एनिवर्सरी सरप्राइज
एनिवर्सरी सरप्राइज
मेरा नाम मंगेश है मै शादीशुदा मर्द हू, आम भारतीय आदमी कि तरह ही मेरा जीवन भी घड़ी कि टिक टिक के बीच ही चलता है.
सुबह उठो खाओ पियो दुकान निकल जाओ शाम को आओ खाओ पियो सो जाओ
जीवन मे रोमांच,एन्जॉयमेंट सब ख़त्म हो चला था.
मेरी age आज 40 साल है, आम आदमी कि तरह तोंद निकल गई है, आलास बदन मे भर गया है.
बस एक ही बात अच्छी है मेरे जीवन मे वो है मेरी घर्मपत्नी,मेरी बीवी अनुश्री
उसकी उम्र आज कोई 35 बरस होंगी सही सही कौन याद रखता है, गद्दाराये बदन कि मालकिन है मेरी अनुश्री
हम दोनों मे इतनी असमानता है कि पूछो मत.
मै कहाँ दिन पर दिन अलसी होता जा रहा हू, वही मेरी बीवी अनुश्री दिन पर दिन जवान हुए जा रही है.
मै सुबह 8 बजे तम घोड़े बेच के सोता हू वो सुबह उठ के योगा कसरत कर लेती है.
इसी का परिणाम है कि उसका बदन आज भी किसी नवयुवती कि तरह चुस्त दुरुस्त और कसा हुआ है.
स्तन तो मैंने शादी कि शुरुआत मे ही दबा दबा के बढ़े कर दिये थे रही सही कसर मेरे बच्चों ने दूध पी के पूरी कर दि.
आज उसके स्तन 36 का आकर लिए हुए बिल्कुल टाइट है.
आज भी उसके स्तन पे नजर पढ़ जाती है तो पाजामे मे हलचल सी मच जाती है,
हालांकि ये कुछ भी नहीं है असली चीज तो उसकी पतली कमर के नीचे है दो बढ़े बढ़े आकर के विशालकाय लेकिन कसे हुए नितम्ब आपकि भाषा मे गांड.
एक दम करारी, कसी हुई 38 कि गांड जिसका पूरा हिस्सा ही बाहर को निकला हुआ है.
आज हमारी शादी को 15 साल हो चुके है फिर भी जब जब उसकी गांड पे नजर जाती है तो मेरा लंड पानी फेंक देता है.
मेरा ये हाल है तो ना जाने बाहर वालो का क्या होता होगा.
खेर मैंने कभी जानने कि कोशिश भी नहीं कि.
शादी के शुरुआती दिनों मे मैंने अनुश्री को खूब भोगा,खूब चोदा लेकिन जहाँ दो बच्चे हुए कि सारा इंट्रेस्ट ख़त्म हो गया,
वैसे भी मै कभी अपनी पत्नी के कामुक बदन के सामने टिक ही नहीं पाया,
हद से हद मात्र 5 मिनिट.अब तो ये भी नामुमकिन सा काम लगता था, अनुश्री ने कभी इस बारे मे मुझसे शिकायत नहीं कि ना कि कोई शिकवा किया
ना जाने कैसी औरत थी इतना कामुक बदन लिए हुए भी काम कि कोई प्यास ही नहीं थी.
ऐसे कैसे? मै कई बार सोचता कि कोई स्त्री बिना सम्भोग के कैसे रह सकती है?
लेकिन हर बार मेरा सोचना व्यर्थ ही जाता,मेरी बीवी अनुश्री पतीव्रता संस्कारी महिला थी जिसने अपना जीवन मुझमे और मेरे परिवार पे निरछावर कर दिया था.
मै कभी कभी सोचता कि उस के लिए कुछ करू लेकिन क्या करू समझ नहीं आता,मै अच्छे से जानता था कि मै उसकी शारीरिक पूर्ति नहीं कर सकता हू.
फिर भी मुझे उस कि चिंता थी,"मुझे कुछ करना चाहिए "
"मंगेश क्या सुबह सुबह ऐसे गहन चिंतन मे डूबे हुए हो, मंदिर नहीं चलना क्या "
अचानक आवाज़ से मेरा ध्यान भंग हुआ,सामने देखा तो जैसे कोई अप्सरा खड़ी थी लाल लहंगा चोली मे सजी, हाथ मे चुड़ी,माथे पे बिंदी,गले मे लटका मंगलसूत्र. बालो मे खिलता हुआ गजरा,
लगता था जैसे आज शादी हो अनुश्री कि
चोली मे से उभार मारते यौवन के छींटे.
"क्या हुआ जी "
"कककक......कुछ नहीं happy मैरिज एनिवर्सरी डिअर " मेरे हाथ खुद बा खुद अनुश्री को गले लगाने आगे बढ़ गए.
"अअअअअ....क्या करते हो बच्चे घर मे ही है " अनुश्री पीछे को हटी
"कोई नी पत्नी हो तुम मेरी " मंगेश ने अनुश्री को अपने आगोश मे भींच लिया.
"Happy मैरिज एनिवर्सरी आपको भी " कहती हुई अनुश्री शरमा गई.
"क्या चाहिए आज तुम्हे? आज 15 साल बीत गए हमारी शादी को "
"कुछ नहीं चाहिये आप हो ना " अनुश्री ने वही जवाब दिया जो हर एनिवर्सरी पे देती आई थी
"क्या यार अनु तुम हर वक़्त मना कर देती हो, क्या वाकई तुम्हे कुछ नहीं चाहिए?" मैंने हैरानी से पूछा
"हाँ नहीं चाहिए मेरे लिए आपने ये घर बनाया,इतने सुन्दर बच्चे दिये,प्यार दिया और क्या चाहिए?" अनुश्री ने बड़ी आसानी से सारी बात कह दि.
"प्प्प....प्यार....वो कब दिया " ये प्यार शब्द सुन के ही मुझे मेरी नाकाबिलियत याद आ गई.
"ऑफ़हो...आप भी ना मै शारीरिक प्यार कि बात नहीं कर रही मै आपके मन दिल वाले प्यार कि बात कर ही हू बुद्धू " अनुश्री खिलखिलाती अलग हुई और दरवाजे कि ओर बढ़ गई.
मै ठगा सा खड़ा रहा "कितनी आसानी से इसने मेरी नपुंसकता पे पर्दा डाल दिया,किस मिट्टी कि बनी है ये औरत?, मै जानता हू अनु तुम्हारी भी शारीरिक जरूरते है "
मेरी आंखे नम थी
" कोई बात नहीं अनु आज तुम्हारे लिए एक खास एनिवर्सरी सरप्राइज है,जिसकी उम्मीद तुम्हे बिल्कुल भी नहीं होंगी, आज तुम्हारी बरसो कि इच्छा पूरी हो जाएगी "
मै भी अनुश्री के पीछे पीछे उसकी मदमस्त गांड को देखता हुआ कार कि तरफ बढ़ चला.
हमारी कार दौड़ चली सड़क पे "तुम ख़ुश तो हो ना अनुश्री ?"
"क्या हो गया है जी आज आपको बार बार क्यों पूछ रहे है,मै ख़ुश हू आपसे और कुछ नहीं चाहिए "अनुश्री ने सीधा सा जवाब दे दिया और बाहर देखने लगी.
वो मंगेश के चेहरे पे मुस्कान को बिल्कुल भी ना देख सकी.
"अच्छा हुआ बच्चे नानी के चले गए रास्ता लम्बा है आने मे लेट हो जायेगा " मैंने अनुश्री को कहा
"हमममम..अनुश्री सिर्फ इतना ही बोली.
सफर 30km लम्बा था...शहर से दूर,बीच मे घने जंगले से होते हुए जाना पड़ता था.
"लो जी भाग्यवन आ गया मंदिर,पता नहीं तुम्हे इतना दूर इसी मंदिर पे क्यों आना होता है "
मैंने सहज़ ही पूछ लिया
अनुश्री कुछ नहीं बोली मंदिर के अंदर चली गई.
"मै बाहर ही हू तुम हो के आओ " अनुश्री जैसे ही मंदिर मे गई.
मैंने मोबाइल निकल लिया पिक पिक पिक.....हाँ हेलो..तैयारी हो गई ना, सरप्राइज मे कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, बहुत टाइम है तुम लोगो के पास.... क्लीक के साथ फ़ोन कट गया.
मै आज बहुत ख़ुश था मेरा सरप्राइज तैयार ही था बस अनुश्री के आने कि देर थी.
टाइम लगभग 3 बज गए थे "चले जी शाम होने वाली है " अनुश्री कि आवाज़ से मेरा ध्यान भंग हुआ
"अअअअअ....हाँ हाँ चलो " हम वापस घर कि ओर निकल चले थे सब कुछ शांत था,अनुश्री के चेहरे पे शांति छाई हुई थी.
दोपहर के समय सड़क बिल्कुल सुनसान थी...
कि तभी चरररररररर.....करते हुए गाड़ी सड़क पे घसीट गई कारण था मैंने ही बुरी तरीके से गाड़ी को ब्रेक लगाए थे
"कक्क.....क्या हुआ मंगेश " अनुश्री कि आँखों मे घबराहट साफ दिख रही थी.
