मेरी बीवी अनुश्री भाग -34
अपडेट -34
अनुश्री बदहवास इधर उधर दौड़ी चली जा रही थी, तूफान कि तेज़ हवा पानी और रेत के बारीक़ कण से उसके बदन को भेदे ज़ा रही थी.
"हे भगवान ये क्या हुआ? कोई नहीं है यहाँ,मानंगेह्ह्हह्ह्ह्ह......शशश...."
अनुश्री चिल्लाये जा रही थी,आँखों से आँसू गिरते जा रहे थे, "मुझे नहीं आना चाहिए था,मैंने मंगेश को माना किया था, तुम सुनते क्यों नहीं मंगेश मेरी "
अनुश्री बड़बड़ाये जा रही थी किसे दोष दे किसे नहीं समझ नहीं आ रहा, क्या करे बस तेज़ हवा से लड़ती चले जा रही थी कहाँ जा रही थी पता नहीं,आज साड़ी भी उसका साथ देने से मना कर रही हो जैसे, उसकी साड़ी उसकी सबसे बड़ी दुश्मन जान पड़ती थी.
कभी साड़ी संभालती तो कभी खुद संभलती
पूरी तरह से पानी और रेत मे सनी हुई साड़ी उसके पीछे पीछे घसीटती चली आ रही थी,
जाँघ के हिस्सों मे इस कदर फस गई थी जैसे उसके शरीर का अभिन्न अंग हो,ऊपर का नजारा इस कातिलाना मौसम मे ज्यादा कामुक था,कट स्लिव और डीप नेक ब्लाउज से स्तन बाहर को झाँक झाँक कर इस तूफान का मजा ले रहे थे.
अनुश्री कि हालत ख़राब थी वही उसके स्तन आज़ाद पंछी कि तरह ब्लाउज रुपी पिंजरे से बाहर निकलने को आतुर थे.
रेत मे धसती गिरती पडती अनुश्री आगे बड़ी चली जा रही थी,इस सफर मे उसकी सैंडल उसका साथ कबका छोड़ चुकी थी.
"हे भगवान रक्षा करना " आज अनुश्री को अपनी आँखों के सामने मौत का मंजर नजर आ रहा था दिल घबराहट मे काम करना ना बंद कर दे, मन रूआसा हो चला कब फुट फुट के रो देगी पता नहीं.
कि तभी एक उम्मीद कि किरण नजर आई, सामने एक झपोड़ी नुमा आकृति जान पडती थी जहाँ इस भयानक तूफान मे भी एक बल्ब जगमगा रहा था.
बस यही थी वो उम्मीद कि किरण अनुश्री ने उस ओर दौड़ लगा दि ,ये जीवन कि वो रेस थी जिसे अनुश्री को हर हाल मे जीतना था.
जैसे अनुश्री आगे बढ़ती गई तस्वीर साफ होती चली गई,सामने था "मांगीलाल का होटल "
ध्यान से देखने पे मालूम पड़ा कि गेट खुला हुआ था फिर क्या था पूरी ताकत के साथ अनुश्री दौड़ पड़ी.
तड़....तड़....तड़......ढाड़....धम्प....करती होटल के दरवाजे पे जा टकराई.
"हमफ....हमफ.....कोई....कोई......." अनुश्री के घुटने मुड़ते चले जा रहे थे आवाज़ निकलना बंद हो गई
"उडी...बाबा.....चाटर्जी वो देखो " होटल के अंदर से एक जानी पहचानी आवाज़ अनुश्री के कान से जा टकराई.
इस सुनसान बियावान टापू पे उसे इस जानी पहचानी आवाज़ कि कतई उम्मीद नहीं थी.
उसका सर ऊपर को उठता चला गया "अंकल....अंकल... ...सुबुक....सुबुक..."
अनुश्री का गला रुंध आया,आंखे आंसुओ से भर गई.
व्यक्ति जब मुसीबत मे होता है तो भले ही दुश्मन सामने क्यों ना हो, होता तो उसकी पहचान का ही है.
