मेरी बीवी अनुश्री भाग -31
अपडेट -31
"कैसी लग रही हू मंगेश " अनुश्री तैयार थी किसी जन्नत कि परी कि तरह
मंगेश देखता ही रह गया,वाकई उसकी बीवी खूबसूरत है "wow...
बहुत सुन्दर "
अनुश्री स्लीवलेस ब्लाउज और साड़ी मे हाथो से पीछे बालो को बांधते हुए खड़ी थी,उसकि खूबसूरती से पूरा कमरा जगमगा रहा था.
ना जाने क्यों आज उसका ब्लाउज ज्यादा तंग हो गया था या फिर स्तन ही खुशी से फुले नहीं समा रहे थे.
आज उसका दिल ख़ुश था,दिमाग़ से सभी अशांकाये दुविधाएं हट गई थी उसे घर जाना था आज का दिन उसके लिए पूरी मे लास्ट था, आज का दिन वो अपने पति मंगेश के साथ बिताना चाहती थी इस बात का सबूत उसका पहनावा था.
कुछ ही देर मे होटल के बाहर, रिसेप्शन पे अन्ना और बहादुर खड़े थे
रेखा और राजेश भी तैयार हो के आ चुके थे.
"अच्छी लग रही हो बेटा " रेखा ने अनुश्री कि तारीफ कर दि करती भी क्यों ना अनुश्री वाकई खूबसूरत और कामुक लग रही थी,
जो देखता देखता ही रह जाता.
"थैंक यू आंटी आप भी कुछ कम नहीं लग रही है " अनुश्री ने मुस्कुरा के जवाब दिया.
"क्या बेटा अब इस उम्र मे कहा" रेखा झेम्प गई उसे अब अपनी तारीफ अच्छी लगती थी
रेखा लाल साड़ी पहने माथे ोे बिंदी लगाए किसी कामुक अप्सरा से लग रही थी.
वहाँ खड़े अन्ना और बहादुर कि नजर उसके जिस्म को बराबर टटोल रही थी.
"लो जी मंगेश बाबू आपकी कार रेडी है घूम आइये " अन्ना ने कार कि चाभी मंगेश कि ओर बढ़ा दि,लेकिन निगाहेँ पीछे खड़ी रेखा पे ही जमीं हुई थी.
रेखा भी आज कुछ कम नहीं लग रही थी सुहाने मौसम ने उसके जिस्म को भी तारोंताज़ा कर दिया था
खूबसूरत साड़ी मे लिपटी रेखा अपने गद्दाराये जिस्म को जैसे तैसे साड़ी मे कैद कि हुई थी.
इन सब से बेखबर बहादुर गेट पे खड़ा रेखा को देखे जा रहा था,उसकी निगाहेँ रेखा पे से हट नहीं रही थी
रेखा भी सभी से नजरें चुरा के बहादुर को देख लेती.
लगता था जैसे आँखों ही आँखों मे बात हो रही है, अचानक से बहादुर कि गर्दन ना मे हिल गई,
जैसे वो रेखा को मना कर रहा हो परन्तु रेखा ने बड़ी आंख कर गुस्सा जाहिर किया.
कुछ तो पक रहा था यहाँ पे.
"अरे बैठो भी अंदर 30km का सफर तय करना है अभी " मंगेश कि आवाज़ से रेखा का ध्यान भंग हुआ
मंगेश और अनुश्री कार मे आगे बैठ गए,राजेश ने भी पीछे कि सीट पे कब्ज़ा जमा लिया.
रेखा अभी गेट खोल के बैठने को ही हुई हा कि "आआहहहह.....आउच मर गई "
रेखा एकाएक कराह उठी और गिरने को ही थी कि बहादुर दौड़ पड़ा.
"क्या हुआ मेमसाहेब "
"माँ....क्या हुआ " राजेश तुरंत ही कार से उतर के रेखा के करीब पंहुचा.
रेखा अभी भी बहादुर के सहारे खड़ी थी उसका पाऊं जमीन पे नहीं ठीक पा रहा था
"आह....राजेश लगता है पैर मुड़ गया फिर से " रेखा विचलित सी बोली.
"क्या माँ क्या करती है आप " राजेश रेखा के पैर को सहलाने लगा
"भैया भाभी आप घर.आइये मै रुकता हू माँ के साथ " राजेश म
ने रेखा को संभालना चाह लेकिन कहाँ रेखा गद्दाराये बदन कि सुडोल औरत और कहाँ राजेश लचीला आदमी.
"साब जी....आप रहने दे मै संभाल लेता हू " बहादुर के मजबूत हाथो ने एक बार फिर से रेखा को दबोच लिया
"अरे बेटा चिंता मत कर...तू जवान है अभी नहीं घूमेगा तो कब घूमेगा तू जा मै थोड़ा आराम कर लुंगी तो सही हो जाउंगी " रेखा ने राजेश को तस्सली दि.
राजेश नहीं माना परन्तु रेखा के जोर देने पे राजी हो चला.
