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मेरी बीवी अनुश्री भाग -42

अपडेट-42


sunsan sadak se hoti ek patli gali niche utar rhi thi jis pe farukh chal pda piche anushri uar mngesh pani se bhinge kampte ja rhe the.

''mangesh ye kaha ja rha h,is shrabi k paas koi jagah hogi mujhe nahi lagta. anushri ka shaq jaya tha

''kuch nahi hoga to dekhenge'' mngesh ne khud ko hi dilasha diya

sadak se utar farukh samundr ki kinare chalta hija rhatha ki ek jagah aa k thithak gya ''lo ji saab aa gyamera bangla''

mngesh anushree hairan the sadak se ye jagah dikhti hi nahi thi, charo taraf nariyal k unche unche paid aur jhaddiya unke bich ek jarjar imarat thi, jise dekh k lagta tha jaise murde hi rahte ho yaha

''ohhh to ye h tumhara bangla'' na jane kyu anushree ki hasi chhut gai.

''arey haso mat wo naraj ho gya to yaha barish me raat katni pdegi '' mngesh ne samjhdari se kaam liya

''koi baat nahi saab ab jo h yahi mera bangla ,kabhi aalishan imarat hua krti thi ,waqt k thapedo me sirf yahi  hissa bacha h baki kabka mere vajud ki tarah gir gya '' farukh ki awaz me dukh tha ek gambhirta thi , shqayad use wakai anushree ki hasi ka bura lag ho

''cchhhhhrrrrrr........ki awaz k sath hi us imarat kadarvaja khul gya, ek silan ka bhabhka dono ki naak se takra gya

''aaiye dariye nahi andar bhoot nahi rahte yaha sirf mai akela hi rahta hu.

anushri aur mngesh ne andar kadam bada diye .

farukh ne light chalu kr di bhakkkkk.....se ujala charo taraf kamre me  fail gya.

uajal hona tha ki anushree aur mngesh ki ankhe us kamre ki bhavyta dekh chakachongh ho gai,

bahar khastahaal me padi imarat me andar sabhi aaram ka saman tha, freez ,sofa, bistar, ac jo shyad ab na bhi chalta ho.

ye imarat me sirf ek yahi kamra malum hota th.


bhadddd..... se darvaja band ho gya, farukh darvaj band kr k ghuma hi tha ki uski ghighi bandh gai  samne anushri gili saree me bhigi khadi thi , farukh ka bacha khucha nasha bhi kafur ho chala ,

jaha ahushri us  kmre ki bhavyta niharne me vyasth thi wahi farukh us husn pari apsra ke didar me vyast tha.

bhigi hui anushri ke badan ka ek ek katav saaf us gili saree me jhalak rha tha.

ubhar ,uske niche sapat pet ,moti jaise nabhi, uske niche ek mahin rasta jo dono jangho ke bich ho k kahi lupt ho ja rha tha.


na jane farukh is mahin raste pe kab se nahi chala tha , is drashy ne uske rom rom ko khada kr diya.

'wah....farukh tum to wakai ameer admi ho, lekin ye sab aayakaha se tumahare pas''

mngesh ki awaz se anushri aur farukh ka dhyan bhang hua dono ki najre apas me ja mili ,jaise hi anushri ko abhas hua ki farukh  kaha dekh rha tha uske tote ud gyae kyuki use dhyan aaya ki wo bhigi hui ek gair mard k samne khadi h.

'wo....wwwooooo.......mai abhi aata hu '' farukh ek dum se jhemp gya jaise uski chori pkdi gai ho.

''mngesh thnd lag rhi h ,saree puri gili ho gai h''

''ye lijiye madam toliya , farukh ne jaise man ki murad puri ki ho.

farukh 2 toliye le k lauta tha ''saab yaha ki barish ka aisa hi h ek baar shuru to 2-3 din rukti nhi h.

''mngesh....mngesh......anushri halke se fusfusai

'kya hua ?' mngesh ne bhi vaise hi jawab diya

'bathroom.... bathroom ka pucho'' nari sulabh sharmahat ki wajah se anushri khud puchne me sharma rhi thi.

''arey farukh...tumahra bathroom kaha h?''

'bathroom...tha lekin abhi pichhle  mahine hi barish me dhah gya'' farukh ne aise muh banaya jaise use ghor afsos hua ho

mnhgesh ka muh latak gya usne mari hui shakl se anushri ki taraf dekha ''ab?...''

