मेरी बीवी अनुश्री भाग -11
भाग -11 होटल मयूर कि पहली रात
"ये देखो जी रूम तो 1500rs का होने का लेकिन तुम two फॅमिली होता तो मै तुम्हे डिस्काउंट देता एक रूम one थाउजेंड, बोलो बुकिंग करने का तो " होटल मयूर का मालिक "रामनिवास अन्ना " राजेश और मंगेश से भिड़ा हुआ था.
मंगेश जो कि पक्का गुजराती धंधेबाज था इतने कम मे रूम मिलने पे तो उसकी चांदी ही हो गई "कर दीजिये बुकिंग सप्ताह भर के लिए "
राजेश :- लेकिन हम यों सिर्फ 2 दिन ही रुकेंगे.
मंगेश :- अरे सस्ता रूम मिल रहा है रुको ना घूमो फिरो फिर कहाँ ऐसा मौका मिलता है क्यों आंटी जी मंगेश ने राजवंती को उकसाया.
राजवंती :- हाँ हान....जैसा तुम ठीक समझो बेटा.
राजेश भी बात मान गया आखिर माँ इतने सालो बाद घर से निकली है थोड़ा घूम लेगी नयी जगह देखेगी ऐसा सोच हान भर दी.
तो 2 रूम बुक हो गए.
"ये लो चाभी 102, और 103 तुम्हारा रूम होता, मजा करो सर अन्ना ने सभी को घूरते हुए बोला
"एडवास डिपोसिट होना पहले " अन्ना ने सीधी बात रखी
मंगेश ने 6000rs एडवांस मे दे दिए.
अन्ना दक्षिण भारत का रहने वाला व्यक्ति था जो कि पिछले 10 सालो से पूरी मे होटल चला रहा था,एक दम साफ शरीफ आदमी ना पत्नी ना बच्चे होटल ही जिंदगी थी इसकी,
ऐसा कुरूप था कि कभी किसी लड़की ने पसंद ही नहीं किया, आज 45 साल का अधेड हो चूका था इस उम्र मे इसने शादी या किसी लड़की को पाने कि कोशिश ही छोड़ दी थी, पूरा ध्यान होटल चलाने मे ही रहता था.
दिखने मे बिलकुल काला,माथे मे चन्दन का टिका सफ़ेद शर्ट और सफ़ेद लुंगी हमेशा पहने ही रखता था.
इस इसके असली नाम से कोई नहीं जनता था सब इसे अन्ना ही बुलाते थे.
"टन...टन....टन....अन्ना ने मेज पे रखी घंटी बजाई..ऐ अब्दुल इधर आना सर और मैडम का सामान रूम मे रखना.
अन्ना के मुँह से अब्दुल नाम सुन के एक बार तो अनुश्री का दिन धक से बैठ ही गया था "ये कौन अब्दुल है?"
फिर उसने खुद को ही समझाया कि अब्दुल तो बहुत है दुनिया मे,उसे पिछली बाते भूल जानी थी जो हो गया सो हो गया.
"जी मालिक आया " बोल के एक लम्बा चौड़ा बंदा लुंगी शर्ट पहले बिना किसी कि तरफ दे के झुक के बैग उठाने लगा.
अन्ना :- रूम नंबर 102.103
"जी मालिक " उसने बैग उठा लिए लेकिन जैसे ही सीधा खड़ा हुआ उसकी बांन्छे खिल गई, उसे अपनी आँखों पे विश्वास ही नहीं हो रहा था,उसे पल भर के लिए लगा शायद सपना है ये.
दूसरी तरफ अनुश्री कि नजर जैसे ही उस शख्स मे पड़ी उसके तो हाथ पाँव ही फूल गए,चेहरा एक दम सफ़ेद पड़ गया,खून जैसे जम गया हो.
"ये.....ये.....हे भगवान...ये तो वही ट्रैन वाला अब्दुल है " अनुश्री के जहन मे ये बात कोंध गई.
उसे कुछ सूझ नहीं रहा था, उसके सामने ट्रैन मे बीती हुई एक एक घटना सामने आ गई इसी अब्दुल के लंड पे उसने अपनी गांड घिसी थी, अपनी खुजली मिटाई थी
"चलिए मैडम...आपको छोड़ आते है " अब्दुल ने बड़े ही सुकून भरे लहजे मे कहाँ उसकी तो अल्लाह से मुराद ही पूरी कर दी थी
अनुश्री बस एक टक अब्दुल को देखे जा रही थी उसे अपनी किस्मत पे विश्वास ही नहीं हो रहा था. "चले मोहतरमा अब " मंगेश ने अनुश्री का हाथ पकड़ के बोला
चारो लोग आगे कि तरफ चल दिए पीछे पीछे अब्दुल सामन उठाये,
उसकी नजर सिर्फ और सिर्फ अनुश्री कि साड़ी के अंदर से हिलती मतवाली गांड पे टिकी हुई थी,
वो उसकी लचक देखे जा रहा था क्यूंकि वो जनता था कि अनुश्री ने अंदर कच्छी नहीं पहनी है उसके नितम्भ आज़ाद थे खूब मटक रहे थे.
