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मेरी बीवी अनुश्री भाग -26

अपडेट -26


बस पूरी तरह रुक चुकी थी और साथ ही रुक चूका था अनुश्री कि जांघो के बीच उत्तपन होता ज्वालामुखी जो बस फटने के ही कगार पे था कि ये सफर समाप्त हो गया.

अनुश्री किसी यँत्र चलित गुड़िया कि तरह पथराई आँखों के साथ मंगेश के पीछे पीछे उतर गई.

उसके मस्तिष्क मे बस मे हुई घटनाये सांय सांय करती घूम रही थी उसे यकीन ही नहीं हो रहा था जो अभी उसने किया? क्यों किया?कैसे किया? कुछ पता नहीं

अनुश्री क्या से क्या हो गई थी उसके जिस्म कि आग उसे गहरी खाई मे ढकेलती जा रही थी और वो तमाशा देख रही थी.

कहाँ वो कभी मात्र लंड कि छुवन भर से कांप जाती थी और आज उसने खुद दो दो लंडो को मुँह मे भर के चूसा था,चूसा क्या था उसके अंदर से निकले वीर्य को पी भी गई थी.

जैसे ही वीर्य पीने का ख्याल उसके मन मे आया उसका चेहरा और दिल घिन्न से भर गया,एक बार को उसे उबकाई ही आ गई....ववववईककककककक....


"क्या हुआ अनु तबियत तो ठीक है ना " आगे चलता मंगेश पीछे मुड़ अनुश्री को थाम लिया.

"ये....ये....ये क्या जान तुम्हारा शरीर तो बुरी तरह से गर्म है, कहाँ था ना मैंने कि बारिश मे नहीं भीगना है " मंगेश के चेहरे पे चिंता कि लकीर उभर आई.

"मै...मै...ठीक हू मंगेश " अनुश्री ने जैसे तैसे खुद को संभाला

वो कैसे बताये कि ये बुखार कि तपिश नहीं है,ये कामवासना कि जवाला है जो उसके शरीर को जला रही है, कैसे बताये कि दो दो बूढ़े मर्दो ने उसका मर्दन किया है,उसने उनका वीर्य पिया है.

"कोई बात नहीं....आओ अंदर आओ मै दवाई ले आऊंगा " दोनों ही अपने होटल के रूम तक आ पहुचे थे.

अनुश्री हैरान थी उसका रूम आ भी गया.


"ठीक है भैया गुड नाईट,मै भी माँ का हाल चाल देख लू " राजेश ने उन दोनों से विदा ले अपने कमरे मे चला गया.

राजेश ने जैसे ही दरवाजा खोला,अंदर निपट अंधेरा था एक अजीब सी गंध पुरे कमरे मे फैली हुई थी

राजेश ने अनुभव किया कि ये वैसी ही गंध है जो कल रात बहादुर के पास से आ रही थी.

"माँ...माँ....मै आ गया " राजेश ने कमरे कि लाइट जला दि

लाइट जलते ही जैसे ही उसकी नजर बिस्तर पे पड़ी उसके पैर वही जम गए,आंखे फटी कि फटी रह गई.

बिस्तर पूरी तरह से अस्त व्यस्त था, उसपर रेखा बेसुध हाथ ऊपर किये सो रही थी, उसकी साड़ी जांघो तक ऊपर थी,

रौशनी कि वजह से रेखा कि चिकनी जाँघे अलग ही छटा बिखेर रही थी.

"ये....ये...क्या हुआ है माँ को, वैसे अन्ना सच कहता है माँ अभी जवान है " राजेश खुद अपनी माँ कि जवानी और सुंदरता कि तारीफ किये बिना रह नहीं पाया.

जाँघ से ऊपर कि तरफ फिसलती नजर अपनी माँ के पेट पे जा टिकी जहाँ गहरी नाभि अपनी शोभा बिखेर रही थी.

उसके कदम अपने आप ही रेखा के करीब चल पड़े "सच मे मेरी माँ कितनी सुंदर है,लेकिन उनका जीवन निरस हो गया है पापा के जाने के बाद "

राजेश के मन मे कोई गलत विचार नहीं थे अपनी माँ के लिए,बस वो एक लड़का होने के नाते रेखा कि तारीफ किये बिना रह नहीं पाया.

