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मेरी बीवी अनुश्री भाग -12

अपडेट -12


रूम नंबर 102

अनुश्री बाथरूम मे चली आई थी उसके जहन मे अब्दुल के कहे शब्द गूंज रहे थे "मैडम अब खुजली मिटा लो "

"हाँ तो मिटा लुंगी ना मेरा पति साथ है मेरे" अनुश्री खुद को ही अब्दुल कि बात का जवाब दे रही थी शीशे के सामने झुकी हुई जहाँ उसकी ब्लाउज से भिगे हुए स्तन झाँकते दिख रहे थे.


उसने गौर से देखा तो पाया कि ब्लाउज के मध्य मे दो छोटे छोटे उभार दिख रहे है अंजानी कशिश मे अनुश्री ने दोनों हाथो से पकड़ के उन उभरो को छू दिया "आअह्ह्हम्म्म...एक मीठे से अहसास ने उसके बदन को भिगो दिया,आज से पहले उसने कभी अपने बदन मे इस तरह कि उमंग,उत्तेजना नहीं महसूस कि थी और इन सब का कारण कही ना कही ट्रैन मे हुई घटना ही थी उस छोटी सी घटना ने उसके अंदर कि नारी को जगा दिया था.

अनुश्री ने अपनी साड़ी खोल दी अब वो सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट मे खुद को शीशे मे निहार रही थी,ना जाने क्यों उसने अपना एक हाथ ऊपर उठा के अपने बालो को पीछे कर दिया, गोरी साफ चिकनी कांख चमक उठी जिसे देख एक पल को खुद ही शर्मा गई,उसे याद आया कि कैसे मिश्रा नाक घुसा के सूंघ रहा था,चाट रहा था....वो खुद कि खूबसूरती को शीशे मे निहारने लगी.

अनुश्री से राहा नहीं गया,उसने अपने चेहरे को अपनी कांख के पास किया और एक लम्बी सांस खींची एक पसीने से भीगी मादक गंध से उसका कलेजा हिल गया आज पहली बार उसने ये हरकत कि थी खुद को कांख को सुंघा था,वो जान ना चाह रही थी कि मिश्रा को इसमें क्या मजा आया होगा, उसकी आँखों मे लाल डोरे तैर गए,कांच मे खुद को देखते हुए उसने अपनी जीभ को हल्का सा बाहर निकाला और अपनी कांख मे छुआ दिया

"इईईस्स्स्स........आअह्ह्ह.....एक मीठी सी गुदगुदी से उसकी आंखे बंद होती चली गई,ये गुदगुदी कांख से होती सीधा नाभि पे जा लगी,जैसे किसी ने छुआ हो उसे,उसकी सांसे तेज़ हो गई....

एक दम से उसने आंखे खोल दी "मै यहाँ हनीमून मनाने आयी हूँ,मेरा पति ही खेलेगा मेरे बदन से और कोई नहीं मै खुद भी नहीं " उसने खुद से ही निर्णय लिया और एक कामुक मुस्कान उसके चेहरे पे दौड़ गई


लेकिन लेकिन....मंगेश ने तो कभी ऐसी हरकत नहीं कि मेरे साथ? हो सकता है काम मे बिजी रहते है इसलिए ना कर पाए हो लेकिन यहाँ कौन है सिर्फ मै और वो.

अनुश्री खुद से सवाल करती और जवाब भी खुद ही दे देती.

"अरे मेरी जान आ भी जाओ खाना आ गया है " बाहर से मंगेश कि आवाज़ आई.

अनुश्री जैसे किसी ख्वाब से बाहर आई हो

अनुश्री जल्दी से फ्रेश हुई,मुँह धोया और साड़ी वापस लपेट ली, उसने निश्चय कर लिया था कि वो खुद से ही पहल करेगी.

