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मेरी बीवी अनुश्री भाग -16

अपडेट -16


"अन्ना भाई तुम बड़े मस्त आदमी हो फिर शादी क्यों नहीं कि "

मंगेश ने नशे मे लहराते हुए बात पूछी

अब तक तीनो मे 3-3 पैक हो चुके थे.

अन्ना :- अब मुझ जैसे कालू कलूटे से कौन शादी करेगा यार

एक घुट और भर लिया अन्ना ने

राजेश और मंगेश को दारू पिने कि इतनी आदत नहीं थी इसलिए उनका मन मस्तिक जल्दी ही काबू से बाहर हो गया

अन्ना :- वैसे राजेश साहब आपकी माँ बहुत सुन्दर है

ना जाने क्यों राजेश को ये बात सुन के अच्छा लगा बल्कि गर्व महसूस हुआ.

राजेश :- ये बात तो सच कही खूबसूरत तो बहुत है लेकिन बेचारी अकेली है 15 साल से विधवा है.

अन्ना ने जैसे ही ये बात सुनी उसकी मन मुराद पूरी होने कि एक हलकी से किरण नजर आने लगी.

अन्ना ऐसा आदमी नहीं था परन्तु जब से उसने रेखा को देखा था तभी से उसका दिल बेचैन था बेकाबू था.

अन्ना :- सच कहाँ यार अकेले जीवन कि तकलीफ मै ही समझ सकता हूँ.

ये लंड साला किस काम का

नशे मे अन्ना अपनी बात कह गया

तीनो ही हॅस पड़े

तीनो लोग दारू के साथ साथ आपस मे खुलते जा रहे थे.

दारू है ही ऐसी चीज दोस्ती जल्दी करा देती है.


वही पहली मंजिल मे" संभाल के मेमसाहेब आराम से " नेपाली लड़का रेखा को धीरे धीरे पकड़े हुए रूम तक ले आया था.

दरवाजा खोल बिस्तर के पे बैठा दिया.

"नाम क्या है बेटा तुम्हारा " रेखा ने पूछा

"जी मेमसाहेब बहादुर,नेपाल से आया हूँ यहाँ चौकीदार हूँ " वो नेपाली लड़का बड़े ही उत्साह से जवाब दे गया जैसे बहुत दिन बाद मौका मिला हो बात करने का.

"आप आराम से बैठिये ना मेमसाहेब " बोल के बहादुर ने चोटिल पैर को पकड़ हलके से बिस्तर पे रख दिया.

"आअह्ह्ह......कितना कोमल अहसास था " रेखा सिरहाने पे पीठ टिका कर बैठ गई

"धन्यवाद बेटा अच्छे लड़के हो तुम " रेखा ने उसका शुक्रिया अदा किया

लेकिन दर्द तो था ही दर्द कि गर्माहट से पूरे शरीर मे गर्मी आ गई थी,गर्मी को कम करने के लिए रेखा ने अपने हाथो को ऊपर कर बालो को खोलने कि कोशिश कि,इस कोशिश मे रेखा कि कांख चमक पड़ी जहाँ छोटे छोटे बालो का झुरमुट सा बना हुआ था एक सोंधी सी खुसबू रूम मे फ़ैल गई जिसे बहादुर ने भी साफ महसूस किया.


उसकी नजरें पैरो पे ही थी लेकिन इस अजीब गंध को महसूस करते ही उसने सर ऊपर उठाया तो देखता ही रह गया," एक मादक औरत अपने दोनों हाथो को ऊपर किया अपने बालो को खोल रही थी,उसकी कांख से झाकते बालो पे बहादुर कि नजरें जा टिकी,बहादुर के मन मे कुछ गलत नहीं था बस उसे ये दृश्य बहुत अच्छा लगा शानदार था.

रेखा को जैसे ही अपनी स्थति का अहसास हुआ उसने तुरंत अपने हाथ नीचे कर लिए "वो...वो....गर्मी बहुत है " झेम्प गई थी रेखा.

"कोई बात नी मेमसाहब मै पानी लाता हूँ " बहादुर ने पास ही पड़ी टेबल से पानी को बोत्तल उठा के रेखा कि ओर बढ़ा दी

रेखा जल्दी से पानी गटक गई मुँह ऊपर किये,बहादुर तो बस एक टक निहारे ही जा रहा था सुराहीदार गले से होता पानी रेखा मे समाता जा रहा था.

बहादुर के मन मे उथल पुथल मचनी शुरू हो गई थी,

"हम्म......थैंक यू बेटा " रेखा ने बोत्तल को नीचे रखते हुए कहा.