"वो...वो....सामने कोई सड़क पे गिरा हुआ है " मैंने थोड़ा सा आतंकित होते हुए कहा,
"बीच सुनसान जंगल मे कौन है ये इतनी धुप मे कौन गिरा पड़ा है सड़क पे "अनुश्री व्यथित हो उठी उसका दिल ऐसा ही था किसी को दुखी नहीं देख सकती थी.
"हमें क्या अनु कौन पडे इस लफड़े मे निकल पड़ते है साइड से " मैंने दलील दि मुझे इन सब चककरो मे पड़ना भी नहीं था.
"कैसी बात करते हो मंगेश ,आगे पीछे देखो कोई नहीं है,हम चले गए तो तपती सड़क पे मर जायेगा वो आदमी " अनुश्री का दिल पसिज रहा था.
"क्या यार तुम भी फालतू लफड़े मे पड़ती हो, देखता हू जा के " मुझे नहीं जाना था लेकिन अनु कि बात ना
टाल सका
कार से उतर के तपती सड़क के बीचो बीच एक आदमी ओंधे मुँह पड़ा हुआ था.
जैसे जैसे मै पास जाता गया मालूम.पड़ा कि कोई 24,25 साल का पतला दुबला युवक है.
देखने से मालूम पड़ता था कि सांस चल रही है.
मन मे जिज्ञासा बढ़ने लगी थी, मैंने पलट के एक बार कार कि तरफ देखा जहाँ अनुश्री मुझे ही देख रही थी,उसने इशारा किया "देखो कौन है "
मैंने जैसे ही झुक के उसका कन्धा पकड़ा वो.लड़का एकाएक पलट गया....
मै कुछ समझ ही पाता कि मेरी गर्दन पे एक चाकू लगा हुआ था, मेरे होश फकता हो चले, सांस ही नहीं आ रही थी
कार मे बैठी अनुश्री कि आंखे फटी कि फटी रह गई,
"मांगेशशश्शस......चिल्लाती हुई अनुश्री कार से निकल मेरी ओर दौड़ पड़ी.
वो अभी निकली ही थी कि दो आदमी सड़क के साइड झाड़ियों से भागते हुए आये और धर दबोचा..
"ममममम....मंगेश मंगेश "
अनुश्री चिल्लाये जा रही थी,मेरा डर के मारे बुरा हाल था पैर कांप रहे थे.
कान मे साय साय करती हवा चल रही थी सबकुछ समझ से परे था
"साहब आप अमीर लोगो कि यही समस्या है, बेचारे गरीबो कि मदद करने चले ही आते हो " मेरी गर्दन मे चाकू रखे आदमी ने कहा.
" चलो पैसे निकालो जो कुछ भी है?" चाकू वाले लड़के ने कहाँ.
वो लोग देखने मे लूटेरे नहीं लग रहे थे उनके पास से दारू कि गंध भी आ रही थी.
"अअअअअ...बबबबब....हमारे पास कुछ नहीं है हम तो दर्शन करने आये थे " अनुश्री ने मेरी जान खतरे मे देख गुहार लगाई.
रमेश ये लोग ऐसे नहीं मानेंगे,चला दे चाकू" अनुश्री को पकडे एक आदमी ने कहाँ.
"ननणणन.....नहीं...नहीं...ऐसा मत करना ये कार रख लो " अनुश्री ने फिर से मिन्नत कि
"निकालता है ये जान निकालू तेरी " रमेश नाम का लड़का जो मेरी गर्दन पे चाकू लगाए था बोला
मेरी भी हालत ख़राब होने लगी थी,मैंने झट से अपना पर्स निकाल दिया "यययय....ये लो जाने दो हमें "
"देख तो बिल्लू कितना माल रखा है इस हरामजादे ने " रमेश ने मेरा पर्स बिल्लू कि तरफ उछाल दिया जो कि अनुश्री को दबोचे खड़ा था.
अरे इसमें तो सिर्फ 100rs है इटंर मे क्या होगा हमारा? दारू कि बोत्तल भी नहीं आएगी " सभी के चेहरे पे चिंता कि लकीर खिंच गई थी जैसे ना जाने क्या मुसीबत आन पड़ी हो उन तीनो पे.
देखने से वो तीनो लूटेरे बिल्कुल भी नहीं लग रहे थे अब तो उनकी हरकतों ने भी साबित कर दिया था कि वो पेशेंवार लूटेरे नहीं है,
"साले जेब मे माल है तो चुपचाप निकाल वरना चाकू अंदर डाल दूंगा " रमेश ने चाकू उठा ही लिया था कि
"नाहीउईई......नननन....नहीं...हम लोग मंदिर ही तो आये थे तो पैसो का क्या काम,हमारे पास और कुछ नहीं है आप चाहो तो ये चैन ले सकते हो " अनुश्री बुरी तरह डर गई थी
डर के मारे उसने अनजाने ही सभी का ध्यान अपनी छाती कि और आकर्षित कर दिया, उसके दोनों स्तन डर के मारे साँसो के साथ उठ उठ के गिर रहे थे,साथ ही गहरे ब्लाउज से झाँकती सोने कि चैन जगमगा रही थी या यु कहिए अनुश्री के उन्नत स्तन कि शोभा बड़ा रही थी.
मैंने देखा तीनो लड़को कि आंखे वही जा के चिपक गई थी, एक पल को भी नहीं हिल पा रहे थे तीनो लड़के.
"ये....चैन ले लो और हमें छोड़ दो " अनुश्री ने एक बार फिर गुहार लगाई
अनुश्री ने सोचा ही नहीं था कि ऐसा भी होगा,वो आमतौर पे गहरे गले का ब्लाउज ही पहना करती थी परन्तु आज हमारी अनिवर्सरी होने के कारण साड़ी ना पहन के लहंगे चोली पे सिर्फ एक दुप्पटा ही डाला हुआ था.
दुपट्टा कबका अस्त व्यस्त हो चूका था.अनुश्री कि खूबसूरती खुली सुनसान सड़क पे अपनी चमक बिखेर रही थी.
इस मनमोहक आवाज़ से तीनो के ध्यान भंग हुए.
बिल्लू के साथ खड़े आदमी ने उस जगमगाती चैन कि और हाथ बढ़ाया ही था कि " रहने दे यार कल्लू अभी कहाँ चैन बेचने जायेगा,हमें तो नगद कि जरुरत है " बिल्लू ने हताश भरे लफ्जो मे कहाँ.
"वैसे भी बहुत पी ली है हम लोगो ने "
उन तीनो को बाते सुंन के साफ हो गया था कि वो कोई लूटेरे नहीं अपितु सिर्फ दारू के जुगाड़ मे है.
"तो क्या इन्हे जाने दे?" कल्लू कि नजर अनुश्री के उफान भरते स्तन पे ही टिकी हुई थी
बड़े ही कष्ट भरे अंदाज़ मे उसने ये बात पूछी.
"पागल है क्या ऐसे कैसे जाने दे आज दारू ना सही इसकी जवानी का नशा करेंगे " बिल्लू ने एक दम से बम फोड़ दिया
मेरे और अनुश्री के पैरो के तले जमीन खिसक गई.
"ययययई....ये....क्या बोल रहे हो तुम?" मै शादीशुदा हूँ दो बच्चों कि माँ हूँ.
"तो क्या हुआ? लेकिन अभी भी माल है रे तू " बिल्लू ने अनुश्री को अपने आगोश मे दबोच लिया.
अनुश्री चिल्लाने को ही हुई थी कि "ख़बरदार चिखी तो तेरे पति को यही मार देंगे उसके बाद तेरा क्या होगा तू जानती ही है,समझदारी इसी मे ही कि हमारे साथ चलो "
रमेश ने मेरी गर्दन पे चाकू कि पकड़ मजबूत कर सड़क के निचले हिस्से कि ओर धकेल दिया.
अनुश्री बेचारी चुपचाप डरी सहमी पीछे पीछे चली आ रही थी.
"कल्लू तू कार को झाड़ी के पीछे लगा के आ लफड़ा नहीं मांगता अपने को " बिल्लू और रमेश अनुश्री मंगेश को साथ लिए जंगल के अंदर चले जा रहे थे
कोई एक मिनट के बाद ही एक खण्डारनुमा ईमारत सामने थी.
"लो आ गया जानेमन तेरी अय्याशी का अड्डा "बिल्लू ने अनुश्री को आगे धकेलते हुए कहाँ.
"ममममम......मेरी आअअअअअ....अय्याशी?" अनुश्री ने बड़ी ही हैरानी से पूछा
"अब यहाँ तेरे जवान जिस्म को भोगा जायेगा तो तुझे मजा नहीं आएगा क्या हाहाहाहाहाबा....बिल्लू हॅस पड़ा
"वैसे भी तेरे जिस्म को देख के लगता है तेरा पति किसी काम का नहीं है " पीछे से आते कल्लू ने भी कीचड़ भिगो के दे मारा.
अनुश्री हैरान थी कि कोई आदमी भला कैसे उसके बदन को देख के समझ जाता है कि उसका पति नाकारा है नपुंसक है.
हालांकि अनुश्री के लिए ये वाक्य नये नहीं थे वो इस से पहले भी अपने जिस्म के बारे मे ऐसा सुन चुकी थी.
धक्का दिये जाने से अनुश्री लड़खड़ती आगे को गिरने को हुई लेकिन संभल गई,परन्तु इस लड़खड़हट मे जो चीज तीनो ने देखी उनके कलेजे मुँह को आ गए अनुश्री कि गांड बुरी तरह से साड़ी मे थरथाराई थी.
