मेरी बीवी अनुश्री भाग -2
भाग -2
तो घर वालो को सलाह से हमारा जागनाथ पूरी जाने का प्लान आखिर बन ही गया.
मेरा बिलकुल भी मन नहीं था जाने का मेरे बिज़नेस मे नुकसान होता
परन्तु माँ को डांट की वजह से जाना पड़ रहा था.
ये पहली बार था की हम लोग शादी के बाद कही बाहर घूमने जा रहे थे.
अनुश्री :- आप ख़ुश तो हो ना? कोई समस्या तो नहीं ना?
मै :- नहीं जान बल्कि ख़ुश हूँ की काफ़ी समय बाद हमारे घूमने का संयोग बना है.
अगली सुबह हमारी ट्रैन थी आज रात खुशी खुशी मैंने अपनी बीवी को जम के पेला पुरे 5मिनट.
अब मेरा तो यही होता है जम के पेलना,साड़ी उठाई और पेला जम के.
मेरी बीवी को भी इसी सेक्स की आदत थी इसके लिए सेक्स यही होता है 5मिनट का इस से ज्यादा कुछ नहीं.
सुबह ही चली थी
मेरी बीवी अनुश्री जम के तैयार हुई पिली साड़ी,स्लीवलेस लाल ब्लाउज,माथे पे बिंदी और सिंदूर, हाथो मे चूड़ियाँ,गले मे लटकता मंगलसूत्र,
उसे इस बात का अहसास ही नहीं था की वो किस कदर सुन्दर है, उसे लोग घूरते थे परन्तु उसे ये बात सामान्य ही लगती थी.
हालांकि उसके स्तन इतने बड़े और कठोर थे की ना चाहते हुए भी ब्लाउज से बाहर आने को बेताब ही रहते थे.
अनुश्री का गोरा मखमली बदन चमक रहा था साड़ी मे.
मैंने भी जीन्स शर्ट टांग ली अपने बदन पे.
मेरी बीवी सुन्दर तो थी ही आज और ज्यादा लग रही थी परन्तु शादी के 4साल बाद कौन तारीफ करे
बस यही सब गलतियां मै करता जा रहा था.
हम लोग बड़ो से आशीर्वाद ले चल पड़े जगन्नाथ पूरी की यात्रा पे.
ट्रैन टाइम पे ही थी सुबह 8बजे हम ट्रैन मे चढ़ गए.
अब मेरे पास पैसे की कोई कमी नहीं थी इसलिए मैंने अपना टिकट 3rd ac मे करवाया था.
हम अपने डब्बे मे चढ़ गए.
मैंने सामान सेट किया और सीट पे बैठ गए.
अनुश्री बहुत ख़ुश थी आज उसकी खुशि उसके चेहरे से साफ झलक रही थी, होंठो पे लाली लिए उसके होंठ और ज्यादा कामुक और मादक लग रहे थे.
डब्बे मे मौजूद हर शख्स की नजर मेरी बीवी पे ही थी, मुझे ये सब सामान्य लगा अब सुन्दर चीज देखने के लिए ही तो होती है ना.
लेकिन मजाल की मेरी बीवी किसी की तरफ आंख उठा के देख ले.
मुझे अपनी बीवी की खूबसूरती और संस्कार पे गर्व होने लगा.
तभी एक दम्पति मेरी सीट के पास आये
लड़का :- भाईसाहब ये सीट मेरी है उठिये आप "
मै :- ऐसे कैसे ये तो मेरी सीट है मेरा रेसरवेशन है.
तभी TTE भी शोर सुन के पास आया.
Tte :- क्या बात है क्या प्रॉब्लम है?
मै :- देखिये ना सर ये मेरी सीट है और ये भाईसाहब बोल रहे है की मेरी है.
TTE ने हम दोनों के टिकट लिए
टिकट देखा फिर मुझे देखा "भाईसाहब ऐसा करे आप अगले स्टेशन से उतर के पीछे जनरल डब्बे मे चले जाये और फाइन भी भरते जाये "
मै :- ऐसे कैसे...? कैसे बात कर रहे है आप
मेरे और अनुश्री के चेहरे पे चिंता की लकीर आ गई.
TTE:- ये टिकट कल की डेट का था और आप आना ट्रेवल कर रहे है.
पड़े लिखें है देख के टिकट तो बुक करते.
अब मै सकते मे आ गया था मेरे से भागमभाग मे बड़ी गलती हो गई.
TTE से टिकट लगभग छीन के किसी उल्लू की तरह कभी टिकट देखता कभी TTE को
अनुश्री :- चलिए ना घर ही चले जायेंगे, यात्रा शुरू होते ही व्यवधान आ गया.कोई अनहोनी ना हो जाये.
मै :- कैसी बात करती हो अनु मै धंधा पानी छोड़ के छुट्टी ले के आया हूँ वापस जाने के लिए? तुम बैठो मै देखता हूँ.
