बात मान ली उसने अपने हाथ नीचे नहीं किये,उसे अपनी तारीफ पसंद आने लगी थी शायद,क्यूंकि उसकी सुंदरता कि तारीफ तो कभी उसके हस्बैंड ने भी नहीं कि थी.

और ये तारीफ थोड़े अलग किस्म कि थी लेकिन थी तो उसकी सुंदरता कि ही ना.

मिश्रा :- तुझे पता है इसमें क्या मिलाया है मैंने? अब्दुल से पूछा.

अब्दुल :- जहर भी मिलाया है तो चलेगा इस से स्वादिष्ट जर्दा आज तक नहीं खाया मैंने,क्या खुसबू आ रही है इस जर्दे मे से.

"क्या वाकई मेरे पसीने का स्वाद इतना अच्छा है,महक इतनी मोहक है कि ये आदमी कही खो गया है "

अनुश्री ख़ुश से ही सवाल कर रही थी उसकी आंखे जैसे मिश्रा को इग्नोर कर रही थी लेकिन कान साफ उसकी पसीने कि तारीफ सुन रहे थे.

गर्मी और सकपाकहत से उसका पसीना गले से उतार के ब्लाउज कि घाटी मे समाने लगा, जैसे हज़ारो चीटिया रेंग रही हो.


मिश्रा :- मैडम कि कांख का पसीना है इसलिए स्वाद है.

अब्दुल :- क्या....बुरी तरह चौंक गया?

मिश्रा :- मैडम से पूछ ले.

अनुश्री तो किसी मूर्ति कि तरह खड़ी थी दो अनजान आदमी उसके बारे मे बात कर रहे है उसके ही सामने वो भी बिना उसकी इज़ाज़त के.

अब्दुल :- क्यों मैडम जी ये मिश्रा का बच्चा सच कह रहा है क्या?

अनुश्री :- वो...वो....मै....गलती से गिर गया ना जाने किस जादू मे अनुश्री हाँ बोल गई उसे खुद समझ नहीं आया कि एक सभ्य संस्कारी लड़की दो अनजान आदमियों कि बातचीत का हिस्सा बन चुकी है.

अब्दुल :- अनजाने मे ही सही लेकिन होने आना अमृत चखा दिया मैडम जी धन्य हुआ आज ये अब्दुल


अनुश्री अपने पसीने कि तुलना अमृत से पा कर अचंभित हो उठी उसके बदन कि सुरसूरी उसकी नाभि के नीचे कि और दौड़ पड़ी. उसका बदन गर्मी छोड़ने लगा

उसे समझ ही नहीं आ रहा था किनये क्या है बस कही ना कही अपनी ऐसी गन्दी तारीफ मन को भा रही थी.

अब्दुल :- ऐसे अमृत को तो मुह लगा के पीना चाहिए क्यों मिश्रा?

अनुश्री ये बात सुन काबू से बाहर हो गई "क्या मतलब है तुम्हारा "

अब्दुल :- नाराज क्यों होती हो मैडम अब अच्छी स्वादिष्ट चीज कि तारीफ भी ना करे क्या.

मिश्रा :- सही तो बोल रहा है हमारी किस्मत मे तो वही काली कलूटी बदबू दार पसीना छोड़ती औरते ही है.

मिश्रा कि ये बात अनुश्री के दिल मे घर कर गई "क्या वाकई मेरा पसीना ऐसा है?पसीने का क्या स्वाद?" अनुश्री इस समय खुद को दुनिया कि सबसे खूबसूरत हसीन औरत समझ रही थी.


मिश्रा :- ऐसे अमृत को तो सीधा मुँह लगा के पीना चाहिए बोलते हुए मिश्रा अपने पंजो पे खड़ा हो गया और सर ऊपर कर जीभ निकाल के लाप से अनुश्री कि पसीने से भीगी कांख को नीचे से ऊपर कि तरफ चाट गया.

"आअह्ह्ह......अनुश्री के मुख से एक महीन सी सिसकारी छूट गई " उसे गर्मी मे राहत का अनुभव हुआ बदन एक कामुक चिंगारी से विचलित हो उठा.

मिश्रा :- क्या मीठा स्वाद है आअह्ह्ह....

अनुश्री ने जैसे ही आंखे खोली नीचे मिश्रा कि आँखों से नजरें जा टकराई.

दोनों कि आंखे सुर्ख लाल थी अनुश्री को थोड़ा गुस्सा भी था कि कोई आदमी ऐसा कैसे कर सकता है परन्तु गुस्से से ज्यादा एक अजीब से हलचल उठ पड़ी थी उसके दिलो दिमाःग मे उसके सोचने समझने कि क्षमता मिश्रा किनिस हरकत से ख़त्म हो गई थी.

ऐसा शानदार अनुभव उसने कभी अपने जीवन मे नहीं किया था अब भला कोई पुरुष किसी स्त्री कि गन्दी कांख को चाट सकता है.

"You idiot ये क्या हरकत है " अनुश्री आगबबूला दिखाते हुए बोली.

लेकिन मिश्रा भी कम खिलाडी नहीं था "अब आप जैसे मादक स्त्री कांख दिखाते हुए खड़ी है तो बेचारा मासूम आदमी क्या करेगा "

मिश्रा के सीधे और मासूम जवाब से अनुश्री का गुस्सा तुरंत काफूर हो गया,गुस्सा कम होते ही उसकी लज्जात और दबी हुई मदकता ने उसकी जगह ले ली क्यूंकि ऐसी हरकत उसके पति ने भी कभी नहीं कि थी.

उसे मिश्रा का मजाकिया लहजा पसंद आ रहा था.

अनुश्री :- घर पे भी अपनी पत्नी के साथ ऐसी ही हरकत करते हो गया? अनुश्री अभी भी मोर्चे पे डाटी हुई थी खुद को गुस्से मे दिखा रही थी.

परन्तु ना जाने क्यों इस गुस्से मे विरोध नहीं था विरोध होता तो कबका अपना हाथ नीचे कर लेती.

मिश्रा :- मेरी बीवी कि कांख इतनी सुन्दर होती तो रोज़ चाटता,लेकिन उसकी तो बालो से भरी बदबूदार कांख है.

आप तो कोई अप्सरा है जिसकी कांख से शहद टपक रहा है.

ये बात सुन अनुश्री आनंदमयी हो चली इसका मतलब वो वाकई मे दुनिया कि सर्वश्रेष्ठ स्त्री है,अनुश्री मन ही मन अपनी तुलना किसी मजदूर वर्ग कि स्त्री से कर के खुद को अतिसुंदरी मानने लगी.

मिश्रा:- मैडम आप बुरा ना मैने तो एक बार और चख लू अब आप तो अगले स्टेशन पे उतार ही जाएगी फिर भला मुझ गरीब को ये सौभाग्य कहा मिलेगा.

अनुश्री मिश्रा कि बात सुन एक दम से हॅस पड़ी उसकी बातो मे इतनी मासूमियत जो थी कि वो भूल ही गई थी कि वो शादी सुदा एक संस्कारी परिवार कि बहु है.

अनुश्री बस मिश्रा कि आँखों मे देखती रही परन्तु हाथ नीचे नहीं किया.

शायद अनुश्री के अंदर सोती हुई स्त्री जागना चाह रही थी.


तो क्या अनुश्री बहक गई है?

मिश्रा अब्दुल उसे का तक बहका के जयेंगे?

बने रहिये कथा जारी है......

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