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मेरी बीवी अनुश्री भाग -24

अपडेट -24


बस पूरी तरह रुक चुकी थी, यात्री उतरने लगे थे

परन्तु अनुश्री कि सांसे रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.

"पच....पाचक.....पच....करता पानी अभी तक अनुश्री कि चुत से निकल रहा था

आंखे बंद किये अनुश्री अपने विचार मे घूम थी उसे कभी ऐसी असीम शांति नहीं मिली थी,ऐसा सुकून का अहसास,इतना पानी उसकी चुत ने कभी नहीं छोड़ा था.

पीछे सीट पे सर टिकाये उसके बदन ढीला पढ़ गया था,सांस ना चल रही होती तो कोई उसे मरा समझ लेता.

"अनु....अनु.....क्या हुआ,ठीक तो हो " एक जोड़ी हाथ ने अनुश्री को कंधो से पकड़ के झकझोड़ दिया.

"अअअअअ......हनन...हाँ..पप...पानी.." अनुश्री ने धीरे से आंखे खोल दि

सामने मंगेश खडा था उसके पीछे राजेश.

"लगता है भाभी कि आंखे लग गई थी " लो भाभी पानी राजेश ने पानी कि बोत्तल अनुश्री को पकड़ा दि

अनुश्री ने पानी कि बोत्तल लगभग झपट ली,ना जाने कब से प्यासी थी "गट...गटक....गट.....करती" एक बार मे ही पूरी बोत्तल खाली कर दि.

"क्या हुआ अनु.....ठीक तो हो ना, और ये केले अभी तक खाया नहीं हाथ मे ही पकड़ के बैठी हो " मंगेश ने इस कदर पानी पीते देख पूछा



"हाहांन्न...हाँ....मंगेश " अनुश्री के जिस्म मे वापस से ताकत का संचार होने लगा,

सर उठा के देखा तो अभी भी केला उसकी हाथ मे था,उसकी पकड़ से केले के आगे का हिस्सा खुल गया था.

उसे याद आय कि झाड़ते वक़्त उसने हथेली को भींच लिया था, उसकी का परिणाम था ये केला.


ठन्डे पानी ने उसके गले को फिर से तर कर दिया,

आज उसे ये पानी अमृत सामान महसूस हुआ था.

"सो गई थी क्या? आओ चलो भुवनेश्वर आ गया है,नन्दनकानन जू " मंगेश ने अनुश्री को उठाना चाहा

"इतनी जल्दी.....अभी तो हम कोणार्क से निकले थे " अनुश्री हैरान थी इतनी जल्दी कैसे बस भुवनेश्वर पहुंच गई

उसने बाहर झाँक के देखा सामने ही जू था, साँझ ढलने कि लालिमा चारो तरफ फ़ैल गई थी.

अनुश्री ने आश्चर्य से कलाई घड़ी को देखा 4.30 हो गए थे.

ये कैसा करिश्मा था,कहाँ गया इतना वक़्त....

"अरे ये क्या कर रही हो,तुम तो ऐसे हैरान हो रही हो जैसे भूचाल आ के गुजर गया हो " मंगेश ने अनुश्री को उठता ना पा के झुंझुला के बोला. बहार मौसम ख़राब था इसलिए बस सीधा जू पे ही आके रुकी है.

"भूचाल तो आया ही था मंगेश " कैसे कह दे अनुश्री कि वो इस भूचाल से अभी अभी जिन्दा बच के लौटी है.

"आ...आप लोग हो आओ मेरे सर मे हल्का दर्द है " अनुश्री ने साफ बहाना किया उसका कतई मन नहीं था जाने का.

उसके मन मे तूफान मचा था, साथ जाती तो छुपा नहीं पाती,उसे आराम कि सख्त जरूरत महसूस हुई.