जैसे गांड के दोनों पाट आपस मे लड़ पडे हो.
"देखो तो क्या गांड है इसकी"
रमेश ने जैसे मंगेश पे तंज कसा हो
मै और अनुश्री बेबस थे,मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था, लाचार आँखों से कभी अनुश्री को देखता तो कभी उन तीनो लफंगो को.
बाहर रात का सन्नाटा पसरने लगा था,कोई भी आवाज़ यहाँ तक नहीं आ पा रही थी इसका मतलब शोर शराबा व्यर्थ था
खंडर मे चलते हुए आगे एक कमरा था,जिसमे एक बड़ा सा गद्दा बिछा हुआ था आस पास दारू कि बोतले,सिगरेट के फेंके गए अवशेष दिखाई पड़ रहे थे.
मुझे समझते देर नहीं लगी कि ये जगह इन लोगो के अय्याशी का डेरा है.
"इधर बैठ रानी हम आते है अभी " बिल्लू ने अनुश्री को नीचे गद्दे पे फेंक दिया.
"आउच....इन्हे कहाँ ले जा रहे हो?" अनुश्री चिल्लाई
"साली चुप रह क्या होने पति के सामने ही चुदेगी हमसे" कल्लू दहाड़ा
ये सुनना था कि अनुश्री कि दिल.कि धड़कन बेकाबू हो गई उसे जिस बात कि शंका थी वही हो रहा था "ये तीनो मेरे जिस्म को भोगना चाहते है हे भगवान कहाँ फस गई मै?"
अनुश्री बेबस थी
"ले जा साले को अंदर बाँध दे " बिल्लू ने जैसे आदेश दिया हो
कल्लू और रमेश मुझे उसी कमरे से जुड़े एक बाथरूमनुमा कमरे मे ले गए जहाँ एक चेयर पड़ी थी.
दोनों मुझर अंदर ले आये और दरवाजा बंद कर दिया
"सालो इतनी भी क्या जोर जबरजस्ती करते हो?"
"सर जैसा आपने कहाँ था वैसा ही तो किया,आपका ही तो प्लान था अपनी बीवी को सरप्राइज देने का " रमेश ने कहा
"हाँ हाँ....ठीक है ठीक है...लेकिन ज्यादा जबरजस्ती मत करना मै,पहले उसे मानना.
मै नहीं चाहता कि उसके के साथ जबरजस्ती हो उसे भी मजा आना चाहिए "
"जी सर "
बोलते हुए रमेश और कल्लू बाहर को आ गए सिर्फ दरवाजा भिड़ा दिया था.
अंदर मंगेश " माफ़ करना मेरी जान अनु,मेरे पास ओर कोई रास्ता नहीं था मै जानता हूँ तुम्हारे जिस्म कि जरुरत मै पूरी नहीं कर सकता,इसलिए ये सरप्राइज प्लान किया,मुझे पूरी उम्मीद है तुम एन्जॉय करोगी हेहेहेहे..." मंगेश के चेहरे पे मुस्कान थी प्यार भरी मुस्कान, प्यार मे कुछ देने कि मुस्कान.
मंगेश वही दरवाजे के पीछे से झिरी नुमा छेद से अंदर देखने लगा.
आखिर उसे भी तो अपनी बीवी अनुश्री को आनंद लेते देखना था यही तो था उसका गिफ्ट "यौन आनंद "
ठाक कि आवाज़ के साथ अनुश्री सहम गई
उसकी नजर यहाँ बंद दरवाजे पे ही थी.
"देख अब तेरा पति तो अंदर है साला बहुत शोर कर रहा रहा बाँध दिया है अंदर " कल्लू ने आते ही कहा
"क्या नाम है तेरा?" बिल्लू ने पूछा
"अअअअअ...अनु...अनुश्री " अनुश्री सहम गई थी जीवन मे इस तरह से पहली बार फसी थी हालांकि ये वाक्य उसके साथ पहली बार नहीं था फिर भी आज तक जो हुआ जसकी मर्ज़ी से ही हुआ था परन्तु हे कुछ नया था 3-3 जवान लड़को के बीच घिरी हुई थी उसका पति अंदर कमरे मे बंद था
क्या करे क्या नहीं समझ नहीं आ रहा था.
"इतना मत सोच अनुश्री आज रात तू यहाँ से कही नहीं जाने वाली, हमारी बात मानेगी तो सही सलामत होने पति के साथ सुबह घर जा पायेगी साथ ही तुझे जो मजा देने वाले है हम वो तुझे जीवन मे कभी नहीं मिला होगा,क्यों भाइयो?
बिल्लू कि बात अनुश्री को समझ आ रही थी शहर से दूर सुनसान खंडर मे विरोध कर के क्या मिलना था उसे.
"लललल.....लेकिन मंगेश " अनुश्री ने जैसे प्रश्न पूछा
"उसकी चिंता मत कर वो अंदर बंद है,कोशिश कर के थक हार जायेगा फिर सो जायेगा तू अपनी बता?"
"मममम....मम्म...मै....उनको कुछ मत करना " अनुश्री सिर्फ इतना ही बोल पाई
अंदर मेरा दिल पसिज गया कितनी फ़िक्र करती है अनु मेरी खुद कि इज़्ज़त भी दाँव पे लगाने को तैयार है.
कि तभी "तररररररर.....टर्रर्रर्र....इननननन...."किसी का मोबाइल बज उठा.
"ये साला इस समय किसका फ़ोन आ गया?" रमेश ने कूडकुडाते हुए फ़ोन उठाया.
"सालो हरामियों कहा हो आजकल,आज पैसे देने कि बात हुई थी तुम्हारी कोई बंदोबस्त हुआ क्या " सामने से कड़कदार आवाज़ सुन म रमेश कि घिघी बंध गई.
"यार ये तो असलम का फ़ोन है आज उसे पैसे देने का वादा किया था " रमेश ने बिल्लू और कालू को कहा उसके चेहरे पे हवाइया उड़ रही थी.
"एक तो इतनी रिस्क लिया इन अमीरजदो को पकड़ा लेकिन एक रूपए भी इनके पल्ले से हाथ नहीं लगा.
"ला मुझे फ़ोन दे " बिल्लू ने फ़ोन छीन लिया
"असलम भाई.....माफ़ करना पैसो का इंतेज़ाम तो नहीं हो पाया लेकिन उसके बदले कुछ और शानदार माल है आपके लिए" बिल्लू ने अनुश्री के कामुक बदन को ऊपर से नीचे घूरते हुए कहा.
"साले मुझे मेरा 10हज़ार रुपया रोकड़ा चाहिए माल तुम अपनी गांड मे डाल लो " दूसरी तरफ असलम ने घुड़की देते हुए कहा
"मालिक एक बार देख तो लो ऐसा माल अपने आज तक नहीं देखा होगा " बिल्लू अपनी बात पे कायम रहा
अनुश्री हैरानी से कभी बिल्लू को देखती तो कभी बंद दरवाजे कि तरफ जहाँ मै बंद था.
अनुश्री कि मर्जी के बिना उसके जिस्म का सौदा चल रहा था यहां.
"ये ये....ये.....कैसी बात कर रहे हो तुम " अनुश्री गिड़गिड़ाती हुई बोली
"अबे बिल्लू....ये किसकी आवाज़ है कोई रंडी बुलाई है क्या?" दूसरी तरफ असलम कि आवाज़ स्पीकर से कमरे मे गूंज गई
अनुश्री शर्म से सहमी जा रही थी इस तरह उसे किसी ने रंडी नहीं कहा था.
"अरे हजूर आप तो शहर कि सारी रंडी चोद चुके हो ये तो अमीर घरेलु अमीर माल है आपके लिए ही तोहफा समझो "हाहाहाहाहा.....तीनो हॅस पडे
अनुश्री कि तो डर के मारे हालत ही ख़राब होने लगी, उसे अपनी नाभि के नीचे दोनों जांघो के बीच पेशाब का तेज़ प्रेशर महसूस होने लगा दिल धाड़ धाड़ बजने लगा.
"तो असलम भाई एक बोत्तल दारू ले आओ और अपना माल ले लो " कट से बिल्लू ने फ़ोन रख दिया.
चलो भाइयो अपने तो नसीब खुल गए आज असलम भाई का कर्जा चूक जायेगा और हमारी दारू भी आ जाएगी.
"ये...ये......ठीक नहीं है...मै कोई बाजारू नहीं हूँ ' अनुश्री लगभग चिल्लाती हुई बोली उसकी ये आखिरी कोशिश थी अपनी इज़्ज़त बचाने कि
"साली ज्यादा बोली ना तो यही चुत फाड़ दूंगा और तेरे पति के सामने तेरी गांड मरेंगे, कुछ नहीं होगा बस आज रात हमारा साथ दे दे हम मुसीबत मे है समझा कर "
बिल्लू ने गुस्सा और प्यार एक साथ दिखाया.
"मममम....म..ममम....मै ऐसी नहीं हूँ 'अनुश्री और ज्यादा सिमट गई लेकिन कही ना कही अपने बारे मे गन्दी गन्दी बाते सुन के उसके जिस्म ने हल्की सी अंगड़ाई जरूर ली थी
आज बरसो बाद वो किसी ऐसी स्थति मे आई थी.