आज से पहले उसने ऐसा करने का कभी सोचा भी नहीं था परन्तु ना जाने क्यों आज उसके दिल ने इस बात कि गवाही दी इसे अपना बदन जलता सा महसूस हो रहा था


मंगेश :- कितनी देर लगा दी जान जोरो को भूख लगी है,मंगेश टेबल पे खाना लगा के बैठा था उसने अनुश्री कि तरफ देखा तक नहीं.

अनुश्री को लगा था कि अकेले मे वो उसकी और लपक पड़ेगा,बांहों मे भर लेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

अनुश्री के इरादे वादे हौसले सब धरे राह गए.

"क्या मंगेश यहाँ भी तुम्हे खाने कि ही पड़ी है " अनुश्री ने मुँह बन के कहा.

मंगेश :- अरे मेरी जान सुबह से ट्रैन के सफर ने थका दिया है बस खा पी के सो जायेंगे कल से फिर वही सब घूमना फिरना रहेगा.

"हे भगवान क्या मर्द मिला है मुझे " अनुश्री ने खुद कि ही किस्मत को एक बार कोष दिया और साड़ी का पल्लू ठीक करती हुई कुर्सी पे आ बैठी.

मंगेश खाना शुरू भी कर चूका था, अनुश्री कि आँखों मे वासना का दिया धीरे धीरे बुझने लगा

दोनों ने खाना खाया और सीधा बिस्तर पे धाराशाई हो गए.

अनुश्री मंगेश को तरफ पीठ कर के सोइ थी

"क्या हुआ मेरी जान नाराज हो,अच्छा आओ " मंगेश को शायद अपनी गलती का अहसास हुआ था उसने अनुश्री को अपनी तरफ पलट दिया.

अनुश्री एक पल मे ही मान गई आखिर उसे इसी बात का तो इंतज़ार था अपने पति के प्यार का उसके स्पर्श का.

"आओ हनीमून मनाते है " बोल के मंगेश ने सीधा अपने होंठ अनुश्री के होंठ पे रख दिए.

"उम्मम्मम्म......अनुश्री तो आज दिन से ही तङप रही थी" जैसे ही मंगेश के होंठ मिले सिहर उठी.

तुरंत जवाब भी दिया और उसके होंठ को अपने होंठो मे पकड़ लिया.

अपने पति का प्यार पा के अनुश्री गदगद हो गई थी, अचानक उसके मन मे आवाज़ मे आवाज गूंज गई "अब आराम से मिटा लो अपनी खुजली"

अब्दुल के कहे शब्द उसके जहन मे अभी भी दौड़ रहे थे.

मात्र इन शब्दों के कमाल ने ही उसके बदन मे अजीब सी हलचल पैदा कर दी उसकी जांघो के बीच फिर से गिलापन महसूस होने लगा.

"लेकिन ये मंगेश के चुम्बन का असर है,आज से पहले तो इस तरह महसूस नहीं किया शायद आज अकेले है इसलिए " अनुश्री खुद को ही जवाब दे रही थी.

मंगेश लगातार चुम्बन के प्रतिउत्तर से कामविभोर हो उठा,उसके लंड ने भी अपनी इच्छा जाहिर कर दी चद्दर के अंदर ही उसने अपने पाजामे को नीचे किया और अपने लंड को बाहर निकाल अनुश्री कि जाँघ पे मरने लग साड़ी के ऊपर से ही जैसे कोउ दरवाजा खटखटा रहा हो अंदर आने के लिए


अनुश्री को भी तो यही चाहिए था,इशारा समझते ही उसने अपनी साड़ी ऊपर कर दी.

मंगेश तुरंत कि किसी बन्दर कि तरह अनुश्री को सीधा कर उसपे चढ़ बैठा एक ही झटके मे अपने लंड को अनुश्री कि भीगी छोटी सी योनि मे अंदर कर दिया.

"आआहहहहहह........मंगेश " सिसकारी छोड़ती अनुश्री ने अपने दोनों हाथ ऊपर कर लिए उसकी गोरी कांख चमक उठी.

