मेरी बीवी अनुश्री भाग -49
अपडेट -49
फारुख अपनी मंजिल कि ओर बढ़ रहा था. सीढ़ी चढ़ के ऊपर को आया तो पाया कि वो एक गली नुमा जगह पर है, सामने से रेस्टोरेंट दिख रहा था, कहाँ काफ़ी लोग बैठे खाना खा रहे थे.
उसने गर्दन उठा उठा कर देखना चाहा लेकीन अनुश्री कहीं नहीं दिखी.
"कहाँ बैठी है ये अनु मैडम?, कैसे ढूँढू "
फारुख आगे बढ़ा ही था कि सामने ही लेडीज टॉयलट था,
उसके दिमाग़ मे कुछ कुलबुलाने लगा
"हाँ ये जगह ठीक रहेगी, खाना खाने के बाद तो यहीं आएगी" फारुख खुद के दिमाग़ कि दाद देते हुए लेडीज टॉयलट मे दाखिल होता चला गया.
वही रेस्टोरेंट मे अंदर अनुश्री खुद को काबू करने कि कोशिश मे थी, लेकीन वासना कहाँ काबू आती है कभी.
अनुश्री का भी यहीं हाल था, कमर सीधी किये हुए उसके दोनों कोहनिया टेबल पर टिक गई थी, नीचे चाटर्जी और मुखर्जी के हाथ उस अनमोल खजाने को ढूंढ़ रहे थे परन्तु अनुश्री कि जाँघे अभी भी उस कामरुपी नदी को दबाये हुए थी.
"ये राजेश और मंगेश आये नहीं अभी तक?" रेखा ने प्रश्न किया
"ववव....वो...इससे.....आ जायेंगे माँ जी, ये काला जाम कितना स्वादिस्ट है ना?" अनुश्री ने खुद के अंदर उठते तूफान को संभाल के कहा.
"हाँ अनु मुझे भी अच्छा लगा " रेखा ने एक पीस और ले लिया.
रेखा के सवाल से अनुश्री का ध्यान भंग हुआ ही था मुख़र्जी और चाटर्जी ने दोनों पैरो को पकड़ अपनी तरफ खिंच लिया.
"हहहहम्म...इसससस...." अनुश्री कि गीली पैंटी से एक हवा
का ताज़ा झोका टकरा गया.
.
ये अहसास ऐसा था कि इसे रोका नहीं जा सकता था,कहीं और होती तो बेशक चीख पड़ती, लेकीन उसने अपने होंठो को दांतो तले दबा लिया.
रेखा का ध्यान खाने या फिर मोबाइल मे ही था.
सामने ऐ समस्या नही थी.
"अंकल....प्प्पप्लालज़्ज़ज़...अब नहीं " अनुश्री ने विनती कि.
"क्या अनु अभी तो कुछ खाया ही नहीं, देखो कितने रस से भरे है ये मोटे काले जोम " मुखर्जी ने बात को वही काट दिया.
"रेखा जी आप ही समझाइये इसे ऐसे मौके फिर नहीं आते, अच्छे से खाये चूस कर " चाटर्जी ने रेखा को भी इन्वॉल्व कर किया.
"ठीक ही तो कह रहे है अनु बेटा, एक दिन मीठा खा लोगी तो मोटी नहीं हो जाओगी " सभी हॅस पड़े बस अनुश्री खिसयानी हसीं हॅस के रह गई..
कैसे कहे कि ये दोनों क्या खिलाने मे लगे है.
दोनों बंगाली के हाथ अनुश्री के अंदर कि जांघो को टटोल रहे थे, वो जानते थे ज्यादा समय नहीं है.
तभी चाटर्जी का हाथ अनुश्री कि गीली पैंटी पर जा लगा.
"छ्हह्म्मम्म्म्म....इससे.स....अनुश्री का रोम रोम खड़ा हो गया, मुँह मे एक रसोगुल्ला ठूस लिया ताकि आवाज़ बाहर ना आये..
