मेरी बीवी अनुश्री भाग -50
अपडेट -50
भोजोहोरी रेस्टोरेंट
अनुश्री बदहावास भागती हुई बाथरूम तक जा पहुंची, रुकने का तो सवाल ही नहीं था.
उसका बदन अकड़ रहा था, ऐंठ रहा था, पैर लड़खड़ा रहे थे.
ना जाने कितने दरिया पार कर आई हो, लेकीन इस वासना के दलदल मे फस गई थी.
और इस बार ऐसा फसी थी जैसे कोई बम फटने ही वाला था कि उसे किसी ने कस के दबोच लिया.
बम उस मुट्ठी मे फटने के लिए कसमसा रहा था.
भड़ाक ककककमक.......से टॉयलेट का दरवाजा खुलता चला गया, चट्ट...से चिटकनी अंदर से बंद हो गई.
अनुश्री कांच के सामने खड़ी हांफ रही थी, कोई उसे इस वक़्त देख लेता तो मानसिक विक्षिप्त औरत समझ बैठता.
अनुश्री बुरी तरह हांफ रही थी, उसके स्तन ब्लाउज फाड़ बाहर आने के लिए मरे जा रहे थे.
उसके हाथ वाशबेसिन पर झुक गये, एक पानी कि बौछार उसने अपने पसीने से भरे सुन्दर मुँह पर दे मारी....
छन्न...से पानी किसी भाम्प कि तरह उड़ गया ऐसा प्रतीत होता था.
चेहरा सुर्ख लाल, आंखे किसी नशे मे डूबी,कान जल रहे थे, ये पानी अनुश्री को सुकून नहीं दे रहा था.
छप छप छपाक अनुश्री ने 2,3 हथेली भर के पानी कि बौछार मार ली.
राहत का कोई नामोनिशान नहीं था.
क्यकि तकलीफ यहाँ नहीं थी,
तकलीफ थी दोनों जांघो के बीच चिपचिपे रस से भरी छोटी सी योनि मे.
अनुश्री को इस बात का अहसास होते ही अपनी योनि भरी भरी महसूस हुई, उसे ध्यान आया कि चाटर्जी ने langcha उसकी योनि मे ही धसा दिया था, जो अभी भी वही मौजूद है, यह मौजूदकी ही उसके चैन सुख को छीने हुए थी,.
एक मीठी मीठी सी गुदगुदी पुरे जिस्म मे हलचल पैदा कर रही थी,
अनुश्री ने तुरंत ही अपनी साड़ी ऊपर उठा ली, अपनी टांगे फैला ली.
अनुश्री खुद कि योनि कि हालत देख रोमांचित हो उठी.....इससससस........
बाथरूम मे एक सुन्दर संस्कारी कामुक स्त्री साड़ी उठाए अपनी जाँघे फैलाये अपने कामुक अंग को निहार रही थी.
आज जीवन मे सबसे खूबसूरत चीज उसे अपनी योनि ही लग रही थी पुरी तरह चासनी मे भीगी सफ़ेद रौशनी मे चमक रही थी.
चुत के मुहाने से चासनी टपकती हुई जांघो के रास्ते नीचे उतर जा रही थी, जैसे कोई मकड़ी जाला बुनती हो.
लेकीन ये वासना कि मकड़ी थी, जो जाल रूपी चासनी टपका रही थी.
ना जाने किस चाहत मे अनुश्री के हाथ अपनी योनि को टटोलने के लिए चल पडे, जैसे वो उसकी खूबसूरती के लिए उसकी पीठ थपठापना चाहती हो.
"आअह्ह्हह्म..म..इसससस....उफ्फ्फ......" जैसे ही अनुश्री ने अपनी सुलगती योनि को छुवा उसके रोंगटे खड़े हो गये, आंखे असीम आनंद से बंद हो गई,
उसने अपनी योनि को दबाना चाहा, "आअह्ह्ह्..... उसे अहसास हुआ गुलगुली सी चीज उसकी योनि मे हिल रही है.
"इसससस.......उसे इस चीज को बाहर निकालना था"
उसने कस के जोर लगया लेकीन नतीजा शून्य योनि का मुख थोड़ा सा खुलता लेकीन फिर बंद हो जाता, फिर जोर लगाती,
लेकीन नतीजा वही,
अनुश्री बुरी तरह बोखला गई थी, तड़प रही थी,
लगता था जैसे ये langcha बाहर नहीं निकला तो मर जाएगी वासना से.