अंदर मै दरवाजे कि झिरी से सबकुछ देख रहा था "कही मैंने गलत तो नहीं किया?"
नहीं नहीं.....अनुश्री ने कभी कहा नहीं लेकिन वो प्यासी जरूर है "
मंगेश अपने फैसले पे अडिग था.
"क्या नाम है रे तेरा?" कल्लू ने पूछा
"अअअअअ....अनुश्री " अनुश्री सर झुकाये बैठी थी उसका दिल घबरा रहा था.
"देख अनुश्री अब कुछ नहीं हो सकता, हम लोग कोई जोर जबरजस्ती नहीं करना चाहते लेकिन तू मजबूर करेगी तो नुकसान तेरा ही है तुझे चोट लग सकती है तेरे पति का क्या होगा हमें नहीं पता भलाई इसमें है कि अपनी शर्माहट छोड़ और खुल के पेश आ आज रात यहाँ जो भी होगा उसकी भनक किसी को नहीं लगेगी,तेरे पति को भी नहीं समझी? सुबह तुम लोग आराम से घर चले जाना " कल्लू ने उसे अपनी बात ईमानदारी से समझा दी
अनुश्री को उसकी बात वाजिब लगी अब कुछ कर भी नहीं सकती थी, अपनी और मंगेश कि जिंदगी उसके लिए ज्यादा कीमती थी,कल्लू कि बात का असर उसके जहन पे हो रहा था.
"अअअअअअअ.....हाँ....हाँ...." अनुश्री ने हाँ भर दी
"Good हमें यही उम्मीद थी " बिल्लू ने कहा
अनुश्री को पक्का यकीन हो चला था की उसे यहाँ कोई देखने वाला नहीं है, उसका दिल भी कही ना कही इस बात को एन्जॉय कर रहा था, फिर इतने सालो बाद उसके जीवन मे ऐसा पल आया था जब कोई उसके जिस्म.के लिए पागल हुए जा रहा था.
"ममममम.....मुझे टॉयलेट आया है " अनुश्री ने झिझकते हुए कहाँ
"अरे भाई किसे मूत आया है " एक गरजदार आवाज़ पुरे कमरे मे गुज उठी.
अनुश्री इस आवाज़ से ही आतंकित हो गई उसका मूत छूटने कि कगार पे ही था
अनुश्री कि नजर जैसे ही आवाज़ कि दिशा मे घूमी उसके तो प्राण ही हलक मे आ गए सामने किसी दानव आकर का आदमी खड़ा था कुर्ता पजामा पहने सर पे गोल टोपी लगाए.आंखे किसी भड़िये कि तरह लाल.
अनुश्री सिहर उठी उसके पेशाब का प्रेशर और दिल कि धड़कन दोनों तेज़ हो गई, उसमे अपने पैरो को खुद से चिपका लिया परन्तु चाह कर भी अपने गद्दाराये मादक जिस्म को नहीं छुपा पा रही थी.
"अरे वाह रे, ये लड़कि कौन है? कहाँ से लाये बड़ा ही मस्त माल है "
"आओ....असलम भाई आओ " इसका नाम.अनुश्री है रास्ते मे ही मिले इसका पति अंदर कमरे मे बंद है साले के पास सिर्फ 100 रूपए ही थे लेकिन माल करोड़ो का ले के घूम रहा था,ले आये अंदर " रमेश एक सांस मे पूरी कहानी सुना गया
असलम ने तो जैसे कुछ सुना ही नहीं उसके तो पैर वही जड़ हो गए थे,उसकी नजर एकटक अनुश्री पे ही टिकी हुई थी अनुश्री जो कि घाघरे चोली मे सिमटी बैठी हुई थी.
उसके कपडे इस कद्र तंग थे कि एक एक काटव उसकेकामुक यौवन कि गाथा गा रहा था.
"उउउउम्म्म्म....क्या हुआ असलम भाई " बिल्लू ने टोका
"सालो ऐसी लड़की तो मैंने आजतक कभी नहीं देखी,इतनी सुन्दर गोरी, मासूम,ऐसा गाडराया बदन वाह लड़को तुमने तो वाकई अपना कर्ज़ा चूका दिया "
अनुश्री अपनी कामुक तारीफ सुन अंदर ही अंदर गुदगुदा गई लेकिन साथ ही डर के मारे उसकी दिल.कि धड़कन भू बेकाबू हो चली,साथ ही पेशाब का प्रेशर भी बढ़ने लगा.
"वो....वो...मुझे टॉयलेट आया है " अनुश्री ने सर झुकाये ही कहा.
"लो बे लौंडो दारू कि बोत्तल मजे करो " असलम ने बोत्तल उन तीनो कि तरफ उछाल दी वैसे वहाँ किसी ने अनुश्री कि व्यथा सुनी ही नहीं
"ममममम......मुझे टॉयलेट आया है " अनुश्री से अब बर्दाश्त के बाहर था लगता था कि थोड़ी देर होते ही बिस्तर गिला हो जायेगा
"लौंडो आज मै तुम्हे एक मस्त दारू पिलाता हूँ,नशा दुगना हो जायेगा " असलम ने कुछ सोच विचार के कहा.
"क्या असलम भाई दूसरी दारू भी लाये हो गया महँगी वाली?" तीनो लड़को कि आँखों मे चमक आ गई
"नहीं बे....इसी दारू को महँगी बना दूंगा " असलम ने अनुश्री कि तरफ नजर घुमाते हुए कहाँ ना जाने क्या था उसके दिमाग़ मे.
"तुझे पेशाब आया है ना?" असलम ने घुड़की देते हुए अनुश्री को कहा
"अअअअअ....आए...हाँ हाँंन्न...जोर से प्लीज जाने दो " अनुश्री ने अपनी जाँघे आपस मे बुरी तरह भींच ली थी.
असलम ने दारू कि बोत्तल उठाई और तीन गिलास मे थोड़ी थोड़ी डाल दि.
वहाँ किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है असलम अनुश्री को पेशाब का पूछ के पैग बनाने लगा.
अब अनुश्री के सामने तीन कांच के गिलास आधे दारू से भरे पड़री थे.
"ले मूत दे इन गलसो मे अपना गरम मूत " असलम ने अनुश्री कि भींचे हुए जांघो को घूरते हुए कहाँ.
"ककककक.....क्या कककक..क्या म....मममम...मै नहीं " अनुश्री के माथे पे पसीना आ गया इतनी घिनौनी बात सुन के उसका बदन थारथरा गया.
"मूतना है तो इस गिलास मे ही मूत वरना रहने दे " असलम ने लास्ट फैसला सुना दिया
तीनो लड़के सिर्फ अनुश्री और असलम को ही देखे जा रहे थे, उनके लिए जैसे ये अजूबा था ऐसा कुछ तो उन्होंने ना कभी सोचा था ना कभी देखा.
"सोच मत यदि तूने बिस्तर पे मूता ना तो मार मार के हालत ख़राब कर दूंगा " असलम एक दुम से हत्थे से उखड़ गया.
अनुश्री एक बार को कांप गई असलम का रोन्द्र रूप ही ऐसा था.
अनुश्री को कुछ समझ नहीं आ रहा था की कैसे करे,उसकी दिमाग़ कि नस फटे जा रही थी, कैसे वो 4 मर्दो के सामने लहंगा उठा दे.
वही चारो कि निगाहेँ अनुश्री पे ही टिकि हुई थी
यहाँ दरवाजे के पीछे मै भी देखना चाहता था अनुश्री क्या करती है.
अनुश्री डरती सहमति खड़ी हुई,हल्का सा आगे को झुकी और अपने लहंगे के अंदर हाथ डाल के कुछ करने लगी.
एक मनमोहक सी खुसबू कमरे मे फ़ैल गई,वहाँ बैठे सभी मर्दो कि हालत पतली हो चली सामने दृश्य ही ऐसा था लाल लहंगा चोली मे अनुश्री जैसी कामुक गोरे जिस्म कि मालकिन झुकी हुई थी,झुकने से उसके स्तन कि सुरक्षा करता दुप्पटा सरक के जमीन चाटने लगा,एक गहरी कामुक खाई सभी के सामने जादू से प्रकट हो गई,अनुश्री के स्तन लगभग बाहर को गिर पडे थे.
चारो लोग अपनी जगह जम के रह गए थे,सांस रोक के बैठे थे जैसे आने वाले भूचाल का इंतज़ार हो
और हुआ भी वही...जैसे जैसे अनुश्री का हाथ लहंगे से बाहर आता गया सभी को एक काली सी चीज उसके हाथ मे दिखाई दि.
"ये...ये...ये....तो अनुश्री कि ब्लैक पैंटी थी जिसे अनुश्री ने निकाल दिया था, ब्लैक पैंटी अनुश्री कि सबसे फेवरेट चीज है,खेर मैंने आगे देखना शुरू किया.
अनुश्री शर्म से गड़ी जा रही थी परन्तु ना जाने क्यों वो मंद मंद मुस्कुरा भी रही थी,माथे ले पसीना था और होंठो पे हल्की सी स्माइल.
