मेरी बीवी अनुश्री भाग -21
अपडेट -21
"देखा तुमने राजेश एक भी सीट खाली नहीं है" मंगेश ने तुनक के बोला.
राजेश :- सॉरी भैया वो माँ जी कि वज़ह से लेट हुआ मै.
" सर वो पीछे जगह खाली है आप वहाँ बैठ सकते है "पीछे से गाइड ने आवाज़ दि.
तीनो ने नजर उठा के देखा तो बस कि सबसे पिछली सीट पे तीन सीट खाली थी.
राजेश :- भैया मै तो पीछे नहीं बैठ सकता,कल रात का हैंगओवर उतरा नहीं है बस ज्यादा उछलती है तो मुझे उल्टी आती है.
मंगेश :- ठीक कह रहे हो यार मेरा भी वही हाल है,मेरा तो जी घबराने लगता है पिछली सीट पे.
क्या करे अब समस्या जस कि तस थी.
सभी बस यात्रियों कि नजर उन तीनो पे ही थी सबसे ज्यादा अनुश्री पे जो कि टाइट जीन्स टॉप मे मादक सी प्रतीत हो रही थी.उसका एक एक अंग अपने आकर को खुद बयान कर रहा था.
यहाँ तक कि नये शादी सुदा जोड़ो कि नजर भी अनुश्री पे ही बनी हुई थी.
लेकिन दो व्यक्ति खास तौर से अनुश्री के कामुक बदन को देख रहे थे, टॉप इतना लम्बा भी नहीं था हलके से मूवमेंट से ही नाभि के दर्शन हो जाते,सपाट पेट मे धसी हुई नाभि अपनी कामुकता का प्रदर्शन कर रही थी.
यहाँ अनुश्री को भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे.
"मंगेश हमें यही उतर के वापस होटल लौट जाना चाहिए " अनुश्री ने सुझाव दिया.
जो राजेश और मंगेश को भी ठीक ही लगा परन्तु कही ना कही उनके दिल मे घूम ना पाने का मलाला भी था.
मंगेश ने बस रुकवाने का विचार बना ही लिया था कि
" ओ बाबू मोशाय....सोमस्या है तो आप यहाँ बैठ जाओ हम पीछे चला जोयेगा "
ये वही दोनों बंगाली अधेड़ उम्र के आदमी थे जो बस मे चढ़ते वक़्त अनुश्री से टकराये थे.
दोनों ही अपनी सीट से उठ खड़े हुए,एक सरसराती नजर अनुश्री पे डाली और पीछे को चल पड़े
मंगेश :- धन्यवाद दादा.
पहला बंगाली :- धोन्यवाद कैसा बेटा तुम तो बोच्चा हो मेरा.
दोनों बंगाली मुस्कुरा दिये.
सीट खाली होते ही राजेश जल्दी से खिड़की वाली साइड मे घुस गया.
अनुश्री राजेश कि इस बचकाना हरकत पे मुस्कुरा दि.
मंगेश :- राजेश तुम यहाँ बैठोगे तो अनुश्री कहाँ बैठेगी?
मंगेश और राजेश ने अनुश्री कि टाफ देखा समस्या फिर वही आन खड़ी हुई थी.
"कोई बात नहीं मंगेश आप दोनों को ही पीछे बैठने मे समस्या है तो मै ही पीछे चल जाती हू,वैसे भी बस से तो साथ हू उतर के घूमना है"
अनुश्री के तो बिल्कुल भी मन नहीं था लेकिन अनुश्री परिस्थिति को अच्छे से समझती थी.
यही तो अनुश्री कि खास बात थी कि वो सबकी समस्या को आसानी से समझ लेती थी.
अनुश्री बस मे पीछे को चल पड़ी,मंगेश और राजेश सीट पे तस्सली से बैठ गए थे.
बहार रिमझिम बरसात चालू थी, 8सीट छोड़ के बस कि सबसे पिछली सीट आ गई थी.
"अंकल परेशान करना तो अच्छा नहीं लग रहा लेकिन क्या आप थोड़ा साइड आ जायेंगे," अनुश्री ने दोनों बंगलियों से सम्बोधित होते हुए खिड़की कि सीट कि और इशारा किया.
