मेरी बीवी अनुश्री भाग -8
भाग -8
डिब्बा D3
"माँ....माँ.....कहाँ खो गई माँ " राजेश ने अपनी माँ को आवाज़ दी.
उसकी माँ राजवंती जो अभी अभी भिखारी का काला भयानक लंड देख के हटी थी उसकी सांसे फूल गई दिल धाड़ धाड़ कर सीने मे बज रहा था,चेहरा बिलकुल लाल हो गया था
"वो...वो....बेटा गर्मी कितनी है " राजवंती जैसे तैसे बोल गई उसका गला वाकई सुख गया था.
भिखारी से नजर चुराती राजवंती "पानी..पानी...देना बेटा "
कि तभी ट्रैन रुक पड़ी
हट मदरचोद चढ़ने दे, साले तेरे बाप कि ट्रैन है क्या
चल पीछे हट....ऐसा बोलती भीड़ का एक हुजूम डब्बे मे घुस पड़ा.
राजवंती और राजेश के बीच जो थोड़ी सी जगह थी वहा भी लोग बाग ठसा ठस भर गए हालांकि राजवंती के आगे किसी ने अपना बड़ा सा बेग रख दिया था.
"लो माँ पानी.." राजेश ने पानी कि बोत्तल अपनी माँ कि और बढ़ा दी,बैग कि वजह से राजेश को अपनी माँ का सिर्फ चेहरा ही दिख पा रहा था,
राजवंती ने पानी कि बोत्तल गटा गट खाली कर दी जैसे किसी रेगिस्तान मे पानी का तालाब मिला हो.
ऊँची गर्दन किये राजवंटी के मुँह से होती हुई पानी कि बुँदे गर्दन से होती हुई सीधा पसीने से भीगे बड़े से स्तन कि दरार मे समाने लगी.
इस नज़ारे को नीचे बैठा भिखारी मन लगा के देख रहा था,उसके लिए तो राजवंती जैसे कोई अप्सरा थी.
कि तभी ट्रैन झटके से चल पड़ी और राजवंती के हाथ से हिल गई जिसने से पानी निकल ब्लाउज पे गिर गया और थोड़ा पानी भिखारी कि लुंगी पर जहाँ उसका उभार छुपा हुआ था
ठंडा पानी पड़ते ही दोनों के मुँह से एक साथ सिसकारी फुट पड़ी आअह्ह्हह्म....दोनों ने एक दूसरे कि आह को सुन के देखा दोनों को नजरें एक साथ मिल गई.
राजेश बार बार दरवाजे कि तरफ ही देख रहा था,
राजेश :- लगता है भाभीजी उतर नहीं पाई
मंगेश :- लगता है उस से इतना भी नहीं जो सका मंगेश के चेहरे पे थोड़ा गुस्सा था, मोबाइल निकाल अनुश्री का नंबर पंच करने लगा
"हाँ हेलो....क्या? इतना भी नहीं कर सकती उतरना ही तो था और बिना कोई बात सुने काट दिया "
ये वही वक़्त था जब अनुश्री एक हाथ मे फ़ोन थामे दूसरे हाथ को मिश्रा के पीछे दिवार पे टिका दी थी.
राजेश :- गुस्सा क्यों होते है भाईसाहब अगले स्टेशन पे उतर जाएगी भाभी जी.
ट्रैन रफ़्तार पकड़ चुकी थी
भिखारी :- क्या करती है मेमसाहब कभी मेरा लंड उखाड़ने पे उतारू होती हो तो कभी ठंडा पानी दाल देती हो.
राजवंती जो संभल चुकी थी " क्या बकवास करते हो और ये क्या भाषा है?"
ना जाने क्यों राजवंती उसकी बातो का जवाब दे रही थी.
उसके दिल मे रह रह के हुक उठ रही थी उसकी आँखों ने जो अभी दृश्य देखा था वो उसके 15साल के सूखे पड़े जीवन मे बहार जैसा था उसका दिल तो चाहता था कि वो इस दृश्य को फिर से देखे लेकिन कैसे कहे हाय रे संस्कार.
लेकिन भिखारी मझा हुआ खिलाडी जान पड़ता था.