कितनी समझदार हो गई थी अनुश्री.
चाटर्जी के हाथ पैंटी के ऊपर ही रेंगने लगे " यहाँ तो बहुत चासनी है अनु"
अनुश्री कि चुत इस कद्र गीली हो गई थी कि पैंटी के बाहर से ही उस रस को महसूस किया जा सकता था,
चाटर्जी ने उस कामरस से अपनी उंगलियों को सरोबर कर बाहर निकाल लिया,
अभी अनुश्री हैरान कुछ समझती कि चाटर्जी ने वो दो उंगलियां अपने मुँह मे डाल चूस ली
"आअह्ह्हह्म.....मुखर्जी क्या स्वाद है, क्या रस है"
अनुश्री को तो काटो खून नहीं, कोई आदमी भरे रेस्टोरेंट मे उसकी चुत से निकले पानी को छत रहा था वो भी सबके सामने.
"क्या सच मे इतना टेस्टी है " मुखर्जी कि उंगलियां भी अनुश्री कि पैंटी के गीले हिस्से पर दौड गई.
अनुश्री मुँह मे रोसोलगुल्ला दबाये बैठी थी, आंखे बार बार बंद हो जाने पर आतुर थी,
उसे असीम आनंद कि प्राप्ति हो रही थी.
बंगाली बंधु तो कबका उसकी जांघो को छिड़ चुके थे,लेकीन वो खुद से अपनी टांगे फैलाये निमंत्रण दे रही थी.
मुखर्जी कि उंगलियां कुछ और टटोल रही थी, उसकी ऊँगली पैंटी के एक तरफ जाँघ वाले हिस्से से जा लगी, मुखर्जी का चेहरा खिल उठा.
दो उंगलियां सरसराती सी उस हिस्से से अंदर जा धसी और सीधा उस दरार के बीच जा रुकी जहाँ से ये काम रस निकल रहा था.
"हहहहम.....अनुश्री कसमसा कर रह गई, पूरा दम लगा कर उसने अपनी चुत कि फंको को भींचना चाहा.
लेकीन इस चाहत मे चुत से निकली रस कि धार पैंटी को पुरी तरह से भीगा गई.
लेकीन सब व्यर्थ मुखर्जी कि उंगलियां उस दरार मे ऊपर नीचे चल रही थी, जैसे कुछ खोद रही हो.
अभी ये कम ही था कि दूसरी तरफ से चाटर्जी कि ऊँगली भी चली आई.
दोनों बंधु आपस मे मिल गये, और ऐसे मिले जैसे कुम्भ के मेले मे बिछड़े हो.
मिलने कि क्या जगह चुनी थी दोनों भाइयो ने अनुश्री कि नदी रुपी चुत के किनारे मे दोनों उंगलियां आपस मे गले मिल रही थू.
इस मिलन मे अनुश्री कि चुत के दोनों किनारे आपस मे चिपक जाते फिर खुलते तो धुलुक कर एक धार बह जाती,
अनुश्री कि हालत अब ख़राब हो चली थी, या तो जोर से चीख दे या फिर पुरी बेशर्म हो जाये.
लेकिन...नहीं....कभी नहीं...भारतीय नारी समाज संस्कृति मर्यादा का चोला ओढ़ी हुई कैसे कर सकती है मनमानी.
अनुश्री ने भी नहीं कि जैसे तैसे खुद को संभाल लिया, फटता जवालामुखी पर काबू पाने के लिए पास पड़े गिलास को उठा लिया और एक ही पल मे गुलुप गुलुप पूरा ग्लास खाली कर दिया.
लेकीन हुआ कुछ नहीं, भला एक गिलास पानी जलते लावे के दरिये को शांत कर सकता है.
दोनों बंगाली उसकी स्थति समझ रहे थे, खतरा था, भीड़ थी, दोनों के हाथ बाहर आ गये.