वही हाल अनुश्री का था इस सुनसान,तूफान भरे मौसम मे उसे बंगाली बूढ़ो का नजर आना किसी जीवन मिलने से कम नहीं था, और ये दुशमन थोड़ी ना थे ये तो अनुश्री के आशिक़ थे,उसके गुरु थे.
"अरे.....बाबा...अनुश्री तत.....तत...तुम यहाँ " मुखर्जी चाटर्जी दोनों कि दरवाजे कि ओर भागे
जैसे जैसे पास पहुचे उनकी बुद्धि जवाब देने लगी,सामने अनुश्री यौवन से भरपूर पूरी तरह से पानी मे भीगी घुटने मोडे दरवाजे पे गिरने को थी,उसके कामुक जिस्म का एक एक अंग बाहर झलक रहा था.
अनुश्री को जो ख़ुशी मिली थी उसका कोई हिसाब नहीं था,उसके आँसू खुशी से बहे जा रहे थे.
"अंकल....अंकल...आआ...आप यहाँ सुबुक " अनुश्री किसी बच्चे कि तरह दोनों से जा लिपटी
"तुम यहाँ अनु बेटा,कैसे?" दोनों बूढ़े खुद हैरान थे वो अपनी किस्मत पे हसे नाचे क्या करे समझ नहीं आ रहा था.
चाटर्जी के हाथ रेत और पानी से भीगी अनुश्री कि पीठ पे रेंगने लगे.
"रो मत बेटा हम भी तेरी तरह ही यहाँ फस गए है" मुखर्जी ने भी ढानढास बंधया.
अनुश्री सिर्फ रोये जा रही थी आज उसे इन बांहों मे सुकून के अहसास हो रहा था,एक गर्माहट थी जो उसके बदन को अच्छा महसूस करा रही थी, बता रही थी कि तुम सुरक्षित हो.
मुसीबत मे फसे दो दुशमन भी दोस्त होते है ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा था यहाँ.
"अंकल....पप्पप्प्प....पानी " अनुश्री अपने रधे गले से सिर्फ यही बोल पाई.
"आओ....पहले अंदर आओ बेटा " मुखर्जी और चाटर्जी दोनों ही अनुश्री को थामे अंदर एक चारपाई पे बैठा दिया.
"ये लो बिटवा पानी " एक काले झुर्रि पड़े हाथो ने अनुश्री को एक पानी का ग्लास थमा दिया
अनुश्री ने सर उठा के ग्लास लेना चाहा सामने वही देहाती खड़ा था जो उसे बोट मे धक्का देता हुआ घुसा था
"त्तत्तत्त......तू.तू...आप " अनुश्री घोर आश्चर्य मे थी ये आदमी यहाँ क्या कर रहा है उसके मुँह से अपने आप ही उस देहाती के लिए आप शब्द निकल गए
समय भी कैसा बलवान है थोड़ी देर पहले जिसके पास अनुश्री खड़ा होना भी अपनी शान मे गुस्ताखी समझ रही थी उसी के हाथ से पानी ले रही थी.
"हाँ मेरा ही होटल है ये बिटवा,सामान लेने गया था लौटते वक़्त देर हो गई तो जल्दबाज़ी मे आपको टक्कर लग गई " मांगीलाल बोलते बोलते वही अटक गया उसकी आंखे पथरा गई,उसकी नजर रकमखास जगह जा टिकी.
अनुश्री ने लगभग मांगीलाल के हाथ से ग्लास छीनते हुए सर ऊपर किया और गटागट पानी को हलक के नीचे उतार लिया
अनुश्री का गला तो गिला हो गया था लेकिन वहाँ खड़े तीन बूढ़े मर्दो का गला सूखने लगा था.
उनके सामने एक हुस्नपरी गर्दन ऊपर किये पानी पी रही थी जिसमे से कुछ बून्द सुराहीदार गले से होती हुई स्तन कि बीच मौजूद सुरमई खाई मे रेत को समेटती हुई समाई जा रही थी.