कार निकल चुकी थी....इधर बहादुर रेखा को सहारा दिये कमरे कि ओर बढ़ चला.
हर कदम के साथ रेखा के चेहरे से दर्द कि लकीर गायब होती गई...उसकी जगह एक कामुक मुस्कान ने ले ली.
मंगेश कार बदस्तूर चलाये जा रहा था, राजेश आगे बैठा हुआ था और पीछे कि सीट पे अनुश्री अकेले कही खोई हुई थी उसके दिमाग़ मे विचारों कि आंधी चल रही थी, नजरें बाहर के सुहाने मौसम का लुत्फ़ उठा रही थी "मैंने गलत तो नहीं किया ना?"
सुहाने रूहानी मौसम ने अनुश्री को अपने आगोश मे भर लिया,उसका अंग अंग महक रहा था.
"नहीं..नहीं...मैंने तो मंगेश के लिए ही किया था,लेकिन वो...वो.अब्दुल" अनुश्री के विचारों को झटका लगा
उसने खुद कि गलती मानने से साफ मना कर दिया, बाहर से आती ठंडी हवा उसके विचारों को प्रभावित कर रही थी.
"वैसे भी कल चले ही जाना है तो क्या गलत "
अनुश्री ने बहुत चालाकी के साथ खुद को सही साबित कर दिखाया था, स्त्री से अच्छा वकील भला कौन हो सकता है.
एक पल मे ही ट्रैन से शुरू हुआ सफर आज के सफर तक उसके दिमाग़ मे घूम गया, कही तो गलती नहीं है मेरी.
तन और मन हल्का था.
तभी कार रुक गई,कार रुकने के साथ ही अनुश्री के विचार भी थम गए "लो जी आ गया चिलिका लेक "
अनुश्री ने बाहर देखा वो लेक कि खूबसूरती से चकाचोंघ थी पूरा मौसम सुहाना था आसमान मे कही कही बादल छाये हुए प्रतीत हो रहे थे
"चलो जल्दी उतरो बोट के टिकट भी लेने है बैसे भी समय कम है " मंगेश जल्दी से कार पार्क कर उतर गया.
पीछे पीछे राजेश और अनुश्री भी चल पडे,तेज़ चलने कि वजह से आस पास के लोगो कि नजर एक ही जगह अटक गई थी
अनुश्री कि बलखाती कमर,मटकती बड़ी गांड जो अपनी मदक खूबसूरती का परिचय दे रही थी.
अनुश्री इन सब से बेखबर इस आलीशान दृश्य का लुत्फ़ उठा रही थी.ठंडी हवा उसके बदन को छेड़ती निकल जा रही थी किसी छिछोरे आवारा मंचले लड़के कि तरह.
खुली बाहे,खुले पेट पे पडती झील कि हवा उसके रोम रोम मे ताज़गी भर रही थी, जितनी गुस्सा और परेशान वो सुबह थी वो सब काफूर हो गया था.
"कितना अच्छा मौसम है ना मंगेश? मन करता है यही रह जाओ "
"अभी तो कल ही जाने का बोल रही थी " मंगेश भी मौसम का लुत्फ़ उठाता हुआ बोला
"वो...तो जाना ही है " अनुश्री ने राजेश से बच के मंगेश कि ओर आंख मार दि.
अनुश्री निश्चय कर चुकी थी.
"भाईसाहब तीन टिकट देना " तीनो बातो बातो मे टिकट काउंटर तक पहुंच गए थे.
"टिकट तो ख़त्म हो गई भाईसाहब " टिकट काउंटर पे बैठा व्यक्ति अपना सामान समेट रहा था
"अरे ऐसे कैसे?" अभी तो 3ही बजे है " मंगेश अपनी जगह सही था
"अजी भाईसाहब मौसम देख रहे है,मिजाज नरम है आज, इसलिए ये बोट लास्ट है " दो टुक जवाब दे के वो व्यक्ति सामान समेट निकल लिया.
"कोई नी मंगेश वापस चलते है " अनुश्री थोड़ा मायूस थी उसे झील मे सफारी करनी थी
"उदास मत हो जान देखते है कुछ इंतेज़ाम " मंगेश इधर उधर देखने लगा.
"अम तुमको पहले ही बोला था चाटर्जी जल्दी चलो बोट छूट जाएगी "
अचानक पीछे से आई आवाज़ से तीनो चौंक गए सबसे ज्यादा अनुश्री क्यूंकि वो इस नाम और आवाज़ से भली भांति परिचित थी.
वो मन ही मन दुआ करने लगी "प्लीज भगवान ये वो ना हो ये लोग यहाँ कैसे?"
लेकिन जो होना है वो हो के ही रहता है
"अरे कोई नी लेट तो लेट सही बोट का इंतेज़ाम तो हुआ ना "
मंगेश भी उन दो बूढ़ो को जनता था वो उसी तरफ बढ़े चले आ रहे थे.
