मेरी बीवी अनुश्री भाग -46
अपडेट -46
सुबह का सूरज निकाल आया था, तूफान एक दम शांत था ऐसा जैसे कभी था ही नहीं.
फारुख कि नजर रसोई घर के पर्दे पर ही टिकी हुई थी, जैसे इंतज़ार मे हो कि वो सुंदर अप्सरा कब निकलेगी.
"खो...खो....पानी....पानी..." अचानक मंगेश भी खासते हुए उठ गया रात भर मे उसका गला सुख गया था.
"लो साहब पानी " फारुख ने पास पड़े पानी के जग को मंगेश कि ओर बढ़ा दिया.
मंगेश का सर अभी भी घूम रहा था, पानी ने थोड़ी राहत जरूर पहुंचाई थी..
"सुबह हो गई क्या?" मंगेश ने आंखे मसलते हुए इधर उधर देखा उजाला हो चूका था, कमरा अस्त व्यस्त था, कमीन गीली थी, टेबल पर गिलास लुड़का पड़ा था.
"लेकीन अनुश्री कहाँ है? क्या हुआ है यहाँ फारुख?"
वो....वो...वो....साब " फारुख कि जबान लड़खड़ा गई हालांकि मंगेश के मन मे कोई शक नहीं था उसका प्रश्न सामान्य सा था.
फिर भी फारुख हड़बड़ा गया, अक्सर चोर किसी भी प्रश्न को अपनी चोरी से ही जोड़ के घबरा जाता है वही हाल फारुख का था.
"अरे उठ गये आप? तभी पीछे से अनुश्री कि आवाज़ ने दोनों का ध्यान खिंच लिया" मंगेश जहाँ उन्नीदा था वही फारुख उस हसीन परी को देखता ही रह गया.
कैसा हुस्न दिया था खुदा ने.
अनुश्री फारुख कि तरफ नहीं देख पा रही थी शायद कपड़ो के साथ उसकी हया शर्म वापस लौट आई थी.
अनुश्री वापस से दमक रही थी.
"हाँ उठ गया रात को तो ऐसे नींद आई जैसे जन्मो बाद सोया हुआ हूँ " मंगेश भी उठ कर अपने कपड़े पहन चूका था.
"लो फारुख तुम्हारे पैसे, तुमने बहुत मदद कि हमारी "
मंगेश ने एक 2000rs का नोट ओर बढ़ा दिया फारुख कि तरफ.
फारुख कभी पीछे खड़ी अनुश्री को देखता तो कभी मंगेश के हाथ मे थमे नोट को.
परन्तु उसके हाथ नहीं बढ़ रहे थे.
"क्या हुआ ले लो कल रात तुमने ही तो मांगे थे?" मंगेश ने नोट वही टेबल पर रख दिया.
"आओ चलते है अनु मकेनिक भी ढूंढना है" मंगेश आगे बढ़ चला अनुश्री पीछे.
"साब.....साब....मंगेश दरवाजे कि दहलीज पे ही था कि पीछे से फारुख कि आवाज़ ने रोक दिया.
"ये पैसे आपके है, मुझे नहीं चाहिए " फारुख ने पैसे वापस मंगेश कि तरफ बढ़ा दिये.
" रख लो तुम्हरे हक़ के है "
"नहीं साहब ये आपके है"
मंगेश दुविधा मे था, उसने अनुश्री कि तरफ देखा
"रख लो फारुख तुम्हे जरुरत पड़ेगी इन पैसो कि" अनुश्री कि आवाज़ मे ना जाने कैसा जादू था नोट फारुख कि जेब मे समा गये, उसकी आंखे नाम थी.
मंगेश घर से निकल आगे बढ़ गया.
पीछे अनुश्री चल पड़ी, दहलीज पे खड़ा फारुख उस जन्नत कि अप्सरा को देखता ही रह गया, सामने से पड़ती सूरज कि किरणे अनुश्री के जिस्म को दमका रही थी.
याकायाक अनुश्री पीछे पलटी ओर एक पल को फारुख को देख लिया उसके होंठो पर मुस्कुराहट थी..