"मेमसाहब आप कहे तो मोच ठीक कर दू?" बहादुर ने बड़े ही मासूम तरीके से पूछा.

"तुम्हे आती है?" रेखा ने आश्चर्य से पूछा

"मेमसाहेब क्या बताये हमारे गांव मे ये काम मैंने खूब किया है, लाइये अपना पैर दीजिये " रेखा के बिन बोले ही बहादुर ने रेखा का पैर पकड़ अपनी गोदी मे रख लिया.

बहादुर भी पलंग पे बैठ चूका था,रेखा का एक पैर बहादुर कि गोद मे और दूसरा पैर पलंग मे घुटनो के बल मोड़ के लेटी थी.

"आअह्ह्ह....बहादुर आराम से " जैसे ही बहादुर ने पैर पकड़ा रेखा कि चीख निकल गई.

रेखा ने आने वाले दर्द को सहन करने के लिए आंखे बंद कर ली, अपना निचला होंठ अपने दांतो तले दबा लिया.

बहदुर जो कि पैर पकडे हुए था वो धीरे धीरे रेखा के पैर को सहलाने लगा.

"कैसा लग रहा है मेमसाहेब?" बहादुर ने बड़ी ही नजाकत से पूछा

बहादुर के हाथ तो जैसे कोई गुलाब का फूल लग गया था कितने कोमल मुलायम पैर थे रेखा के.

उस पे चमकती पायल उसके पैर कि शोभा बड़ा रही थी.

बहादुर कही खो गया था उसके विचार उसके काबू मे नहीं थे उसने इस कदर किसी लड़की को छुआ नहीं था छूता भी कैसे महज 18 साल कि तो उम्र थी,परिवार कि जिम्मेदारी उसे यहाँ नेपाल से ले आई थी.

दर दर ठोंकर खानें के बाद उसे ये चौकीदार कि नौकरी मिली थी.

आज उसे 1 महीना हो गया था नौकरी करते,मन लगा के नौकरी करता था परन्तु आज उसकी गोदी मे एक सुन्दर मादक औरत का पैर था जो दर्द से तड़प रही थी.

"मेमसाहब आप बहुत सुन्दर है " बहादुर ना चाहते हुए भी दिल कि बात कह दिया.

"क्या.....याययाया...."रेखा कि आंखे खुल गई उसने जो भी सुना

लेकिन जैसे ही आंखे खुली साथ ही मुँह खुलता चला गया "आआहहहह.......हहहहह........"

"टक.....सससससस...." कि आवाज़ के साथ बहादुर ने पैर को वापस मरोड़ दिया

"बस मेमसाहेब हो गया " बहदुर ने पैर को हाथ से धीरे धीरे सहलाते हुए कहा.

रेखा मारे दर्द के पसीने से भीग गई थी उसके मुँह से चीख निकल गई थी "मार डाला तुमने तो "

बहादुर:- हो गया ममसाहेब अब तो पैर हिला के देखिये

रेखा ने पैर हिलाया जो अभी भी बहादुर कि गोद मे ही था, उसके पैर हिलाने से बहादुर को अपने लंड मे तनाव सा महसूस होने लगा.

वो एक औरत का पैर अपनी गोद मे लिए बैठा था अब भला कोई नामर्द ही होगा जिसका ईमान ना डगमगा जाये.

"अरे वाह बहादुर तुमने तो जादू कर दिया,दर्द तो एक दम ठीक हो गया " खुशी के मारे रेखा ने अपने पैर को कुछ ज्यादा ही जोर से हिला दिया जो कि सीधा बहादुर कि जांघो के बीच जा लगा.

"आआहहहह....मेमसाहेब आराम से " बहादुर ने अपनी जांघो को जबरजस्त आपस मे भींच लिया नतीजा रेखा का पैर भी उसकी जांधो के बीच ही दब गया.

रेखा के अंगूठे और उंगलियों के बीच कोई गुदगुदी मोटी सी चीज चुभने लगी


अब रेखा कोई अनाड़ी तो थी नहीं कि पहचान ना सके कि क्या है ये, उस बात का अहसास होते ही रेखा को ट्रैन का दृश्य दिखने लगा जब गलती से भिखारी के लिंग पे उसका पैर लग गया था वो भी इसी तरह तड़प उठा था


"क्या...क्या हुआ बहादुर मैंने जानबूझ के नहीं किया "रेखा ने लगभग गीड गिड़ाते हुए बोला और सिरहाने से उठ के आगे को हुई कि चोट तो नहीं लगी.

