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मेरी बीवी अनुश्री भाग -5

भाग -5


डिब्बा D3

मंगेश :- अरे ये ट्रैन क्यों रुक गई?

राजेश :- भैया हमारे भारत का ऐसा ही है जब जो चाहे वो हो जाता है जरूर किसी ने चैन खिंच दी होंगी.

मंगेश और राजेश के सामने राजवंती बैठी हुई थी,अपने बदन को छुपाये हुए फिर भी ना चाहते हुए कुछ मर्दो कि नजर उसकी ओर चली जा रही थी.

इन नजरों को रेखा भली भांति पहचानती थी यही नजरें उसे कभी भीड़ मे तो कभी सब्जी मार्किट मे चुभती महसूस होती थी.

वो 15 साल से विधवा थी आपने बदन पे पड़ती इन नजरों को खूब पहचानती थी,रेखा के पति ने उसे कभी सम्भोग सुख नहीं दिया था,फिर राजेश पैदा हो गया उसके बाद से तो सम्भोग ना के बराबर ही हो चला था उसका पति सिर्फ दुकान से घर घर से दुकान का रास्ता ही जानता था.

एक औरत के दिल का रास्ता कहाँ से जाता है इसकी कोई खबर नहीं थी उसे

वो तो चला गया पीछे रह गए राजवंती और उसका बेटा राजेश.

रेखा अभी भी अनछुई महिला कि ही तरह नाजुक कोमल सुगठित सुडोल बदन कि मालकिन थी.

परन्तु उसे खुद को ज्ञान नहीं था कि वो किस तरह मादक है क्यकि उसका ध्यान कभी इन बातो पे गया ही नहीं.

आज भीड़ मे मर्दो कि नजरें उसे कुछ सोचने पे मजबूर कर रही थी, उसके दिमाग़ मे रह रह के यही सवाल उठ रहा था कि सारे मर्द उसे ही क्यों देख रहे है? ऐसी क्या बात है मुझमे? अब तो मै जवान भी नहीं रही?

"ऐ माई....देना,देना रे माई..." ना जाने कहाँ से एक मैला कुचला सा भिखारी रेंगता हुआ वहा चला आया.

रेखा :- हे भगवान यहाँ इतनी भीड़ है फिर भी ये कैसे अंदर घुस आया.

रेखा ने हिकारत भरी नजर से भिखारी को देखते हुए कहाँ.

मंगेश :- आंटी जी इन लोगो का ऐसा ही है मेहनत नहीं करनी है सिर्फ मौज काटनी है.

ये बात शायद भिखारी को चुभ गई.

भिखारी :- बाबू पैसा नहीं है तो मत दो लेकिन ज्ञान भी मत दो,वैसे भी मैंने आपसे नहीं माँगा है मैंने तो इस लड़की से माँगा है.

भिखारी ने रेखा कि और इशारा कर बोला.

"हे भगवान ये मुझे लड़की कह रहा है,मुझ बूढ़ी औरत को लड़की " ये बात सोच राजवंती के चेहरे पे हलकी से मुस्कान आ गई

अब भला तारीफ किस स्त्री को बुरी लगती है.

अब चाहे स्त्री जो हो और तारीफ करने वाला जो हो तारीफ सिर्फ तारीफ होती है.

वही मंगेश भिखारी से नाउम्मीद जवाब पा कर सकपका गया उसे लगा जैसे उसकी बेइज़्ज़ती हो गई हो इतने बड़े कपड़ो के व्यापारी कि कोई इज़्ज़त ही नहीं.

ठगा सा मंगेश "चल भाई चल आगे को मर अब नहीं है पैसा कोई "

रेखा :- जाने दो बेटा बेचारा लाचार है पैसे ही तो मांग रहा है" बोल के रेखा ने अपना पर्स खोल पैसे निकलने चाहे परन्तु जैसे ही हाथ बाहर निकलने को हुई पर्स नीचे गिर गया भिखारी कि गोद मे.

"अरे ये क्या हुआ....बोलती रेखा पर्स उठाने को हुई कि उसका पल्लू सर सरा के सरक गया,रेखा के स्तन एक दम से भिखारी के मुँह पे ही उजागर हो गए,

एक बिजली सुन्दर चमकी हो जैसे भिखारी कि आंखे पथरा गई.