फारुख भी मंद मंद मुस्कुरा दिया.
एक अनजाने अजनबी लेकीन अपनेपन के रिश्ते कि नीव रख दि थी इस मुस्कुराहट ने.
थोड़ी ही देर मे मंगेश ओर अनुश्री होटल मयूर के दरवाजे पे थे.
"अय्यो......मंगेश कहाँ रह गया था जी कल रात? कार कहाँ होना?" होटल मालिक अन्ना उन्हें देख दौड़ता हुआ उनके पास पंहुचा.
"वो...वक...वो...मंगेश ने कल रात का किस्सा कह सुनाया "
"थैंक गॉड यहाँ आज भी अच्छा लोग होता जो टूरिस्ट कि मदद करता "
अन्ना के चेहरे पे चिर परिचित मुस्कुराहट थी.
लेकीन अनुश्री उस मुस्कुराहट के पीछे के इंसान को देख पा रही थी.
"क्या फारुख सच बोल रहा था, ये अन्ना ऐसा तो नहीं दिखता लेकीन उसकी कहीं एक एक बात सही बैठ रही थी, उसकी आँखों मे सच्चाई थी "
आज अनुश्री का दिल साफ था एक दम मौसम कि तरह उसे सब साफ दिख रहा था.
"आप चलिए मै चाय भिजवाता जी "
मंगेश ओर अनुश्री दोनों रूम मे दाखिल हो चले
"तुम इतनी क्यों पी लेते हो " अनुश्री अंदर आते ही तुनक गई
"अरे..वो...वो...मुझे पता नहीं था ये देशी दारू इतनी हार्ड होती है"
"हाँ तुम तो मस्त सो गये थे घोड़े बेच कर "
"तो क्या करता उस तूफान मे जग कर भी " मंगेश ने हसीं मे बात उड़ा दि.
"हाँ मंगेश तुम क्या करते, कुछ नहीं कर सकते तुम " अनुश्री मन मे उलझन लिए बाथरूम चली गई.
सामने ही उसका खूबसूरत अक्स चमक रहा था.
अनुश्री के सामने किसी चलचित्र कि तरह घटना उभर आई थी,
उसका जो सफर अभी तक रहा वो किसी साजिश का हिस्सा थी, वो हैवानो के जाल मे फसी हुई थी, उसे बचाया भी किसने एक शराबी ने.
फारुख जिसके साथ वो कल रात मौजूद थी, उसने खुद अपनी इच्छा से वो सब किया जो उसे शोभा नहीं देता था.
अभी तक जो हुआ सब अकस्मात परिस्थिति जनक हुआ लेकीन कल रात वो खुद फारुख कि तरफ दौड पड़ी थी,अपनी प्यास बुझाने को.
उफ्फफ्फ्फ़.....उसका जिस्म गर्म होने लगा था, अनुश्री के हाथो ने फववारे को चालू कर दिया.
हालांकि आज उसके मन मे ना जाने क्यों कोई आत्मगीलानी नहीं थी.
"अब मुझे यहाँ एक पल भी नहीं रुकना चाहिए "
"लेकीन....लल्ल...लेकीन फारुख का क्या?
"मुझे क्या लेना देना फारुख से, मुझे अपने मंगेश को उस हालत मे नहीं देखना"
अनुश्री खुद से लड़ रही थी.
कल रात का उसका वादा पानी के साथ बह गया लगता था,
इंसान कहीं बार तेश, आवेश मे आ कर वादा कर तो देता है लेकीन जब शांत मन से सोचता है तो अहसास होता है ये संभव ही नहीं है.
वैसे एक घरेलु लड़की ले लिए ये सब संभव नहीं था वो भी तब जब उसे अपने जिस्म पर जरा भी कंट्रोल नहीं था.
"नहीं....नहीं....मुझे नहीं पड़ना इन सब चक्कर मे, मुझे क्या लेना देना "
इस बार अनुश्री ज्यादा हल्का महसूस कर रही थी. शायद उसने सही निर्णय लिया था, या फिर वो स्वार्थी हो रही थी.