दूसरा बंगाली :- कोई बात नहीं आ जाओ सोमस्या कि क्या बात इसमें..दोनों साइड सरक गए
अनुश्री पीछे को मुड़ती हुई अपनी सीट कि तरफ चल दि, जगह इतनी कम थी या फिर अनुश्री कि गांड ही इतनी बड़ी थी कि उसका पिछला हिस्सा बंगाली आदमी के चेहरे से जा टकराया.
"ओ....सॉरी सॉरी अंकल " धम्म से अनुश्री अपनी सीट पे पसर गई.
अनुश्री को साफ अहसास हुआ था कि उसकी गांड से अंकल का चेहरा टकराया है.अनुश्री को शर्मिंदगी का अहसास हो चला था.
"कोई बात नहीं बेटा होता है, वैसे मेरा नाम चाटर्जी है और ये मेरे बचपन का दोस्त मुख़र्जी" दोनों ने खुद को परिचित करवाया.
अनुश्री ने दोनों का मुस्कुरा के अभिवादन किया.."मै अनुश्री हू अंकल "
अब खिड़की के पास अनुश्री बैठ चुकी थी,बगल मे चाटर्जी फिर मुख़र्जी.
चाटर्जी :- नाम तो तुम्हारी तरह ही खूबसूरत है बेटा.
अनुश्री झेम्प गई, उसे आज अहसास हो चला था कि वाकई वो खूबसूरत है
सभी उसकी खूबसूरती के कायल है सिर्फ उसके पति को छोड़ के,हाय रे नियति.
मुख़र्जी :- हमने भी शादी कि होती तो हमारी भी तुम्हारी तरह खूबसूरत बेटी होती,क्यों चाटर्जी
"कककककक.....क्या?" अनुश्री बुरी तरह चौकि
उसके लिए ये अजीब ही था कि कोई व्यक्ति कैसे कुंवारा रह सकता है.
चाटर्जी :- इसमें चौंकने वाली क्या बात है बेटा पैसा नौकरी मे ही लगे रह गए और जब तक शादी करते तब तक उम्र ही निकल गई थी, चाटर्जी ने इतनी मासूमियत और बेबसी से बोला कि अनुश्री को हसीं आ गई.
"हाहाहाहा.....क्या अंकल फनी है आप बहुत " अनुश्री को अब अच्छा लगने लगा था बाहार खुशनुमा मौसम,रिमझिम बारिश और अंदर फनी अंकल
"चलो बस का सफर आराम से बीत जायेगा " अनुश्री ने खुद से ही कहाँ
तभी बस मे अनाउंसमेन्ट होने लगा.
"बस पूरी से भुवनेश्वर तक का सफर तय करेगी, कोणार्क मंदिर,....एकलिंग मंदिर...आखरी मे जू तक जा के वापस लौटेंगे.
गाइड अपनी घोसणाओ मे बिजी था,
अनुश्री बहुत ख़ुश नजर आ रही थी आखिर कितने सालो बाद वो घूमने निकली थी,ऊपर से ये रूहाना मौसम एक अजीब से गुदगुदी अनुश्री के बदन मे घोल रहा था.
अनुश्री और चाटर्जी ठीक सीट के पीछे बैठे थे जहाँ अनुश्री को देख पाना लगभग नामुमकिन ही था. और किसे पड़ी थी देखने कि सभी सब अपने जोड़े या फिर फॅमिली मे व्यस्त थे.
गाइड कि अनाउंसमेंट पूरी हो चुकी थी.
अनुश्री बहार खिड़की से मौसम का लुत्फ़ उठा रही थी, ठंडी ठंडी नम हवा उसके तन बदन को छेड़ रही थी उसे एक अजीब सी गुदगुदी का अहसास हो रहा था.
कमी थी तो सिर्फ साथी कि,अपने पति के गर्म अहसास कि जिसकी कल्पना हर एक स्त्री करती है,
इतने सुहाने ठन्डे मौसम मे अपने पति का गर्म आलिंगन.
लेकिन क्या करे उसके पति को समझ ही कहाँ थी " खेर थोड़े वक़्त कि बात है कोणार्क मंदिर आने ही वाला है,फिर मंगेश के पास ही बैठ जाउंगी " अनुश्री ने खुद के मन को ही तसल्ली दि.