तभी उसे रेखा कि नाभि पे कुछ सफ़ेद सफ़ेद सी पपड़ी दिखी,लगता था जैसे कोई चीज सुख के जम गई हो.

उसने इस नज़ारे को नजरअंदाज़ कर दिया,वो ऊपर बड़ा तो उसकी सांस ही अटक गई,रेखा के ब्लाउज के तीन बटन खुले थे,आधी से ज्यादा स्तन बहार को ही आ धमके थे बस ब्लाउज ने निप्पल ना दिखा के रेखा कि लाज रख ली थी बाकि सब बाहर ही था.

राजेश अपनी माँ कि खूबसूरती को निहारे ही जा रहा था,उसने अपनी नजर थोड़ी और ऊपर कि तो पाया कि रेखा हाथ ऊपर किये सो रही है जिस वजह से उसकी कांख के बाल साफ दिख रहे है,

"क्या माँ आप वहाँ के बाल भी नहीं साफ करती " राजेश को एक बार हसीं आ गई

"लेकिन किस के लिए करे,अब कौन है? पिताजी को गए तो ज़माना हो गया " राजेश अपनी माँ कि पवित्रता पे गर्व करने लगा.

वो रेखा को वैसे ही सोता छोड़ बाथरूम कि ओर चल पड़ा

"भड़ड़ड़ड़ड़.....से दरवाजा बंद हुआ "

अचानक आवाज़ से रेखा कि आंखे खुल गई


"अरे....मै..मै.....रेखा ने खुद को देखा" कही...कही राजेश तो नहीं आ गया....तो...तो...क्या उसने मुझे ऐसे ही देख लिया "

रेखा ने तुरंत अपनी साड़ी नीचे कि और ब्लाउज के बटन को लगा लिया.

ये सब करते हुए ना जाने उसके होंठो पे एक अजीब सी मुस्कुराहट थी सुकून कि मुस्कुराहट.


रूम नंबर 102

अनुश्री और मंगेश रूम मे पहुंच चुके थे.

"पहले मै फ्रेश हो लेता हू, फिर दवाई ले आऊंगा " बोलता हुआ मंगेश बाथरूम मे घुस गया

अनुश्री धम्म से वही बिस्तर पे बैठ गई,उसका जिस्म मे खलबली मची हुई थी "ये क्या किया तूने अनुश्री?,कैसे बहक जाती हू मै हर बार? क्यों मुझे खुद पे कंट्रोल नहीं रहता?

कि तभी उसे अपने नीचे गीलेपन का अहसास होता है,अनुश्री ने झुक के नीचे देखा तो उसकी जांघो के बीच का पूरा हिस्सा गिला था,एक दम गिला... कोतुहाल मे उसके हाथ खुद ही उस हिस्से को ओर बढ़ गए

"इईईस्स्स्स......आआहहहहह......जैसे उसकी ऊँगली किसी गर्म भट्टी को छू गई हो,

एक मीठे सुखद अहसास ने उसके जिस्म को झकझोर के रख दिया.

अनुश्री ने तुरंत ही वहाँ से हाथ हटा लिया, लगता था कि थोड़ी भी देर हो जाती तो ऊँगली जल ही जाती.

"आआहहहहह......ये कैसा अहसास था,कितना अच्छा लगा था" अनुश्री के मुँह से सिसकारी सी निकल पड़ी


ये अहसास ही तो चाहिए था फिर से चाहिए था,बार बार चाहिए था....इसी चाहत मे एक बार फिर से उसका हाथ उसकी जांघो के बीच जा घुसा.

"इईई.....उफ्फ्फफ्फ्फ़.....इससससस...." लज्जत से अनुश्री कि आंखे बंद होती चली गई,मुँह खुल गया.

जो अधूरी उत्तेजना बाकि रह गई थी वो फिर से किलकारिया मारने लगी.

अनुश्री को सुकून मिल रहा था,ऐसा अनुभव जो कभी जीवन मे नसीब नहीं हुआ

वो इस सुखद कामुक अहसास को खोद लेना चाहती थी,इसी चाहत मे उसकी हथेली का दबाव अपनी चुत पे बढ़ता चला गया.

"आआउच.......आअह्ह्ह....एक ऊँगली से उसने अपनी ज्वालामुखी कि दरार को कुरेद दिया.