रेखा के स्तन के बीच कि गली साफ दिख रही थी बिलकुल अंदर तक गहराई ली हुई घाटी सफ़ेद बेदाग गोरे मोटे मोटे स्तन बस कुछ जी दूर थे, भिखारी ने जीभ भी निकाली होती तो शायद उन रस भरे तरबूजो को चख लेता.

लेकिन वो तो जैसे दुनिया ही छोड़ चूका था...रेखा अचानक हुई इस घटना से सकपका गई उसने होने पर्स पे झापट्टा माड़ के पकड़ना चाह कि पर्स के साथ लम्बी से गुदगुदी चीज भी हाथ आ गई.

"आआहहहहह......मेमसाहब" भिखारी के मुँह से दर्द भरी आह निकल गई.

रेखा सीधी हो चुकी थी पल्लू वापस से उन मादक घाटियों कि पहरेदारी मे लग गया था.

सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि किसी को कुछ पता ही नहीं पड़ा कि अभी अभी क्या घटना हो गई.

सामने राजेश मंगेश बतियाने मे व्यस्त थे, राजवंती शर्म के मारे मुँह नहीं उठा पा रही थी, उसकी हिम्मत नहीं थी कि वो भिखारी कि तरफ देख भी सके क्यूंकि उसे अच्छे से पता था कि वो बेलनाकार चीज क्या थी आखिर वो शादी सुदा महिला थी.

रेखा कि धड़कने तेज़ हो चली थी पल्लू के ऊपर से ही कोई देख के बता सकता था कि अंदर किस तरह स्तन उछल कूद कर रहे है.

"आअह्ह्ह....मैमसाब " अपने तो नोच ही दिया मेरा दर्द हो रहा है पैसे नहीं देने थे तो ना देती इस तरह कौन नोचता है.

भिखारी अच्छी तरह समझ रहा था कि सब अचानक हुआ है इसमें रेखा कि कोई गलती नहीं है परन्तु जो उसने रेखा के झुकने पे नजारा देखा था बस उसी लालच ने उसे ये हिम्मत और विचार दे दिया था.

मर्द भी गजब होता है लंड कि ही सुनता है ना जगह ना औरत ना हैसियत कुछ नहीं देखता.

भिखारी ने लगभग फुसफुसा के बोला था.

रेखा के हालात तो वैसे ही ख़राब थी उसने जीवन मे पहली बार किसी पराये मर्द का लंड छुआ था वो भी गलती से.

भले गलती ही थी परन्तु इस गलती का गर्मपन वो होने हाथ मे महसूस कर चुकी थी.

सर झुकाये रेखा ने भिकारी कि फरियाद सुन आंखे खोली तो शर्म से दोहरी हो गई उसके ठीक नीचे भिकारी अपने लंड को लुंगी के ऊपर से सहला रहा था.

"आअह्ह्ह....मेमसाब " रेखा को अपनी और देखता पा के जोर जोर से अपने लंड को मसलने लगा.

रेखा सर झुकाये ही रही परन्तु इस बार आंखे बंद नहीं कि आश्चर्य से उसकी आंखे फटी कि फटी ही रही क्यूंकि जिस तरह भिखारी लम्बाई मे अपने लिंग को घुस रहा था उस जगह एक लम्बा सा उभार प्रकट हो गया था जैसे उसने अपने लुंगी मे कोई लकड़ी छुपा रखी हो.

रेखा ने ऐसा दृश्य कभी नहीं देखा था वो हैरान थी कि ये क्या है पहले तो नहीं था? क्या इसने कोई लकड़ी छुपा रखी है अपनी लुंगी मे.

रेखा को सोच मे डूबा देख भिखारी मे थोड़ी और हिम्मत आ गई.

"बताइये ना मेमसाब ये सजा किस बात कि मेरा ये उखाड़ देती तो मेरी बीवी का क्या होता "

रेखा सन्न रह गई उसका चेहरा शर्म,हैरानी से लाल हो गया उसके कान जलने लगे, लग रहा था जैसे उसका खून सुख गया है उसके जिन्दा होने का सबूत सिर्फ उसकी तेज़ चलती धड़कन ही दे रही थी


रेखा :-मै..मै....मैंने जान के नहीं.....नहीं किया, रेखा कि आवाज़ लड़खड़ा रही थी अब भला सूखे गले से क्या आवाज़ निकलती.