"क्या हुआ बेटा ठण्ड लग रही है?" अचानक आवाज़ से अनुश्री का ध्यान भंग हुआ
"कक्क....क्या अंकल " अनुश्री ने पाया कि चाटर्जी उस से कुछ पूछ रहा था.
"ठण्ड लग रही है तो इधर आ जाओ बीच मे "
"ना...न...न....नहीं तो " अनुश्री अचानक सवाल से थोड़ा हड़बड़ा गई थी क्यूंकि वो अपने ही विचार मे खोई हुई थी.
"क्या नहीं नहीं.....ये देखो " चाटर्जी ने अनुश्री के नंगे हाथ पे अपना हाथ रख सहला दिया " ये देखो रोंगटे खड़े हो रहे है ठण्ड से तुम्हारे.
सिलीवलेस टॉप से अनुश्री के गोरे हाथ पे उसके रोये खड़े हो गए थे.
"इसससससस......हहहहह....." अनुश्री को अहसास ही नहीं था कि उसके हाथ पैर ठन्डे हो गए है चाटर्जी के एका एक गर्म हाथ रख देने से उसके मुँह से गर्म आरामदायक सिसकारी निकल गई.
"नहीं...नहीं....अंकल ठीक है,अच्छा लग रहा है " अनुश्री ने खुद को संभाला वो इसी गर्म अहसास कि ही तो कल्पना कर रही थी.
"क्या ये अच्छा लग रहा है" चाटर्जी ने एक बार फिर अपनी हथेली को अनुश्री कि बाह पे ऊपर से नीचे फेर दिया
"नहीं....नहीं....बहार का नजारा अच्छा है " अनुश्री को इस बार ये स्पर्श कुछ अलग लगा
स्त्री मे कुदरत ने एक पावर दि है कि वो अच्छी बुरी छुवन पहचान लेती है
परन्तु ये अहसास ना अच्छा था ना बुरा कुछ अलग सा था गर्म सुखद.
अनुश्री ने खुद को थोड़ा और समेट लिया.
अनुश्री मे खुद को सँभालते हुए खिड़की से नजर फेरते हुए आगे देखा मंगेश और राजेश के सर दिखाई पढ़ रहे थे.
उन्हें देख के ऐसा लगा जैसे वो ऊंघ रहे हो.
" बेटा लगता है तुम यहाँ हनीमून पे आई हो " इस बार मुख़र्जी ने बातो का सिलसिला संभाला
"आ....हाँ हनन....अंकल "
"हमारी तो हनीमून कि उम्र भी निकल गई हेहेहेहेहे....." चाटर्जी और मुख़र्जी दोनों ताली दे हॅस पड़े
अनुश्री भी खुद को हसने से रोक ना सकी,मुख़र्जी का बोलने का अंदाज़ ही कुछ ऐसा था.
चाटर्जी :- अच्छी बात है बेटा जवानी को जी लेना चाहिए,खूब एन्जॉय करना चाहिए,वरना बुढ़ापे मे हमारी तरह अकेले भटकना पड़ता है.
चाटर्जी ने जैसे अनुश्री कि दूखती नस पकड़ ली हो.
अनुश्री उन दोनों कि बातो से इम्प्रेस हुए बीना रह ना सकी" कितने समझदार है ये अंकल लोग,एक मेरे पति को देखो कोई फ़िक्र ही नहीं है " अनुश्री अपने ही विचार मे फिर से कैद होने लगी.
मुख़र्जी :- तुम सोचती बहुत हो बेटा, जवान और खूबसूरत लड़की इतना सोचेगी तो कैसे जवानी का मजा लूट पायेगी.
"मजा" शब्द पे कुछ ज्यादा ही जोर था मुखर्जी का.
अनुश्री उन दोनो कि बातो से घिरती जा रही थी,बार बार जवानी,खूबसूरत,मजा जैसे शब्द उसके कान मे गूंज रहे थे.
दोनों बूढ़े अपने अनुभव का इस्तेमाल जानते थे.
"वैसे तुम जैसी बीवी होती मेरी तो कमरे से ही बहार ना निकलता " इस बार चाटर्जी ने बम ही फोड़ दिया
अनुश्री को अपने कानो पे यकीन ही नहीं हुआ " कक्क....क्या अंकल?"