अनुश्री अपनी काली कच्छी को साइड मे रखने ही जा रही थी कि बिल्लू तुरंत उसके पर झापट पड़ा " अरे इसे तो यहाँ दे वहाँ कहाँ रख रही है "
पैंटी छीनते ही बिल्लू ने उसे अपनी नाक से लगा लिया "ससससननणणनईईफ्फ्फ्फग.......आआहहहह.....क्या खुसबू है असलम भाई, दारू का नशा भी फ़ैल है "
अनुश्री का तन बदन बिल्लू कि इस हरकत से कांप उठा.
"इससससस.....कि हल्की सी सिसकारी उसके गले से फुट पड़ी
"अरे दोस्तों ये तो गीली है थोड़ी थोड़ी " बिल्लू ने सभी के सामने एक ऊँगली से पकड़ के पैंटी को नचा दिया..
"औरत कितनी ही सती सावित्री हो चुदने के नाम.पे पानी छोड़ ही देती है क्यों अनुश्री " असलम ने इस बार सीधा सवाल कर दिया था
"वो...वो....ंन्न..... नहीं टॉयलेट आया है " अनुश्री डरती सहमति मुकर गई.
"हाहाहा....चल कर ले बना इन तीनो के लिए पैग " असलम सामने कुर्सी पे पीछे को पसर गया.
चारो को अब जन्नत देखने कि उम्मीद थी.
अनुश्री ने तुरंत पास पड़े एक ग्लास को उठा लिया और झट से उकड़ू बैठ गई.
गिलास लाल लहंगे के अंदर कही गायब हो चला,चारो कि आंखे बड़ी होती गई उन्होंने तो ऐसी उम्मीद ही नहीं कि थी.
असलम अभी कुछ बोलता ही कि "पप्पीस्स्स्स......सससससस........ईईस्स्स.स....."कि कामुक आवाज़ से कमरा नहा गया
अनुश्री ने आंखे बंद कर ली
"आअह्ह्हब......उउउफ्फ्फफ्फ्फ़...." अनुश्री को आज पेशाब त्याग के ही असीम सुख मिला था उसका बदन धीरे धीरे हल्का होने लगा.
अनुश्री ने बारी बारी तीनो ग्लास भर दिये.
उसके चेहरे पे असीम सुकून देखा जा सकता था साथ हूँ एक सीलन भरी मादक खुसबू भी हवा मे फ़ैल गई.
ये गंध इतनी तेज़ थी कि मेरे तक भी पहुंच रही थी और मै इस गंध से अच्छी तरह से वाकिफ था ये अनुश्री कि चुत कि गंध थी जब भी वो उत्तेजित होती थी तो मुझे ऐसी ही किसी चीज कि खुसबू आया करती थी "इस...उसका मतलब अनुश्री उत्तेजित हो रही है,मै हैरान था लेकिन मै चाहता भी तो यही था कि अनुश्री मजा ले.
मै चुपचाप दरवाजे से कमरे मे झाकने लगा.
अनुश्री वही दिवार का सहारा ले के बैठ गई,आंखे बंद सांसे लगातार तेज़ चल रही थी जिस वजह से उसका सीना उठ उठ के गिर रहा था,लाल चोली मे से दो सफ़ेद गोल आकृति बहार निकलने को होती कि अंदर चली जाती.
सामने बैठा असलम ये नजारा सुकून से देख रहा था.
अनुश्री किसी काम मूर्ति कि तरह लग रही थी माथे से बहता पसीना सुराहीदार गर्दन से होता हुआ ब्लाउज मे उभरी घाटियों मे समाता जा रहा था.
"मैंने आज तक तुम जैसी कामुक स्त्री नहीं देखी " असलम से राहा नहीं गया उसके मुँह से तारीफ के दो बोल निकल ही गए.
अनुश्री कि आंखे झट से खुल गई
सामने का नजारा देख उसका पूरा वजूद ही कांप गया
उसके सामने बिल्लू,कल्लू और रमेश तीनो दारू एयर उसके पेशाब से भरे ग्लास को एक ही घूंट मे गट गट कर पी गए.
"आआहहहह......असलम भाई क्या स्वाद था मजा आ गया ऐसी दारू तो हमें आज तक नहीं पी" बिल्लू और बाकि दोस्तों ने गिलास को जमीन पे रखते हुए कहा
अनुश्री का तो कैसे वजूद ही हिल गया था उसकी जांघो के बीच एक सैलाब उमड़ पड़ा उन तीनो ही हरकत देख के
एक मन हिकारात से भर उठा तो दूसरा मन सिहर उठा रखा उन्माद से,एक कामुक उत्तेजना से "कैसे कोई उसका पेशाब पी सकता है,
ये बिल्कुल नया था अनुश्री के लिए भी और मेरे लिए भी.
मैंने भी आज तक किसी आदमी को किसी औरत का पेशाब पीते नहीं देखा था ये पल मुझे भी रोमांचित करने वाला था,आज मुझे खुद को अहसास हो रहा था कि मैंने जिंदगी मे कितना कुछ मिस कर दिया.
मै कभी अनुश्री को यौन सुख दे ही नहीं पाया.
लेकिन आज अनुश्री कि हालत देख के लग रहा था रही सही कसर आज पूरी हो जाएगी.
मेरी नजर अंदर कमरे मे ही बनी हुई थी जहाँ अनुश्री आंखे फाडे हक्की बक्की कभी उन तीनो को देखती तो कभी कुर्सी पे बैठे असलम को.
"ऐसी औरत के मूत मे तो 10 बोत्तल के बराबर नशा होता है बे लड़को " असलम ने अनुश्री कि जांघो के जोड़ को घूरते हुए कहाँ
असलन का ऐसा कहना ही था कि अनुश्री ने अपनी जाँघे आपस मे भींच ली,उसकी धड़कन हज़ार गुना बढ़ गई लगती थी.
उसका हलक सुख गया था,कुछ बोलना चाहती थी लेकिंन उसके अल्फाज़ गले मे ही घुट के रह गए.
"सही कहाँ असलम भाई ऐसे अमृत को तो मुँह लगा के ही पीना चाहिए " बिल्लू ऐसा बोलता हुआ अनुश्री कि तरफ बढ़ चला उसका हाथ अनुश्री के तालवो पे जा लगा.
"ये....ये...ये क्या कर रहे हो तुम?" अनुश्री बोखला गई
"वही जान जिसके लिए तुझे यहाँ लाये है " कल्लू भी नजदीक आ गया.
"और ज्यादा शरीफ मत बन ये देख तेरी चड्डी कैसी गीली है, लगता है तुझे भी लंड कि तलाश है " रमेश भी बोलता हुआ अनुश्री कि दूसरी साइड आ बैठा.
अनुश्री 3 तरफ़ा घिर चुकी थी, सामने पैरो के बीच बिल्लू का कब्ज़ा था और अगल बगल रमेश और कल्लू अपना आसन ले चुके थे रही पीछे दिवार तो वो कहाँ जानी थी,अनुश्री सब तरफ से घिर गई थी
तीनो लड़को के मुँह से दारू और अजीब सी कैसेली गंध निकल रही थी
अनुश्री एक दुम से 3,3.मर्दो को इतना नजदीक पा के कसमसाने लगी कि एक भारी भरकम आवाज़ गूंज उठी
"इतना क्यों इतरा रही है,तेरा बदन तो कुछ और बोल रहा है लड़को को करने दे जो वो करना चाहते है वरना जोर जबरजस्ती तुझे भी पसंद नहीं आएगी ना मुझे " असलम सामने कुर्सी ले बैठा दहाड़ा.
अनुश्री एकदम से शांत हो गई,आंखे बंद कर सर पीछे दिवार को टिका दिया,ना जाने क्या जादू था असलम कि आवाज़ मे कि एक बार मे ही उसकी बात मान ली.
आंखे बंद किये अभी अनुश्री रिलैक्स हुई ही थी एक दम से चीख उठी
"अअअअअअअह्ह्हह्ह्ह्ह......आउच धीरे " अनुश्री कि आंखे खुलती चली गई
"अबे से कल्लू इतना क्या जोर से दबाता है आराम से " बिल्लू ने अनुश्री कि टांगो को घुटने से मोड़ दिया
"अरे यार इतने सुन्दर स्तन देख के रहा नहीं गया देख तो साली के कितने गोरे है " कल्लू ने सभी का ध्यान अनुश्री के स्तन कि तरफ आकर्षित किया
वाकई दुनिया भर कि सुंदरता लिए उसके स्तन उफान पे थे,कल्लू के जोर से दबाने से कुछ कुछ लाल हो चले थे.
सामने असलम को कोई फर्क नहीं पढ़ रहा था इन सब से वो आराम से बैठा देख रहा था ना जाने क्या था उसके मन मे.
अनुश्री कि नजर भी बीच बीच मे उसके से मिल जाती,उसके जहन मे भी यही था कीबाई दूर क्यों बैठा है इन तीनो कि तरह दारू पी के टूट पढ़ना चाहिए था इसे भी.
"टक टक....टक...तड़क...कि आवाज़ के साथ अनुश्री के ब्लाउज के बटन एक एक कर टूटने लगे.
अनुश्री ने झट से अपने बहार अति खूबसूरती को थामाना ही चाहा था कि "ना..ना...ना....अनुश्री ऐसा ना करना वरना....." असलम ने फिर से घुड़की दि
शायद अनुश्री इस वरना का मतलब अच्छे से समझ चुकी थी.