थोड़ी ही देर मे मंगेश राजेश, रेखा ओर अनुश्री कमरे मे गप्पे मार रहे थे.
कल रात कि घटना बड़े चाव से सुनी जा रही थी.
"क्या भैया अपनी तो किस्मत ही ख़राब है जब से आये है तब से कुछ ना कुछ हो ही रहा है, अब हमें चलना चाहिए " राजेश ने सभी कि बात बीच मे काटते हुए कहा.
"सही कह रह हो राजेश तुम, क्यों अनु चले अब बहुत घूम लिया भाई "
अनुश्री तो यहीं चाहती थी उसकी गर्दन हाँ मे हिल गई.
"अच्छा ऐसा करते है हम दोनों स्टेशन जा कर टिकट ले आते है, तब तक आप लोग तैयार हो जाइये आज लंच बाहर ही करते है" मंगेश ने कहाँ.
राजेश मंगेश बाहर निकल चले,रेखा भी अपने रूम मे तैयार होने चल पड़ी.
अनुश्री वही कुर्सी पर बैठी रही ना जाने क्यों उसे अच्छा नहीं लग रहा था, लेकीन वो यहाँ रुकना भी नहीं चाहती थी..
एक अजीब सी उठा पटक चल रही थी उसके दिमाग़ मे.
ऐसे समय बस एक धक्का चाहिए होता है आदमी या तो इस तरफ या फिर उस तरफ.
ये धक्का देगा कौन?
अनुश्री घर जाना चाहती थी लेकीन नहीं भी.
वही नीचे किचन मे
"काका ओह काका....ये चाय दे आना जरा कमरा नम्बर 102 मे.
मिश्रा चाय चलाते हुए बोला.
"ठीक है बिटवा दे आते है " मांगीलाल दो cup चाय ले कर चल पड़ा.
कमरे मे अनुश्री खिड़की खोले समुद्र को देख रही थी समुद्र के साथ उसकी कितनी सारी यादे जुड़ गई थी, टापू मे रात का वाक्या उसके जहन मे ताज़ा हो गया एक मीठी गुदगुदी ने उसके जिस्म मे झुरझुरी सी जगा दि.
वो बहुत सी यादें ले के जा रही थी.
ना जाने क्यों उसकी आंखे नम हो आई, अनुश्री अपनी भावनाओं को नहीं संभाल पा रही थी.
"ठाक ठाक ठाक......." दरवाजे पर दस्तक से उसका ध्यान भंग हुआ. झट से आँसू पोछ जैसे ही उसने दरवाजा खोला उसके जिस्म के रोंगटे खड़े हो गये सामने खड़े मांगीलाल का भी यहीं हाल था.
मांगीलाल इसी उम्मीद मे आया था.
"अअअ...अअअ...आप यहाँ?" अनुश्री को दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य हुआ.
"वो...वो....बिटवा चाय " मांगीलाल के हाथ भी कांप रहे थे.
"अअअ...अअअ...अंदर रख दीजिये "
अनुश्री वही दरवाजे से परे हट गई, उसका दिमाग़ साय साय कर रहा था वो अभी जिसके बारे मे सोच रही थी वो सामने था वाकई दुनिया बहुत छोटी है.
"हाँ बिटिया रानी मेरे गांव के लड़के यहीं काम करते है तो मिलने चला आया था " मांगीलाल एकटक अनुश्री को ही देखे जा रहा था.
"कककक...कक्क..कौन काका?" अनुश्री के मन मे ना जाने क्यों कोतुहाल ने जगह ले ली.
"मिश्रा ओर अब्दुल मेरे गांव के ही लड़के है "
अनुश्री के पैरो तले जमीन खिसकती चली गई, डर के मारे उसका दिल मुँह को आ गया.
एक लड़की का सबसे बड़ा डर ही यहीं होता है कि उसके चरित्र के बारे मे कोई जाने.
यहीं डर अनुश्री को घेरे बैठा था.
"कहीं मिश्रा ओर अब्दुल ने मांगीलाल काका को सब बता तो नहीं दिया?"