"अंकल.....अंकल..." मंगेश ने उने आवाज़ दे ही दि
"ररर.....रुको मंगेश " अनुश्री बोलती ही कि मंगेश आवाज़ दे चूका था.
"अंकल....यहाँ " मंगेश ने दोनों बंगाली बूढ़ो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया
बंगाली बूढ़े अपनी ही धुन मे चले जा रहे थे,आवाज़ का पीछा करते ही जो उन्होंने देखा उन्हें अपनी किस्मत ोे यकीन ही नहीं आया.
एक जवान लड़का उन्हें देख हटने हिला रहा था ललेकिन ये उनकी किस्मत का विषय नहीं था,
किस्मत और आकृष्ण का विषय तो उस जवान आदमी के पीछे खड़ी स्त्री थी,जो एक महीन और शानदार साड़ी मे सर झुकाये खड़ी थी.
"ये तो वही है ना मुख़र्जी "
"हाँ भाई हां....16 आने वही है अनुश्री " दोनों बूढ़ो के मुँह मे जैसे पानी आ गया उनके पाऊं मे ना जाने कहाँ से वो पावर आ गौ कि 1 सेकंड मे ही वो दोनों मंगेश के पास आ धमके.
"तुमने बुलाया बेटा " पूछा मंगेश को था लेकिन नजरें अनुश्री पे थी जो सर झुकाये खड़ी थी.
अनुश्री ने भगवान से माँगा था कि वो बंगाली बूढ़े ना हो लेकिन इत्तेफाक वही थे,अनुश्री कि हिम्मत भी नहीं हो रही थी कि वो नजर उठा के देख ले.
शर्म और लज्जात से वो गाड़ी जा रही थी
"क्या किया मंगेश तुमने " अनुश्री का तो मन चाहता था कि जमीन फट जाये और वो उसमे समा जाये.
"हाँ अंकल वो आप को बात करते सुना कि बोट का इंतेज़ाम हो गया " मंगेश छिलका लेक का आनंद मिस नहीं करना चाहता था.
" सही सुना बेटा ये इनकी बोट तो भर गई,तो थोड़ा ढूढने मे मालूम पड़ा कि एक लड़का अपनी बोट चलाता है इधर ही तो हमने तो ले लिया टिकट " चाटर्जी लगातार बोले चले जा रहा था
"अब भला ऐसा मौसम कौन छोड़ के जायेगा "
"मममम....मंगेश चलो वापस चलते है " पीछे से अनुश्री फुसफुसाई, उसका दिल फिर किसी अनजाने डर कि वजह से धड़क रहा था उसे कुछ ठीक नहीं लग रहा था
"अरे हम दो बूढ़े इस मौसम का आनंद लेने चले आये तुम लोग तो जवान हो अभी वापस जा के क्या करोगे " मुखर्जी ने तपाक से बोला, कान का तेज़ था मुखर्जी
"वो...वो....अंकल ऐसी कोई बात नहीं है " मंगेश को बंगलियों कि बात अपनी तोहिन लगी जैसे किसी ने उसकी मर्दानगी पे चोट कि हो.
"नहीं...ना मंगेश मुझे नहीं जाना " इस बार अनुश्री ने अपनी आंख उठा के दोनों बूढ़ो को घूर दिया,उसकी आंख मे गुस्सा था
"चल भाई चाटर्जी हमें क्या " उन्हें अनुश्री के घूरने से रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा, ना जाने कैसे वो अनुश्री को इतनी भलीभांति पहचानते थे
दोनों आगे बढ़े ही थे कि
"क्या करती हो अनु वैसे ही आज लास्ट डे है कल से तो वही घर बार, टिकट मिल जाये तो क्या हर्ज़ है " मंगेश नर अपना अंतिम फैसला सुना दिया
"अंकल आप यही रुके मै भी आया साथ चलते है " मंगेश चाटर्जी के बताये अनुसार बोट वाले के पास चला गया.
"मै कुछ खाने को ले आता हू,आप यही रुकना भाभी " राजेश भी जल्दी ही निकल गया
वहाँ बच गए थे सिर्फ अनुश्री और उसके काम गुरु बंगाली बूढ़े.
बूढ़ो कि नजर बारबार अनुश्री के महीन साड़ी के अंदर से झाँकते ब्लाउज पे ही टिकी हुई थी.
अनुश्री के स्तन खुद बा खुद उन बंगलियों का स्वागत करने को बाहर आ गए प्रतीत होते थे.
अनुश्री शर्म,लज्जा से गड़ी जा रही थी,उसके दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया,
"हे भगवान क्या हो रहा है ये?, फिर से नहीं "
मंगेश को जाते अनुश्री सिर्फ देखती रह गई,दिलोदीमाग मे हज़ारो भूचाल लिए अनुश्री खड़ी थी
तो क्या फिर से अनुश्री बहक जाएगी?
ये बंगाली बूढ़े उसके दृढ़ निश्चय को तोड़ पाएंगे?
बने रहिये.....कथा जारी है
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