"मैंने पहले ही कहाँ था मत भिगो बारिश मे,हो गई ना बीमार " मंगेश चिड़चिड़ाता हुआ अनुश्री को बस मे छोड़ के बहार निकल गया पीछे पीछे राजेश भी उतर गया.


"उफ्फफ्फ्फ़..ओ गॉड " अनुश्री ने राहत कि सांस छोड़ते हुए खुद को पीछे टिका दिया, दोनों हाथो से बालो को समेट पीछे कर दिया,उसकी आंखे खुद बंद हो चली.

"ये क्या हो रहा है मेरे साथ, मै ऐसी तो नहीं थी?" अनुश्री खुद से ही सवाल कर रही थी

कितनी बदल गई थी अनुश्री जहाँ ट्रैन के सफर मे उसने संस्कार का चोला ओढ़ रखा था,वही ये चोला बस के सफर मे तार तार हो रहा था.

"क्यों मै खुद को रोक नहीं पाती? लेकिन क्या करू कैसे रोकू?

"नहीं नहीं....मै मंगेश को धोखा नहीं दे सकती"

"अब तुम जैसी जवान लड़कि जवानी का मजा अब नहीं लेगी तो क्या बुढ़ापे मे लेगी " अनुश्री के कान मे चाटर्जी के काहे शब्द गूंजने लगे

"जवानी मजे के लिए ही होती है,तेरा पति चूसता है क्या तेरे दूध " मुखर्जी के शब्द दूसरे कान मे चुभने लगे

अनुश्री अजीब कसमकास मे थी,ना जाने क्या जादू चला गए थे दोनों बंगाली बूढ़े.

अनुश्री आंख बंद किये खुद से ही लड़ रही थी कि " मैडम आपकी चुत इतनी गीली कैसे हो गई "

एक खरखराती भारी आवाज़ उसके कानो मे पड़ी.

अनुश्री उस आवाज़ को जानती थी,एक दुम से उसके होश उड़ गए आंखे खुल गई

सामने अब्दुल खड़ा था अपने गंदे दाँत दिखता हुआ.

अनुश्री के कान मे जैसे ही ये शब्द पड़े उसका ध्यान अपनी जांघो के बीच गया,तुरंत उसने सीट का सहारा छोड़ दिया गर्दन झुका के देखा तो पे कि उसके जाँघ के बीच का पूरा हिस्सा गिला था, ध्यान आते ही उसे अपनी चुत के आस पास चिपचिपा सा अहसास होने लगा.

उसके अंदर सर उठाने कि भी हिम्मत नहीं थी, दिल धाड़ धाड़ के बज उठा.

"हे भगवान ये क्या हो गया है मुझे? मै कैसे भूल गई कि अब्दुल इसी बस का ड्राइवर है " अनुश्री खुद को ही कोस रही थी क्यों वो बस से नीचे नहीं उतरी.

"बताइये ना मैडम आपकी चुत इतनी गीली क्यों है? पेशाब लगा था क्या उस दिन कि तरह?" अब्दुल ने आते ही सीधा हमला बोलना शुरू कर दिया था सम्भलने का वक़्त ही नहीं था अनुश्री के पास.

अनुश्री के जहन मे उस दिंन कि याद एकदम से ताज़ा हो गई,जब वो पहली बार अब्दुल के सामने बाथरूम मे अपनी गांड घिस रही थी.

"न...नन...नननन नहीं तो " अनुश्री हकला गई

अब्दुल उसे बखूबी जानने लगा था शायद उसके पति से भी ज़्यदा.

"क्या मैडम साफ दिख रहा है देखो कितनी गीली है, आपकी छोटी सी चुत साफ दिख रही है "

अब्दुल का कहना सही था,अनुश्री के जाँघ का भीतरी हिस्सा चुत रस से भरा था, जीन्स इस कदर चुत से चिपक के अंदर घुस गई थी कि अपना छोटा सा आकर साफ बयान कर रही थी.