अनुश्री ने एक जोर ओर लगाया इस बार और जोर से, उसकी गांड भींचती चली गई.
"आआहहहह......उफ्फ्फफ्फ्फ़.....हमफ...हमफ....थोड़ा सा हिस्सा बाहर आया लेकीन वही दम टूट गया, langcha वापस अंदर समा गया.
हे भगवान
उसे बाहरी मदद कि आवश्यकता थी.
अपनी गांड को पीछे किये हुए, अनुश्री पुरी तरह से अपनी योनि मे खोई हुई थी, उसका ध्यान सामने शीशे मे बिल्कुल भी नहीं था, एक बार सामने देख लेती तो मान जाती कि कामदेव ने उसकी सुन ली है.
अनुश्री के ठीक पीछे खड़ा फारुख उस हसीन कामपपरी कि कसमाकस को देख रहा था, उसके कमर का नीचे का हिस्सा बिल्कुल नंगा था ना जाने वो कब अपने पजामे को त्याग चूका था.
उसका लंड बुरी तरह खड़ा हो सलामी दे रहा था, नशे मे धुत्त फारुख भूल गया था वो यहाँ किसलिए आया है, वो अनु से कुछ काम से मिलने आया था, लेकिन इस एक नज़ारे ने उसका उदेश्य बदल दिया.
स्त्री का एक कामुक छिद्र अच्छे अच्छे मर्दो का लक्ष्य बदल देता है.
ऐसा नजारा देख के जिस मर्द का ईमान ना डोळे तो मर्द ही कैसा.
अनुश्री पुरी सिद्दत से अपनी योनि को टटोल रही थी, उसकी ऊँगली योनि कि दरार मे चलती जा रही थी,
वो अपनी योनि को घिस रही थी इस उम्मीद मे कि langcha रुपी जिन उसकी योनि से बाहर निकल आये.
कि तभी एक बलिष्ठ मजबूत कड़क चीज अनुश्री कि गांड कि दरार मे जा लगी.
"आअह्ह्हह्म्म्मम्म.....अनुश्री उस चीज कि गर्माहट से सिहर उठी, चित्कार उठी, उसका जिस्म सीधा हो गया, नजरें सामने शीशे पर गई.
उसके ठीक पीछे फारुख किसी हैवान कि तरह खड़ा था. आहहहहह......अनु मैडम " फारुख भी अनुश्री कि कामुक गांड कि गर्मी पा कर सीहर गया.
"फ़फ़फ़फ़....फ़फ़फ़......फारुख तुम " बस इतना ही बोल सकी.
पीछे से फारुख के मजबूत हाथ उसकी गर्दन पर जा कसे.
अनुश्री का पूरा बदन पसीने से नहा गया, लगता था पैरो के नीचे जमीन ही नहीं है वो हवा मे थी मात्र एक मजबूत लंड कि छुवन से.
इस बार भी मुसीबत मे घिरी अनुश्री कि मदद को फारुख आ गया था.
घोर आश्चर्य लिए अनुश्री आंखे फाड़ी सामने शीशे मे देखे जा रही थी.
पीछे फारुख अपनी कमर हिला रहा था, अनुश्री कि वो काम दरार चासनी से इस कद्र सनी हुई थी कि फारुख का लंड फिसलता हुआ गुदा छिद्र को टटोलता योनि छिद्र पर जा लगा.
"इस्स्स्स......अअअ......हहहह....फारुख " अनुश्री कि आंखे बंद हो गई यहीं तो चाहिए था, इसी बाहरी उम्मीद कि ही तो आवश्यकता थी उसे.
ये वक़्त सोचने का नहीं था कि फारुख क्यों है, कैसे है,
बस उसके पास एक मजबूर मर्दाना लंड है जो उसकी कामुक चासनी से भरी दरार ने समा गया था.
इस झटके से अनुश्री ने अपनी जांघो को कस लिया, गांड को भींच लिया.
जैसे वो फारुख के लंड को कैद कर लेना चाहती थी.
लेकीन फारुख का लंड आज़ाद पंछी था कैद मे कैसे रहता.
फसरुख ने कमर पीछे कि, लंड योनि को छेड़ता गांड के छेद पर आ लगा, उसकी कमर वापस से आगे को हुई, लंड गुदा छिद्र को छेड़ता फिर से योनि पर जा लगा.
अनुश्री का सर पीछे फारुख के मजबूत कंधो पर जा टिका.पीठ फारुख कि छाती से जा लगी. जिस्म पुरी तरह से पसीने से तर
हो गया था. स्तन किसी भी वक़्त ब्लाउज फाड़ कर बाहर आ सकते थे.