"नननन....नहीं....आअह्ह्ह...." उसकी जाँघे आपस मे भींच गई

जैसे उसकी जाँघे उसे रोक रही हो और ऊँगली मनमानी कर रही हो.

वो चाह कर भी खुद का हाथ नहीं हटा पा रही थी, कैसी कामवासना मे घिरी थी अनुश्री कि खुद का ही हाथ हटाना उसे भारी काम लग रहा था.

"ठहहाकककक.......क्या हुआ जान ये अजीब करहाने कि आवाज़ कैसी? " मंगेश बाथरूम से बहार आ गया था.

"मममम.....मै..मै....कुछ नहीं....कुछ भी तो नहीं " अनुश्री कि पीठ मंगेश कि तरफ थी परन्तु एकदम से मंगेश कि आवाज़ से चौंक के पलट गई

उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया था

जैसे चोर रंगे हाथो पकड़ा गया हो

"तुम तो ऐसे घबरा गई जैसे चोरी पकड़ी गई हो " हाहाहाहाहा......मंगेश ने कपडे चेंज लिए

अनुश्री शर्मसार वही बिस्तर पे गर्दन झुकाये बैठी रही, मर्यादाये धीरे धीरे धवस्त हो रही थी.

"मै दवाई ले के आता हू जब तक तुम फ्रेश हो लो " मंगेश दरवाजे कि ओर बढ़ा ही था कि

"रुक जाओ ना मंगेश....कही मत जाओ यही बैठो मेरे पास " अनुश्री ने दरवाजा खोलते मंगेश का हाथ थाम लिया

अनुश्री सर उठाये मंगेश को देखे जा रही थी, आंखे सुर्ख लाल थी,बदन किसी भट्टी कि तरह जल रहा था.

एक कामविभोर स्त्री अपने पति से उसके साथ कि याचना कर रही थी,

अनुश्री कि आंखे साफ बता रही थी उसे अपने पति का साथ चाहिए, वो छुवन चाहिए जो इस जिस्म को आराम देती हो.

योनि पे तुम्हारा हाथ का स्पर्श चाहिए.

अनुश्री बेज़ुबान कि तरह बस अपने ही मुँह मे बोले जा रही थी,हज़ारो अहसास हज़ारो भावनाये उमड़ उमड़ के आ जा रही थी.

"क्या जान कभी कभी तुम बच्चों जैसी बात करती हो अभी आता हू 10 -15 मिनट मे,देखो कैसा तप रहा है तुम्हारा बदन " मंगेश हाथ छुड़ा बहार निकल गया.


"हाँ मंगेश सच कहाँ तुमने मेरा जिस्म तप रहा है, लेकिन ये तपीस बुखार कि नहीं है,कैसे समझाऊ तुम्हे? जैसे अंदर कुछ फटने वाला हो, कैसे पति हो तुम मंगेश? क्यों नहीं समझते मै क्या चाहती हू,

अनुश्री कि आंखे डबडबा आई....तुम क्यों नहीं समझते मंगेश?

भारी कदमो से अनुश्री बाथरूम कि ओर चल पड़ी,जलते सुलगते जिस्म का बोझ क्या होता है आज अनुश्री इस स्थति से भलीभांति परिचित हो गई थी.


उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था "सीधा सीधा बोल दे? नहीं नहीं....क्या सोचेगा मंगेश मेरे बारे मे?"

अनुश्री खुद कि बात को काट देती...धममम......से बाथरूम का दरवाजा बंद हो गया.

सामने अदामकद शीशे के सामने अनुश्री अपने वजूद को देख पा रही थी...बिखरे बाल, चेहरा किसी टमाटर कि तरह लाल दिख रहा था.

अनुश्री कि नजर अपने स्तन पे चली गई,जहाँ अतिउत्तेजना से उसके निप्पल तने हुए थे, जो अपने होने का यकीन दिला रहे थे, ऐसे गर्व से तने थे मानो उनसे सुन्दर दुनिया मे कोई हो ही ना, ये घमंडी स्तन अनुश्री कि tshirt को फाड़ देने पे उतारू थे.

अनुश्री खुद को इतनी कामुक कभी नहीं लगी, उसका तन बदन खिल उठा प्रतीत हो रहा था.

अब उसमे सब्र बाकि नहीं रह गया,वो आज अपने बदन को देख लेना चाहती थी,ऐसा क्या है उसके बदन मे कि सब उसके पीछे पड़े रहते है.