रेखा जो कि पहले ही अस्तव्यस्त थी जल्दी से सीधा बैठने कि वजह से उसका पल्लू सरकता चला गया.

बहादुर को चोट इतनी जोर से लगी थी कि उसकी आंख से दर्द के मारे आँसू निकल गए थे.

"कहाँ लगी बहादुर बताओ मुझे,ज्यादा तो नहीं लगी ना "

रेखा ने हमदर्दी जताते हुए आगे को झुक बहादुर का कन्धा पकड़ लिया,बहादुर जो कि सर झुकाये अपनी जांघो मे रेखा का पैर लिए बैठा था.


रेखा कि आवाज़ सुन जैसे ही बहादुर ने सर ऊपर किया पल भर को अपना दर्द ही भूल गया उसे सामने खूबसूरत सी वादिया दिख रही थी,टाइट स्लीवलेस ब्लाउज मे कैद दो मोटे स्तन के बीच कि लकीर जो इतनी गहरी थी कि बहादुर उसमे कही गिर गया.

"क्या हुआ बहादुर कहाँ लगी है?" रेखा जवाब चाहती थी

लेकिन बहादुर कुछ सुन नहीं रहा था उसका दर्द गायब हो गया था उसके लंड ने एक जबरदस्त अंगड़ाई ली और पैंट मे ही झटका मार दिया जो सीधा रेखा के तलवे पे लगा एक गोल चुभती हुई चीज उसके पैर से टकराई थी

उसका लंड अंगड़ाई लेता भी क्यों नहीं उसके जीवन मे वो पहली बार ऐसी सरँचाना देख रहा था,पट्ठा अभी तो जवान हुआ ही था.

बहादुर को कुछ बोलता ना पाकर रेखा ने उसकी नजरों का पीछा किया तो सन्न रह गई,उसके स्तन लगभग खुले हुए थे,

उसकी सांसे तेज़ चलने लगी "हे भगवान ये क्या हो रहा है " झट से रेखा ने अपना पल्लू संभाला

एक साथ काफ़ी सारी घटनाये घट गई थी पल भर मे ही.

रेखा के पल्लू सही करते ही वो शानदार नजारा बंद हो गया,बहादुर का ध्यान वापस से अपने लिंग कि ओर गया जहाँ अब दर्द नहीं था बल्कि वहा ताज़गी थी,जिंदगी कि अंगाड़ाई थी वहा चहल पहल थी.

उस गुदगुदी को दबाने के लिए बहादुर ने रेखा के पैर को पकड़ अपने लंड पे और कस के दबा दिया


"आअह्ह्ह.....मेमसाहेब"

"उम्म्ममममम....बहादुर "


दोनों के मुँह से ही वासना भरी सिसकारी निकली

बहादुर तो ये सब पहली बार महसूस कर रहा था परन्तु रेखा....उसका क्या वो क्यों सिसकार उठी

रेखा खुद सोच मे पड़ गई "बहादुर पैर छोडो " रेखा ने कैसे भी कर खुद को संभाल लिया

उसे वो चुभन बहका रही थी उसका दर्द गायब हो चूका था

दोनों ही असमजस मे फसे हुए थे रेखा चाहते हुए भी अपना पैर नहीं निकाल पा रही थी,उसे कही ना कही ये अहसास सुखद लग रहा था वो जब से यहाँ आई थी उसे ये रुमानी माहौल पसंद आ रहा था उसे अपने नीरस जीवन मे बहार का संचार महसूस हो रहा था.

दोनों ही एक टक एक दूसरे को देखे जा रही थी दोनों कि सांसे फूल रही थी,रेखा के स्तन उठ उठ के गिर जा रहे थे.

"बहादुर....पैर छोडो " इस बार रेखा ने बड़े ही प्यार से कहाँ

बहादुर को ये प्यार कि भाषा समझा आई "जी....जी...मेमसाहेब " बोलता बहादुर अपनी जाँघ को खोल बैठा

रेखा को अपना पैर आज़ाद महसूस हुआ उसने धीरे से होने पैर को समेटा,उसकी नजर वही टिकी थी जहाँ थोड़ी देर पहले उसका पैर कैद था..

उसके पैर कि जगह पे एक मोटा सा उभार था बिल्कुल टाइट उभार.