"तू बेफिक्र रह तुझे भी मजा आएगा देख आ भी रहा है तेरे रोंगटे खड़े हो रहे है " असलम कुर्सी पे और पीछे कि ओर झुक गया जैसे कोई फ़िल्म शुरू होने वाली हो.
"फड़क....फड़ाक....कि आवाज़ के साथ अनुश्री के ब्लाउज के दोनों हिस्से दो तरफ झूल गए.
"आआहहहह.....नहीं....आउच " अनुश्री सिर्फ गुर्रा के रह गई.
कमरे मे एक अजीब सा सन्नाटा छा गया,जैसे वहाँ सब मुर्दे हो मैंने तो हज़ारो बार इन अनमोल खजाने को देखा था परन्तु मेरी भी हालत उसके अजूबे को देख के ख़राब हो चली.
अंदर कमरे मे अनुश्री ऊपर से सम्पूर्ण नग्न अवस्था मे बैठी थी उसके दोनों हाथ पलंग पे टिके थे सर पीछे को था आंखे बंद थी शायद वो खुद अपनी इस हालत को नहीं देखना चाह रही होंगी.
"ककककक.....क्या....दूध है दोस्तों आअह्ह्ह....." चारो कि नजर अनुश्री के स्तन पे ही थी एक दम कड़क,उभार लिए हुए जरा भी झुकाव नहीं.
निप्पल किसी कील कि तरह पैने हो गए थे.
"अरे असलम भाई इसने तो अंदर ब्रा ही नहीं पहना है" रमेश ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा उसके हाथ कांप रहे थे ना जाने किस अजूबे को छूने जा रहा हो.
"साले इसे ब्रा कि क्या जरूररत देख नहीं रहा कैसे तने हुए है " असलम खुद हक्का बक्का मुँह बाये उसके खूबसूरती को देखे जा रहा था.
"मैं खुद हैरान था कि अनुश्री के स्तन आजतक इतने कड़क नहीं हुए थे या मैंने ही काफ़ी ध्यान नहीं दिया था कैसा आदमी हूँ मै " मंगेश आज खुद को लानते दे रहा था
अंदर कमरे मे तो जैसे कोई पारस कि मणि जगमगा रही थी.
अनुश्री आंखे बंद किये आने वाले पल कि प्रतीक्षा मे थी,शायद वो सहज़ हो गई थी
कि तभी दो मजबूत लेकिन मुलायम हाथ उसके दोनों स्तन को छू गए.
"आआआहहहह.....उफ्फ्फ्फ़...."अनुश्री कि गर्दन और पीछे को हो गई मुँह खुल गया.
रमेश और कल्लू के हाथो ने उसके दो अनमोल रत्नो को दबोच लिया था.
"देख साली को कैसे मजे ले रही है " बिल्लू से भी अब रहा नहीं जा रहा था अनुश्री कि कामुक सिसकारी सुंन के, उसने भी बिना देरी किये अनुश्री के दोनों पैर विपरीत दिशा मे फैला दिये.
अनुश्री का लहंगा जांघो टक चढ़ गया था दो गद्दाराई मोटी गोरी बाल रहित जाँघे उजागर हो गई.
बिल्लू पहले से ही नशे मे था उसके सहन के बहार था ये नजारा, झट से उसने अपना सर अनुश्री के लहंगे मे घुसा दिया उसे किसी चीज कि तलाश थी.
"आआहहहह......नहीं....हीहीहीबी......उगफ.....फ़फ़फ़..." अनुश्री कि मादक कामुक चीख एक बार फिर से गूंज उठी
अनुश्री कि ये सिसकारी इस बात कि सबूत थी कि बिल्लू को अपनी मंजिल मिल गई है.
"वाह....क्या चूत है तेरी " बिल्लू कि नशे से भारी लप लापती जीभ अनुश्री कि चिकनी साफ सुथरी चुत पे तैरने लगी.
अनुश्री कि आंखे खुल गई सर आगे को आ गया तीन जवान लड़के उसके जिस्म के साथ खेल रहे थे, अब उसका जिस्म किसी गर्म भट्टी कि तरह तप रहा था.
इंकार का तो सवाल ही नहीं था आंख खोले सामने कभी वो बिल्लू को आपने लहंगे मे घुसी देखती तो कभी स्तन चबाते कल्लू और रमेश को.
उसके बदन मे एक अजीब सी हलचल मच रही थी.
सामने बैठा असलम जैसे कोई फ़िल्म देख रहा था. एक बार को अनुश्री और असलम कि नजर आपस मे टकरा गई.
"जानता हूँ तुझे भी मजा आ रहा है,कोई नहीं आएगा खुल के मजे कर " असलम धीरे से फुसफुसाया जिसे अनुश्री ने साफ सुना
ये सुनते ही ना जाने क्या जादू हुआ कि अनुश्री कि आंखे एक पल को झुकी और फिर असलम से जा मिली जैसे उसने हाँ बोला हो.
अनुश्री के दोनों हाथ ऊपर को उठ गए और कल्लू रमेश के सर पे पीछे को जा टिके,अनुश्री उनके सर का दबाव अपने स्तन पे बना रही थी,कमर अपने आप ऊँची हो के नीचे गिर जाती..जैसे वो खुद अपनी चुत को बिल्लू के मुँह पे रगड़ रही हो.
अंदर मै इस नज़ारे को देख हैरान था अनुश्री का ये रूप मैंने पहले कभी नहीं देखा था, वो कुछ बोल नहीं रही थी बस सामने बैठे असलम को देखे जा रही थी जैसे उसे उकसा रही हो, उत्तेजित कर रही हो.
"आआआहहहहह......और अंदर " अचानक ही अनुश्री ने अपने होंठो को दाँत तले काट लिया कमर हवा मे झूल गई,कमर के साथ साथ बिल्लू का मुँह भी ऊपर को आ गया.
बिल्लू ने हार ना मानते हुए वापस से मुँह को नीचे कि और झटका दिया, अनुश्री के मुँह से आहहहह.....सी निकल गई
"काटो मत....आराम से " अनुश्री पहली बार इन सब के बीच बोली
"अरे मेरी जान ऐसी सुंदर चुत रोज़ रोज़ कहा मिलती है " बोलता हुआ बिल्लू फिर से टूट पड़ा
"चप..चप..चप....चाट...कि आवाज़ से कमरा गूंजने लगा इस आवाज़ ने अनुश्री कि सिसकारी भी शामिल हो चली.
"उफ्फ्फ्फ़......आआउच.....आअह्ह्ह......जोर से " अनुश्री भी इस चुसाई और चटाई मे उन तीनो का साथ देने लगी कभी उसके हाथ बिल्लू को अपनी जांघो के बीच धकेलते तो कभी रामर्श और कल्लू को आपने स्तन पे दबोच लेते.
अनुश्री बुरी तरह से पसीने से नहा गई थी, उसका शरीर थूक और पसीने से सन गया था.
बिल्लू से राहा नहीं गया उसने अपनी जीन्स को नीचे सरका दिया, उसका लंड उजागर हो हो गया..वो गांड पीछे किये अनुश्री कि चुत मे मुँह घुसाए पड़ा था.
अनुश्री कि नजर जैसे ही बिल्लू के लंड पे पड़ी उसकी कमर जोर से ऊपर को उछल पड़ी जैसे उसके लंड को पकड़ लेना चाहती हो.
तीनो लड़के नशे मे धुत सिर्फ अनुश्री के जिस्म को चूसने चाटने मे लगे थे लेकिन सामने बैठा असलम हर एक चीज को नोटिस कर रहा था.
उसका हाथ अपने पाजामे मे कुछ टटोल रहा था.ध्यान से देखने पे पाया कि उसकी जांघो के बीच एक बड़ा सा उभार बना हुआ था उसे ही वो सहला रहा था,मै खुद हैरान था कि क्या ये वाकई असलम का लंड है या कुछ और क्यूंकि जैसा लम्बा मोटा उभार तो वो तो मेरे सोच के भी परे था.
खेर अंदर बिल्लू के देखा देख रमेश और कल्लू ने भी अपनी पैंट को निकल फेका.
अनुश्री के सामने अब तीन तीन मुस्तडे जवान लंड उछल रहे थे,जिसे देख ना जाने अनुश्री कि क्या हालत हो रही थी वो कभी अपने सर को पीछे कि तरफ पटकती तो कभी आगे आ के तीनो के कारनामें देखती.
मेरी हैरानी कि सीमा ही नहीं रही जब मैंने देखा कि अनुश्री के हाथ खुद कि चलते हुए रमेश और कल्लू के लंड पे जा टिके.
उसके हटने तुरंत हरकत मे आ गए, उसकी नजरें असलम कि जांघो के बीच बने उभार पे थी लेकिन उसके हाथ रमेश और कल्लू के लंड से खेलने लगे.
वो लगातार उन दोनों के लंड को ऊपर नीचे किये जा रही थी.
"आआहहहहह......उफ्फफ्फ्फ़.....ऐसे ही जोर से " कभी अपने दाँत पीस लेती तो कभी अपने होंठो को दाँत तले दबा लेती.
नीचे बिलकुल लगतरा उसकी चुत को चुभलाये जा रहा था,ऊपर दोनों उसके स्तन को चाट चाट के लाल.कर चुके थे.
अनुश्री अब किसी योद्धा कि तरह अकेली ही तीन मर्दो से लड़ रही थी.
आआहहहहह.......और चाटो......ऐसे ही " अनुश्री जैसे उनका हौसला बड़ा रही हो.