अब्दुल ने सभी का सामान उनके रूम मे रख दिया, 102 मे अनुश्री और मंगेश का, 103 मे राजवंती और राजेश का.
मंगेश तो रूम मे घुसते ही सीधा टॉयलेट को भागा, अब्दुल ने उनका सामान कमरे मे रख बाहर को आ गया.
अनुश्री दरवाजा बंद करने को आई ही थी कि अब्दुल पलट के बोल पड़ा "अब आराम से मिटा लीजिये मैडम खुजली "
ये शब्द सुनते ही अनुश्री सकपका गई खुजली शब्द सुनते हि उसने अपनी जांघो को आपस मे भींच लिया उसे ये अहसास हो रहा था कि अब्दुल पीछे से लंड ना चुभा दे.
जाँघ भींचते ही उसने पाया कि उसने पैंटी नहीं पहनी है,उसके जहन मे एक दम से दृश्य दौड़ गया जब उसने अपनी पैंटी खुद होने हाथ से निकली थी.
"धड़ददाम्म्म्म....से अनुश्री ने अब्दुल के मुँह पे ही दरवाजा बंद कर दिया,और दरवाजे से पीठ लगा के खड़ी हो गई उसकी सांसे फूल रही थी,पसीने से बदन भीगा था.
"अरे क्या हुआ मेरी जान ऐसे क्यों खड़ी हो " टॉयलेट से निकलते हुए मंगेश ने पूछा.
"कककक.....कुछ नहीं वो जरा थकान है" अनुश्री ने अपनी घबराहट और बेबसी को फिर से दबा लिया था.
मंगेश :- तो फ्रेश हो लो नहा लो फिर खाना आर्डर करते है कल से फिर वही घूमना फिरना रहेगा.
अनुश्री बिना कुछ बोले ही सर झुकाये बाथरूम कि और चल दी उसके दिल पे बोझ था बड़ा सा बोझ.
मंगेश ने खाना आर्डर करने के लिए फ़ोन उठा लिया.
इधर दरवाजा बंद होते ही अब्दुल तो जैसे हवा मे था उड़ता हुआ सीधा रसोईघर मे पंहुचा, जहाँ मिश्रा दाल मे चम्मच चला रहा था.
"मिश्रा अबे ओ मिश्रा....मजा आ गया यार " अब्दुल ने अंदर आते हुए बोला.
मिश्रा जो कि हाथ से कुछ पकड़ा मुँह पे घुमा रहा था उसका ध्यान ही नहीं था कि अब्दुल पीछे आ गया है
"साले बहरा है क्या " अब्दुल ने मिश्रा के कंधे पे हाथ रख उसे अपनी ओर पलटाया.
मिश्रा के हाथ मे वही काली कच्छी थी,अनुश्री कि उतारी हुई कच्छी जिसे एक हाथ से पकडे सूंघ रहा था और दूसरे हाथ से दाल बना रहा था.
"मदरचोद तू तो उसकी चुत मे हूँ घुस गया लगता है " अब्दुल ने बोला
मिश्रा :- क्या खुसबू है यार,क्या जवानी थी उसकी एक दम कड़क,पसीना भी खुसबू देता था.
ना जाने कब मिलेगी ऐसी अप्सरा.
अब्दुल :- अबे वो ट्रैन वाली मैडम अपने ही होटल मे रुकी है.
"Chhannnnnnnn......क्या.....ककककककक....क्या?" मिश्रा के हाथ से कच्छी और चम्मच एक साथ छूट गए,जैसे कोई कर्रेंट लगा हो.
मिश्रा :- क्या...क्या....बक रहा है साले मै मज़ाक के मूड मे नहीं हूँ.
अब्दुल :- साले सच बोल रहा हूँ तेरी लुगाई कि कसम.
मिश्रा :- मेरी लुगाई कि कसम है तो सच बोल रहा है इसका मतलब तू,
मुझे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा कि भगवान हम पे मेहरबान है.
अब्दुल :- हिम्मत ए मर्दा,मदद ए खुदा, अब तो सीधा चुत मे मुँह लगा के सूंघणा.
आज इन दोनों को भगवान पे यकीन हो चला था.