"क्या हुआ बिटिया रानी चाय पीजिये अदरक कूट के डाला है "
मंगीलाल मुस्कुरा दिया
अदरक कूटना सुनना ही था कि अनुश्री का चेहरा शर्म से लाल पड़ गया, उसकी जाँघे आपस मे चिपक गई जैसे अभी भी वहाँ कुछ हो.
मांगीलाल सामने से जवाब ना पाकर ट्रे वही रख बाहर को जाने लगा, शायद उसे अनुश्री के इस व्यवहार कि उम्मीद नहीं थी, एक मर्द कुछ ज्यादा ही उम्मीद पाल लेता है.
अनुश्री शून्य मे खोई हुई थी, मांगीलाल दहलीज पार कर चूका था.
"काका......मांगीलाल काका सुनिए " अचानक से अनुश्री चहक उठी,
"यहाँ आइये "
मांगीलाल जो भारी कदमो से जा रहा था अचानक ही पर लग गये उड़ता हुआ वापस आया.
"जी...जी.....बिटिया रानी "
"अंदर आइये ".
"मंगेश है नहीं चाय वैस्ट हो जाएगी आप ही पी लीजये.
अनुश्री एक cup उठा सामने कुर्सी पर बैठ गई.
ना जाने क्या था अनुश्री के दिमाग़ मे.
मांगीलाल भी अंदर आ कर चाय का cup थाम चूका था.
दोनों चाय पी रहे थे माहौल मे सन्नाटा पसरा हुआ था.
"काका ये अब्दुल मिश्रा कैसे लोग है?" अनुश्री ने सन्नाटे को भंग किया
"अअअअअ....अच्छे...है अच्छे ही है " मांगीलाल ने सीधा सा जवाब दे दिया
शयाद उसे इसे जवाब कि उम्मीद नहीं थी.
"अनु बेटा तुम जैसे खूबसूरत हसीन स्त्री को अपनी खूबसूरती का इस्तेमाल करना चाहिए,
वो चाहे तो क्या नहीं कर सकती " अनुश्री के जहन मे बंगाली बंधुओ का ज्ञान फिर गूंज उठा.
अनुश्री मुस्कुरा उठी
"काका आप चाय पीजिये मै तैयार हो लेती हूँ, "
मंगीलाल तो बस मुँह मे cup लगाए देखे जा रहा रहा सुने जा रहा था.
अनुश्री बिस्तर से दूर हट के जा खड़ी हुई
"काका आपके परिवार मे और कौन कौन है?"
अनुश्री कि साड़ी का पल्लू नीचे सरकता चला गया,
कमरे के उजाले से एक कामुक दूधिया जिस्म नहा उठा, मांगीलाल तो जैसे सांस लेना ही भूल गया था.
अनुश्री मे ना जाने कहाँ से ऐसी हिम्मत आ गई थी कि वो ऐसी हरकत कर गई.
शायद इंसान अपने से कमजोर के सामने हिम्मत दिखा ही देता है.
"वो....वो....मै मेरी बीवी और एक बहन है मेरी " मंगीलाल जैसे तैसे जवाब दे गया.
"आपकी पत्नी का क्या हुआ?" टक टक टक.....करते अनुश्री के ब्लाउज के 3 बटन खुल गये.
मांगीलाल जैसे किसी सपने को जी रहा था, जिस किस्मत ने उसे जवानी मे हड़काया था वही किस्मत बुढ़ापे मे रंग दिखा रही थी.
"प्प्प....पप्प्प....पता नहीं" मांगीलाल का गला सुख गया था उस अप्सरा को सामने देख.
ब्लाउज से एक कामुक दरार अपनी चमक बिखेर रही थी.
मांगीलाल इस चमक मे खो गया था.
"कभी अब्दुल और मिश्रा ने आपके साथ धोखा नहीं किया " अनुश्री अब आई थी मुद्दे पर.
इसी सवाल के साथ वो पलट गई, उसके कामुक नितम्ब पेटीकोट से बाहर झाँक रहे थे.
मांगीलाल अभी कुछ जवाब देता कि उसके प्राण निकलने पे आतुर हो गये, अनुश्री के जिस्म से उसका ब्लाउज अलग होता चल गया. गोरी, कामुक दूध सी सफ़ेद कामुक जिस्म अपनी छटा बिखेर रहा था.