''peshab jana h kya ?'' farukh ne sidha hi puch liya uski najar  anushri pe hi thi

''nahi nahi....wo..wo kapde sukahane the'' halanki anushri ko peshab to aaya hi tha lekin wo farukh kon jawab dene se saaf bachna chahti thi. vaise bhi jab bathroom h hi nahi to bol k  kya fayda.

''lo itni si baat wo waha kitchen h wha sukha lo , aur saab to yahi sukha lenge hehehehe......kyu saab ''

farukh ne apni gandi battisi dikha di aur greez ki or bad chal

'' kaisa admi h ye, hume nahi aana chahiye tha'' anushri ne fusfusya

''arey koi ni ek raat ki baat h mange kr lo', jao kitchen me sukha lo saree'' anushri kamr lachkati chal di piche mngesh kpde kholne lag

itni hi der me farukh k hath me daru ki nayi bottal najar aane lagi thi

.''sala barish ne sari sharab utar di '' farukh wahi sofe pe ja baith

sofe k samne hi ek table thi uske piche wk or chhota sofa uske piche kitchen tha.

kitchn kya kahna use ek kaamvhalau kamra hi tha jaha darvaje ki jagah prda tanga hua tha.


tabhi kitchen se awaz aai thak..thak....kit pit...mngesh yaha to light hi nahi h'

mngesh ne anushri ki awwaz sun farukh ki taraf dekha

''hehehe.....kal hi balb kharab hua h saab''

farukh ki awaz andar anushri ne bhi suni ,aur uski khisyani hasi bhi

''offf....kya musibat h'' anushri khisya k rah gai

''arey farukh tumare pas koi kapda hoga ,kaamchalu jise mere kapde sukhne tak pahan saku''

saab aap bade admi h ,saaf suthre kaha mere kpde pahnenge''

farukh ne ek glass me daru udelte hue kaha.

''koi chhota bada nahi hotafarukh ,fir tumne hi to kah tha ki tumhari  ginti kabhi is shahar k amir admiyo me hua krti thi, waqt ki baat h dost''

farukh mngesh ki baat se prbhavit hua , use na jane kitne barso baad aaj kisi ne dost kaha tha, na jane kitne salo baad wo kisi se baat kr rha tha.

farukh utha aur almari khol usme se ek naya safed kurta pajama nikal mngesh ki or bada diya.

"ये लो साब यहीं एक नया कपड़ा है मेरे पास ईद के लिए बचा के रखा था.

फारुख ने आगे हाथ बढ़ा दिया.

मंगेश ने झिझकते हुए उस कुर्ते पाजामे को थाम लिया.

फारुख उसकी नजरो मे एक अच्छा इंसान बनता जा रहा था, थोड़ी ही देर मर जब मंगेश ने कुर्ता पजामा पहना तो ऐसा लगा जैसे किसी ने खूंटी पे कपड़ा टांग दिया हो "ये तो बहुत बढ़ा है यार "

कहाँ फारुख 6ft का बलशाली लम्बा चौड़ा आदमी और कहाँ मंगेश आम शहरी आदमी.

फारुख कुछ बोला नहीं बस वापस जा के सोफे पे जम गया.

हाथ मे गिलास थामे.

फिलहाल उसे दारू कि ही तालब लगी थी.

नजरें रसोई घर के पर्दे पे ही अटकी थी, एक नजर वो अनुश्री को देख लेना चाहता था


जबकि अंदर अनुश्री तौलिये से बालो को झटका के सूखा रही थी,उसकी चिंता कायम थी, कपड़े खोल के सूखने केिये रख देगी तो पहनेगी क्या?

साड़ी तो फिर भी जल्दी सुख जाएगी लेकीन ब्लाउज पेटीकोट कैसे सुखेंगे, ये तौलिया भी कब तक लपेटूंगी, बाहर भी नहीं जा सकती.

काश ये शराबी यहाँ नहीं होता तो आज मंगेश को अच्छा सबक सिखाती

अनुश्री के चेहरे पे हल्की सी मुस्कान आ गई, मंगेश के साथ हसीन पल सोचते ही उसके गीले बदन ने झझरझुरी ले ली,साथ ही एक ठंडी हवा भी कहीं से आ के उसके जिस्म से टकरा गई,

सामने ही छोटी सी खिड़की थी,

अनुश्री को ये दृश्य रोमांटिक लगा,बाल सुखाती खिलकि के पास पहुंची कि ताजी समुन्दरी हवा ने उसके जिस्म को अपने कब्जे मे ले लिया.