आनन फानन मे ही अनुश्री ने अपने कपडे उतार फेंके जैसे उसमे कांटे लगे हो.

"उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़......अनुश्री के मुँह से आज पहली बार खुद के नंगे बदन को देख के सिसकारी निकली थी,उसने आज पहली बार खुद को इस नजर से देखा था.

बाथरूम मे एक रूहानी सी रौशनी फ़ैल गई,एक कामुक सी गंध ने पुरे बाथरूम को भर दिया

आज दिन भर से काम ज्वाला मे जलने के बाद ये थोड़े से सुकून भरे पल थे अनुश्री के लिए.

"आआहहहहह.....कितना अच्छा ललललाआआगगगग.....अनुश्री के शब्द हलक मे ही अटके रह गए,आंखे फटी कि फटी रह गई उसकी नजर अपनी जांघो के बीच जा बड़ी.

"हे भगवान ये क्या?" अनुश्री ने आज तक अपनी चुत कि ये हालत नहीं देखि थी

उसकी चुत बुरी तरह से फूली हुई थी,जैसे कोई पाँव रोटी हो... आज वो खुद ही अपनी चुत को देख मन्त्रमुग्ध हो गई थी

कोई आम आदमी ये नजारा देख लेता तो तुरंत लंड के रास्ते अपनी आत्मा को त्याग देता.

एक दम सफ़ेद गोरी साफ सुथरी लेकिन भीगी हुई फूल के कुप्पा हुई चुत सामने अपनी छटा बिखेर रही थी.

अनुश्री के लिए ये सब कुछ नया था,ये अहसास ये अनुभव...उसके हाथ वापस से उस खजाने को टटोलने चल पड़े,

आखिर हुआ क्या है यहाँ  "आआहहहहह......आउच...." हाथ रखते ही एक मादक अहसास से अनुश्री का जिस्म कांप गया.

लेकिन अनुश्री ने हिम्मत करते हुए हलके से हथेली को अंदर कि तरफ दबाया

"आआहहहहह......इसससस......उफ्फफ्फ्फ़" अनुश्री से सब्र नहीं हो सका


"ससससससरररर......पिस्स्स्स..." करती पानी कि तेज़ धार चुत से बहार कि और निकल गई जैसे कोई बाँध  टूट गया हो.

"आआहहहह.....हे भगवान" अनुश्री खड़े खड़े ही पेशाब करने लगी,

उसे लग रहा था जैसे कोई तेज़ाब उसकी चुत से बहार निकल रहा हो.


"आअह्ह्हह्म्म्मम्म....इसससस.....धमममम" .से वो बाथरूम के फर्श पे बैठ गई इस गर्मी को सहन करने लायक शक्ति भगवान ने उसकी जांघो मे नहीं दि थी.

नीचे गिरते ही उसका हाथ फववारे के नल पे जा लगा


"आआहहभम..ओहफ्फफ्फ्फ़....ठन्डे पानी कि बौछार उसके जिस्म मे गिरने लगी.

ठन्डे पानी अपने जिस्म पे पड़ने और तेज़ाब रुपी पेशाब के निकल जाते ही अनुश्री के जिस्म कि गर्मी भी बहने लगी,साथ साथ ही उसकी दुविधा,आत्मगीलानी भी ठन्डे पानी के साथ बह गई.

"ये सिर्फ मेरे पति के लिए है...सिर्फ मंगेश का हक़ है इसपे और किसी का नहीं " अनुश्री ने एक बार फिर से अपनी चुत पे हाथ रख उसे सहला दिया

कितना सुखद अहसास था इस छुवन मे,अनुश्री के होंठ खुशी से फ़ैलते चले गए और आंखे आनन्द मे बंद हो गई.

उसे रास्ता दिख गया था,मंजिल मिल गई थी

"आखिर पति तो मेरा ही है....तो ये जिस्म भी तो उसका ही हुआ ना " अनुश्री के चेहरे पे एक कातिल मुस्कान तैर गई अब उसे पता था कि क्या करना है


हाय रे नारी...कब कैसे रूप बदल लेती है,

कौन कहता है पाप धोने के लिए गंगा का पानी जरुरी है,सिर्फ एक ठन्डे पानी कि बौछार ही तो चाहिए.