नीचे मंगेश धक्के मरना शुरू कर चूका था, जल्दी जल्दी तेज़ तेज़ ना जाने कहाँ जाना था मंगेश को इतनी जल्दी मे.

अनुश्री ने अपनी आंखे खोली वो मंगेश को ही देख रही थी,उसकी नजरों मे कुछ सुनापन था जैसे कोई याचना करना चाहती हो लेकिन मंगेश तो अनुश्री के ब्लाउज मे कैद स्तन पे सर रखे कमर हिलाये जा रहा था.

"अनुश्री को भी कुछ कुछ मजा आने लगा था उसने अपनी कांख कि तरफ देखा उसे समझ आ गया था कि क्या कमी है ना चाहते हुए भी उसकी जबान खुद बात खुद ही उसकी गीली कांख को छू गई

"आआआहहहहहह.....उम्मममममम.....मांगेश के धक्को से ज्यादा सुकून तो यहाँ था, उसकी आंखे बंद हो गई,

ट्रैन का दृश्य सामने चलने लगा मिश्रा उसकी कांख को चाट रहा था, लप लप करता.....वाह मैडम क्या खुसबू है,क्या स्वाद है.

मिश्रा अपना पूरा मुँह उसकी कांख मे लगाए कभी सूंघ रहा था,कभी नीचे से ऊपर कि तरफ चाट लेता

"आअह्ह्ह....मिश्रा चाटो,पसंद है ना तुम्हे चाटो इसे,आअह्ह्हम....." कि तभी ट्रैन रुकने लगी फच फच फच.....फाचक रुक गई.

"अनुश्री.....आअह्ह्हम.....अनुश्री मेरी जान" मै आया..करता हुआ मंगेश स्सखालित हो गया और धममम से साइड मे गिरा

अनुश्री कि आंखे खुल गई उसे एक दम से होश आया कि उसने क्या किया था अभी,वो खुद अपनी कांख चाट रही थी और बड़बड़ा रही थी.

उसका बदन जल रहा था,जांघो के बीच इतना गिलापन था कि नीचे बिस्तर गिला हो गया था,उसकी चुत से कभी इतने पानी का रिसाव कभी नहीं हुआ था.

उसने गर्दन घुमा के मंगेश कि तरफ देखा,जो कि उसकी तरफ पीठ घुमाये सांसे भर रहा था,शयद वो इस कदर गिलापन सहन ना कर पाया.

अनुश्री कि नजर से ट्रैन का दृश्य पूरी तरह ओझल हो चूका रहा उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है,वो किस कदर ऐसा कर सकती है वो मगेश के साथ सम्भोग कर रही थी उसने इतनी गन्दी हरकत कैसे कर दी.

साड़ी नीचे कर वो भी पलट गई,उसे दिल धाड़ धाड़ कर चल रहा था,बदन पसीने से नहा गया था बस एक कसक सी उठ रही थी उसकी जांघो के बीच होती खुजली, और वाह से रिसता पानी.

बार बार अनुश्री का ध्यान वही चला जा रहा था,उसके इस तरह कि हरकत से उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वो वहा छू के देखे. परन्तु नाभि के नीचे कुछ दबाव सा महसूस हो रहा था जैसे वहा से कुछ निकलता निकलता राह गया हो.

उस चीज का ना निकलने से एक बेचैनी पैदा हो गई थी.

ये चीज ही वासना थी जो कि अनुश्री समझ नहीं पा रही थी, वासना और आत्मगीलानी के तूफान मे फसा उसका बदन कब निंद्रा के आगोश मे चला गया उसे खुद नहीं पता.

अनुश्री धीरे धीरे अपने बदन के राज जान रही थी.


तो कैसी होंगी अगली सुबह, लेकिन रात तो अभी बाकि है?

बने रहिये कथा जारी है....

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