बाहर बादल से घिरा आसमान,समुद्र का पानी शोर पैदा कर रहा था,कुछ देर पहले जहाँ ये रात भयानक थी वही अब इस मौसम मे अनुश्री को लुत्फ़ आने लगा था


परन्तु अभी भी वो निर्णय नहीं ले पाई थी.

"मंगेश.....मांगेशम.....इधर आओ तो " आखिर कुछ ना सूझने पर अनुश्री ने मंगेश को आवाज़ लगा दि.

मंगेश जैसे ही अंदर पंहुचा "हाहाहाहाहा....।हाहाहह......अनुश्री कि हसीं छूट गई, ये क्या किसका तम्बू पहन लिया "

"तो और क्या करता,इसी शराबी का है,ईद के लिए बचाये थे बेचारा "

"कोई बेचारा वैचारा नहीं है वो...घर के सामान देखे उसके, दिन भर दारू पिता है कहाँ से लाता है पैसे,तुम किसी पे भी दया खाने लगते हो " अनुश्री ने जरा भी सहानुभूति नहीं दिखाई.

"वैसे तुमने कपड़े नहीं सुखाए " मंगेश ने चुटकी ली

अनुश्री ने गुस्से से मंगेश को देखा "हाँ कपड़े खोल दू और उस शराबी के सामने घुमु हुँह...." अनुश्री ने भी करारा जवाब दिया

"रुको मै देखता हूँ कुछ "

मंगेश बाहर को आ गया "फारुख यार एक तकलीफ और दूंगा तुम्हे "

"हीच....हिचम......अब और कपड़े नहीं है मेरे पास " शायद फारुख समस्या जान गया था या फिर उनकी फुसफुसाती बाते सुन ली थी


"मंगेश सिर्फ मुँह ताकता रह गया "

फारुख अपनी दारू पीने मे मग्न था "मै अकेला रहता हूँ साब,लड़की के कपड़ो का क्या काम,वैसर भी बरसो से किसी लड़की को हाथ नहीं लगाया है " फारुख जैसे दिल कि व्यथा सुना रहा हो.

2पैग अंदर जाते ही फारुख बड़बड़ाने लगा था.

मंगेश अभी भी वही खड़ा इधर उधर देख रहा था शायद कुछ मिल जाये.

उसकी नजर बिस्तर पे बिछी सफ़ेद सूती चादर पे गई, दिखने मे काफ़ी साफ सुथरी थी.

"फारुख बुरा ना मानो तो वो चादर से मदद हो सकती है "

"हिचम....हिचम्म...बुरा कि क्या बात है 1000rs अलग से लूंगा उसके" फारुख का अच्छा किरदार धूमिल होता जा रहा था.

उसके व्यवहार मे अचानक ही रुखापन सा आ गया.

"वैसे भी मै उसपे सोता नहीं हूँ " एक पैग और बना लिया फारुख ने.

मंगेश ने तुरंत ही वो बेडशीट उठाई और लपक लिया किचन के अंदर " लो अनु यहीं एक चीज मिली है,इसे ही साड़ी कि तरह लपेट लो जब तक "

"अअअअअ.....ऐ....मंगेश कैसी बात कर रहे हो, तुम क्या चाहते हो ये चद्दर लपेट के मै एक अनजान आदमी के कमरे मे रात काटू,दिमाग़ तो ठीक है " अनुश्री भुंभुना गई.

"महारानी जी किसी मॉल मे नहीं आई ही कि मनपसंद का कपड़ा मिलेगा,यहीं है जो है, वरना रहो रात भर इसी गीली साड़ी मे वैसे ही वो शराबी नशे मे चूर है लुढ़क जायेगा थोड़ी देर मे "मंगेश उस सफ़ेद चादर को अनुश्री के हाथ मे थमा के बाहर को आ गया,उसके चेहरे पे गुस्सा था "क्या औरत है मुसीबत मे भी डिमांड नहीं छूट रही " मंगेश बुदबूदाता हुआ बाहर आया.


बाहर आ फसरुख के सामने रखे छोटे सोफे पे बैठ गया.

फारुख अपनी ही मस्ती मे था.

"यार ये तो ठण्ड लगने लगी " मंगेश बड़बड़या

सररररर......एक गिलास सरकाता हुआ फारुख ने आगे रख दिया, पिलो साब आपका ब्रांड तो नहीं है लेकीन गर्मी ला देगा शरीर मे.