भीड़ और शोर शरबे मे उनकी आवाज़ का कोई महत्व नहीं था रेखा सर झुकाये बैठी रही उसके ठीक नीचे थिसा साइड मे भिखारी खुसफुसा रहा था इनकी वार्तालाप सुनने वाला कोई नहीं था.

राजेश और मंगेश तो अपनी ही बातो मे मशगूल थे.

भिखारी :- जैसे भी किया हो मै तो मर जाता ना अभी पूरा लाल हो गया है आपके नाख़ून भी लग गए है.

मुझे तो लगता है कही खून ना निकल गया हो.

भिखारी ज्यादा ही रियेक्ट कर रहा था,भले से एक झांट भी ना उखड़ी हो उसकी लेकिन दिखा ऐसे रहा था जैसे किसी ने टट्टे ही नोच लिए हो..

रेखा साफ साफ ये बात पड़ रही ऊपर से उसकी आँखों के सामने लगातार वो डंडे जैसा उभार नाच रहा था,उसे पूरा यकीन था कि ये वो नहीं है भिखारी नाटक कर रहा है ये जरूर कोई लकड़ी है जिसे इसने अपनी लुंगी मे छुपा रखा है.

हालांकि ऐसा सोचते हुए वो मर्द लिंग कि ही कल्पना कर रही थी जो आज तक उसने अपने पति का ही देखा था,आज इतने सालो बाद उसके जहन मे लिंग का चित्र उभर के आया था.

उसके दिल मे कही एक हुक सी उठी थी उसका बदन मे एक चिंगारी तो लगी ही थी सालो से अनछुई थी आखिर.

"तुम झूठ बोल रहे हो " भिखारी के उभार को देखते हुए ही बोली.

भिखारी :- सच बोल रहा हूँ मेमसाब यकीन ना हो तो दिखता हूँ अभी ऐसा बोल लुंगी का एक सिरा पकड़ हटाने लगा.

रेखा :- नहीं....नहीं....मेरा मतलब ये नहीं था मुझे नहीं देखना.आंखे बंद करते हुए बोली

भिखारी का हाथ वापस हट के अपने उभार को सहलाने लगा

उसने रेखा जैसी कामुक संस्कारी औरत को अपनी बातो मे फसा लिया था.

लेकिन रेखा के दिल मे जिज्ञासा घर कर गई थी उसे यकीन था कि उसके लुंगी के अंदर डंडा ही निकलेगा ये भिखारी पैसे ऐठने के चक्कर मे बेवकूफ बना रहा है.

अब रेखा खुद को संभल चुकी थी आत्मविश्वास से भर गई थी कि जो वो सोच रही है वैसा कुछ नहीं है मर्दो का लिंग इतना बड़ा होता ही नहीं है.

"आअह्ह्हम्म.....मेमसाब दर्द हो रहा है " भिखारी अपना काम बिगड़ता देख फिर से कराह उठा.

रेखा ने एक बार सर उठा के इधर उधर देखा किसी का ध्यान उधर नहीं था भिखारी कि तरफ तो वैसे भी किसी कि तावज्जो जानी ही नहीं थी भीड़ मे नीचे दबा पड़ा था.रेखा का ध्यान वापस से नीचे बैठे भिखारी पे गया.

इस बार वो अपनी लुंगी को इस तरह हटा चूका था कि काले बालो का गुच्छा सा लुंगी के ऊपरी हिस्से पे दिख रहा था.

रेखा :- नाटक बंद करो वरना अपने बेटे को बोल के पिटवा दूंगी तुम्हे.

भिखारी :- वाह मेमसाब वाह मै नपुंसक बन जाता और आप अपनी गलती मानने के बजाय मुझे पिटवाना चाहती है.

रेखा :- नाटक मत करो किसी आदमी का इतना बड़ा........ रेखा यही रुक गई उसकी जबान अनर्थ करने ही वाली थी.

शर्म से दोहरी हो गई.

भिखारी :- क्या बड़ा...मेमसाब? आपके नाख़ून के निशान लावे होंगे मेरे लौड़े पर

इस बार सीधा सीधा ही बोल गया, लोड़ा शब्द जैसे ही रेखा के कानो मे पड़ा उसे तो होश ही फकता हो गए.