रूम नंबर 103
"कितने अच्छे लोग है ना माँ भैया भाभी " राजेश अपनी माँ से बोला.
"हान बेटा...अच्छा मै अभी आई " राजवंती का मन राजेश कि बात मे नहीं था उसे काफ़ी देर से कुलबुलाहत हो रही थी
राजेश :- ठिक है माँ मै खाना आर्डर करता हूँ, राजेश ने फ़ोन कि तरफ हाथ बड़ा दिया.
राजवंती बाथरूम मे जा कमोड पे बैठ गई और जोरदार पेशाब कि धार के साथ एक सैलाब बह निकला,"आआहहहहह......उसे कभी सुकून मिला, लेकिन जैसे ही उठने को हुई उसकी नजर अपने पैरो पे पड़ी, जहाँ एक सफ़ेद सी पापड़ी जम गई थी उसने झुक के उस पापड़ी को छुआ तो उसके मन मे झुरझुरी सी दौड़ गई उसे वो दृश्य याद आ गया जब वो भिखारी ने अपने मोटे काले लंड से बेतहाशा वीर्य कि पिचकारी उसके पैरो पे छोड़ दी थी.
राजवंती के चेहरे पे मुस्कान तैर गई, उसकी जांघो के बीच फिर से चींटी चल पड़ी "हे भगवान कैसा भयानक था उसका"
उसकी आँखों के सामने भिखारी के खुलते बंद होते लंड कि तस्वीर नाच गई, उसने अपने पैर से वो सुखी पापड़ी को कुरेद कर अपने हाथो मे ले लिया और सांस अंदर खींच ली,
"उह्म्मम्म्म्मह्ह्हह्ह्ह्हह्म....एक कैसेली गंध से उसका जिस्म नहा गया,उसका दूसरा हाथ खुद ही अपनी जांघो के बीच पहुंच गया उसने पाया कि वहा चिपचिपा सा गिलापन है,उसकी दो ऊँगली चुत कि लकीर मे खुद बात खुद फिसल गई.
"आअह्ह्हह्ह्ह्हम......असीम आनंद कि अनुभूति हुई जैसे कि बदन से कोई बोझ हल्का हो गया हो,इसी अनुभूति को फिर से पाने के लिए उसने अपनी ऊँगली को फिर से ऊपर किया ऊँगली फिर से खुद बात खुद नीचे को चली गई परन्तु इस बार मटर के आकर का दाना भी उसकी दोनों ऊँगली के बीच आ गया.
"आआआहहहह......हे भगवान " ऐसा सुकून ऐसी राहत जीवन मे पहली बार महसूस कर रही थी राजवंती पुरे 15 साल बाद उसकी जांघो के बीच हलचल थी.
"ठक ठक ठक.....माँ...माँ....फ्रेश हो ली हो तो आ जाओ खाना आ गया है " बाहर से दरवाजे के ठोकने से जैसे राजवंती एक दम चौंक गई,उसके जहन मे होती हलचल पलभर मे गायब होने लगी सातवे आसमान से सीधा जमीन पे आ गिरी हो.
"आआ.....हा...हनन.....बेटा आई " राजवंती जल्दी से खड़ी हुई और जैसे ही कमोड का फ़्लैश चालू करने को हाथ बढ़ाया कि उसकी नजर कमोड मे सफ़ेद सफ़ेद किसी चीज पे पड़ी उसने अपनी ऊँगली पे भी चिपचिपा सा महसूस हुआ,उसने पाया कि उसकी उंगलि पे भी वही सफ़ेद पदार्थ लगा हुआ है ये वही ऊँगली थी जो उसके मादक चुत रुपी नदी मे गोते खा रही थी.
ये देख उसके तन बदन मे आग लग गई "तो...तो....क्या ये मेरे शरीर से निकला है? क्या है ये मेरा वीर्य? लेकिन इतना सारा?"
15 सालो मे वो ये बात भूल ही गई थी कि उसकी योनि भी उत्तेजना मे वीर्य छोड़ती है, और ये ऐसा होता है.
राजवंती खुद हौरान थी आज तक जब भी वो स्सखालित हुई थी तो थोड़ा बहुत सफ़ेद सफ़ेद सा पदार्थ दिखता था लेकिन इतना कभी नहीं. आज उसका बदन उसे वासना कि नयी परिभाषा बता रहा था.
उसके बदन मे एक जोरदार झुरझुरहाट ली
उसने जल्दी से फ़्लैश चला दिया और खुद को साफ कर बाहर आ गई.
राजवंती और अनुश्री दोनों ही अपने जिस्म कि पहेली मे उलझी हुई थी.
देखते है कौन पहले इस पहेली को सुलझा पाता है?
बने रहिये...कथा जारी है...
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