भिखारी :- अच्छा खासा मेरा लंड गर्म हो गया था आपने ठंडा पानी डाल दिया ऐसा बोल लुंगी को थोड़ा सा उठा के झाड़ने लगा जैसे उसका पानी सूखा रहा हो
इस प्रक्रिया मे भिखारी का खड़ा भयानक लंड का थोड़ा सा हिस्सा दिखता तो कभी छुप जाता.
राजवंती ने वापस से सर झुका लिया उसके सामने रंगमंच का कार्यक्रम चल रहा था कभी पर्दा गिरता तो कभी उठता, उसकी आँखों मे उमंग तैरने लगी
वो उस चीज को देख लेना चाहती थी जी भर के इस बात को भिखारी भलीभांति समझ रहा था
भिखारी :- ऐसे ज्या देख रही है मेमसाहेब खा जाइएगा क्या.
"ये....ये....क्या बोल रहा है, छी छी मै क्यों खाउंगी भला " राजवंटी पता नहीं किस मोहपाश मे बँधी ये शब्द बोल गई.
भिखारी :- तो देख क्यों रही है?
राजवंती के दिमाग़ मे इस बात से जबरजस्त चोट पहुंची "हाँ तो देख क्यों रही हूँ मै मुँह फैर लू सीधी बैठ जाऊ "
राजवंती खुद से सवाल कर रही थी परन्तु इस सवाल का जवाब उसका पसीना छोड़ता बदन दे रहा था
15साल का सूखा बदन.
राजवंती कुछ ना बोली बस एक टक देखती रही उस गिरते उठते पर्दे को. "मै.मै....मैंने क्या किया?
भिखारी समझ चूका था कि उसे अब क्या करना है.
उसने लुंगी को एक तरफ से हटा दिया उसका अर्धखड़ा लंड वापस से राजवंती के सामने उजागर हो गया.
राजवंती ने तुरंत अपना थूक गटक लिया उसे इन सब मे मजा आ रहा था उसका बदन इस बात का गवाह था.
"कितना भयानक है,कैसा गन्दा है छी "ल,लेकिन...लेकिन....इतना बड़ा और मोटा " ये सोच आते ही उसकी जांघो के बीच फिर से कुलबुलाहत होने लगी.
परन्तु राजवंती कुछ बोल नहीं रही थी बस इसी बात को हां समझ भिखारी ने अपना गन्दा हाथ राजवंती के पैरो पे पिंडली के नीचे रख दिया.
"सससससईई.....करती राजवंती ने आंखे गोल कर ली, भिखारी के हाथ का खुर्दर्पन उसे साफ महसूस हुआ,वो बस यही नहीं रुकने वाला था.
एक हाथ से लंड को पकड़ उसकी चमड़ी नीचे को सरका दी और दूसरे हाथ को राजवंती के पैरो पे ऊपर चढ़ा दिया ठीक पिंडली के गुदाज मांस मे और जबरदस्त तरीके से पिंडली को भींच दिया.
"आअह्ह्ह.....उम्म्म्म....कि एक आनंदमयी सिसकारी फुट पड़ी राजवंती के सुन्दर मुख से "
उसे यही आनंद तो चाहिए था ना जाने किस मोहपाश मे बँधी राजवंती थोड़ा और नीचे को झुक गई जिस वजह से उसका पल्लू हल्का सा सरक गया.
भिखारी कि तो मनोकामना जैसे पूरी हो गई हो कामदेव आज उस से बेहद प्रसन्न थे.
"वाह मेमसाहेब आपके दूध तो बहुत गोरे है " भिखारी के ऐसा बोलते ही राजवंती का ध्यान तुरंत अपने ब्लाउज पे गया जहाँ उसके झुकने से दोनों स्तन बहार को आने पे उतारू थे, पानी से ब्लाउज का ऊपरी हिस्सा गिला था जिस वजह से स्तन का पूरा आकर साफ झलक रहा था.
"ये क्या.....ये क्या बोल रहे हो " राजवंती प्रश्न कर रही थी परन्तु विरोध नहीं था ना सम्भलने कि कोशिश कि उल्टा अपने ब्लाउज से दीखते स्तन को देख भिखारी कि आँखों मे देखा जैसे देखना जा रही हो कि क्या होता है.
आज उसे अपना खजाना एक भिखारी को दिखाने मे सुकून मिल रहा था.