चारो तरफ शांति छा गई थी,अनुश्री के मन मे भी और तन मे भी...."आने दो मंगेश को ऐसा नजारा दिखाउंगी कि टूट पड़ेगा मुझ पे "

अनुश्री तुरंत ही बाथरूम से बहार आ गई....उसका बदन पहले से ज्यादा दमक रहा था,उसपर भीगे बाल उसकी खूबसूरती को चार चाँद लगा रहे थे.

सम्पूर्ण नग्न अवस्था मे ही वो आज बहार चली आई थी,ये कदम भी उसने पहली बार ही उठाया था, कहाँ कभी खुद के नंगे जिस्म से भी शरमाती थी अनुश्री

अनुश्री नंगे जिस्म के साथ ही कांच के सामने आ खड़ी हुई,आज उसे खुद से कोई शर्म नहीं आ रही थी,वो फैसला ले चुकी थी अपने पति से क्या शर्माना....जो सोचता है सोचने दो

"ये मौका फिर कहाँ मिलेगा " अनुश्री खुद ही अपने विचार पे हॅस पड़ी.

दोनों बूढ़ो से मिल के अनुश्री को ये ज्ञान तो हो ही चूका था कि जवानी बार बार नहीं आती.

अनुश्री ने सेक्सी सी ब्रा पैंटी पहन ली,हाथो मे लाल चुड़ी,गले मे लटकता मंगलसूत्र

उसे यकीन था कि मंगेश देख लेगा तो दरवाजे पे ही ढेर हो जायेगा.

"ठाक....ठाक...ठाक.... तभी दरवाजे पे दस्तक हुई

अनुश्री के चेहरे पे मुस्कान तैर गई,

 "खुला है दरवाजा आ जाओ ना "शीशे के सामने खड़ी अनुश्री अपने मादक होंठो पे लिपस्टिक लगा रही थी.

ठाक...ठाक....ठाक......दरवाजे पे फिर दस्तक हुई

"अरे बाबा आ जाओ ना,खुला ही तो है..." अनुश्री होंठ रंगने मे व्यस्त थी.

दरवाजा खुलता चला गया....ठंडी हवा का झोंका अनुश्री के बदन से जा टकराया....

"उफ्फफ्फ्फ़....मंगेश बंद करो ना " अनुश्री अंदर ही अंदर मुस्कुरा रही थी....उसे पता था कि मंगेश के होश उड़ गए होंगे उसे इस तरह देख के.

"क्या हुआ....ऐसे क्या देख रहे हो?" अनुश्री मंगेश को ललचाना चाहती थी इसलिए उसने गर्दन घुमा के देखा भी नहीं दरवाजे कि तरफ... दरवाजे कि तरफ उसकी बड़ी सुडोल सुन्दर गांड थी...

"ममममम....मे...मे....." पीछे से आवाज़ हकला गई...

अनुश्री अभी भी नहीं पलटी " क्या हुआ मंगेश....तुम्हारी ही बीवी हू " अनुश्री कि आवाज़ मे मदकता से भरा व्यंग था.

"वो.....वो...वो.....मैडम आपकी गांड......आपकी गांड कितनी खूबसूरत है " इस बार पीछे से एक जानी पहचानी आवाज़ अनुश्री के कानो से जा टकराई...

शायद अनुश्री इस आवाज़ को पहचानती थी...,उसके हाथो से लिपस्टिक छूट के नीचे गिर पड़ी....हसता मुस्कुराता चेहरा सफ़ेद पड़ गया, सांसे थमने को थी.....

"नन...नन .....नहीं....वो पलटना नहीं चाहती थी,

लेकिन पलट ही गई.....तत्तत.......ततततत......तुम यहाँ?" अनुश्री पलट चुकी थी, सामने खड़े शख्स कि देख उसकी सांसे जम गई, पूरा बदन एक पल मे ही पसीने से नहा गया

"मैडम आप वाकई खूबसूरत है,कितनी छोटी सी चुत है आपकी " वो आदमी अनुश्री कि तारीफ से खुद को रोक ना सका.

अनुश्री तो ऐसे बूत बन के खड़ी थी जैसे उसकी आत्मा ही निकल गई हो...


कौन था ये शख्स?

जिसे अनुश्री आती आत्मविश्वास मे मंगेश समझ बैठी?

कितनी नादान थी अनुश्री

अब क्या होगा?

बने रहिये कथा जारी है.....

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