"अरे बेटा शादी होती मेरी तुम जैसी किसी खूबसूरत लड़की से तो कमरे से भी बाहर नहीं निकलता मै हेहेहेहे... " बोलते हुए चाटर्जी ने अपना एक हाथ हलके से अनुश्री कि जाँघ पे रख दिया.
अनुश्री बुरी तरह झेम्प गई,उसे अपनी खूबसूरती कि तारीफ पसंद आ रही थी वो भी एक बुड्ढे के मुँह से " क्या अंकल आप भी इस उम्र मे भी, अब तो समय गया " अनुश्री हस पड़ी
अनुश्री उन दोनों के साथ काफ़ी कम्फर्ट महसूस कर रही थी,उसे इन दोनों से कोई डर नहीं था.
झेपने कि बारी अब दोनों बूढ़ो कि थी,दोनों के मुँह एक दम से लटक गए.
हेहेहेहे......अनुश्री इस बार खिलखिला के हॅस पड़ी.
चाटर्जी :- ऐसी क्या बात करती हो बेटी जवानी तो अभी भी कूट कूट के भरी है हम मे बस कोई मौका तो दे.
चाटर्जी ने इस बात का पूरा फायदा उठाते हुए अनुश्री कि जाँघ पे हाथ रख दबा दिया.
अचानक हमले से अनुश्री कि हवा निकल गई,उसकी हसीं एक पल मे ही बंद हो गई "कककक.....क्या अंकल?" जैसे तो उसे क्या हुआ समझ ही नहीं आया.
" जवानी दिखाने का मौका तो मिले बेटी " चाटर्जी ने इस बार कस के जाँघ को दबा दिया,बैठने से अनुश्री कि जाँघ जीन्स मे और ज्यादा कस गई थी इतनी कि चाटर्जी कि हथेली मे समा ही नहीं रही थी.
"इससससस......अअअअअ..."अनुश्री को एक सुखद गर्म अहसास ने घेर लिया,उसे तुरंत इस बात का अहसास हो चला था कि उसने अनजाने मे ही गलत बोल दिया लेकिन अब तो तीर निकल चूका था.
"तो शादी क्यों नहीं कर लेते आप लोग " अनुश्री ने चाटर्जी के स्पर्श को नजर अंदाज़ करते हुए कहा,वो खुद के मन को बहला रही थी कि ये स्पर्श एक बुजुर्ग का है.
"तुम जैसी मिली ही कहाँ अभी तक अनु " इस बात चाटर्जी बेटी से सीधा अनु पे आ गया था
"कककक.....क्या?" अनुश्री कि हालात अब ख़राब हो चली थी उसे अब सही नहीं लग रहा था,उसका दिल धाड़ धाड़ कर बज उठा जैसे खतरे का सिग्नल दे रहा हो.
" वही तो तुमने सुना अनु, तूँ जैसे सुन्दर कामुक कसी बदन कि लड़की मिली ही नहीं हमें, मिलती तो दोनों एक साथ उसी से शादी कर लेते,क्यों मुख़र्जी? चाटर्जी ने मुखर्जी को भी शामिल कर लिया था उसका हाथ अनुश्री कि जाँघ पे ऊपर कि तरफ खिसक गया.
"ये.....ये....ये....क्या कर रहे है अंकल आप?" अनुश्री ने झट से सीट पे सीधी हो गई,उसने आपन एक हाथ चाटर्जी के हाथ ोे रख दिया कि तभी....ढाँचाछ्हाकककक.....
बस किसी गढ़े से निकली.....".आउच" ..करती अनुश्री सीट पे उछल पड़ी साथ ही उसके स्तन ने भी एक जबरदस्त उछाल भरी.
इस उछाल को चाटर्जी और मुखर्जी देखते ही रह गए,उनके सामने दो बड़े भारी स्तन उछल के गिर पड़े थे.
"आआहहहह.....वाओ.....अनु कितने सुन्दर....है.."
"कककक.....क्या?" अनुश्री नारी सुलभ व्यवहार मे पूछ ही बैठी
उसका एक हाथ अभी भी चाटर्जी के हाथ के उपर ही था जो कि उसे आगे बढ़ने से रोके हुए था.