उसे वही दिखा जो देखना चाहती थी भिखारी कि आँखों मे खा जाने वाली चमक थी.
भिखारी :- वही जो सच है...ऐसा बोल उसने राजवंती के पैर को पकड़ उठा दिया और सीधा अपनी लुंगी के ऊपर रख दिया, उसका लंड सीधा राजवंती कि चिकनी तालवो से दब गया
"आअहम.....उम्मम्मम्म....एक गरम और मुलायम आनंद कि अनुभूति पैर के तलवे से होती हू सीधा राजवंती कि चुत से जा टकराई.वही चुत जो पिछले 15 साल से सुखी थी.
आज वहा बाढ़ आने को थी उसकी पहली झलक साफ महुसूस हुई थी,एक पानी कि पतली बून्द उस पतली लकीर से निकाल के पैंटी पे चू गई.
आज इतने सालो बाढ़ राजवंती को अपनी जांघो के बीच हलचल महसूस हुई थी वो भी एक भिखारी के लंड को अपने पैर से छू के,.अब लंड तो लंड ही होता है जिसका भी हो.
कामवासना ऊंच नीच जात पात कहाँ देखती है.
"ये...ये....क्या कर रहे हो छोडो मेरा पैर "राजवंती ने खुद से लड़ते हुए भिखारी को घुरा.
भिखारी :- मेमसाहब अपने पानी डाला है तो आप ही गरम.करेंगी ना वापस.
आपको अच्छा नहीं लगा क्या हमारा लंड, ये अच्छे से देख के बताइये बोलते हुए उसने अपने लंड कि स्किन को वापस से पीछे किया एक गुलाबी रंग का बड़ी सी बाल का आकर का शिश्नमुंड बहार को उजागर हो गया जिसके चारो और सफ़ेद सफ़ेद सी पापड़ी जमीं हुई थी जो गीलेपन से लस्लासा रही थी,
चमड़ी के नीचे होते ही एक अजीब सी गंध ऊपर कि तरफ झुकी हुई राजवंती कि नाक मे पहुंच गई जो कि बर्दाश्त के लायक नहीं थी,.
"याक्क्क....ये कैसी दुगन्ध है " राजवंती के मुँह से निकल गया.
भिखारी :- हमारे लंड कि खुसबू है मेमसाहब पसंद ना हो तो वापस अंदर कर ले
इस बार राजवंती का कोई जवाब नहीं था उसे हरगिज़ मंजूर नहीं था कि वो अपना लंड अन्दर कर ले हालांकि वो बराबर उस गंध कि खुसबू ले रही थी जो कि इतनी बुरी भी नहीं थी, बस ये गंध उसके दिमाग़ मे चढ़ रही थू और सीधा नाभि के नीचे उतर जा रही थी.
"बताइये ना मेमसाहेब अंदर कर ले का " भिखारी ने राजवंती के पैर को अपने लंड पे घिसते हुए कहा.
राजवंती :- ना...ना......मेरा मतलब हाँ.... सकपका गई थी बुरी तरह.
दिमाग़ और बदन अलग अलग बाग़ कर रहे थे.
भिखारी :- क्या हाँ ना...अच्छे से बोलिये अंदर कर ले या फिर ऐसे ही घिस दे बोल के अपने लंड को राजवंती के पैर के ऊपर ही घिस दिया जिस वजह से उसके लंड पे लगा सफ़ेद पदार्थ उसके पैर पे जा लगा.
"छी ये क्या किया तुमने " उसे घिन्न आ रही थी परन्तु बराबर बहस कर रही थी उस से चाहती तो पैर हटा लेती शोर मचा देती.
भिखारी :- साफ ही कर रहे है ना आपके पति का नहीं देखा क्या कभी लंड.
भिखारी बाफ बार लंड शब्द पे जोर दे रहा था,जिसे सुन सुन के राजवंती मदहोशी के सागर मे गोते लगाने को मजबूर हुए जा रही थी.
भिखारी के कथन से उसे याद आया कि आज टक उसने लंड को कभी अच्छे से देखा ही नहीं था,आधा जीवन उसने ऐसे ही बिता दिया,पति के साथ सम्भोग मे भी उसने कभी होने पति के लंड को नहीं छुवा था,बस चुत मे डालता दो पांच धक्को मे काम हो जाता,
उसे इस तरह कि गर्मी इस तरह कि मदहोशी कभी महसूस ही नहीं हुई थी.