साड़ी का अवरोध तो कबका ही हट गया था, सामने आधे से ज्यादा स्तन बाहर को झाँक रहे थे, दो अनमोल मोती ब्लाउज के महीन कपडे से अपनी शोहरत लूटा रहे थे.
दोनों बूढ़ो का तो फिर भी ठीक था लेकिन मांगीलाल 80 साल का बूढा था, उसने कभी जीवन मे इतने सुन्दर सुडोल कसे हुए स्तन नहीं देखे थे,
लगता था जैसे उसे लकवा ही मार गया हो.
अनुश्री ने जैसे ही ग्लास नीचे रखा सामने तीनो कि आंखे पथरा गई थी,उनकी नजर का पीछा करना ही था कि एक सरसराता तूफान अनुश्री के बदन को झकझोड़ गया.
उसके स्तन लगभग पुरे ही खुले हुए थे,दो उन्नत पहाड़ रेत से सने जिसके बीच एक गीली सी पानी कि लकीर बनी हुई थी. निप्पल का अहसास साफ बाहर को दिख रहा था
"हे...भगवान...ये...क्या " अनुश्री ने झट से होने हाथो को अपने स्तन ले रख लिया उसके पास पल्लू उठाने का समय ही नहीं था
"वो...वो...अंकल.." अनुश्री झेप गई
"कोई बात नहीं बेटा तुम तो जवान हो,जवानी मे ये अंग बेकाबू ही रहते है " चाटर्जी सामने कुर्सी पर बैठ गया.
"तुम इस तूफान मे कैसे रह गई " मुखर्जी भी अनुश्री के बगल मे ही चारपाई पे पसर गया
"वो...वो...वो अंकल.."
"बताओ भी अब कौन है यहाँ " चाटर्जी ने जोर दिया
"वो वो...मुझे टॉयलेट आया था,वापस आई तो सब कोई जा चूका था " अनुश्री ने धीरे से गिला पल्लू उठा के अपने सीने पे जमा लिया
फायदा तो कुछ नहीं हुआ लेकिन एक आत्मविश्वास सा आ गया कि अब ठीक है.
सभी कि नजरें अनुश्री के पल्लू पे ही थी, 3-3मर्दो कि नजर लगातार उसे चुभ रही थी.
हालांकि बंगाली बूढ़ो कि नजर से वो वाकिफ थी लेकिन मांगीलाल ना जाने किस उम्मीद मे वही खड़ा था.
"आ...आप लोग यहाँ कैसे?" अनुश्री ने सर झुकाये ही पूछा उसकी हिम्मत नहीं थी कि सामने देख सके ऊपर से जो भी बोट मे हुआ था वो याद अभी भी अनुश्री के जहन मे ताज़ा ही थी.
"पूछो मत बेटा ये चाटर्जी बोलता है आज झील कि मच्छी खाएंगे,तो पिछले हिस्से मे चले गए,तूफान देख के वापस लोटे तो सब साफ साला बूढा " मुखर्जी ने बड़े ही मजाकिया लहजे मे कहाँ
"हाहाहाबाबा...अंकल आप लोग भी ना " अनुश्री मुखर्जी कि बात सुन खिलखिला के हॅस पड़ी
"साले मुझे बूढा बोलता है तू कौनसा जवान है " चाटर्जी ने ब्बि तापक से जवाब दिया.
"हाहाहाहा....अंकल आप लोग इस उम्र मे भी एडवांचर तलाशते रहते है " अनुश्री बड़ी जल्दी घुल मिल गई थी उसे बहुत राहत महसूस हुई जैसे अपनों के बीच आ गई हो.