स्त्री का ये रूप देख के मै हैरान था,मै इतने सालो मे अनुश्री का ये रूप देख ही नहीं पाया.
रमेश और कल्लू कि तो जैसे जान पे बन आई हो वो अनुश्री के रहमों करम पे थे.
अनुश्री लगातार उनके लंड को भींचे जा रही थी सामने आलसम होने लंड को पाजामे के ऊपर से ही सहला राहा था,नीचे बिल्लू चुत चाटता हुआ आपने लंड को रगड़ रहा था.
अभी 2मिनट ही नहीं बिता था कि बिल्लू किसी भैसे कि तरह हांफ उठा....आअह्ह्ह.....पच..पच...पचाक.....करता हुए उसके लंड से वीर्य निकल अनुश्री के पैरो पे गिर पड़ा.
आआहहहह......मै गया " बिल्लू वही अनुश्री के पैरो के पास ढह गया.
अनुश्री गर्म वीर्य के अहसास से सिसकर उठी उसका खोलता जिस्म जैसे उफान पे था उसके हाथ कल्लू और रमेश के कुंड पे दबाव बनाते गए....
"हहहहआआ......अअअअअ..हहहह.....उग्ग......" एक गर्म गाड़े रस कि पिचकारी से अनुश्री कि दोनों हथेली भर गई.
उसके स्तन ले से दबाव हटता चला गया.
रमेश और कल्लू भी अपना वीर्य त्याग चुके थे.
अंदर मै हैरान था कि अनुश्री एक बार भी नहीं झड़ी और ये तीनो ढेर हो गए,क्या मेरी बीवी अनुश्री इतनी गर्म औरत है कि तीन तीन मर्द भी उसे संभाल ना सके.
तीनो लड़के हांफ रहे थे जैसे उनके प्राण ही निकल गए हो.अनुश्री दिवार से टेक लगाए अभी भी अपनी टांगे फैलाये असलम को एक टक देखे जा रही थी,
अनुश्री का बदन थूक और पसीने से चमक रहा था.क्या गोरा बदन था उसका मै आज खुद आनंदित था लेकिन मलाल भी था कि तीन तीन लफके उसे चोदे बिना ही गंहार मान गए.
अनुश्री कि निगाहेँ शून्य मे थी जैसे उसे किसी बात कि कमी हो.
हो भी क्यों ना उसका बदन काम कि आग मे जाल रहा था बरसो कि काम अग्नि मे जिसे मै नहीं बुझा पाया था,मुझे नहीं पता था मेरी बीवी अनुश्री इस कद्र गरम औरत है.
"तू इन नाजुक लड़को कि औकात से बहार कि चीज है अनुश्री,तेरे लिए तो ऐसे लंड चाहिए " असलम बोलता हुआ एकदम से कुर्सी से खड़ा हो गया और उसका पजामा सरसराता हुआ नीचे धूल चाटने लगा, सामने एक भयंकर काला मोटा सा करीब 10इंच ला लंड किसी सांप कि तरह फूफाकार रहा था. रह रह के झटके ले रहा था जैसे अपने शिकार को तलाश रहा हो.
मै खुद इस नज़ारे को देख के सकते मे आ गया मैंने आज तक सिर्फ पोर्न मे ही ऐसे लंड देखे थे,कभी कल्पना भी नहीं कि थी कि असली मे ऐसा होता होगा.
लेकिन अंदर अनुश्री के चेहरे मे कोई भय नहीं था,सिर्फ एक मुस्कान सी तैर गई,ना जाने क्यों मेरे मन मे एक शक कि घंटी बज उठी.
अनुश्री आजतक मेरे छोटे से लंड से चुदी थी उसके लिए ऐसा भयानक मोटा कला लम्बा लंड तो अजूबे से कम नहीं होना चाहिए था लेकिन अनुश्री बिल्कुल भी भयभीत नहीं दिख रही थी अपितु उसे देख के ऐसा लग रहा था जैसे उसे इसी का इंतज़ार हो.
"अभी तक तो बच्चों से खेल रही थी तुम अब मर्द कि बारी है " असलम अपना कुर्ता भी निकाल चूका था सर्फ एक सफ़ेद गोल जालीदार टोपी ही थी सर पे,उसकी छाती बालो से भारी हुई,पूरा कला आदमी था.
लंड किसी काले सांप कि तरह फूंकार रहा था.
मेरी हालत यहाँ ख़राब थी इस मंजर को देख के लेकिन अनुश्री शांत सिर्फ मुस्कुरा रही थी जैसे उसके लिए ये कोई नयी बात नहीं थी.
असलम अनुश्री के बिल्कुल नजदीक पहुंच गया इतना कि उसका लंड नीचे बैठी अनुश्री के मुँह के सामने था.
"चल अब तेरी बारी..चटाक....चट " असलम ने अपना लंड अनुश्री के चेरे पे दे मारा
अनुश्री के गाल पे लंड पड़ते ही उसकी मुस्कुराहट गायब हो गई. मुस्कुराहट कि जगह उसके चेहरे मे एक हवास दिखाई देने लगी.
अगले ही पल वो हुआ जो मैंने सपने मे भी नहीं सोचा था अनुश्री ने अपने प्यारा छोटा सा मुँह खोल बिना असलम के बोले उसके मोटे लंड के सुपडे को पने होंठो मे भींच लिया
"आआहहहह.....शाबास मै शुरू से जानता था तू खूब खेली खाई है" अनुश्री मुँह मे लंड दबाये असलम को देखे जा रही थी.
जैसे उसकी तारीफ कि गई हो.
अभी ये कम ही था कि अनुश्री ने थोड़ा और मुँह खोल असलम के लंड न आधे हिस्से को अंदर ले किया
अंदर मै हैरान था, कहाँ मै अनुश्री को सरप्राइज देने आया था और कहाँ अनुश्री पल पल मुझे ही सरप्राइज दिये जा रही थी.
"शाबास मे जानता हूँ तू कर सकती है " असलम ने अपने लंड को और अंदर धकेलना चाहा लेकिन शायद अंदर नहीं जा राहा रहा.
"ॉफ्फफ्फ्फ़.....आअह्ह्ह.....क्या करते हो आराम से "अनुश्री ने अपना सर पीछे को खींच लिया
सर पीछे खिंचते ही एक थूक कि धार साथ ही खिंचती चली गई.
अनुश्री ने बिना कोई समय व्यर्थ किये उसके थूक को चाटते हुए वापस से अपने होंठ असलम के लंड के इर्द गिर्द जमा दिये.
"आआह्हबब्ब......क्या औरत है रे तू " असलम और मेरे मुँह से एक साथ निकल गया.
आज मै अनुश्री का एक अलग ही अंदाज़ देख रहा था.
अनुश्री के होंठ धीरे धीरे असलम के लंड पर आगे बढ़ने लगे, ना जाने कैसे अनुश्री असलम के लंड को अपने मुँह मे लिए जा रही थी.
कभी अपना सर पीछे को खिंचती तो कभी आगे को बढ़ा देती.
असलम मुँह खोले सर पीछे लटकाये झूले जा रहा था.लगता था जैसे ऐसा असीम सुख उसने कभी पाया ही ना हो.
अनुश्री के होंठो के किनारे से थूक लगातार गिरता चला जा रहा था.
उसका हाथ अनुश्री के सर के पीछे चला गया,
दोनों मुँह से कुछ नहीं बोल रहे थे बस उनका बदन बोल रहा था उनकी उत्तेजना काम कर रही थी.
तभी अनुश्री कमावेश उत्तेजना से भर के पूरी जीभ निकाल के नीचे से ऊपर कि तरफ पूरा लंड चाट लेती है.
मदहोश कर देने वाला स्वाद महसूस हो रहा था अनुश्री को, वो अब पागल हो चुकी थी, स्थति ऐसी हो चुकी थी कि मै कमरे से बहार निकल भी आता तो वो लंड ना छोड़ती.
असलम थोड़ी सी आंखे खोल कर देखता है तो दंग रह जाता है कि उसका लंड पूरा गिला था अनुश्री के थूक से. थूक निकल निकल के पुरे चेहरे को भिगो चूका था,अनुश्री किसी वहशी कि तरह बर्ताव कर रही थी.
मेरा कलेजा आश्चर्य और उत्तेजना से फटा जा रहा था.
अब मै भी इस नज़ारे को जी भर के देखना चाहता था अनुश्री कि नजर असलम कि आँखों से मिली हुई थी और असलम अनुश्री के सुन्दर होंठ से निकली लपलपाति जीभ देख रहा था जो लगातार उनका लंड ऊपर नीचे चाटी जा रही थी जैसे किसी बच्चे को सालो बाद उसकी फेवरेट मिठाई मिली हो.
असलम अपने हाँथ से अनुश्री के सर के पीछे थोड़ा दबाव बढ़ाने लगा.
अनुश्री ने स्वतः ही अपना सुन्दर मुँह खोल दिया और पुरे लंड को बिना किसी हिचकिचाहट के अपने गरम मुँह मे भर लिया.