"तुम्हारे दूध....कितने सुंदर और कितने बड़े है,तुम्हारा पति चूसता है क्या?" चाटर्जी बिना डरे खुल के मैदान मे आ गया था
और उसकी हिम्मत का कारण खुद अनुश्री ही थी जिसने उसका नाम.मात्र का ही विरोध दर्ज कराया था.
"ये...ये....क्या बेहूदगी है " अनुश्री बुरी तरह सकपका गई थी,गुस्से भारी नजर से उसने चाटर्जी कि तरफ देखा और उसके हाथ को अपनी जाँघ से हटाना चाह.
"बताओ ना तुम्हार पति चूसता है क्या इन्हे,मेरी बीवी होती तो निचोड़ देता,क्यों मुख़र्जी?
मुख़र्जी :- बिल्कुल भाई ऐसे मोटे बड़े स्तन को कौन ना चूसे भला, नामर्द है जो ना चूसे.
बता ना अनु चूसता है ना तेरा पति?
अनुश्री बुरी तरह फस गई थी क्या बोलती उसे तो याद ही नहीं था कि कब उसके पति ने उसके स्तन मे मुँह घुसाया था, उसे आज ज्ञान हुआ कि ऐसा कुछ तो उनके बीच हुआ ही नहीं,लेकिन जवाब क्या दे,"मना कर दे तो? नहीं नहीं....मंगेश नामर्द थोड़ी ना है " अनुश्री के दिल मे मुख़र्जी कि बात ने चोट पंहुचा दि थी.
"अअअअअ.....ह..ह..हनन.हाँ.चू..चू....चूसता है " ना जाने कैसे वो ये बोल गई शायद अपने पति कि लाज बचाने को बोल गई.
दो अनजान आदमी के सामने वो होने स्तन चूसने कि बात कर रही थी,इस बात के अहसास ने उसे अंदर तक कंपा दिया था उपर से भर से आती ठंडी हवा उसका रहा सहा मनोबल भी तोड़ रही थी.
वो बदन कि कच्ची होती जा रही थी.
चाटर्जी :- मै ना कहता था मुखर्जी कि इसका पति जरूर इसके दूध पीता होगा तभी तो इतने बड़े और कसे हुए है
चाटर्जी के हाथ ने हरकत कि और हल्का सा ऊपर खिसक गए,
यहाँ अनुश्री कि आज्ञा के बिना उसके दूध कि बात हो रही थी.
अनुश्री इन कामुक बातो और चाटर्जी कि हरकतों से गरमानें लगी थी,उसका मनोबल एक बार फिर टूट रहा था.
ना जाने क्यों उसकी पकड़ चाटर्जी के हाथ पे ढीली हो गई.
पकड़ ढीली होनी थी कि.....इसससससस.......आआआआहहहहहह........नहीं...नहीईईईई......अनुश्री के मुँह से एक कामुक दबी हुई सिसकारी निकल पड़ी ससससस......इशाम्म....
चाटर्जी के हाथ सीधा अनुश्री कि जाँघ के बीच घुस गया था.
अनुश्री ने तुरंत चाटर्जी के हाथ को फिर से पकड़ लिया लेकिन उसे वहाँ से हटाने कि हिम्मत नहीं हुई.
अनुश्री कि सिसकारी निकली ही थी...ककककररररररर......उसकी सिसकारी माइक से आती आवाज मे दबने लगी...
"लेडीज एंड जेंट्स कोणार्क मंदिर आ चूका है,यहाँ सभी लोग उतरेंगे दर्शन करेंगे,फिर लंच करने के बाद बस वापस चलेगी" गाइड कि आवाज़ से बस मे हलचल शुरू हो गई थी.
अनुश्री को जैसे होश आया,वो धरातल पे धम से गिरी हो,
उसके होश उड़े हुए थे.बस रुकने लगी थी
"चलो बेटा दर्शन करते है पहले, दूध भी पी लेंगे " बोलते हुए दोनों बूढ़े आगे बढ़ चले
अनुश्री को कुछ समझ नहीं आ रहा कि अभी क्या हुआ वो ठगी सी वही बैठी रही बहार से आती रुमानी हवा अभी भी उसके बदन को झकझोर रही थी उसके खड़े रोंगटे इस बात का सबूत थे.
क्या करेगी अनुश्री अब?
संभलेगी या और बहकेगी?
बने रहिये...कथा जारी है
Post a Comment