बड़ी मासूमियत से फारुख बोला

मंगेश कि भी जैसे यहीं इच्छा थी काँपते हाथ उसने बढ़ा दिये और उस स्टील के गिलास को थाम लिया, नाक के पास ला के सुंघा तो एक उबकाई सी आ गई वववकककक......

"क्या है ये " मंगेश का मुँह बिगड़ गया

"अरे साब हिचहहह......देशी है देशी आग लगा देती है तन बदन मे,एक घुट मे पी जाओ" फारुख मुस्कुरा गया

मंगेश ने एक पल सोचा कि वापस रख दें लेकीन बारिश मे भीग के ठंडा हुआ बदन कुछ और ही कह रहा था.

गुटूक.....गुलुप......याकककक.....उफ्फफ्फ्फ़.....मंगेश ने हिम्मत दिखाते हुए एक ही झटके मे गिलास खाली कर दिया.

उसकी आंखे बाहर को आ गई,ऐसा लगा जैसे किसी ने जलता हुआ लावा उसके मुँह मे भर दिया है,वो लावा बहता हुआ उसके पेट मे जा के फैलने लगा, एक गर्मी सी पुरे शरीर मे दौड़ गई

कुछ पल के लिए सन्नाटा सा छा गया "यफ्फ्फ्फम्म.....आअह्ह्ह......क्या चूज़ी थी फारुख ये, गर्मी सी लगने लगी एक पैग मे ही उफ्फफ्फ्फ़....." मंगेश नार्मल हुआ.

उसका तन बदन अब जागरूक हो चला, नतीजा हल्का सा शुरूर दिमाग़ पे छाने लगा, वैसे भी मंगेश को शराब कि आदत नहीं थी ऊपर से ये कच्ची खींची हुई दारू.


मंगेश का तो मामला बन गया था लेकीन अंदर अनुश्री अभी भी सोच मे ही थी कि क्या करे, अब उसका गिला बदन काँपने लगा था "मंगेश का कहना ठीक ही है वो फारुख लुढ़क ही जायेगा,कितनी तो पी रखी है उसने " अनुश्री फैसला ले चुकी थी

उसने साड़ी का पल्लू हटा दिया....कि तभी एक कड़कती हुई बिजली चमकी....आवाज़ और चमक से रसोई का अंधेरा कमरा जगमगा गया,

एक तेज़ हवा भी साथ ही चली रसोई का पर्दा जरा सा उड़ गया

रसोई के ठीक सामने ही सोफे पे बैठा फारुख जैसे जड़ हो गया हो,

उसके सामने दुनिया का सबसे खूबसूरत नजारा था.

सामने गीले स्लिवलेस ब्लाउज मे खड़ी अनुश्री अपनी साड़ी को पकड़ निचोड़ रही थी, सपाट गोरा पेट,उसमे चमकती नाभि का अहसास फारुख को बखूबी मिला


उसको जरा भी आभास नहीं था कि हवा से पर्दा हटा और वापस जगह मे आ लगा.

फारुख का नशा पल भर मे ही काफूर हो गया, 2 पल के लिए ही सही उसने जो देखा था उसके लिए आदमी जान दें देता है.

सुनहरी,बिजली कि रौशनी मे चमकती अनुश्री साड़ी सूखा रही थी.

"क्या...हुआ.....फारुख..एक पैग और बना दो मेरे लिए "

मंगेश कि आवाज़ ने जैसे उसके सोते से जगाया हो

"अअअअअ हाँ हाँ......साब ये लो " फारुख कि नजर पर्दे पे ही थी जैसे तो वो पर्दे के आर पार देख लेना चाहता हो.

मंगेश ने तुरंत ही गिलास थम लिया और गुटूक....गुटूक...दो घूंट मे ही गिलास खाली कर दिया.

अजीब सा गर्म लावा उसकी जबान से होता शरीर मे फ़ैल गया.

लगता था फारुख ने इस बार मोटा पेग बना दिया था


उसका हाथ कहाँ नियंत्रण मे था अब उसका तो वजूद ही कांप रहा था.

"तुम नहीं लोगे क्या फारुख " मंगेश मे नशा हावी हो रहा था धीरे धीरे उसे ये कच्ची दारू भी अच्छी लगने लगी थी.

शराब पीने वालो के साथ ये आम बात है,थोड़ी शराब चढ़ने पे और पीने कि इच्छा करती है

वही हाल मंगेश का भी था.

ठण्ड को दूर करने के लिए पी गई शराब अब और डिमांड कर रही थी.