गर पैंटी उतार के निचोड़ देती तो पानी कि तरह चुत रस टपक पड़ता.

"तत...तुमसे मतलब " अनुश्री ने आज गजब कि हिम्मत दिखाई

अब्दुल को इस जवाब कि बिल्कुल भी अपेक्षा नहीं थी,

"क्या मैडम झूठ बोलती हो ये तो आपकी चुत से निकला पानी है,उसी दिन कि तरह जैसे अपने मेरे लंड को देख के निकाला था" अब्दुल सीधा मुद्दे पे आ गया था समय नहीं था उसके पास, उसका एक हाथ पैंट मे से ही अपने लंड को घिस रहा था.

अब्दुल बार बार उसी दिन का जिक्र कर रहा था जब वो अनुश्री के सामने लंड हिला रहा था,

उस दिन और लंड का जिक्र आते ही अनुश्री को अब्दुल का लंड साक्षात् दिखने लगा,भयानक कला लंड,बिना चमड़ी का

अनुश्री एक बात फिर से हवस रुपी कुए के मुहाने पे जा खड़ी हुई.

"फिर देखिगी क्या मैडम " चीत.....चिररररर.....करता अब्दुल ने अपनी पैंट कि जीप को नीचे कर दिया

शायद अब्दुल अनुश्री को कमजोरी समझ चूका था,उसे कैसे बहकाना है वो बाखुबी जान चूका था.

चैन खुलने कि आवाज़ ने अनुश्री के कलेजे को चिर के रख दिया....इधर अब्दुल चैन खोलता उधर अनुश्री को लगता जैसे किसी ने उसकी चुत कि दरार मे चाकू रख नीचे सरका दिया है.

"आआहहहहह......अब्दुल...नहीं " अनुश्री कि आह इतने मे ही निकल गई वो पहले से ही गरम थी उसे ये सब बर्दाश्त नहीं हो रहा था.

उसने सर उठा के देख,सामने अब्दुल चैन को नीचे किये खड़ा था,उसके लंड का उभार साफ साफ दिख रहा था.

अनुश्री के दिल ने ना जाने क्यों उस भयानक लंड को देखने कि इच्छा होने लगी.

उस लंड का आकर था ही ऐसा भयानक कि, उसे फिर एक बार देखने कि चाहत ने जन्म ले लिया.

अभी अभी कसमें वादे कर के हटी थी अनुश्री,लेकिन सामने उसकि कमजोरी खड़ी थी

सुडोल शानदार कला बड़ा लंड का उभार जिसे एक बार पहले भी देख चुकी थी.

अनुश्री का गला एक बार फिर सूखने लगा.


उसका दिल ये सब मानने को तैयार ही नहीं था लेकिन उसका बदन उस उभार को छूना चाहता था

ना जाने कैसे अनुश्री इस तरह बदल गई थी,

मंगेश कि उपेक्षा, रूहानी मौसम और सुलगता बदन उसे मजबूर कर रहा था "कौन है यहाँ बस तो खाली है कर ले अपने मन कि "

उसके बदन ने उसका समर्थन कर दिया था.

अनुश्री का हाथ उठने ही लगा था कि.....

"अरे अब्दुल मियाँ आप..? यहाँ क्या कर रहे है? क्या हुआ अनु?"

अचानक आवाज़ से दोनों के प्राण ही सुख गए,जानी पहचानी आवाज़ थी

दोनों के चेहरे सफ़ेद पढ़ गए.

अब्दुल तुरंत पीछे को पलट गया "मममममम.....मंगेश सर...वो...वो..."

"क्या हुआ अब्दुल मियाँ ऐसे बकरी कि तरह क्यों मिमिया रहे हो? "

"सर.....वो....वो...देखने आया था कि बस मे कौन बैठा है,देखा तो मैडम थी तो हाल चाल जानने चला आया "

अब्दुल ने घबराहट मे भी स्थिति को संभाल लिया था. लेकिन चेहरे पे हवाइया उडी हुई थी.