मांगीलाल ने ये दृश्य देखा था लेकीन वो रात थी ये दिन का उजाला था.
इस उजाले ने कमरे मे कामुकता बिखेर दि इसका परिणाम मांगीलाल कि धोती मे उभरता तूफान था.
"क्या हुआ काका बताइये ना अब्दुल मिश्रा ने कभी धोखा दिया आपको " अनुश्री का हाथ अपनी पीठ पर रेंगने लगा.
"वो...वो.....मैंने एक बार देखा था, ससुरे वो दोनों पहले से बदमाश है दुसरो कि औरतों कि इज़्ज़त लूटना ही उनका शौक है
" मांगीलाल मंत्रमुग्ध बोलता चला गया..
वो किसी सम्मोहन मे था, सवाल क्यों पूछा गया है कोई मतलब नहीं.
जबकि अनुश्री अपने हुस्न का बखूबी इस्तेमाल सीख गई थी.
"आपने कभी कुछ किया नहीं "
"अब मुझमे ही कमी है तो क्या कर सकता था, दोनों ने मेरी बीवी को भी खूब भोगा, मैंने कई बार देखा लेकीन कभी कुछ कर ना सका, एक नपुंसक कर भी क्या सकता है " मांगीलाल का जहन उदासी से भर उठा.
अनुश्री को जो जानना था उसका जवाब मिल गया मतलब फारुख सच बोल रहा था.
"काका ये हुक नहीं खुल रहा खोल देंगे " अनुश्री ने ब्रा के हुक पर हाथ रख पीछे देखा
मांगीलाल पथरा गया था,
"काका....काका....खोल देंगे " अनुश्री खुद भी बहक रही थी
मांगीलाल आगे बढ़ गया, उसके हाथ ऊपर को उठ गये.
"इस्स्स्स......काका.." एक खुर्दरे अहसास से अनुश्री का जिस्म कांप गया, रोम रोम खड़ा हो गया.
"टक.....से ब्रा का हुक खुल गया "
"उउउफ्फ्फ्फ़......अनुश्री को अपनी गांड पर एक कड़क अहसास हो चला.
"आप नपुंसक नहीं है काका " अनुश्री मुस्कुरा दि.
"बिटिया रानी तेरा जिस्म ही ऐसा है "
कि तभी ट्रिन ट्रिन ट्रिन......फ़ोन कि घंटी बज उठी.
दोनों का ध्यान भंग हो चला,
"हेलो हेलो.....हमफ़्फ़्फ़....हाँ मंगेश " अनुश्री हांफ रही थी.
ब्रा लटक कर आगे को झुक गई.
मांगीलाल वही बूत बना खड़ा रहा गया जैसे मछली उसके हाथ से निकल गई हो.
"ऐसा करो तुम लोग तैयार हो कर रेस्टोरेंट पहुँचो यहाँ भीड़ है हम सीधा वही मिलते है" फ़ोन पर मंगेश ने कहाँ.
फ़ोन रख अनुश्री सीधी खड़ी हो गई उसके हाथो ने उसकी लटकती ब्रा को दबोचे हुए रखा था.
"काका आप एक काम करेंगे मेरा "
"अअअअअ...हाँ..हाँ....बिटिया रानी तुम जैसी खूबसूरत स्त्री के लिए तो सब करूंगा "
मांगीलाल मुस्कुरा दिया.
अनुश्री कुछ समझाती चली गई.
मांगीलाल बात को अच्छे से समझ कर जा चूका था.
कांच के सामने शानदार साड़ी पहने अनुश्री के चेहरे पर दृढ़ निश्चय दिख रहा था,
लगता था जैसे उसने फैसला कर लिया है.
रुकना है या जाना है.
क्या प्लान है अनुश्री का?
क्या काम करेगा मांगीलाल?
बने रहिये कथा जारी है
Seduction main aap ka jawab nahi
ReplyDeleteThank bro, aise hi कामुक safar chalta rahgea.
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