ये वो मजबूत जिस्म था जो उसकी बेलगाम जवानी को संभाल सकता था.
"फ़फ़फ़फ़....फारू...ख..ख..." अनुश्री के हलक से आवाज़ तक नहीं निकल पा रही थी.
फारुख के हाथ अनुश्री के पसीने से भीगे पेट पर रेंगने लगे, एक मजबूत खुर्दरे हाथ उसके कोमल नाजुक पेट को भींच रहे थे.
पीछे फारुख का लंड उस दरार को खोदने मे लगा था, जैसे फ़ैलसा ही नहीं कर पा रहा हो पहले किस कुएँ मे उतरे, दोनों ही कुएँ काम,वासना से भरे थे.
इसी कसमकास मे फारुख का लंड गुदा छिद्र से योनि तक का सफर कर लौट आता फिर वही पहुंच जाता.
एक जंग से छिड़ गई थी..
अनुश्री वासना से जल रही थी इसी वासना मे उसके हाथ ऊपर उठ गये,जैसे वो कुछ कहना चाह रही हो..
गोरी साफ चिकनी कांख ठीक फारुख के मुँह क सामने थी, वहाँ से नुकलती कामुक गंध ने फारुख को जैसे आदेश दिया हो.
फारुख का सर नीचे झुकता चला गया, उसकी गन्दी जबान लापलापति से बाहर आ गई.
"ईईस्स्स.....आअह्ह्ह....." जीभ अनुश्री कि कांख पर जा लगी.
अनुश्री ने गांड,जाँघ कस के भींच ली,फारुख का लंड उस दरार मे बुरी तरह फस गया था.
फारुख ने कमर पीछे करनी चाही लेकीन मजाल कि एक इंच भी सरक जाये, वासना मे डूबी स्त्री से कोई जीत सकता है भला.
फारुख कि जीभ सुड़प सुड़प सुड़प कर अनुश्री कि कांख को चाटे जा रही थी,
अनुश्री अपनी गर्दन को इधर उधर पटके जा रही थी.
फारुख कि नजर सामने शीशे पर गई एक हुस्न कि परी उस बदसूरत काले कलूटे आदमी के आगोश मे समाई हुई थी.
अनुश्री के साथ ब्लाउज फाड़ देने पर आतुर थे, सांस के साथ बाहर आते तो अंदर चले जाते.
फारुख उन बेचारे स्तनों का संघर्ष देख ना सका उसके हाथ उठ गये,
"आआआआहहहहहहह.......फारुख...." फारुख मे हाथो ने अनुश्री के दोनों स्तन पे कब्ज़ा जमा लिया था, वहसी जानवर कि तरह स्तन को निचोड़ रहा था जैसे आज उखाड़ ही फेंकेगा.
उसकी जीभ कांख मे चल रही थी.
ये वासना कि अति थी हद के पार का मामला था.
अनुश्री कि जाँघे ढीली पड़ती गई, उसकी कमर खुद फारुख के लंड पर रेंगने लगी.
फिर से वही युद्ध शुरू हो गया, अनुश्री फारुख के मजबूत लंड पर अपने दोनों कामुक छेदो को घिस रही थी.
फारुख कस कस कर अनुश्री के स्तन भींच रहा था, स्तन इस कदर फूल गये थे कि फारुख जैसे हैवान के हाथो मे नहीं समा रहे थे....
"आअह्ह्ह.....फारुख....का...कस के " अनुश्री आखिर बोल गई.
अब फारुख भी अपनी कमर को आगे पीछे करने लगा.
पीछे खींचता तो अनुश्री भी उसके लंड पर अपनी गांड पीछे को फेंक देती, जो फारुख के धक्के से ही आगे जाती.
फारुख का लंड इस घिसावाहट से फूल के कुप्पा हो गया था, योनि द्वार पर रुकता, वहाँ फसता हुआ आगे को निकल जाता
अनुश्री कि जांघो के बीच से आगे झाँकने लगता.
"आअह्ह्ह.....आअह्ह्ह.....फारुख."
"उउउफ्फ्फ.....अनु "
टकराव चालू था, घिसाव जारी था, अनुश्री कि चुत से निकला रस पुरी तरह से उसकी जांघो को भीगा चूका था.
पच...पच....चप....चप....कि आवाज़ से बाथरूम गूंज उठा.
फारुख का लंड आगे अनुश्री कि चुत के दाने से जा टकराने लगा, अतिकामवासना मे योनि का ये अंग बाहर निकल आया था, आखिर उसे भी ये सुख चाहिए था.