मैंने बड़ी उम्मीद की नजर से TTE की तरफ देखा जो की मेरी बीवी को ही देख रहा था. उसकी नजरें कही टिकी हुई थी
जबकि अनुश्री सर झुकाये बैठी थी.
उसके स्तन वाकई ऐसे थे की ना चाहते हुए भी लोगो को दर्शन दे ही दिए थे,ये बात मेरे लिए सामान्य ही थी
परन्तु हो सकता है TTE के लिए ना हो मेरी आवाज़ से TTE का ध्यान भंग हुआ.
मै :- सर कुछ हो नहीं सकता? अब वापस जाऊंगा तो अच्छा नहीं लगेगा.
TTE :- बता तो चूका अगले स्टेशन उतर के जनरल डब्बे मे चले जाओ,उसका चालू टिकट मै दे देता हूँ.
लाओ हज़ार रूपए.
मैंने लाख कोशिश की लेकिन जवाब वही की जगह नहीं है.
अनुश्री :- जनरल डब्बे मे कैसे जायेंगे हम लोग.
मै :- अरी तुम डरती बहुत हो वहा कोई भूत नहीं रहते है इंसान ही है वो भी,खूब सफर किया है जनरल डब्बे मे.
अगले स्टेशन उतर के चले जायेंगे वैसे भी रात 12 बजे तक की ही बात है पूरी पहुंच जायेंगे
कम से कम वहा बैठे की जगह तो मिलेगी.
मेरे आगे अनुश्री कुछ बोल ना सकी.
ट्रैन धीमी होने लगी...हम लोगो ने अपने बैग उठा तैयार हो गए जनरल डब्बे मे जाने के लिए.
बस मै यही जिंदगी की सबसे बड़ी गलती कर गया....मुझे नहीं जाना था जनरल डब्बे मे.
अनुश्री का नजरिया
मै अनुश्री
अपने पति के साथ जगन्नाथ पूरी यात्रा पे निकली हूँ
मेरा मन सुबह से ही किसी अनजान आशंका से घबरा रहा था,फिर ट्रैन मे चढ़ते ही ट्रैन माँ लफड़ा हो गया.
मै जनरल डब्बे मे बिलकुल भी नहीं जाना चाहती थी परन्तु अपने पति मंगेश की बात मान कर स्टेशन पे उतर गए.
यहाँ ट्रैन ज्यादा समय के लिए रूकती नहीं थी तो अंगद दोनों हाथो मे दो बैग लिए दौड़ते हुए पीछे की तरफ भागे जा रहे थे.
मै भी उनके पीछे पीछे लगभग भागती हुई चली जा रही थी
"आज का दिन ही ख़राब है कहाँ मै ये ऊँची हील की सैंडल पहन आई, अच्छे से चला भी नहीं जा रहा"
तेज़ी से चलने की वजह से मेरी साड़ी अस्तव्यस्त हो रही थी कभी पल्लू गिरता तो उसे उठाती तो कभी अपना हैंडबैग संभालती.कभी हवा के जोर से साड़ी हट जाती और नाभि दिखने लगती.
ना जाने क्यों सभी लोग मुझे ही देख रहे थे या मेरा भरम था शायद मुझे क्यों देखनेगें भला.
"देख तो साली की गांड क्या हिल रही है साली खड़े खड़े पानी निकाल देगी ये तो " जल्दी जल्दी चलते हुए मेरे कानो मे ये शब्द पड़ गए जो की दो कुली आपस मे बात कर रहे थे..
ये शब्द नये नहीं थे मेरे लिए, मै अक्सर अपने जिस्म की तारीफ सुन लिया करती थी कभी मार्किट मे सब्जी लेते वक़्त तो कभी मॉल मे कभी सिनेमा हाल मे.
मै जल्दी मे थी मैंने उनपे ध्यान नहीं दिया.
कुकुकु..... ओह शिट ट्रैन चलने लगी.
ट्रैन को चलता देख मेरे हाथ पाँव फूलने लगे
अंगद भी कही दिखाई नहीं दे रहे थे लगता है मै काफ़ी पीछे ही रह गई थी.
तभी एक आवाज़ आई " अनु उसी डिब्बे मे चढ़ जाओ अगले स्टेशन मे पीछे आ जाना "
सामने देखा तो मेरे पति मंगेश D3 डब्बे से हाथ हिला के बोल रहे थे
D1 मेरे सामने था मुझे उनका सुझाव ही सही लगा.
ट्रैन अभी मध्यम गति पे ही थी,D1 के दरवाजे पे वैसे ही भीड़ थी,मै चढ़ने को ही थी की पल्लू सरक गया,
पल्लू संभालती उस से पहले ही दो हाथ मेरे पिछवाड़े आ के लग गए.
"अरे जल्दी चङो मैडम ट्रैन निकल जाएगी" एक जोड़ी हाथ पूरी तरह मेरे कुलहो पे कस गए भीड़ इतनी थी की ना पल्लू उठाने का समय था ना पीछे देखने का.
कथा जारी है.... अनुश्री की आशंका गलत नहीं थी.
कुछ तो है जो होने वाला है
बने रहिये
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