"उम्र तो सिर्फ दिमाग़ कि सोच है, अभी तो हम जवान है तुमने तो देखी ही है हमारी जवानी "
अनुश्री कि हसीं एकाएक रुक गई जैसे उसके गले मे कुछ फस गया हो, एकदम से जैसे धरातल पे आई हो
"नननन...हाँ....देखी है " ना जाने क्यों और कैसे बोल गई
"यही तो हम बताना चाहते है बेटा जिंदगी मे सब कुछ करना चाहिए अंत मे खोज मलाल ना रह जाये " दोनों ने अपने ज्ञान का पिटारा वापस खोल दिया था.
बाहर साय साय करती हवा जोर पकड़ रही थी इधर अंदर अनुश्री के जहन मे कई विचार तूफान कि तरह आ जा रहे थे.
"अअअअअ...अब यहाँ से कैसे जायेंगे?" अनुश्री को यही तो चिंता थी.
"बिटवा यहां तूफान जब आता है तो रात रात भर रहता है,अब तो सुबह ही कुछ उम्मीद है "इस बार जवाब मांगीलाल ने दिया
अनुश्री उसका जवाब सुन दंग रह गई "क्याआआ.....कल सुबह?"
"अबे बुढ़ऊ डरा क्यों रहा है जा चाय बना तीन बढ़िया,देख नहीं रहा मैडम को कितनी ठण्ड लगी है " चाटर्जी ने मांगीलाल को डापटते हुए बोला
"अरे अनु बेटा चिंता मत करो जैसे ही तूफान रुकेगा कोई ना कोई आ ही जायेगा " मुखर्जी ने अनुश्री कि जाँघ ले हाथ रख दिया, वही जाँघ जो पानी से गीली थी,साड़ी चिपकी पड़ी थी.
"वैसे भी ऐसे मौके बार बार नहीं मिलते, कोई नहीं आएगा जल्द " चाटर्जी ने भी अपनी कुर्सी को आगे सरका लिया
"कक्क.....क्या "अनुश्री जैसे हैरान थी
"ऐसे मौके अपनी जवानी को जीने के मौके "चाटर्जी ने भी आगे बढ़ के अपना हाथ अनुश्री कि दूसरी जाँघ पे रख दिया.
पीछे खड़ा चाय बनाता मांगीलाल उनकी हरकतों को देखे जा रहा था
"तुमने बोट मे हमारी जान ही ले ली थी " मुखर्जी ने इस बार अपने हाथ को थोड़ा ऊपर कि ओर चला दिया
"इसससस....मममम....मैंने...कब कैसे?" अनुश्री तो जैसे अनभिज्ञ थी इन बातो से.
अनुश्री के हलक से आयी सिसकारी बूढ़ो कि हिम्मत बढ़ाने का काम करती थी.
"तुम्हे याद नहीं जब तुमने मुझे अपनी बगल मे भींच लिया था "मुखर्जी ने ऐसा मुँह बनाया जैसे नाराज हो शिकायत कर रहा हो
"वो..वो....वो..मै.."
"बहक गई थी है ना " मुखर्जी ने उसकी बात को पूरा किया
"जवानी है ही ऐसी चीज खुल के ना जियो तो बहक ही जाते है " इस बार चाटर्जी ने बिल्कुल सटीक बात कही
अनुश्री को अपने सबसे बड़े सवाल का जवाब आज मिल गया था "मै क्यों बहक जाती हू बार बार?"
"क्या मैंने अपनी जवानी को नहीं जिया?"
"अपनी जवांनी तुमने जी होती तो हम बूढ़ो कि जान पे ना बन आती " सवाल अनुश्री ने खुद से पूछा था लेकिन ना जाने कैसे जवाब मुखर्जी ने दिया जैसे उसकी मन कि बात सुन रहा हो.
"अअअअअ....ऐसा नहीं है अंकल " अनुश्री भी अब इस वार्तालाप मे शामिल हो चली.
उसकी झिझक ख़त्म होती जा रही थी,ना जाने इन बूढ़ो के स्पर्श का कमाल था या फिर कोई आएगा नहीं इस बात कि आजादी थी
ये तो अनुश्री ही जाने.
बने रहिये काठ जारी है....
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