धच....धच...फच....फच....फारुख लंड घिसे जा रहा था, अनुश्री गांड पटक रही थी, स्तन लाल हो गये थे.
"आअह्ह्ह...फारुख " अनुश्री को फिर से वो दबाव महसूस होने लगा, नाभि के नीचे गर्म लावा सा बहता महसूस हुआ,
लगता था चुत फटने कि कगार पर आ गई.
आअह्ह्ह.....अनु.....मैम...मै.....गया " फारुख ने कस कस कर धक्के लगाने लगा
अनुश्री का पूरा जिस्म थारथरा रहा था, फारुख के दमदार जिस्म के साथ अनुश्री का कोमल जिस्म उठता चला गया.
फच फच फच....."आअह्ह्हभ.....अनु..."
"उफ्फ्फ......इससससस......आअह्ह्हम...फारुख" अनुश्री चित्कार उठी
सससससससरररर.....
फचाक से langcha अनुश्री कि चुत से निकल गया, साथ ही एक फववारा छूट पड़ा जिसमे पेशाब था, काम रस था, langcha कि चासनी थी.
जवालामुखी का अवरुद्ध हट चूका था, फच फच करती एक गर्म लावे कि धार फुट पड़ी.
बेसम इस लावे मे फारुख का लंड पिघल जाये.
"आअह्ह्ह....अनु धच....फारुख के लंड ने वीर्य कि बौछार कर दि, सारा वीर्य अनुश्री कि जांघो के बीच से होता सामने शीशे पर जा लगा.
फारुख इस गर्म लावे को, अनुश्री कि चुत कि गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर सका.
हमफ...हमफ....हमफ.....अनुश्री वाश बेसिन पर हाथ रखे हांफ रही थी, पीछे फारुख उसके जिस्म से भीगा कराह रहा था.
दोनों का पसीना आपस मे मिल कर एक अजीब सी कामुक गंध फैला रहा था.
अनुश्री असीम आनद कि प्राप्ति कर रही थी, उसे जो सुकून मिला था वो लफ्जो मे नहीं कहाँ जा सकता था.
ये सिर्फ वही स्त्री महसूस कर सकती है जो वासना से लाचार है,लेकीन वासना को सीने मे दबा कर चलती है.
हर किसी का भाग्य अनुश्री जैसा नहीं होता.
"मैडम.. अनु मैडम हमफ .हमफ....मै ये..ये "
फारुख कि आवाज़ से अनुश्री जैसे वॉयस धरती पर लौट आई हो, नजरें उठा के देखी सामने शीशा फारुख के वीर्य से भीगा हुआ था, सामने अनुश्री खड़ी थी, उसके स्तन लगभग बाहर थे, पल्लू जमीन चाट रहा था.
लगता था जैसे फारुख का वीर्य उसके अस्तित्व पर छा गया है.
"हहहह....हम्म्म...हाँ फारुख " अनुश्री कि नजरो मे सवाल था.
सावल के जवाब मे फारुख उस से अलग हुआ और नंगा ही बाथरूम के एक कोने कि तरफ बढ़ चला.
अनुश्री ने साड़ी संभाल ली थी.
फारुख वापस लौटा तो पजामा पहन चूका था, हाथ मे कागज का बंडल,और दूसरे मे दारू कि बोत्तल थी.
"ये लीजिये गट...गट..." फारुख ने कागज वाला हाथ आगे बढ़ा दिया और दूसरे हाथ मे थमी बोत्तल को मुँह मे लगा लिया.
"ययय....ये क्या है?" अनुश्री ने उन पेपर्स को थाम लिया.
"ये मेरी प्रॉपर्टी के ओरिजनल पेपर्स है, जो मेरे पिता ने मेरे नाम किये थे, मुझे सिर्फ आप से उम्मीद है हिचहहम....गट..गट...गट.." एक घुट और पी लिया.
चरररम...बाथरूम का दरवाजा खुलता चला गया, फारुख बाहर निकल गया.
बाथरूम मे खड़ी अनुश्री कभी पेपर को देखती तो कभी जाते हुए फारुख को.
"कैसा आदमी है जैसे अहसान कर के गया हो, खुद कि जिम्मेदारी मुझ पर डाल गया, ठीक से बात तक नही करता, कल जब नशा उतरा तो भोला बन रहा था, अब देखो इसे, नशे मे सब भूल जाता है लेकीन मुझे नहीं भुलता " अनुश्री खुद कि सोच पर मुस्कुरा दि.