आज ये भिखारी इस बात का अहसास करा रहा था
"बताइये ना मेमसाहब कभी लंड नहीं देखा क्या?"
भिखारी के सवाल से जैसे राजवंती होश मे आई "ना...ना....नहीं."
भिखारी बुरी तरह चौका "क्या....इतने बड़े लड़के कि माँ हो और आज टक लंड ही नहीं देखा "
भिखारी के ये शब्द उसके वजूद पे धिक्कार थे उसके स्त्री होने को कोष रहे थे,
राजवंती को जो सुकून मिल रहा था जो ठंडक दिल को पहुंच रही थी उसे बयान करना मुश्किल था.
"चलिए कोई बात नहीं कामदेव मे इसलिए ही मुझे भेजा है "भिखारी ने दिल जीत लिया था राजवंती का अपने शब्दों से
राजवंती जो कि सिर्फ एकटक अपने पैर को भिखारी के लंड पे घिसता देख रही थी उसे भिखारी मे अचानक कामदेव ही नजर आने लगा.
उसने दबाव दाल के उसके लंड को भींच दिया.
"आअह्ह्ह.....क्या करती ही मेमसाहब मार ही दोगी क्या, ऐसे नहीं आराम से करते है " भिखारी ने आज एक शादी सुदा जवान लड़के कि माँ को अनाड़ी साबित कर दिया था.
"लाइए अपना दूसरा पैर " बोल के राजवंती के दूसरे पैर को भी अपनी जाँघ पे रकब लिया और अपने काले लंड को दोनों पैरो के बीच फसा दिया.
राजवंती कि तो पैंटी ही गीली हो गई भिखारी किनिस हरकत से उसने सपने मे भी नहीं सोचा था कि एक गंदे भिखारी का गन्दा लंड वो छुवेगी.
लेकिन यहाँ छूना तो छोडो राजवंती ने उसका लंड अपने दोनों पैरो के तालवो के बीच दबोच रखा था.
"आप जैसी सुन्दर कामुक काया को ऐसे ही लंड कि जरुरत होती है मेमसाहब " भिखारी लगातार राजवंती कि बखिया उधेड़ रहा था उसे स्त्री होने का अहसास करवा रहा था,
"आप जैसी कामुक स्त्री को तो ऐसे बड़े लंड ही शांत कर सकते है क्यों मेमसाब? कैसा लगा मेरा लंड "
"आआ.....अअअअअ.....अच्छा है" बस इतना ही बोल पाई
उसकी लाख कोशिश थी कि वो अपनी जांघो के बीच हाथ दाल दे कैसी अजीब सी खुजली हो रही है वहा का गिलापन उसे लगातार इस बात के लिए उकसा रहा था.
आज जीवन मे उसे पहली बार काम ज्ञान मिल रहा था वो भी एक भिखारी से.
"आपके दूध मेमसाहब,मन करता है कि चूस लू पकड़ के " भिखारी के एक एक शब्द किसी तीर कि तरह चल रहे थे और ये तीर उसकी चुत मे धसते जा रहे थे.
अब भिखारी ने राजवंती के पैरो को पकड़ के सहलाना शुरू कर दिया कभी अपने लंड के ऊपर करता तो कभी नीचे.
राजवंती लगातार उसकी ये हरकत देखे जा रही थी दोनों पैरो के बीच कैद उसका भारी मोटा लंड कि चमड़ी कभी खुलती तो कभी बंद होती उसके लिए आज ये दुनिया का सबसे खूबसूरत नजारा था इस नज़ारे को देखने के लिए उसने अपने जीवन के 45 साल बर्बाद कर दिए.
"आअह्ह्ह..... मेमसाहब अच्छा लग रहा है थोड़ा कस के चलाइये अपने पाँव "
भिखारी कि बात सुन उसे ध्यान आया कि उसका पैर ती खुद बा खुद उसके लंड पे चल रहा है भिखारी तो कबका अपना हाथ वाह से हटा चूका है.
इस लज्जात मे राजवंती कि चुत ने एक लम्बी धार छोड़ दी जिसे सिर्फ और सिर्फ उसी ने महसूस किया, इस धार का असर ये हुआ कि उसके पैर मजबूती से भिखारी के लंड पे कस गए और ऊपर नीचे होने लगे.