"हे भगवान ये क्या है एक बच्चे का इतना मोटा.....नहीं नहीं ये नहीं हो सकता " रेखा कि नजर वही टिकी थी लेकिन उसकी नजरें पैंट के अंदर टक देख रही थी उसके भिखारी का लंड याद आ गया जिसे वो लकड़ी समझ रही थी लेकिन निकला वो लंड ही था.."तो...तो....क्या ये भी वही है "

रेखा अपनी ही सोच से पसीने से नहा गई.

"मेमसाहेब....मेमसाहब....आप ठीक तो है ना " बहादुर ने वापस से रेखा के पैर को पकड़ लिया.

"आआ....हाँ...हाँ.....ठीक है दर्द अब " रेखा ने जैसे तैसे जवाब दिया..

बहादुर लगातार उसके पैर को सहला रहा था.

"तुम्हारा दर्द कैसा है लगी तो नहीं....मुझे माफ़ करना जल्दबाज़ी मे तुम्हे लग गई " रेखा अब सामान्य हो चली थी

"अब ठीक है " बहादुर ने रेखा के सामने ही अपने लंड को पकड़ के दबा दिया

उसकी हरकत को देख रेखा को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसकी चुत को दबाया हो,उसकी चुत ने रस कि एक धार छोड़ दी

जिसका अहसास उसे भी हुआ कि कोई चीज तो उसकी योनि से निकली है.

"उम्मम्मम......."हलकी सी सिसकारी उसके मुख से निकल ही गई.

बहादुर लाख चाह रहा था कि वो खुद को काबू करे लेकिन उसके सामने एक उम्र से अधेड लेकिन दिखने मे जवान औरत बैठी थी जी अभी अभी उसके लंड पे पैर रख के बैठी थी उसके विचार और लंड काबू मे नहीं थे.

ऊपर से रेखा कि धीमी सी सिसकारी ने राहा साहब उसका हौसला भी तोड़ दिया वो बईमान हो गया था.

अपनी नौकरी अपने गेस्ट से बेईमानी मे उतारू था.

"लाइए मेमसाहेब थोड़ा मालिश कर दू दर्द बिल्कुल दूर हो जायेगा " बहादुर ने अपने दिल कि इच्छा जाहिर कर दी वो यहाँ से जाना नहीं चाहता था.

रेखा कुछ बोली नहीं बस अपना पैर आगे कर दिया,उसे भी ये स्पर्श अच्छा लग रहा था और उसका बदन इस बात का गवाह था..

बहादुर ने उसके पैर को पकड़ धीरे धीरे मसलने लगा,वो स्पर्श ऐसा था कि हर एक छुवन से चिंगारी निकल रही थी जो सीधा रेखा के साड़ी मे सामाती जा रही थू उसकी सफ़ेद पैंटी मे.

"कैसा लग रहा है मेमसाहेब " बहादुर ने सर ऊपर कर रेखा के चेहरे को देखते हुए पूछा.

"उम्म्म्म....." रेखा कुछ बोली नहीं बस उसकी आंखे बंद थी वो उस छुवन को महसूस कर रही थी एक जवान कुंवारे लड़के कि छुवन.


बहादुर लगातार अपने कोमल लेकिन कसे हुए हाथो को रेखा के पैरो पे चला रहा था,उसका हाथ एड़ी से पिंडली टक आ गया था,रेखा कि साड़ी धीरे धीरे ऊपर को उठ रही थी उसके दोनों पैर घुटने से मुडे हुए थे,एक बहादुर कि गोद मे था तो दूसरा पलंग पे.

बहादुर ने देखते ही देखते रेखा कि साड़ी को घुटने टक चढ़ा दिया.

रेखा इन सब से अनजान ना जाने किस दुनिया मे खोई थी उसकी सांसे राह राह के तेज़ ही जा रही थी आंखे बंद किये वो अपना दम भर रही थी

"उम्मम्मम.....बहादुर हल्का सा ऊपर " रेखा के मुँह से निकल गया वो कुछ ज्यादा चाहती थी.

उसे पुरे बदन मे मीठा दर्द हो रहा था एक अकड़ान सी महसूस हो रही थी.

"कैसी अकड़न है ये,हाँ बहदुर वही कस के दबाओ " बहादुर के हाथ को अपने घुटनो पे महसूस करती रेखा बोली.

बहादुर कि हिम्मत बढ़ती ही जा रही थी,उसे रेखा कि स्वस्कृति मिल चुकी थी इसने साड़ी को हल्का सा और ऊपर किया.

सारी घुटनो से सरसराती जांघो पे इकट्ठा हो गई....

"आअह्ह्ह......मेमसाहेब कितनी सुन्दर है आप " बहादुर को रेखा कि सुंदरता दिख गई थी

जांघो के बीच पैंटी मे समाई थी रेखा कि सुंदरता.