वो इस शब्द को गाली समझती थी कभी उसका पति भी बोलता तो नाराज हो जाती थी.

रेखा :- छी गाली देते हो...औरत के सामने गाली देते हो शर्म और गुस्से मे राजवंती का चेहरा तामत्मा उठा.

भिखारी :- मेमसाब गाली कहाँ दी..अब लौड़े को लोड़ा ही तो बोलूंगा ना लकड़ी थोड़ी ना बोल दूंगा.

रेखा :- ये लकड़ी ही है...किसी आदमी का इतना बड़ा नहीं होता,रेखा बहस बाजी मे खुद को हारती पा कर एक ही सांस मे बोल गई.

भिखारी :- होहोहि....अच्छा तो आपको ये शक है कि ये लोड़ा नहीं लकड़ी है.

भिखारी कि बात सुन राजवंती को अहसास हुआ कि वो क्या बोल गई है.


रेखा :- मै...मैम...मेरा वो मतलब नहीं था

भिखारी :- "हाँ तो ये मेरा लोड़ा ही है थोड़ी देर पहले तो आपने ही इसे उखाड़ने कि कोशिश कि थी" भिखारी बात को मुद्दे से भटकने नहीं दे रहा था सारी बाते उसके लंड के इर्द गिर्द ही बुनी जा रही थी.

ये बाते किसी जाल कि तरह राजवंती को अपने मे फसा रही थी.

राजवंती:-" मैंने जानबूझ के नहीं किया था " इस बात जवाब पुरे आत्मविश्वास से दिया गया.

भिखारी :- उखाड़ जाता तो?

राजवंती :- वो तुम्हारा है ही नहीं....इतना नहीं होता आदमी का.

भिखारी :- क्यों अपने कितने मर्दो के देखे है जो बोल रही हो

राजवंती को अपनी बहस मे जीतना ही था उसे हार मंजूर नहीं थी वो भी एक भिखारी से बातो बातो मे ये मुद्दा हार जीत का अहम्.का मुद्दा बन गया पता ही नहीं चला.

राजवंती ये भी भूल गई कि मुद्दे का केंद्र एक लंड है,लंड कि लम्बाई पे बात हो रही है वो भी ट्रैन मे एक भिखारी से.

राजवंती :- किसी का नहीं देखा लेकिन मै इतनी भी बेवकूफ नहीं हूँ,शादी सुदा.....


इतना बोलना ही था कि भिखारी ने झटके से अपनी लुंगी को साइड कर दिया,भिखारी ठीक राजवंती के नीचे को बैठा था राजवंती सर झुकाये भिखारी से बहस कर रही थी.

लुंगी हटते ही भिखारी का काला मोटा 9इंच लम्बा गन्दा सा लंड सीधा राजवंती के मुँह के नीचे सलामी देने लगा, उसके शब्द वही जम गए मुँह खुला का खुला ही रह गया,आंखे बाहर निकलने को थी.

राजवंती का मुँह सीधा लंड के ऊपर ही था वाह उसे साफ और नजदीक से देख पा रही थी उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि आदमी का ऐसा लिंग भी होता है.

बिलकुल कड़क खड़ा हुआ मोटा सा भयानक सा जिसकी जड़ पर बेतहाशा बाल,नीचे दो बड़ी से बोल दिखाई पड़ती थी. कदकपन इतना था कि बिना हाथ लगाए ही झटके खा रहा रहा,लंड के ठुमके राजवंती कि दिल कि धड़कन और जांघो के बीच कि सरसराहत बढ़ा दे रहे थे

अभी सदमे से बाहर निकली ही नहीं थी कि भिखारी ने अपने लंड को मुठी मे पकड़ उसकी चमड़ी को नीचे सरका दिया.

जैसे जैसे चमड़ी नीचे होती गई एक आलू के आकर का लाल गुलाबी सा हिस्सा बाहर को उजागर होने लगा,जिस से एक कैसेली गंध निकल के सीधा राजवंती के नाथूनो मे प्रवेश कर गई.