वो अपने पैर से एक गंदे अनजान भिखारी का लंड हिला रही थी, उसे उस आनंद कि अनुभूति ही रही थी जिसे वो ना जाने कब से पाना चाहती थी,शादी के बाद उसे अधूरापन तो लगता था लेकिन क्या अधूरा है समझ नहीं आता था,परन्तु आज उस बात का जवाब उसे मिल गया था.
उसका पैर अब तेज़ तेज़ भिखारी के लंड पे चलने लगा बुरी तरह सर झुकाये लंड कि खुलती बंद होती चमड़ी को देखे जा रही थी.
"आआहहहह....क़ाह्ह्ह्हह...उम्मम्मम्म....मेमसाहब धीरे धीरे " भिखारी अपनी गांड उठा के नीचे पटकता हुआ बोला
उसे कतई अंदाजा नहीं था कि उसके द्वारा लगाई गई चिंगारी इस कदर आग का रूप ले लेगी.
उसने बरसो से सोइ हुई कामुक स्त्री को जगा दिया था अब भुगतना तो पढ़ेगा ना.
ट्रैन कि रफ़्तार धीमी होने लगी थीपरन्तु राजवंती के पैरो कि रफ्तर रुकने का नाम ही नहीं के रही थी.
राजवंती का पूरा बदन पसीने से सरोबर हो गया था.
"फच फच फच.....कि आवाज़ ट्रैन कि आवाज़ से मेल खा रही थी.
भिखारी भी आम आदमी था कब टक सहता, फाचक कि आवाज़ के साथ उसके लंड ने वीर्य कि पहली किश्त छोड़ दी.
"आआहहहह.....मेमसाहब रुक जाइये आअह्ह्हह्म......" भिखारी चित्कार उठा
लेकिन नहीं राजवंती नहीं रुकी उसे रुकना भी नहीं था....फच फच करते उसके पैर चले जा रहे थे.
तभी दूसरी तीसरी चौथी वीर्य कि धार भी भिखारी के लंड ने छोड़ दी उसका सारा वीर्य राजवंती के तालवो और उसके ऊपरी हिस्से ले लग गया था.
"आआहहहहम्म.......उम्मम्मम्म....."राजवंती का शरीर कांप रहा था उसके चेहरा और आंखे सुर्ख लाल हो गई थी
उसकी चुत ने भी जवाब दे दिया था इतने समय से तपता हुआ बदन शांत पड़ने लगा था.
भिखारी के गरम वीर्य ने उसे ठंडक पहुंचाई थी,
उसके बदन कि गर्माहट चुत के रास्ते निकलने लगी
सरसरा के चुत ने आज 15 साल बाद पानी छोड़ा था आज सुखी नदी मे बाढ़ आई थी जिसका जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ ये भिखारी था.
जिसे बड़ी हसरत और प्यार भारी निगाह से देखते हुए राजवंती ने अपना पैर उसके लंड पे दबा दिया.
उसका चेहरा पसीने से भीगा था होंठो पे शैतानी मुस्कान तैर रही थी
"आआहहहह.....मेमसाहब " भिखारी ऐसे डकारा जैसे उसकी आखिरी आवाज़ हो.
राजवंती आज हवा मे थी ट्रैन लगभग रुक गई थी, उसकी सांसे भारी हो गई थी लेकिन इसमें सुकून था बरसो के बाद ऐसा सुकून मिला था.
अपने सर को उठा सीट के पीछे झुका लम्बी लम्बी सांसे लेने लगी,उसे अपने नीरस जीवन कि नयी रह दिख गई थी.
उसका चेहरा पसीने से भीगा हुआ था वो हांफ रही थी लेकिन वो दम भर रही थी एक नयी रेस के लिए आनद कि रेस के लिए.
उसे यकीन हो चला था " वो अभी जवान है एकदम जवान "
"लगता है कोई स्टेशन आया है " राजेश मे मंगेश को बोला
तो क्या राजवंती का स्त्रित्व जाग गया है?
अनुश्री का क्या हुआ इस बीच,क्या वो इस बार उतर पायेगी?
जगनाथ पूरी कि यात्रा क्या गुल खिलाती है देखते है
बने रहिये कथा जारी है.....
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