"अच्छा चलो हटो अब " मंगेश कि नजर अब्दुल कि खुली चैन पे बिल्कुल भी नहीं गई.

अब्दुल मंगेश को क्रॉस करता हुआ आगे निकल गया,तब जा के उसकी जान मे जान आई.

कोई चोर चोरी से बाल बाल बच जाये वही हालात थे अब्दुल के.

अनुश्री तो जैसे जड़ ही हो गई थी,जो हाथ उठा था उठा ही रह गया, उसका चेहरा बिल्कुल सफ़ेद पड़ चूका था जैसे खून ही ना हो शरीर मे.

"ये लो जान चाय पी लो,थोड़ी राहत मिलेगी सर दर्द मे " मंगेश ने चाय का कप अनुश्री कि ओर बड़ा दिया.

अनुश्री जो कि अभी भी शून्य अवस्था मे ही थी उसे यकीन ही नहीं था कि वो क्या पाप करने जा रही थी.

अभी तक जी हुआ सब अनजाने मे हुआ,उसने खुद से कुछ नहीं किया

परन्तु आज वो किसी बाज़ारू औरत कि तरह खुद से अब्दुल का लंड पकड़ने जा रही थी.

"क्या हुआ जान ऐसे क्यों गुमसुम हो " मंगेश अनुश्री के बगल मे बैठ गया

जैसे ही मंगेश बैठा अनुश्री उस से जोरदार तरीके से लिपट गई " सुबुक.....मुझे माफ़ कर दो मंगेश सुबुक "


"क्या हुआ जान किसी ने कुछ कहाँ " मंगेश को कुछ समझ नहीं आया कि अनुश्री को अचानक क्या हुआ वो इतनी भावुक कैसे हो गई.

अब अनुश्री कैसे कह दे कि वो कामवसना मे जल रही है,बार बार उसकी चुत झड जा रही है, उसका बदन उसे धोखा दे रहा है.

सुबुक....सुबुक.....अनुश्री सिसक रही थी चुपचाप

"अच्छा चलो ये चाय पी लो फिर बताओ क्या हुआ " अनुश्री ने चाय का कप पकड़ लिया

"वो....वो.....मेरी वजह से आपको जुखाम हुआ ना, मै सिर्फ तुम्हारा साथ चाहती थी मंगेश " अनुश्री साफ साफ अपनी बात से पलट गई

हाय रे नारी....कब कौन सा रंग दिखा दे कौन जाने

अनुश्री भी अपने जज़्बात, अपनी भावनाओं को दबा गई, उसकी वजह से उसका पति दुखी हो वो नहीं चाहती थी.

"पागल बस इतनी सी बात,मै नाराज नहीं हू और रही साथ कि बात तो अभी घूम लो आज रात होटल मे जम के प्यार करेंगे " मंगेश ने अनुश्री को खुद से अलग करते हुए आंख मार दि


अनुश्री शर्मा गई,सर झुका लिया " क्या आप भी मंगेश " और मंगेश के सीने पे एक हल्का सा घूँसा मार दिया


अनुश्री कि चाय ख़त्म हो गई थी " अच्छा सुनो ना मुझे टॉयलेट भी आया है चलो ना "

अनुश्री झाड़ने के बाद से ही पेशाब का दबाव महसूस कर रही थी.

"अच्छा चलो जान "

दोनों मियाँ बीवी बस से उतर गए थे,पीछे ड्राइविंग सीट पे बैठा अब्दुल लंड मसलता उन्हें जाता देखता रहा.

"साला इसके पति को भी अभी आना था "


अनुश्री के प्यार कि गाड़ी तो वापस पटरी पे आ चुकी थी.

क्या वाकई? या फिर से अनुश्री पटरी बदल लेगी, प्यार कि पटरी से हवस कि पटरी पे?

बने रहिये कथा जारी है....

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