ये गांड नाकाबिले बर्दाश्त थी फिर भी ना जाने क्यों राजवंती ने अपना चेहरा ऊपर नहीं किया उसकी नजरें अभी भी भिखारी के लंड को देख रही थी उसने आज अपने जीवन का सबसे बड़ा अजूबा देखा हो.

15 साल बाद उसने लंड देख था वो भी ऐसा कि नजरें तक नहीं हटा पा रही थी,उसकी नाम मे पहुंची गंध सफर तय करती हुई जांघो के बीच जा के घंटी बजा रही थी.

उसके जांघो के बीच पसीना आने लगा कुछ गीलेपन का अहसास हुआ उसे.

भिखारी ने अपनी लुंगी से वापस ढक लिया.

ये दृश्य मात्र कुछ पल का ही था लेकिन इस एक पल मे ना जाने क्या क्या हो गया था.

राजवंती कि बरसो पुरानी सोइ हुई हसरत चिंगारी का रूप धारानबकर चुकी थी. कही और जगह होती तो शायद ये चिंगारी आव का रूप भी ले सकती थी.

हक्की...बक्की....राजवंती को किसी के हिलाने से झटका लगा

चररररर.....चरररर......करती ट्रैन रुकने लगी ट्रैन के झटके से राजवंती को होश आया.

उसकी सांसे अभी भी चढ़ी हू थी उसके चेहरे को कोई देख लेता तो उसे लगता कि राजवंती ने भूत देख लिया हो.

मंगेश :- लगता है स्टेशन आ गया है अनुश्री को फ़ोन कर उतरने के लिए बोलता हूँ.

मंगेश मोबाइल मे नंबर दर्ज करने लगा....


डिब्बा D1


यहाँ अनुश्री गर्मी और पसीने से जूझ रही थी उसकी हालात बिन पानी कि मछली कि तरह हो गई थी.

साड़ी के अंदर पसीने से चिपकी पैंटी ज्यादा तकलीफ दे रही थी गुदा छिद्र मे इकठ्ठा हुआ पसीना खुजली उत्पन्न कर रहा था इसकी खुजली और गीलेपन को कम करने के लिए ही अनुश्री अपनी मादक बाहर को निकली गांड को इधर उधर हिला के थोड़ा सुकून लेने का प्रयास कर रही थी.


बिहड मे रुकी ट्रैन एक झटके से चल पड़ी,अनुश्री को तेज़ झटका लगा जिस कारण को पीछे को गिरने को हुई परन्तु उसकी पीठ किसी मजबूत छाती पर जा टिकी,उसका कमर से निचला हिस्सा आगे को ही था परन्तु पीछे को निकली गांड पीछे किसी कठोर चीज से जा लगी , मोटी सी कोई चीज थी जो साड़ी के ऊपर से ही निताम्बो के बीच कि दरार मे घिस रही थी .


"मैडम संभल के जरा " अब्दुल ने पीछे से वापस जोर दे के अनुश्री को वापस उसी कि जगह पे खड़ा कर दिया.


ये छुवन पल भर कि ही थी परन्तु अनुश्री को अपने निताम्बो के बीच होती खुजली से थोड़ी राहत मिली,एक हलके से घिसाव ने काफ़ी आराम दिया.


यही राहत तो चाहिए थी उसे. ये राहत खुजली से निजात कि थी या फिर गांड कि दरार मे चुभती उस चीज कि कहा नहीं जा सकता था.


ट्रैन चर चराती रुकने लगी.....चरररर....चररर.....


मिश्रा :- लगता है कोई स्टेशन आ गया


मिश्रा कि बात सुन अनुश्री को राहत का अनुभव हुआ,जैसे भगवान ने उसकी मुराद सुन ली हो.


तभी उसका फ़ोन बजने लगा.....


"हेलो हाँ.....मंगेश....हेलो... हाँ स्टेशन आ रहा है उतरती हूँ मै"


अनुश्री कि कही बात सुन मिश्रा और अब्दुल का चेहरा पल भर मे ही उतर गया कितना मजा आ रहा था,


ऐसे सौंदर्य को निहारने का मौका फिर कहाँ मिलेगा.


दोनों ने एक दूसरे कि और लाचारी भरी नजर से देखा.


जैसे कोई खजाना उनके हाथ से निकलने को था.




तो क्या अनुश्री ट्रैन से उतार पायेगी?


बने रहिये कथा जारी है...

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