लगभग पुरी हथेली कामरस से भीगी चमक रही थी, दोनों कि जीभ एक साथ बाहर निकली और अपनी उंगलियों पर चल पड़ी.
ये दृश्य देख अनुश्री का मन हुआ कि निचोड़ दे अपनी योनि को यहीं, लेकीन नहीं.....
बस एक शून्य कामुक नजरों से देखती ही रह गई.
"वाह चाटर्जी तूने सही कहाँ था क्या रस है यार " मुखर्जी ने चाटर्जी को दाद दे दि.
"लो बताओ हम ही रस चाटने मे बिजी है अनुश्री ने कुछ खाया ही नहीं अभी " चाटर्जी ने खाली प्लेट को देखते हुए कहाँ.
"नननन....नहीं...अब नहीं "
"क्या नहीं हमारे रहते तुम इस बंगाली स्वाद से वंचित रह गई तो थू है हम पर "
मुखर्जी ने एक काला जाम उठा लिया, और चाटर्जी ने langcha.
मुखर्जी के हाथ अनुश्री के मुँह कि ओर बढ़ गये " लो मेरे हाथ से खाओ "
"मै भी खिलाऊंगा भाई आखिर बंगाल कि इज़्ज़त का सवाल है " चाटर्जी ने भी हाथ आगे बढ़ा दिये लेकीन ये क्या
चाटर्जी का हाथ टेबल के नीचे चला गया,
ऊपर मुखर्जी का काला जाम अनुश्री के होंठो को छू गया, और टेबल के नीचे चाटर्जी का langcha अनुश्री कि योनि के होंठो को छू गया.
अनुश्री भोचक्की से बैठी रह गई, उसके ये सोचा भी नहीं था.
उसके दोनों होंठ भरे हुए थे.
"खाओ अनु मुँह खोलो " मुखर्जी ने अनुश्री के होंठो पर दबाव बना दिया.
नीचे चाटर्जी के हाथ भी योनि रुपी होंठो पर दबाव बना रहे थे जैसे कहना चाह रहे हो ये होंठ भी तो खोलो.
अनुश्री इस तरह का उन्माद जीवन मे पहली बार महसूस कर रही थू, उसकी नाभि से जवालमुखी सरकता हुआ चुत के मुहने पर आ खड़ा हुआ, स्सखालन नजदीक ही था,
कामुकता से लेबरेज़ अनुश्री के ऊपर के होंठ खुलते चले गये, काला जाम मुँह मे सामने लगा, बस चुत से फववारा फटने ही वाला था ही पिचहहम...पच....से चाटर्जी ने पूरा langcha अनुश्री कि योनि मे ठेल दिया.
"उम्म्म्म....उम्म्म्म......" बेचारी चीख भी ना सकी पूरा जिस्म पसीने से नहा गया, वो स्सखालित होने ही वाली थी, गर्म लावा निकलने ही वाला था चाटर्जी ने langcha से योनि का मुख ही बढ़ कर दिया.
"हुम्म्मफ.....हुम्म्मफ़्फ़्फ़......मै आयी अभी.
"क्या हुआ बेटा " रेखा ने पूछा.
"माँ जी टॉयलेट " अनुश्री कि जो हालत थी वो एक पल भी रूकती तो पक्का पकड़ी जाती.
वो नहीं रुकी उठने से उसकी साड़ी वापस नीचे आ लगी,
पुरी योनि जाँघे सब चिपचिपा हो रहा था, उसके तेज़ तेज़ चलने से जाँघे और योनि से पच पच कि आवाज़ आ रही थी.
शुक्र था भगवान का...कि टॉयलेट पीछे ही था, अनुश्री ने जैसे दौड लगा दि.
उफ्फ्फ....अनुश्री लड़ रही थी खुद से,खुद कि वासना से.
क्या उसे राहत मिलेगी?
बने रहिये कथा जारी है.....
Post a Comment