उसके कदम टॉयलट कि ओर बढ़ गये.
बाहर फारुख जैसे आया था वैसे ही पीछे के रास्ते निकल गया.
परन्तु जैसे ही रेस्टोरेंट के सामने पंहुचा..धाआआ...धड़ाम.....किसी से टकरा गया.
"उडी बाबा कि कोरता है साला " फारुख दोनों बंगलियों से जा टकराया.
"हिचहहम...कौन है बे साला मेरा रास्ता रोकता है " फारुख उठ खड़ा हुआ
चाटर्जी मुख़र्जी कि नजर जैसे ही फारुख पर पड़ी
"उडी बाबा बोंधु ये तो वही है " चाटर्जी ने लपक कर फारुख को दबोच लिया.
"साला तुमको कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा आज खुद ही हमसे टकरा गया हरामी " मुखर्जी ने भी उसकी गर्दन दबोच ली.
"ममम....मैं....मैंने क्या किया....तत्तत..तुम कौन हो " फारुख का नशा काफूर हो गया, हलक सुख गया
उसने लगने लगा था कि वो मुसीबत मे है.
"सोब बताएगा साला सोब बताएगा, पहके ये बता इस जनता है " मुखर्जी ने जेब से एक फोटो निकल फारुख के सामने लहरा दि.
जैसे ही फारुख कि नजर फोटो पर पड़ी "ररररर......रु...रक....रुखसाना " फारुख को जैसे 440 वोल्ट का झटका लगा था.
इतने साल बाद कोई रुखसाना के बारे मे क्यों पूछ रहा है?
"बस बोंधु अब तुम गया काम से, बाकि सवाल जवाब बाद मे " चाटर्जी मुखर्जी, फारुख को घसीटते अपने साथ ले उड़े.
पीछे सड़क पर रह गई एक दारू कि आधी भरी बोतल और एक बटन जो शायद अनुश्री के ब्लाउज का ही था.
अंदर रेस्टोरेंट मे
"अरे तुम कब आये मंगेश?" अनुश्री वापस आ चुकी थी
ब्लाउज पुरी तरह साड़ी से ढाका हुआ था, किसी के नजर मे नहीं था कि उसके ब्लाउज का बटन टूट गया है.
"थोड़ी देर पहले ही आये हम लोग, बंगाली अंकल यहीं बैठे थे वो लोग अभी गये यहाँ से"
"ह्म्म्मम्म....अनुश्री ने राहत कि सांस ली ये जानकर कि बंगाली बूढ़े जा चुके है.
मंगेश ने लंच ले लिए ऑर्डर दे दिया था, अनुश्री को भी दबा कर भूख लग आई थी.
"मंगेश.....?"
"हम्म्म्म......?"
"टिकट मिल गये?"
"हाँ "
"खो...खो...खो.....अनुश्री के गले मे खाना फस गया, उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी टिकट मिल जायेगा.
"अरे क्या करती हो आराम से खाओ,लो पानी पियो "
"गट....गट...गट...अनुश्री एक बार मे पूरा पानी पी गई.
उसका चेहरा उतर गया था, ना जाने क्यों उसे यहाँ से जाना अच्छा नहीं लग रहा था.
लगता था कुछ छूट रहा है, कुछ है जो रोक रहा है.
"कल शाम 5बजे कि ट्रैन है अहमदाबाद कि "
अनुश्री का सर झुकता चला गया, आंखे नम हो गई.
दिल चित्कार उठा " मुझे नहीं जाना मंगेश मुझे नहीं जाना सुबुक "
तो क्या किस्सा यहीं खत्म? यात्रा समाप्त हुई?
लेकीन सवाल तो बहुत है, फारुख का क्या होगा? चाटर्जी मुखर्जी है कौन?
मै बड़े दुखी मन से लिख रहा हूँ कि अनुश्री जा रही है वापस अपने अहमदाबाद.
प्लीज कोई अनुश्री को रोक लीजिये.
Ab ye kya naya kissa aa gaya bengali bandhu kaise jaante hai rukhsana ko...maza aane waala h kahani me... waiting
ReplyDeleteवो तो अगला अपडेट ही बताएगा इन बंगाली बंधुओ का क्या रिश्ता है रुखसाना से?
Deletekya suspense hain.....bhai par mangulal ko bhi to moka do
ReplyDeleteसबकी बारी आएगी 👍
DeleteVery good updates
ReplyDeleteBahut achi story hai.