"हा....अअअअअ..हाँ....बनाता हूँ " कहना मुश्किल था कि फारुख कि जबान शराब के नशे मे लड़खड़ा रही थी या फिर जो उसने अभी देखा था उस वजह से.

फारुख ने काँपते हाथो से दो पैग बना दिये.

फारुख उस जाम को मुँह से लगाता ही कि रसोई का पर्दा एक बार फिर हवा से उड़ा,

इस बार का नज़ारा जान ले लेने लायक था,अंधेर मे एक कामुक सी काया का आभास हो रह था,उस काया पे वस्त्र नाम कि कोई चीज नहीं थी,हालांकि अंधरे मे सिर्फ आकृति का ही आभास हो रहा था परन्तु वही काफ़ी था उस कामुक दृश्य कि कामुकता को बयान करने के लिए.

पर्दा गिरा.....2 पल मे फिर हटा.

अनुश्री के हाथ मे एक काली गीली पैंटी थी जिसे वो कुर्सी पे रखने के लिए हाथ बढ़ा रही थी.

पर्दा फिर गिर गया.

आज खुदा भी मेहरबान था फारुख पे, कि तभी.....खर.....खरररररर.....खररर...

कि आवाज़ से फारुख का ध्यान टूटा

उसने आवाज़ कि तरफ देखा मंगेश गर्दन लटकाये सोफे पे ही बैठा सो गया था, उसका तीसरा पैग खाली था.

फारुख के चेहरे पे मुस्कान सी तैर गई " ये शहरी लोग भी ना...."

रसोई का पर्दा फिर से हिला,परन्तु इस बार वहाँ कोई आकृति नहीं थी.

थी तो सिर्फ एक कुर्सी और उस पर सुखती गीली काली पैंटी.

और पीछे एक धुंधली आकृति,सफ़ेद चादर लपेट रही थी.


"या खुदा ये पर्दा क्यों है यहाँ " फारुख को खुदा से ही शिकायत हो चली थी.

इंसान कि फितरत ही यहीं है जीतना मिलता है उस से ज्यादा कि इच्छा करता है.


फारुख कि सांसे थमने लगी थी,जैसे वो किसी सिनेमा हॉल मे बैठा हो पर्दा उठता फिर पल भर मे ही गिर जाता,लेकीन जो दिखता उसे देखने कि चाहत और बढ़ जाती.

फारुख ऐसा ही दर्शक था,किस्मत ने भी गजब गुल खिलाया था.

शराब का नशा तो कबका काफूर हो गया था,उसने बोत्तल कि तरफ देखा, चाहा कि एक पैग बना ले लेकीन जो नशा अभी उसके तन बदन मे दौड़ रहा था उसके आगे दारू का नशा व्यर्थ था.

आज उसे ये शराब दुनिया कि सबसे बेकार चीज मालूम होती थी.

अभी फारुख कसमकस मे ही था कि जोरदार बिजली कड़की, कुछ पल के लिए रौशनी जगमगा गई.

साथ ही पर्दा भी हट गया,

अंदर अनुश्री सफ़ेद चादर को अपने नंगे बदन पे लपेटने कि कोशिश मे थी,परन्तु अचानक ही बिजली कड़कने कि आवाज़ से उसका वजूद कांप गया,चादर हाथो से छूटती चली गई.

बाहर एक पल को इस नज़ारे का दीदार फारुख ने किया उसके रोंगटे खड़े हो गए लंड मे तनाव उभर आया,जो कि पाजामे के ऊपर से साफ झलकने लगा..अनुश्री कि पूर्ण विकसित गोरे सुडोल स्तन कि एक झलक ने फारुख के लंड के साथ साथ उसके बदन का एक एक रोया खड़ा कर दिया था.


परन्तु पर्दे कि तरफ पीठ कि हुई अनुश्री जल्दी ही संभल गई,उसके हाथो ने दुंगनी गति से आगे बढ़ते हुए उस चादर को वापस ऊपर खिंच लिया,

पर्दा वापस अपनी जगह आ गया,

शो खत्म हो गया.

फारुख आंखे फाडे मुँह बाये.....बैठा ही रहा.

कमरे मे सन्नाटा छा गया.

बस एक आवाज़ गूंज रही थी खर...खर......खरररररर......

मंगेश खर्राटे भर रहा था.


तो क्या वाकई खुदा उस पे मेहरबान है?

तो क्या गुल खिलाएगी नियत अब?

बने रहिये आपकी अनुश्री मुसीबत मे फंस चुकी है.

कथा जारी है......

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