यहाँ मेरे आश्चर्य कि कोई सीमा ही नहीं थी मेरी संस्कारी घरेलु बीवी इतनी आसानी से मोटे काले लौड़े को चूस रही थी जैसे उसका रोज़ का काम हो
उसे असलम का लंड चूसने मे इतना पसंद आ रहा था कि वो सुपडे को मुँह मे लिए अंदर से सुपाडे के चारो तरफ जीभ चला रही थी
असलम का हाल बहुत बुरा था उनके मुँह से जोरदार आअह्ह्ह... हुंकार निकलने लगी,मेरी बीवी अनुश्री एक भारी भरकम मर्द पे भी भारी पड़ रही थी.
हुंकार सुन के अनुश्री लंड मुँह मे पकडे ही ऊपर देखती है असलम तो नीचे ही देख रहा था इस टकराव मे इस मिलन मे सिर्फ हवास थी और कुछ नहीं,और अनुश्री इस हवस को बढ़ावा दे रही थी.
दोनों ही नजरों नजरों मे एक दूसरे को स्वस्कृति दे चुके थे, बोल चुके थे कि ये लंड तुम्हारा है अनुश्री और ये मुँह तुम्हारा है असलम.
तभी अनुश्री अपना पूरा मुँह खोल लंड अंदर धकेल लेती है.
आहाहाहा........क्या आनंद था, जितनी गरम अनुश्री थी उस से कही ज्यादा उसका मुँह गरम था बिल्कुल कोई भट्टी जिसमे असलम का लंड आज पिघलने का था.
अनुश्री अपनी ऐड़ी के बल पूरी गांड फैलाये बैठी थी,उसका लहंगा कमर मे सिमटा हुआ था उसकी बड़ी मतवाली गांड मेरी ही तरफ थी.जिसे मै उछलते कूदते साफ देख रहा था इस गांड को मैंने हज़ारो बार देखा था परन्तु आज कुछ नया था आज कुछ ज्यादा ही बहार को खुल के आ गई थी गांड के बीच कि लकीर मे से कभी वो सुरमई खजाना दिखता तो कभी छुप जाता मै खुद अपनी बीवी कि मादक जिस्म का दीवाना हुआ जा रहा था.
देखते ही देखते उत्तेजना से भरी अनुश्री का एक हाँथ नीचे अपनी चुत के करीब पहुंच गया . और लकीर के बीच मौजूद दाने को सहलाने लगा .
उफ्फ्फ्फ़ .. करती अनुश्री असलम के लंड को जड़तक़ मुँह मे भर ले रही थी,उसके होंठ असलम के भारी टट्टो से टकरा रहे थे.
मेरी नजर जैसे ही असलम के टट्टो पे पड़ी मै दंग रह गया "इतने बड़े टट्टे?"
मेरे खुद के मुश्किल से किसी अंटी के सामान थे लेकिन असलम के टट्टे किसी टेनिस बॉल कि यारह लग रहे थे जो कि अनुश्री के थूक से सने हुए थे.
शायद अनुश्री को अपनी सांसे थमती महसूस होने लगी थी, वो अपना सर पीछे कि और खिंचती है परन्तु लंड मुँह से बाहर नहीं निकालती.
अब एक हाथ चुत पे चल रहा था, दूसरे हाथ से वो असलम के बड़े भारी टट्टो को पकड़ के जोर दार झटके से वापस लंड गले तक़ उतार रही थी
असलम और यहाँ मै हौरान थे कि ऐसा भी हो सकता है कोई औरत इस कदर कामुक हो सकती है
उधर असलम और यहाँ मै एकटक अनुश्री कि काम क्रीड़ा को देखे जा रहे थे,
अब अनुश्री इतनी गरम हो चुकी थी कि जोर जोर से धचा धच अपनी दो ऊँगली चुत मे चला रही थी वो अब रुकना नहीं चाहती थी उसे कैसे भी स्सखलित होना था.
नीचे चुत मे चलता हाथ, ऊपर मुँह मे सटासट जाता लंड और दूसरा हाथ टट्टो को मसल रहा था.
ऐसा कारनामा, ऐसी कामुक औरत नसीब वालो को ही मिलती है लेकिन जिसके नसीब मे थी वो मै था जो आज तक अपनी बीवी को पहचान ही नहीं पाया.
जिसको ऐसे खजाने कि कद्र नहीं वो खजाना कोई और लूट लेता है, जबकि यहाँ तोअनुश्री खुद अपने यौवन का खजाना लूटाने पे आतुर हो गई थी....और जी भर के लूटा भी रही थी.
अब लंड पूरी रफ़्तार से मुँह मे जा रहा था,असलम ने अपने दोनों हांथो से अनुश्री का सर पकड़ के अपने लंड पे धकेले जा रहा था , अनुश्री भी क्या कम थी वो भी असलम के टट्टे पकडे धचा धच मुँह जड़ तक़ मारे जा रही थी.
एक बार मे लंड गले तक अंदर जाता एक बार मे बाहर.
अनुश्री के थूक से लंड लिसलिसा गया था थूक टपक टपक के स्तन के रास्ते चुत तक पहुंच रहा था जहाँ रतीवती कि उंगलियां उस थूक का फायदा उठा के फचा फच चुत मे ऊँगली मारे जा रही थी...
फच फच फच.... आअह्ह्हह्ह्ह्ह....
अब वो पल आ चूका था जब इस गर्मी का अंत हो, असलम और अनुश्री इस रगड़ाई को ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर पाए
और एक साथ भलभला के झड़ने लगे
अनुश्री कि चुत से सफ़ेद पानी का जोरदार फाव्वारा निकल के सीधा असलम के पैर पे चोट मर देता है.
"आआह्हबब्ब........उगगग....हे भगवान....आआहहहह.....असलम...मै गई" अनुश्री दहाड़ उठी.
असलम भी गर्मी बर्दास्त नहीं कर आया पीच पीच पीछाक.... के साथ पहली धार वो अनुश्री के मुँह के अंदर ही मार बैठा.....आआआह्हःब्ब......अनुश्री....." असलम बेकाबू था
अनुश्री ससखलित होते ही धम्म...से गांड के बल बैठ गई .. असलम कि पिचकारी एक के बाद एक अनुश्री के बदन को भिगोने लगी.
अनुश्री अभी भी असलम का लंड पकडे हुई थी, उसका हाथ और असलम का काला भयानक लंड वीर्य से भीगा हुआ था
इतना वीर्य था कि पूरा शरीर नहा गया..... अनुश्री ने जैसे ही गरम वीर्य का स्पर्श अपने जलते बदन पे महसूस किया"आआहहहहह...आउच....उफ्फ्फग......आअह्ह्ह.....करती अनुश्री कि चुत से एक तेज़ पेशाब कि धर फुट पड़ी जो सीधा असलम के पैर से जा टकराई.
मैंने अनुश्री कि हालत आजतक कभी ऐसी नहीं देखी थी उसकी तो जान ही निकल गई, वो दिवार के सहारे निढाल बैठी अपनी टांग फैलाये लम्बी लम्बी सांसे ले रही थी, वीर्य जो मुँह मे था वो गले से नीचे जा चूका था.
"आआहहहहह......क्या गरम औरत है रे तू मै आज तक सिर्फ चूसने से नहीं झाड़ा उफ्फ्फ्फ़.....आआआहहहह...." असलम हांफ रहा था उसके बोल मेरे का तक भी पहुचे थे.
मेरे तो आश्चर्य कि सीमा ही ख़त्म हो गई थी ये चौथा आदमी था जो अनुश्री को चोदे बिना ही ढेर हो गया था.
असलम पीछे दिवार के साहरे खड़ा हांफ रहा था.
दोनों मे से अभी भी कोई कुछ नहीं बोल रहा था बस एक दूसरे को लम्बी लम्बी सांस लिए देखे जा रहे थे.
अनुश्री कि जीभ अपने होंठो के चारो तरफ चल रही थी उसे वीर्य का स्वाद पसंद आया था. सारा चाट जाना चाहती थी..
मुझे काटो तो खून नहीं,इस नज़ारे को देख मैंने अपना बैलेंस खो दिया और कुर्सी से गिर पड़ा.
"धाजड़ड़ड़ड़ड़ह्म्मम्म्म्म.......कि आवाज़ के साथ कमरा गूंज उठा.
मै मुँह के बल जमीन पे गिर पड़ा था.
आअह्ह्ह......
"क्या हुआ है.....अंदर क्या हुआ..? बहार बैठी अनुश्री हक्की बक्की रह गई साथ ही असलम और बाकि के तीनो लड़के भी होश मे आ गए इस आवाज़ से.
सभी कमरे मे आ गए.
असलम धीरे से "क्या हुआ सर?"
"कुछ नहीं....बस बैलेंस बिगड गया था " तुम लोग अपना काम जारी रखो.
"सर आपकी बीवी बहुत गरम है " असलम बोलता हुआ उठ खड़ा हुआ.
मैंने उन्हें वापस बहार भेज दिया मै आगे देखना चाहता था.
दरवाजा वापस से बंद हो गया.
"क्या...क्या...हुआ मंगेश को....?
अनुश्री घबराइए हुई थी
"ऐ कुछ नहीं हुआ....नींद मे कुर्सी से गिर पड़ा अब सो रहा है फर्श पे नीचे " असलम ने अनुश्री कि जिज्ञासा शांत कर दि.
अनुश्री के चेहरे पे ना जाने क्यों एक मुस्कुराहट सी दौड़ पड़ी.
मेरा सरप्राइज का प्लान मुझे ही सरप्राइज कर गया था
समाप्त.
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