"हां....हा..... बहादुर  कस के " रेखा को कोई मतलब नहीं था कि बहादुर किस सुंदरता कि बात कर रहा है.


बहादुर के हाथ रेखा कि जाँघ तक पहुंच गए थे,बहादुर रेखा कि गोरी मोटी सुडोल जांघो कस कस के रगड़ रहा था,रेखा का पैर बहादुर कि गोदी मे पड़ा हुआ कुछ टटोल रहा था जैसे उसे किसी कि चाह हो.

और कहते है ना जहाँ चाह है वहा राह है रेखा का पैर बहादुर के पैंट के उभार से जा टकराया.

"आअह्ह्ह.....बहादुर " रेखा को जैसे खजाना मिला हो उसने जबरदस्त तरीके से पैंट के उभार को अपने पैरो तले दबा दिया.

और दोनों पैरो से उस उभार को रागड़ने लगी.

उसे अनुभव करना था इस चीज को इसकी मोटाई को

जीतना टटोलती उतनी ही उसकी सांसे भारी होती जाती.


बहादुर भी उत्तेजना मे भरा हुआ अपनी पूरी ताकत से ओर आगे बढ़ते हुए रेखा कि जाँघ के निचले हिस्से को अपनी मुट्ठी मे भींच लिया.

"मेमसाहेब.....मेमसाहेब...आपकी चुत के बाल कितने सुन्दर  " बहादुर यही अटक गया.

रेखा को जैसे होश आया उसने जो सुना उसे यकीन ही नहीं हुआ उसने अपनी आंखे खोल दी

उसकी साड़ी कमर टक चढ़ी हुई थी,उसकी पैंटी साफ दिख रही थी जिसे बहादुर एक टक देखे जा रहा था उसके हाथ बस कुछ ही इंच दुरी ले जाँघ मसल रहे थे.

"आआहहहह.......बहादुर.....आअह्ह्ह....उमममममम....करती रेखा ने एक दम से फववारा छोड़ दिया..उसकी पैंटी भलभला के गीली होने लगी..सफ़ेद पैंटी से झाकते काले बाल गीले होने लगे.

रेखा ने सर को पीछे झुका दिया.

"तररररररर.....त्तत्तरररर.......कोई घंटी बजने लगी "


"आअह्ह्ह....उम्म्म्म...रेखा को कोई सुध बुध नहीं थी वो हांफ रही थी दो दिन मे दूसरी बार वो बिना सम्भोग के दूसरी बार झड़ी थी..

घंटी कि आवाज़ से बहादुर जैसे होश मे आया.

"हाँ हेलो....हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....हेलो " बहादुर का फ़ोन बज उठा था जिसे उसने तुरंत उठा कान से लगा लिया

"कहाँ मर गया गेट पे कोई नहीं है " मिश्रा कि आवाज़ ने दूसरी तरफ से हड़काया

"आया साहेब आया अभी आया...." बहादुर उठ खड़ा हुआ नीचे पलग पे रेखा सुकून कि सांस भर रही थी उसकी साड़ी अभी भी ऊपर थी पैंटी बिल्कुल भीग चुकी थी उसने से सफ़ेद सफ़ेद सा पानी बहार टपक रहा था.

चुत के बात बिल्कुल गीले पड़े थे.

बहादुर जाना नहीं चाहता था लेकिन नौकरी का सवाल था ऐसे दृश्य को छोड़ जाना पड़ा


ठक कि आवाज़ के साथ दरवाज़ा बंद हो गया


ठक के साथ ही रेखा के जहन को चोट लगी उसने आंखे खोल दी उसकी सांसे सामान्य हो चली थी.

"आअह्ह्ह.....उसने अपने हाथ को अपनी जांघो के बीच रख दिया.

उसका पूरा हाथ गिला ही गया था,इतना कि उसकी हथेली से चू रहा था,हथेली को अपनी आँखों के सामने रखा तो दो बून्द टपक टपक कर ब्लाउज पे गिर पड़ी.

वो आज बुरी तरह से झड़ी थी वो भी बिना सम्भोग के आज से पहले वो इस कदर कब झड़ी थी शयाद कभी नहीं....

रेखा के चेहरे पे सुकून था,कोई आत्मगीलानी या पछतावा नहीं.वो खड़ी हो गई उसकी मंजिल बाथरूम थी...

रेखा ने तो सुख पा लिया था....

क्या अनुश्री भी ये सुख अनुभव करेगी?

बने रहिये कथा जारी है....

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